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क्रॉस


क्रॉस
***


(और फिर इस प्रकार जोसेफ का जहां अमरीका में सदा ठहरने के लिये प्रबन्ध पक्का हो गया वहीं दूसरी तरफ स्वप्नेष के गालों पर प्यार और इश्क में मिले हुये मज़े का वह करारा तमाचा उसके दोनों गालों पर पड़ा था कि जिसने उसके जिस्म के साथ-साथ उसकी आत्मा के हरेक तारों तक को हिला रख दिया था। इस प्रकार कि वह अब अपना मुंह कहीं भी दिखाने लायक नहीं रहा था।)

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‘मैरी,
जिस क्रॉस को पहनने के लिये मैंने अपने घर और समाज को ठुकराया। जिसकी खा़तिर अपने भाइयों की कोई भी परवा नहीं की। जिसके लिये अपनी एकलौती बहन के आंसुओं को मिट्टी में मिलते देख कर भी तरस न खा सका। जिसको तुम्हारे गले में लटका देखकर मैं सारी जि़न्दगी का तुम पर एक अटूट विश्वास कर बैठा था। जिसके विश्वास और सम्मान का आदरमान रखने के लिये मैंने अपने सारे समाज, सारे रिश्ते-नातेदारों और मित्रों को अलग ताक पर रख दिया, और जिसके लिये मुझे अपनी बिरादरी से अपमानित करके निकाल बाहर कर दिया गया; उसकी बेइज्जती तुम इस तरह से करोगी? मुझे तो सोच कर भी विश्वास नहीं होता है। हां, अगर एक गैर-मसीही लड़की यदि ऐसा करती तो मुझे इतना दुख कभी भी नहीं होता। दुख तो केवल इस बात का है कि तुम एक बार को चाहे मेरी परवा नहीं करती, मेरा अपमान कर देती, लेकिन कम से कम एक मसीह लड़की होते हुये उसका ज़रा भी ख्याल नहीं रख सकीं जो तुम्हारी ख़ातिर सूली पर मर मिटा। मेरी दुआ है कि परमेश्वर सदा तुम्हारा ख्याल रखे, और तुम्हें क्षमा करे। तुम्हारा शहर, तुम्हारी जगह छोड़कर जाने से पहले तुम्हें यही सलाह दूंगा कि, . . .’
पत्र को पढ़ते-पढ़ते मैरी की आंखों से आंसुओं की दो बूंदे पलकों का द्वार खोलकर बाहर आई और गालों पर ढुलकते हुये उसकी गोद में गिरकर तुरन्त ही विलीन भी हो गई। मैरी ने एक बार को घर के अन्दर एक उचटती सी दृष्टि डाली। सारा अकेला घर भायं-भायं करता हुआ जैसे उसी को डस लेना चाहता था। शाम डूब चली थी। लेकिन क्षितिज में अभी भी उसकी लालिमा की अंतिम रश्मियों का रहा-बचा पिघला हुआ सोना फैला हुआ था। एकवर्थ शहर के हाई वे 92 पर अब कारों और मोटर गाडि़यों का आवागमन कम होता जा रहा था। कारण था कि, रविवार की शाम समाप्त होकर आनेवाली रात्रि का सन्देश दे चुकी थी। दूसरा दिन सप्ताह का पहला दिन था। लोग सप्तांहत में मनोरंजन आदि करके, अपने हफ्तेभर की कमाई को खर्च करने के बाद दूसरे दिन काम पर जाने की तैयारी में अपने-अपने ठिकानों पर जाकर सोने की तैयारी करने लगे थे। पाश्चातिय सभ्यता और रहन-सहन का यह एक तरह से रिवाज़ ही था कि लोग पूरे सप्ताह, अर्थात् पांच दिन कड़ी मेहनत करते हैं। और वेतन मिलते ही उसका भरपूर लाभ और लुत्फ भी उठाते हैं। कहने का मतलब है कि, अमरीकीवासियों के लिये उनके जीवन का केवल एक ही उद्देश्य होता है। जीवन केवल जीने के लिये है। जीवन को मनोरंजन के साथ जिया जाये। चाहे इसके लिये इंसान कर्जे में डूबे। यहां तो लोग ऋण लेकर, अपने घर को गिरवी रखकर, वर्ष में कम से कम एक बार छुट्टियों मनाने अवश्य ही जाते हैं। उन्हें तो जीवन के मनोरंजन से केवल मतलब है। ना तो कल की चिंता, और ना ही आनेवाले भविष्य की कोई फिक्र।

