Kataasraj.. The Silent Witness - 94 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 94

भाग 94

देश आजाद हो गया था, पर इसकी खुशी धूमिल पड़ गई बंटवारे के फैसले से।

इस खबर को सुन कर कि देश का बंटवारा होने जा रहा है, जो उत्पात दंगाइयों ने कुछ दिन पहले मचाया था, फिर से उसकी पुनरावृति की प्रबल संभावना बन रही थी। विभाजन चाहने वालों और ना चाहने वालों के बीच खाई बढ़ती ही जा रही थी। कुछ जिन्ना की विचार धारा के समर्थक को अपना अलग देश हर कीमत पर चाहिए ही था। वो तो पा ही लिया था। पर अब वो पहले की तरह मिल जुल कर रहने को राजी नहीं थे। उन्हे अपने नए नए मिले इस देश में मुस्लिमों के अलावा हिंदू, सिक्ख, जैन, कोई भी मंजूर नहीं था। जबरन हिंदुओं के घर पर कब्जा कर उन्हें मारा काटा जाने लगा। जान बचाने को मजबूर हो कर पलायन ही एक रास्ता बचा था। जो लोग इस आशंका को पहले ही भांप गए थे। वो महीनों पहले से अपने अपनों के पास सुरक्षित पहुंच गए थे।

शायद अशोक और उर्मिला से ज्यादा आगे आने वाली परिस्थिति को चाची ने भांप लिया था। इसी कारण वो उनको इस तीर्थ यात्रा पर आने से रोकने की पूरी कोशिश की थी। पर उन दोनों को इस बात का जरा सा भी अंदेशा नहीं था कि हालात इतने खराब हो जायेंगे। ना एक दूसरे की जान की कीमत रहेगी, ना एक दूसरे की बहु बेटियों के आबरू की। जो आज तक एक दूसरे की सुरक्षा करते थे, अब आपस में ही खून ही होली खेलेंगे।

अमन चाहता था कि आगे कुछ और भी बुरा हो इससे पहले वो पुरवा और बाऊ जी को सिवान सुरक्षित पहुंचाने की व्यवस्था कर दे।

डॉक्टर से बात किया तो उसने कल डिस्चार्ज करने की सहमति दे दी। पर वक्त पर दवा और उचित उनके बताए अनुसार खान पान का ध्यान रखने को कहा। अमन ने पुरवा को सब कुछ अच्छे से डॉक्टर साहब से समझ लेने को कहा जिससे दवा और परहेज नियम से पूरा हो सके।

अगले दिन अशोक की अस्पताल से छुट्टी करा ली गई। जब तक जाने कोई पुख्ता इंतजाम न हो जाए उन्हें वैरोनिका के घर ही रहना था। अमन पूरी भाग दौड़ कर के यूपी बिहार जाने वाली गाड़ियों के बारे में पता कर रहा था।

अजीब सी भगदड़ मची हुई थी। सारी ट्रेनें मुसाफिरों से ऊपर से नीचे तक अटी हुई आ और जा रही थीं। जिस हिस्से को पाकिस्तान घोषित करना था उस हिस्से से हिंदू पलायन कर रहे थे और हिंदुस्तान वाले हिस्से से मुस्लिम पलायन कर रहे थे।

पर कुछ लोग ऐसे भी थे जो जहां रह रहे थे अपनी जन्म भूमि, अपनी मातृभूमि को छोड़ कर जाने को राजी नहीं थे। ऐसे कैसे ये अंग्रेज देश को दो टुकड़ों में बांट दे रहे हैं। हम नही जायेंगे उन्हें घोषित पाकिस्तान से मार दिया जा रहा था। पूरा पूरा परिवार तबाह हो जाए रहा था। जो भागने में सफल हो रहे थे उनकी ही जान बच पा रही थी।

अशोक के घर आने के अगले ही दिन शाम को विक्टर फिर से अचानक आया।

देश के बिगड़े हालात से बेहद घबराया हुआ था। मात्र चार घंटे की छुट्टी के बाद उसे फिर से गाड़ी ले कर जाना था। आते ही वैरोनिका से बोला,

"दीदी..! बहुत भूखा हूं। जल्दी से कुछ मेरे खाने के लिए बना दो। साथ में कुछ पूरी और सब्जी भी ले जाने के लिए दे देना। अब इस तरह के माहौल में मुझे खाना कहां नसीब होगा..!"

