Thank you for coming - Movies Review books and stories free download online pdf in Hindi

थैंक यू फॉर कमिंग - फिल्म समीक्षा

सीमा सक्सेना द्वारा लिखित

थैंक यू फॉर कमिंग फिल्म की समीक्षा ।

कलाकार हैं भूमि पेड्नेकर, शहनाज गिल, कुशा कपिला, शिवानी वेदी, अनिल कपूर, करण कुंद्रा आदि ।

लेखक हैं प्रशस्ति सिंह, राधिका आनन्द ।

निर्देशक हैं कारण बुलानी ।

निर्माता हैं एकता कपूर, रिया कपूर ।

रिलीज हुई है 6 अक्टूबर को ।

अंक मात्र 1, 5 ।

रिया चक्रवर्ती और एकता कपूर के द्वारा बनाई गई फिल्म थैंक यू फॉर कमिंग जिसमें भूमि पेडनेकर ने लीड रोल किया है । भूमि जो काफी अच्छी-अच्छी पिक्चरें कर चुकी हैं और उनसे उम्मीद भी थी कि वह इस फिल्म में भी अच्छा काम करेंगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। इस फिल्म में कहीं-कहीं पर ऐसा लगता है कि वह मुद्दे से भटक गई हैं, बॉलीवुड में जब कोई फिल्म सेक्स कॉमेडी पर बनाई जाती है तो वह हमेशा ज्यादा खुलकर सामने नहीं आती हैं। पहले भी इस तरह के विषय पर फिल्में बनी है लेकिन उनमें भी चीजों को केवल ऊपर ऊपर से दिखाया गया है लेकिन इस फिल्म को ऐसे विषय पर बनाने के लिए और अपना आधुनिक और बिंदास नजरिया दिखाने के लिए रिया कपूर और एकता कपूर ने काम किया है, मतलब लड़कियों को समझती हुई और उनके महत्वपूर्ण विषय पर बात करती हुई यह फिल्म फिल्म सेक्स कॉमेडी से थोड़ा अलग है और इसमें महिलाओं के आर्गेज्म पर बात की गई है, मतलब चरम सुख कैसे पाया जाए, इस विषय पर एक कहानी बुनी है ।

आज के ज़माने की लड़की कनिका जो दिल्ली में रहती है वह अपने लिए एक ऐसे राजकुमार की तलाश में है जो बहुत ज्यादा रोमांटिक हो और वह उसे जीवन में बहुत सारी खुशी दे पाये । जिस ख़ुशी को वह ढूंढती फिर रही है और अभी तक उसको मिली नहीं है । होता यह है कि कनिका कपूर जो अपना तीसरा जन्मदिन मनाने जा रही तो वह अपने दोस्तों लोगों के साथ बात करती है कि उन्हें अभी तक कभी ऑर्गेज नहीं हुआ है जबकि कनिका अपनी उम्र के साथ-साथ अपनी उम्र से कई गुना बड़े उम्र दराज प्रोफेसर के साथ भी प्यार और आर्गेज्म ढूंढने की कोशिश कर चुकी है जिसमें वह नाकाम रही,मतलब सफल नहीं हुई है ।

उसे लगता है कि वह अपने जीवन में आये हर किसी के साथ किस करेगी, तब जाकर फिर उसका राजकुमार मिल जायेगा लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो वह इस दुनिया से निकलकर शादी करने के लिए सोचती है और अपनी सगाई कर लेती है । कनिका सगाई की रात जब ओवर ड्रिंक करके नशे की हालत में किसी के साथ सेक्स करती है और वह अपने चरम तक पहुंच जाती है लेकिन नशे में पूरी तरह से मदहोश कनिका को पता ही नहीं चलता कि उनकी इस खुशी को देने के लिए किसका हाथ है या वह कौन है जिसने इस खुशी को उसे दिया है । बस इसी की तलाश है, कनिका को कभी ख़ुशी की तलाश और कभी ख़ुशी देने वाले की तलाश और इसी पर यह फिल्म बनी हुई है ।

निर्देशक करण बुलानी ने इस फिल्म के लिए एक बहुत अच्छा सब्जेक्ट तो चुना है लेकिन जो कहानी है उस पर जिस तरह से फिल्म बनाई गई है वो समझ में नहीं आता है कि आखिर इसका मतलब क्या है? किस लिए यह फिल्म बनाई गई है? सब कुछ उलझा उलझा सा लगता है । शुरुआत में तो कहानी बहुत ज्यादा उलझी हुई लगती है ।