लेकिन अपने जिस भविष्य को बहुत से सुन्दर रंग देने के लिये मैरी भारत से अमरीका आई थी। अमरीका आने के लिये उसने जो भी कुछ गुणा-भाग किया था, उसका वास्तविक अंजाम इतना विलक्षण भी हो सकता है, उसने तो कभी इस बात का गुमान तक नहीं किया था। वह तो केवल इतना जानती थी, और शायद उसने सीखा भी ऐसा ही कुछ था कि अपना मतलब और काम भर निकलना चाहिये। चाहे इसके लिये कुछ भी क्यों न करना पड़े। वे ज़माने और दिन कभी के चले गये जब एक औरत सती-सावित्री बनकर अपना सारा जीवन एक पुरूष के लिये स्वाह कर देती थी। मन में बसी इन्हीं धारणाओं और ख्वाइशों के साथ जब वह पहली बार स्वप्नेष से मिली थी तो उसे देखते ही उसके मन में बसे सारे सपने सजीव होते हुये दिखाई देने लगे थे।

उन दिनों स्वप्नेष अमरीका से भारत आया हुआ था। भारत से वह अमरीका इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिये गया हुआ था। फिर जब तक उसकी पढ़ाई पूरी होती, उससे पहले ही उसने किसी प्रकार से अमरीका में रहने के लिये स्थायी वीसा भी हासिल कर लिया था। सो अब उसका भारत आने का केवल एक ही मकसद था कि वह अपने विवाह का प्रबन्ध करे और अपना घर बसाये। उससे छोटे उसके दो भाई बहन भी थे, पर अपने भाई-बहन के साथ उसने अपने मां-बाप को भी अमरीका में स्थायी तौर पर रहने के लिये कागज़ी कार्यवाही पूरी कर दी थी। अब बस किसी बात की प्रतीक्षा थी तो उनके लिये वीज़ा मिलने की।

विवाह के लिये उसके मां-बाप ने कई लड़कियां पसंद भी की थी। अब अगर बात थी तो केवल स्वप्नेष के द्वारा किसी को अंतिम रूप से पसन्द करके अपना निर्णय दे देना। सही मायनें में स्वप्नेष का भारत आने का मकसद भी यही था। इसी कारण उसके मां-बाप ने जिन लड़कियों को अपने घर की बहू बनाने के लिये पसन्द किया, उन सबको और उनके पूरे परिवार को अपने घर में एक पार्टी के नाम पर आमंत्रित किया था। इस तरह से स्वप्नेष उन लड़कियों को भी देख लेगा और पार्टी का बहाना भी हो जायेगा। इस पार्टी में स्वप्नेष के माता-पिता ने अपने उन मित्रों को भी आम्ंत्रित कर दिया था जो धर्म और समाज के नाते तो पास नहीं थे पर मित्रता और मानवता के नाते आपस में बहुत करीब थे। सो इस प्रकार से मैरी भी अपने माता-पिता के साथ स्वप्नेष के घर पर पार्टी में आई थी। फिर जब मैरी ने स्वप्नेष को देखा तो फिर देखती ही रह गई। न जाने क्यों स्वप्नेष में उसे अपने इरादों के महल मजबूत होते नज़र आने लगे। लेकिन फिर भी वह आगे न बढ़ सकी। ना ही उसके अन्दर बसी हुई वास्तविक लड़की अपने मन में बसी हुई भविष्य की रूपरेखा को कोई भी आकार देने के लिये कोई साहस ही जुटा सकी। आगे न बढ़ने का कारण उसके और स्वप्नेष के मध्य बनी हुई वह दीवार थी जिसे दो विपरीत धार्मिक विश्वास सहज ही हिला भी नहीं सकते थे। मैरी एक मसीही लड़की थी और स्वप्नेष एक गैर मसीही। हांलाकि, वर्तमान युग में अन्तरजातिय विवाह होना कोई भी अब कठिन बात नहीं थी, पर ऐसा होने से पहले दोनों की तरफ से प्रेम के पेंतरे चलने बहुत आवश्यक थे। और यहां स्थिति यह थी कि मैरी और स्वप्नेष दोनों में से कोई भी किसी को जानता भी नहीं था। बैठे हुये मैरी ने सोचते-सोचते इन सारी बातों को अपने मस्तिष्क से बाहर निकाला। सोचा कि, यह सब सोचने से अभी क्या लाभ। कुछ मिलना-मिलाना तो है नहीं, तो फिर क्यों पार्टी का मज़ा किरकिरा किया जाये। वह यही सोचकर निर्णय लेते हुये उठी और पार्टी में लोगों के मध्य जाकर उनसे वार्तालाप करने लगी।