गरमी और पसीने से बेहाल तुरंत नहाने चला गया।

नहा कर आया तो बोला,

"दो दीदी…! कुछ..? जो भी हो दे दो। मैं थोड़ी देर सोऊंगा। तुम साढ़े तीन घंटे बाद मुझे जगा देना।"

वैरोनिका ने दिन की बची रोटी सब्जी उसे खाने को दे दी। क्योंकि इतनी कुछ भी नही बन सकता था।

वैरोनिका ने विक्टर को खाने की थाली पकड़ा दी।

भूखा विक्टर जल्दी जल्दी बड़े बड़े कौर खाने लगा।

खाते हुए बोला,

"दीदी अब तो लग रहा है महीने दो महीने तक मुझे ट्रेन में ही रहना पड़ेगा। एक दिन की भी छुट्टी नही मिल पायेगी।"

फिर बोला,

"जानती हो दीदी स्पेशल ट्रेनें चला कर लोगों को इधर से उधर किया जा रहा है। आज कालका मेल जिसे मैं ले कर आया हूं उसे गोरखपुर भेजा जा रहा है, स्पेशल ट्रेन बना कर। उधर यूपी बिहार के बहुत सारे लोग इधर फंसे हुए है। उनकी ही मांग पर इसे आज ले कर जा रहा हूं।"

आखिरी कौर मुंह में डाल कर बोला,

"बस दीदी ये इधर का उधर, इधर का उधर हो जाएं ना तो फिर मैं यहां नही रहुगा। मैं तो हिंदुस्तान में चला जाऊंगा। दीदी आप भी अपना सब कुछ सेटल कर लो। वरना यहां अकेली कैसे रहोगी..?"

वैरोनिका बोली,

"मैं कैसे जा सकती हूं इस मुश्किल वक्त में..! यहां घायलों को मेरी जरूरत है।"

"तो क्या वहां घायल नही है..! यहीं वाले तो घायल कर के वहां जाने पर मजबूर कर रहे हैं। वास्तव में दीदी वहां ही तुम्हारी ज्यादा जरूरत है।"

अमन जो अभी दो मिनट पहले ही बाहर से लौटा था। वो विक्टर और वैरोनिका की बातें सुन रहा था। परेशानी में वो इतना डूबा हुआ था कि विक्टर की बात पर तुरंत ही उसका ध्यान नहीं गया। जब कुछ देर बात सोचा तो उछल पड़ा विक्टर की बात पर गौर कर के। अब तो कोई समस्या रह ही नहीं गई। चुटकी में समाधान मिल गया। विक्टर भाई ट्रेन ले कर गोरखपुर ही तो जा रहे हैं। इससे अच्छी बात क्या होगी..! वो अशोक चच्चा और पुरु को लिए जायेंगे साथ में।

फौरन ही वो उठ कर विक्टर के पास गया। विक्टर हाथ धो कर सोने ही जा रहा था।

वो बोला,

"भाई आप गोरखपुर जा रहे हो ट्रेन के कर..?"

विक्टर लेट कर बोला, "हां.! जा तो रहा हूं।"

विक्टर से लगभग गिड़गिड़ाते हुए अमन ने कहा,

"भाई…! आप पुरु और उसके बाऊ जी को अपने साथ लेते जाइए। वहीं .. उसी तरफ तो है उनका घर। बड़ा एहसान होगा। ये लोग सुरक्षित अपने घर पहुंच जायेंगे आपके साथ। उसकी अम्मा को तो खो ही चुके हैं। अब इन्हें कुछ नही होना चाहिए।"

विक्टर बोला,

"कैसी बातें कर रहे हो अमन..! लेता जाऊंगा मैं इनको। इसमें एहसान की क्या बात है। बाद तैयारी कर को। तीन घंटे का समय है तुम्हारे पास।"

इतना कह कर विक्टर सो गया।