Kataasraj.. The Silent Witness - 113 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 113

भाग 113

रात अमन से हुई मुलाकात को सपना समझ कर पुरवा मुस्कुराते हुए नर्स को देखा और उसके हाथ से दवा ले ली।

नर्स बोली,

"क्या बात है मैडम.? आप आज खुश नजर आ रही हैं। आपको आराम महसूस हो रहा है..!"

पुरवा बोली,

"हां..! रात मुझे बहुत ही अच्छा सपना आया था। मन के कोने में दबे पड़े सपने हकीकत में जैसे महसूस हुए। इसीलिए मेरा मन खुश है।"

तभी बरवाजा खोल कर अंदर आती हुई पूर्वी और विवान ने उसकी बातें सुन ली। पूर्वी बोली,

"मम्मी..! आपका कौन सा सपना अधूरा रह गया जिसे आपने सपने में पूरे होते देखा।"

अंदर आ कर हाथों में लिया वैरोनिका आंटी का दिया सूप का थरमस साइड टेबल पर रख दिया।

पुरवा बेटी के पूछने पर झेंपती हुई चुप हो गई और बोली,

"कुछ नही बेटा।"

पर पूर्वी सब समझ रही थीं। मम्मी अमन अंकल से हुई मुलाकात को सपना ही समझ रही हैं।

पूर्वी ने बाउल में सूप मम्मी को पिलाया।

सूप पीते हुए पुरवा को इसका स्वाद जाना पहचाना लगा। वो सोचने लगी कि ऐसे स्वाद वाला सूप कभी तो पिया है। पर किसने बनाया था ये याद नही आ रहा है।

करीब दो घंटे बाद अमन रूटीन राउंड पर निकला। वो पुरवा के रूम में भी उसकी बारी आने पर आया।

पुरवा अपनी आंखे बंद किए लेटी हुई थी।

उसके आते ही पूर्वी खड़ी हो गई। बोली,

"मम्मी..! डॉक्टर साहब देखने आए है। जो भी तकलीफ हो उनको बता दो।"

पुरवा ने आंखे खोली।

सामने सफेद कोट पहने अमन को मुस्कुराते हुए खड़े देखा। पुरवा भी मुस्कुराई। उसे यकीन हो गया कि जिसे वो सपना समझ रही थी, वो सपना नही एक हकीकत था।

पूर्वी ने धीरे से पुरवा से कहा,

"मम्मी..! कहीं यही सपना तो नहीं था तुम्हारा जो पूरा नहीं हो पाया।"

पुरवा ने नाराजगी जाहिर करने को घूरा।

अमन इस समय कुछ और स्टाफ के साथ था। नर्स को कुछ निर्देश दे कर वापस चला गया।

अब पुरवा को समझ आ गया कि ये सूप किसने बनाया होगा। जब अमन यहां है तो वैरोनिका आंटी भी यहीं होंगी। उन्होंने ही बनाया होगा ये सूप। इतना लंबा समय बीत गया पर आंटी आज भी वैसा ही स्वाद वाला सूप बनाती हैं।

पुरवा ने पूछा,

"पूर्वी.. बेटा..! ये कौन सी जगह है..? तू मुझे कहां ले आई है जहां आंटी और अमन हैं।"

पूर्वी बोली,

"मम्मी..! ये पाकिस्तान का लाहौर शहर है।"

"पूर्वी…! तुम रात वैरोनिका आंटी के घर थी।"

पूर्वी बोली,

"हां..! मम्मी।"

फिर पूछा,

"ये सूप उन्होंने ही बनाया है ना।"

पूर्वी ने हां में सिर हिलाया।

पुरवा बोली,

"बिलकुल ऐसे ही स्वाद का सूप वो पहले भी बनाती थीं। जरा भी फर्क नहीं आया है। कैसी है वो पूर्वी..? वो क्यों नही आई मुझसे मिलने..?"