तभी पार्टी में खाते-पीते समय मैरी की मुलाकात स्वप्नेष से हुई। स्वप्नेष तो अमरीका से आया था, और इसी खुशी में उसी की यह पार्टी का आयोजन भी किया गया था़ इसलिये वह खुद भी अपनी तरफ से पार्टी में आये हुये लोगों से मिलता जा रहा था। फिर जैसे ही वह मैरी के पास आया, अपना हाथ आगे बढ़ाते हुये अभिवादन के अंदाज में बोला,

‘आप?’

‘मैरी जोन्स।’ मैरी ने मुस्कराकर कहा तो स्वप्नेष खुद के बारे में बताते हुये बोला,

‘और मुझे तो?’

‘खूब अच्छी तरह से। कितने सारे सपने जमा कर लियें आपने अब तक?’ मैरी व्यंग के अंदाज में अपनी मुस्कराहट बिख़ेरते हुये बोली।

‘बहुत सारे। पर कोई विशेष नहीं।’

‘लेकिन अब समय आ गया है किसी सपने को एक विशेष दरज़ा देने का।’’

‘आपने ठीक कहा। हां, आप करती क्या हैं?’ स्वप्नेष को अच्छा लगा तो वह बात आगे बढ़ाने लगा।

‘अभी तो कुछ भी नहीं। कॉलेज समाप्त जरूर कर लिया है।’

‘कुछ न कुछ करने का सोचा तो होगा ही?’

‘हां, सोचा तो है।’

‘वह क्या?’

‘मैं अमरीका जाना चाहती हूं। आप मदद करेंगे। आप तो वहां रहते ही हैं?’

‘अमरीका जाने का केवल एक ही आसान तरीका है।’ स्वप्नेष बोला तो मैरी ने तुरन्त ही बड़ी उत्सुकता से पूछा,

‘वह क्या?’

‘अमरीका में रहनेवाले किसी लड़के से शादी कर लीजिये। वरना यूं तो वीसा मिलना बड़ा ही कठिन होगा।’

‘आप करेंगे मुझसे विवाह?’ मैरी ने व्यंग के लहज़े में कहा तो स्वप्नेष अचानक ही झेंप सा गया। लेकिन फिर स्वंय को संयत करते हुये बोला,

‘मेरे मां-बाप से बात करके देख लीजिये। शायद आपका काम बन जाये?’ स्वप्नेष ने भी उसी अंदाज में उत्तर दिया तो मैरी प्रश्न करते हुये बोली,

‘शादी आपको करनी है, और बात आपके मां-बाप से की जाये? क्या अमरीका में ऐसे ही विवाह हुआ करते हैं?’ कहते हुये मैरी अचानक ही खिलखिलाकर हंस पड़ी तो स्वप्नेष भी साथ में हंस पड़ा। फिर कुछेक क्षणों के पश्चात उसने कहा कि,

‘जी नहीं। जैसे होती है, वैसे आप करना पसन्द भी नहीं करेंगी।’

‘ज़रा विस्तार से बताइये कि आप कहना क्या चाहते हैं?’ मैरी ने एक संशय से स्वप्नेष की आंखों में झांका तो वह बोला,

‘देखिये, यहां भारत में जो बहुत से काम होते हैं, ठीक उनका विपरीत ही अमरीका में हुआ करता है।’

‘मैं समझी नहीं?’