फिल्म का ट्रेलर देखने के बाद अगर इस फिल्म को देखने जाते हैं तो हम अक्सर निराश ही होंगे क्योंकि ट्रेलर में बताया गया कि महिलाओं का आर्गेज्म, उनकी फ्रीडम और उनकी पसंद क्या-क्या है? ट्रेलर देख कर तो लगेगा बहुत अच्छी फिल्म होगी परन्तु इस सोचकर लोग जाएंगे लेकिन फिल्म शुरू होते ही आप सोचने लगते हैं कि इसमें क्या दिखाया जा रहा है और शुरुआत में तो बिल्कुल कुछ समझ ही नहीं आता है कि कनिका को क्या हुआ है या वह आर्गेज्म को ढूंढना चाहती है या वह अपनी कहानियों का हीरो वीर प्रताप सिंह जो उसकी चाहत है उसको ढूंढने के लिए वह इधर-उधर घूम रही है ।

फिल्म में बिना वजह बोले गए बेकार के डायलॉग भी हैं जैसे कि सावित्री बनो तो बोर, सावित्री बनो तो होर, वीर जारा वाला प्यार और सनी लियोनी वाली बौछार, इस तरह के बेकार के डायलॉग से जिनको सुनकर कुछ समझ ही नहीं आता कि इसका मतलब क्या है ? इतने भावनात्मक सब्जेक्ट को लेकर फिल्म बनायीं है, ऐसा अच्छा विषय उठाया गया है लेकिन फिल्म की बल्गर भाषा और बल्गर द्रश्यों से भर दिया गया है जिसे देखने का मन नहीं करता है ।

मुझे लगता है आप पूरी फिल्म को देखना ही नहीं चाहेंगे और अपने परिवार के साथ बैठकर तो देख ही नहीं सकते हैं । फिल्म की कोई दिशा ही नहीं है समझ नहीं आता किस दिशा में फिल्म जा रही है ? इधर-उधर भटकती हुई सी एक फ़िल्म है । इतने अच्छे विषय को यूं ही जाया कर दिया गया है, जबकि इसे अलग तरह से भी दिखाया जा सकता था वैसे मुझे एक बात और भी लगती है कि कुछ विषयों को पढ़ना ज्यादा अच्छा लगता है यूँ परदे पर देखना नहीं ।

सभी जानते हैं की भूमि पेड़नेकर एक बहुत अच्छी हीरोइन हैं मतलब बढ़िया एक्टिंग करती हैं और उन्होंने अपने कैरियर में इतने अच्छे-अच्छे किरदार किए हैं। ऐसे ऐसे किरदार जो हमेशा याद भी रहेंगे और उन्होंने अपने आप पर बहुत काम भी बहुत किया है लेकिन वह इस फिल्म में वे बिल्कुल अच्छी नहीं लगी हैं या यूँ कहें कि यह रोल उन पर सूट नहीं कर रहा है और जब वह फिल्म में डायलॉग बोलती हैं तो उनकी ओवर एक्टिंग नजर आती है । भूमि पेडनेकर के इर्द गिर्द घूमती इस फिल्म में कनिका कपूर के रोल में वह उतनी अच्छी नहीं लगी जैसे कि और दूसरी फिल्मों में लगी थी, शहनाज गिल इस फिल्म में केवल चार बार ही परदे पर नजर आई हैं फिर उसके बाद वो नजर ही नहीं आती कि कहां चली गई हैं । यूट्यूब पर बहुत फेमस कुशा कपिला ने हर प्रमोशन में बढचढ के हिस्सा भी लिया पर इस फिल्म में उनका कुछ काम ही नहीं है,बहुत थोड़ा सा रोल है उनका, क्योंकि उनके लिए कुछ था ही नहीं इस फिल्म में करने के लिए, शिवानी बेदी और डॉली सिंह ने अपने काम को अच्छी तरह से या बहुत सहजता के साथ किया है, अपना रोल बढ़िया से निभाया है, उनका काम ठीक-ठाक रहा है । नताशा रस्तोगी जब पर्दे पर आती हैं तो थोडी ताजगी का एहसास होता है,बाकी अनिल कपूर का काम अच्छा है। जहाँ तक मुझे लगता है कि इस फिल्म को देखने के लिए हाल में जाने की जरूरत नहीं है । यह ओ टी टी पर जल्दी ही आ जाएगी फिर आप चाहें तो इसे देख सकते हैं क्योंकि परिवार के साथ बैठकर देखना भी अच्छा नहीं लगेगा। एकता कपूर और रिया कपूर को महिला प्रधान फिल्म बनानी तो चाहिए लेकिन दर्शकों को बल्गैरिटी नहीं दिखानी चाहिए ।

 

सीमा असीम सक्सेना, बरेली