पूर्वी बोली,

"ठीक है.। पर उम्र होने की वजह से ज्यादा चल फिर नही पातीं। आयेंगी मिलने। तुम ठीक तो हो जाओ।"

पुरवा ने फीकी हंसी और बोली,

"पूर्वी..! तू डॉक्टर है ना। तब भी सच से भाग रही है। मैं अब क्या ठीक होऊंगी..! अब तो जितने दिल चल रही हूं बाद चल रही हूं।"

अमन ने सारे जाने माने डॉक्टर से पुरवा को दिखा दिया था। सब की सलाह से एक मत हो कर पुरवा का इलाज हो रहा था।

पूर्वी को यहां आए दो दिन हो गए थे। पर महेश ने एक बार भी उनके बारे में जानने की कोशिश नही की। पूर्वी को भी पापा का ऐसा रूखापन अच्छा नही लग रहा था।

इलाज होता रहा। पर ना पुरवा की हालत में सुधार हो रहा था, ना महेश के व्यवहार में।

वैरोनिका आती थी बीच बीच में देखने।

पूर्वी ने खुद ही महेश को पुरवा के तबियत के बारे में बताती रही।

दस दिन बीत गए।

पुरवा की हालत वैसे ही बनी हुई थी। आराम नही हो रहा था तो तबियत बिगड़ भी नही रही थी।

एक दिन पूर्वी ने पूछा,

"मम्मी..! तुम्हारी कोई इच्छा हो तो बताओ मैं उसे पूरा करूगी।"

पुरवा बोली,

"बेटा..! मैं मरने से पहले कटास राज के दर्शन करना चाहती हूं। लगता है मेरी आत्मा को मुक्ति वहीं जा कर मिलेगी। क्या तुम मुझे ले जा सकती हो..?"

पूर्वी बोली,

"ठीक है मम्मी..! मैं देखती हूं। कोशिश करती हूं वहां जाने की व्यवस्था करने की।"

फिर पुरवा की चादर ठीक से ओढ़ा कर बोली,

"मम्मी..! आप आराम करो। मैं अभी कुछ देर में आती हूं। अमन अंकल ने मुझे और विवान को एक सेमिनार में भाग लेने के लिए बुलाया है। कुछ वर्ल्ड फेमस डॉक्टर भी आए है। अमन अंकल उनसे हमें मिलवाना चाहते हैं। मैं शाम को आती हूं। नर्स है, आप कोई भी दिक्कत हो उससे बताइएगा। ओके बाय मम्मी।"

पूर्वी चली गई।

पूरा दिन व्यस्त रहा।

अमन ने उसे और विवान को कई अपने अपने फील्ड के फेमस डॉक्टर से मिलवाया। थके हुए वो वापस लौटने लगे।

अमन ने पूछा,

"पूर्वी..! तुम्हें मम्मी की हालत में कोई फर्क नजर आ रहा है..? तुम तो बेटी और डॉक्टर दोनो हो। उनके तन के बीमारी के साथ, उनके मन की व्यथा का हल भी ढूंढ सकती हो।"

पूर्वी मुस्कुरा कर बोली,

"आपने बिलकुल ठीक कहा अंकल। मन की व्यथा को एक बेटी तरह समझ कर ही तो उन्हें उसे दूर करने के लिए ले कर आई हूं।"

फिर थोड़ा रुक कर बोली,

"अंकल..! यहां पर कटास राज कोई जगह है क्या..?"

अमन ने गाड़ी ड्राइव करते हुए एक नजर पूर्वी की ओर देखा और बोले,

"हां ..! है तो.. पर क्यों..?"

पूर्वी बोली,

"वो मम्मी उल्टा सीधा बोलती रहती हैं। कह रही थी कि उनकी आत्मा को शांति वही जा कर मिलेगी। उनकी आखिरी इच्छा है। वो वहां जाना चाहती हैं अंकल..! क्या व्यवस्था हो सकती है..?"

अमन पुरवा के मन की बात समझ गया।

बोला,

"हो क्यों नही सकती..। पहले तो पैदल ही जाना होता था। पर अब तो बहुत सुविधा हो गई है। बहुत कुछ समय के साथ बदल गया है। कब जाना है बताओ मैं एक अच्छी सी एम्बुलेंस वैन पुरवा के लिए कर लेता हूं। फिर चलते हैं सब लोग कटास राज।"

बातों में रास्ता कट गया। हॉस्पिटल आ गया।

तीनों पुरवा से मिलने उसके रूम में गए।

अमन ने पूछा,

"पुरु .! तुम कटास राज जाना चाहती हो..? पूर्वी कह रही थी।"

पुरवा बोली,

"हां..!मेरी मुक्ति इस दर्द इस तकलीफ से वही जा कर होगी मुझे ऐसा लगता है।"

अमन बोला,

" बेकार की बातें मत करो लोग वहां जा कर स्वस्थ होते है। कब चलना चाहोगी..?"

पुरवा बोली,

"जब ले चल सको। कल ही चलो।"

अमन बोला,

"कल नही.. परसों चलो। मैं सारी व्यवस्था कल कर देता हूं।"