‘मैं बताता हूं। अब देखिये, भारत में लोग बायें हाथ पर चलते हैं तो अमरीका में दायें हाथ पर। भारत में गडि़यों का स्टियरिंग सीधे हाथ की तरफ होता है तो अमरीका में बायें हाथ की तरफ। भारत में बिजली के स्विच नीचे की तरफ ऑन हुआ करते हैं, और अमरीका में ऊपर की तरफ। अमरीका में 110 वोल्ट की बिजली से काम लिया है तो भारत में 220 वोल्ट से। समय के हिसाब से अमरीका की घडि़यां ग्यारह घंटे पीछे रहती हैं और आप लोगों की ग्यारह घंटे आगे।’

‘बड़ा कमाल है?’ मैरी ने कहा तो स्वप्नेष तुरन्त ही आगे बोला,

‘सबसे बड़ा कमाल तो यह है कि, भारत में विवाह पहले होते हैं और बच्चे बाद में। लेकिन अमरीका में बच्चे पहले होते हैं, और विवाह बाद में होता है। अब बताइये कि आपका क्या ख्याल है?’ कहते हुये स्वप्नेष ने मैरी की तरफ देखा तो वह झेंपकर संकुचित होते हुये बोली,

‘अगर ऐसा है तो फिर तो खूब ही सोचना पड़ेगा।’

‘तो फिर खूब सोच लीजिये। अभी मैं यहां पर दो माह तक और रूकूंगा।’

फिर स्वप्नेष भारत में दो माहिने क्या रूका कि मैरी उसके पीछे साये के समान लगी रही। भारत की भ्रमण करनेवाली जगहों को दिखाने के बहाने वह उसके साथ जगह-जगह घूमती फिरी। इसके साथ ही अपने मसीही धर्म के बारे में भी समय-समय पर उसे बताती रही। इतना ही नहीं इन दो महिनों के अन्तराल में वह स्वप्नेश को चर्च की इबादत में भी ले जाती रही। फिर इन सारी बातों का परिणाम भी वही हुआ जो होना ही था। मैरी के प्रेम का तीर कहा जाये या फिर उसके दो महिनों के किये गये गुणा-भाग का असर? स्वप्नेष ऐसा घायल हुआ कि फिर उठ ही नहीं सका। मैरी का सपना साकार हुआ। उसके द्वारा किये गये गुणा-भाग का शेष जब स्वप्नेष ने अपने परिवार में बताया तो क्षण भर में ही बूढ़े मां-बाप के वर्षों के सजाये हुये सपनों के महल ढहते हुये हवा में तिनकों के समान बिखर गये। उन दोनों ने अपना माथा पीट लिया। लड़के को विदेश भेजकर जो शिक्षा दिलवाई थी, यह उसी का प्रभाव था कि उनका खून एक गैर जातिय लड़की से विवाह करने की जुर्रत कर बैठा था। यदि वह भारत में ही रह रहा होता तो शायद कभी भी इतनी हिम्मत नहीं कर पाता। एक से एक अच्छे सम्मानित और धनी परिवारों की पढ़ी-लिखी, खुबसूरत लड़कियां उन्होंने अपने पुत्र को दिखाई थीं, मगर एक मामूली से ईसाई परिवार की इस लड़की में स्वप्नेष को ऐसा क्या दिखाई दिया था कि वह उसकी खातिर अपने मां-बाप से भी बगावत करने से बाज नहीं आ सका था।

फिर स्वप्नेष को समझाने के जब सारे उपाये कारगर न हुये तो उन्होंने अपने मां-बाप के उत्तरदायित्व को पूरा करते हुये एक दिन चुपचाप से ही मैरी और स्वप्नेष के लिये अपनी सारी औपचारिकतायें पूरी कर दीं। हांलांकि, उन्होंने विवाह की कोई भी रस्म तो पूरी नहीं की थी पर घर की बहू की लेन-देन की सारी रीतियां और जिम्मेदारियां अवश्य पूरी कर दीं। उनके हिन्दू समाज में कहीं उनकी बहुत बड़ी बदनामी न हो जाये, और वे सामान्य तरीके से रह भी न सकें, इसलिये उन्होंने स्वप्नेष और मैरी को सलाह दी कि वे अपना विवाह अमरीका में ही कर लें, और विवाह के पश्चात हमारे सारे रिश्तों को सदा के लिये तिलाजंलि भी दें दे। उनका मानना था कि अन्तरजातिय विवाह से चाहे एक बार को अमरीकी समाज में कोई भी फर्क न पड़े लेकिन हिन्दुस्तान के समाज की रीतियों से जकड़ी दीवारें अवश्य ही हिल जायेंगी।

