Kataasraj.. The Silent Witness - 108 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 108

भाग 108

पुरवा को तकलीफ थी कि महेश उसे छोड़ने हॉस्पिटल तक भी नही आए थे। उनके लिए उसकी तबियत से ज्यादा काम का महत्व था।

इलाज का दौर शुरू हुआ। तरह तरह की दवाइयां, इंजेक्शन उसे दिन में कई बार दी जाती थी।

पर सुई दवा भी तभी काम करती है जब दिल में ठीक होने की इच्छा हो। पुरवा बे मन से सब कुछ करती। पूर्वी तो रोज ही आती थी मिलने। पवन और विजया छुट्टियों में महेश के साथ आते थे। बस कुछ देर के लिए। आते मिल कर चले जाते।

पुरवा अब बस घर से अपने साथ लाए कान्हा जी के साथ अपने दिन और रात बिताती। उन्ही से अपने दिल का सारा दुख दर्द बताती।

एक दिन पूर्व विवान को ले कर अपने साथ पुरवा से मिलने आई।

गोरा लंबा सुंदर नीली आंखों वाला विवान मिलते ही पुरवा के दिल में उतर कर किसी की याद दिला गया। कोई भी दो शख्स ने इतनी समानता कैसे हो सकती है..! विवान बिलकुल वैरोनिका आंटी के भाई विक्टर की कार्बन कॉपी लग रहा था। पुरवा को एक झटके से अपना अतीत याद आ गया। विक्टर ने आ कर पुरवा के पांव छुए और बोला,

"हैलो.. आंटी जी… कैसी हो अब आप।"

विवान की निर्दोष बच्चों जैसी मुस्कान ने पुरवा का दिल जीत लिया। वो कमजोर से उतरे हुए चेहरे पर जबरन मुस्कान लाते हुए बोली,

"बेटा..! तुम्हें देख लिया। अब ठीक हूं। (फिर मायूसी से बोली) मुझसे दूर ही रहे बेटा। तुम तो डॉक्टर हो सब कुछ जानते ही हो।"

विवान बोला,

"आप चिंता मत करिए आंटी..! मुझे इलाज के साथ साथ अपना बचाव कैसे करना है ये भी पता है।"

पुरवा अधीर हो रही थी विवान के परिवार के बारे में जानने को। उसने पूछा,

"बेटा..! तुम्हारे पापा का नाम क्या है..?"

विवान बोला,

"आंटी..! मेरे डैडी का नाम ’विक्टर डिसूजा’ है।"

विक्टर नाम सुनते ही पुरवा के मुंह से निकला,

"क्या वो रेलवे में गार्ड है..?"

विवान का जो जवाब था उससे पुरवा का अंदाजा सच साबित हो गया। वो बोला,

"जी आंटी वो थे मगर अब रिटायर हो गए हैं। पर आपको कैसे पता कि वो गार्ड थे..?"

वो हैरान था पुरवा से अपने डैडी के गार्ड होने के बारे में जान कर। आखिर इन्हें कैसे पता..? ये सुन कर सिर्फ विवान नही हैरान थी। पूर्वी भी चकित थी।

पुरवा ने पूछा ये सब छोड़ो। पहले ये बताओ.. तुम्हारे डैडी की बहन वैरोनिका थी। क्या तुम्हें उनके बारे में पता है वो कहां हैं..?"

विवान बोला,

"जी आंटी..! है ना.. जानता हूं मैं। पर वो हमारे साथ यहां नही रहती है। वो पाकिस्तान के लाहौर …में रहती हैं।"

पुरवा ने इस जन्म में तो अमन की कोई हाल खबर या उससे मुलाकात की तो आशा छोड़ चुकी थी। पर वो ऊपर वाले के खेल को वो भली भांति देख चुकी थी। अब वो क्या चाहता है ये वही जानें..! इस तरह अचानक उसका असाध्य बीमारी से ग्रसित होना, फिर विवान का उसके सामने आना..! मन की शंका को शांत करने की अपेक्षा से उसने विवान से पूछा,

"वो वहां अकेली रहती है..?"

विवान ने जवाब दिया,

"नही आंटी..! वो वैरोनिका आंटी के साथ एक डॉक्टर अमन रहते हैं। वो आंटी के सगे बेटे तो नही हैं पर बेटे से भी बढ़ कर हैं। वो उन्ही के साथ रहती हैं।"

पुरवा अमन का नाम सुनते ही जैसे खुद पर काबू गवां दिया। वो खामोशी से अपने बेड पर लेट गई।

इस एक खबर से जैसे उसके पूरे जीवन में उथल पुथल मच गया। उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वो अतीत में चली गई हो। समय आज से कई साल पीछे चला गया हो। उसने पुरवा से कहा,

"बेटा..! अब मुझे आराम करना है। तुम लोग जाओ।"

इतना कह कर चादर सिर तक खींच लिया और अपनी आंखें बंद कर ली।"

पूर्वी और विवान समझ गए कि वो बिना कहे ये चाहती हैं कि वो यहां से चले जाए। वो अकेली रहना चाहती हैं। जाते हुए उन्होंने देखा पुरवा की बंद आंखों से दो बूंद आंसू गालों पर लुढ़क रहे थे।

कई अनुत्तरित प्रश्न ले कर, हैरान परेशान विवान और पूर्वी वहां से चले गए।

ये सारी बातें विवान के परिवार के बारे में पुरवा को कैसे पता है इसका कोई भी जवाब दोनो को नही पता था।

पूर्वी रोज की तरह अगले दिन भी अपनी ड्यूटी शुरू होने से पहले पुरवा से मिलने आई।

दरवाजा खुलते ही पुरवा की निगाह दरवाजे पर गई। उसे अकेले देख जैसे उन्हे। निराशा हुई। जैसे उनको किसी और के भी आने की उम्मीद थी। एक नजर पूर्वी को देख फिर से आंखे बंद कर ली। पूर्वी ने पूछा,

" मम्मी..! कैसी तबियत है..? "

पुरवा धीरे से बोली,

"ठीक हूं।"

मम्मी कुछ खाओगी..? मैं ले आऊं..?"

पुरवा ने ना में सिर हिला दिया।

भले ही पुरवा कह रही थी कि वो ठीक है पर पूर्वी एक डॉक्टर थी। उसे पता था कि मम्मी रात भर सोई नहीं हैं। उनकी तबियत ठीक नहीं है। माथा छुआ तो बुखार भी लगा। दवा खिला कर वो बाहर आ गई।

हॉस्पिटल आ कर जो मम्मी की तबियत में सुधार हुआ था। विवान से मुलाकात के बाद से सुधार तो दूर और तबियत गिरने लगी।

पुरवा को जैसे अपने ठीक होने की उम्मीद ही खत्म हो गई थी। उसे सारी दुनिया मतलबी नजर आ रही थी। पवन विजया या महेश आते भी उससे मिलने तो वो अपनी खामोशी की चादर कस कर पकड़े रहती थी। उसमे जरा सी भी ढील नही देती थी।