सो स्वप्नेष ने अपने भारतीय घर की चारदीवारी में बहुत चुपके से मैरी के साथ विवाह किया। फिर बाद में बाकायदा बगैर किसी को खबर किये हुये सरकारी रीति से भी कागज़ों पर मैरी को अपनी पत्नी बनाकर अमरीका चला आया। उसके जाने के पश्चात उसके मां-बाप ने किसी तरह अपने जज़बात पर एक भारी पत्थर रखकर इस सदमें को बर्दाश्त किया। मैरी ने अपनी इस सफलता में अपनी सहेलियों को एक गुमशुदा शानदार पार्टी दी। खुशियों से लबालब बाकायदा एक जश्न मनाया, और फिर एक दिन वह झूमते-झामते अपने पति स्वप्नेष के पास अमरीका पहुंच गई। अमरीका पहुंच कर मैरी ने अपनी इच्छाओं और आकाक्षांओं के सितारे तोड़ने में कोई भी देर नहीं की। दिल में संजोयी हुई हसरतों के सैकड़ों जाम वह हर दिन अपने गले से नीचे उतारती रही। अमरीका की विदेशी भूमि, यहां की हवायें और इन हवाओं में उसकी तमन्नाओं के हजारों गुनगुनाते हुये गीत उसके परवाज़ के पंख बनकर आसमान में गुब्बारों समान उड़ने लगे। इस तरह से मैरी इन रंगीली हवाओं में इस तरह से उड़ने लगी कि वह भूल गई कि वह किसी की पत्नी भी है। भूल गई कि वह स्वप्नेष की एक ब्याहता भी है। सचमुच स्वप्नेष को वह अपने अरमानों को पूरा करने के कार्य में कभी भी एक सहयोगी से अधिक मान्यता दे भी नहीं सकी थी। स्वप्नेष दिन-रात एक मशीन के समान काम करता और फिर संध्या को थकाहारा आकर बिस्तर पर लुढ़क जाता। जब भी शाम को घर पर काम से लौटता तो शायद ही कोई दिन ऐसा होता जब कि मैरी उसे घर से नदारद न मिलती।

अमरीका एक मशीनों का देश है। सॉफ्टवेयर के कोमल जिस्म पर लकीरें बनाकर लोहे को पिघलाया जाता है। यहां मेहनत और परिश्रम करनेवाला ही जिन्दा रह सकता है। पैसा, कोहतुल, फन और मनोरंजन के सामने मनवीय रिश्तों का उपहास उड़ाया जाता है। हफ्तेभर कड़ी मेहनत करके कमाई हुई दौलत से सप्ताहंत में मिलने वाले दो दिन के रासरंग को जि़न्दगी का वास्तविक अर्थ मानकर जिया जाता है। यहां मनुष्य सप्ताह में केवल दो दिन के लिये ही अमीर बनता है। रविवार की रात समाप्त होते ही, सोमवार की सुबह में वह फिर से एक मवाली बनकर अपना पसीना बहाने पर विवश हो जाता है। यही विदेश है। पाश्चातिय ईसाई देशों का चलन है। यहां की सरज़मीं पर पैसे पेड़ों पर नहीं उगते हैं, और ना ही उगाये जाते हैं। हां, पैसा कमाने के साधन बहुत से हैं। यदि इंसान समझदार है, मेहनती है, और संयमी है तो पैसा बहुत ही आसानी से जमा भी कर सकता है। अगर ऐसा नहीं है तो विदेशी चमक और रासरंग की ऐसी फिसलन भी है कि क्षण भर में उसे नीचे आते देर भी नहीं लगती है। एक हवा का झोंका आता है और पलक झपकते ही मनुष्य सड़क पर तो आता ही है साथ ही स्वास्थ्य के नाम से भी फकीर बन जाता है।


स्वप्नेष और मैरी के विवाह के आरंभ के दिन यूं गुज़रे जैसे कि वे दोनों परियों के देश में रह रहे हों। सब कुछ आरंभ के दिनों में ठीक से चलता रहा। फिर धीरे-धीरे दोनों की शादी का एक वर्ष भी बीत गया। विवाह की सालगिरह भी दोनों ने बड़े ही शानदार ढंग से मनायी। एक बड़ी पार्टी की और अपने सब ही जानने वालों और मित्रों को आंमत्रित किया। मगर स्वप्नेष के लिये यही पार्टी जैसे उसके जीवन की सबसे खतरनाक विष साबित हुई। इस पार्टी में मैरी के कॉलेज के दिनों का एक मित्र भी जिसका नाम जोसेफ था आंमत्रित था। जोसेफ भारत से सेमनरी का एक कोर्स करने के वीज़े पर आया था। वह पढ़ने आया था या फिर किसी भी तरह से अमरीका में आना चाहता था? यह तो वही जाने। लेकिन इस प्रकार की कहानियां यहां अमरीका में बहुत ही प्रचलित हैं। भारत से ईसाई लड़के अमरीका आने के उद्देश्य से सेमनरी की पढ़ाई के नाम पर आते हैं और फिर यहां पर किसी भी तरह से किसी ग्रीनकार्ड वाले या फिर अमरीकी नागरिक से विवाह करके सदा के लिये अमरीका में रहने का बन्दोबस्त कर लेते हैं। जोसेफ भी इसी उद्देश्य को लेकर अमरीका आया हुआ था और अपना काम बनाने के लिये समुचित साथी की तलाश में था। फिर जब उसे मैरी मिली और मैरी ने भी उसमें रूचि लेना आरंभ कर दी तो फिर स्वप्नेष की भावी जीवन के बने हुये महल की दीवारों की ईंटें खिसकते देर नहीं लगी। बाद में अंत में वही हुआ जो नहीं होना चाहिये था। स्वप्नेष अमरीका में वर्षों रहते हुये, वहां की नागरिकता लेकर भी वह अपनी संस्कृति और अपने देश की आदत नहीं भूल सका था। और एक मैरी थी जो मात्र सात माहिनों तक ही अमरीकी धरती पर रहकर अपने रीति-रिवाज, परम्परायें और चाल-चलन में लात मारकर पश्चिमी सभ्यताओं की हर सीमा लांघ गई थी। मैरी और जोसेफ का मेल-जोड़ बढ़ा तो दूसरी तरफ स्वप्नेय का रक्तचाप बढ़ने लगा। अंत में मैरी के जोसेफ के साथ बढ़ते हुये संबधों की चरमसीमा ने मैरी को स्वप्नेष से तलाक लेने को बाध्य कर दिया। और फिर जब तलाक का फैसला मैरी के पक्ष में हो गया तो स्वप्नेष फिर एक बार उसी स्थान पर आकर खड़ा हो गया, जहां से वह चला था। तलाक लेने के मात्र एक सप्ताह के बाद ही मैरी ने बाकायदा कोर्ट में जाकर जोसेफ से अपना विवाह कर लिया। और फिर इस प्रकार जोसेफ का जहां अमरीका में सदा ठहरने के लिये प्रबन्ध पक्का हो गया वहीं दूसरी तरफ स्वप्नेष के गालों पर प्यार और इश्क में मिले हुये मज़े का वह करारा तमाचा उसके दोनों गालों पर पड़ा था कि जिसने उसके जिस्म के साथ-साथ उसकी आत्मा के हरेक तारों तक को हिला रख दिया था। इस प्रकार कि वह अब अपना मुंह कहीं भी दिखाने लायक नहीं रहा था। तब स्वप्नेष ने प्यार में मिले इस ज़हर और सदमें को बर्दाश्त करते हुये मैरी को अपना यह अंतिम पत्र लिखकर अपने और उसके पिछले सारे संबन्धों की जैसे औपचारिकतायें पूरी की थीं।

‘. . . मैरी ने एक अपराधबोध की भावना से पत्र को गौर से देखा। फिर बाद में वह पत्र के लिखे हुये अंतिम वाक्य को पढ़ने लगी। अंतिम वाक्य में लिखा हुआ था कि,

‘. . . तुम्हारा शहर, तुम्हारी जगह छोड़कर जाने से पहले तुम्हें यही सलाह दूंगा कि, जिस पवित्र क्रॉस को तुम अपने गले में पहनकर अपनी मसीहियत और जीज़स के पवित्र निस्वार्थ प्रेम का पैगाम देती हो उसे पहनना बंद कर दो। यहूदा स्किरियोति ने जीज़स के प्यार को धोखा देकर जालिम रोमियों को बरबाद कर देना चाहा था, पर तुमने मेरे प्यार में ठोकर मारकर किसको बरबाद करने का बीड़ा उठाया है?


समाप्त ।