कंचन मृग

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स्कन्द पुराण में बुन्देलखण्ड का नाम राज्य के रूप में जुझौती उपलब्घ होता है। इसमें 42000 गाँव सम्मिलित थे। हेन सांग ने इसे चि-चि-टो कहा है। कनिंघम का मत है कि चि-चि-टो जुझौती ही है। इस क्षेत्र में जुझौतिया ब्राह्माणों की बहुलता है। जुझौती का उल्लेख अबू रिहाँ ने भी किया है जिसकी राजधानी खजुराहो थी। चन्देलों के समय में चन्देल शासक जयशक्ति के नाम पर यह क्षेत्र जेजाक भुक्ति के नाम से अभिहित किया जाता था। महाभारत काल में यह क्षेत्र चेदि देश के अन्तर्गत था जिसका शासक शिशुपाल था । बुन्देलखण्ड का पश्चिमी भाग दशार्ण (धसान) नदी के कारण दशार्ण कहलाता था। चन्देलों का इतिहास नन्नुक (831-850ई0) से प्रारम्भ होता है। विभिन्न शासकों ने खजुराहो (खर्जूरवाहक), महोबा (महोत्सव), कालिंजर को अपनी राजधानी बनाया। परमर्दिदेव (1165-1203ई0) के काल में महोत्सव वैभवपूर्ण नगर था। कीर्ति सागर, मदन सागर,विजय सागर, कल्याण सागर, राहिल सागर द्वारा जल की आपूर्ति की जाती थी। बारहवीं शती के उत्तरार्द्ध में चाहमान, गहड़वाल, चन्देल मध्यदेश के प्रमुख राज्य थे। इनके आपसी द्वन्द्व ने इतिहास की दिशा ही बदल दी। विक्रम संवत्1236 में चाहमान नरेश पृथ्वीराज तृतीय ने महोत्सव पर आक्रमण किया जिसका उल्लेख उनके मदनपुर शिलालेख में किया गया है- अरुण राजस्य पौत्रेण श्री सोमेश्वर सूनुना।

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कंचन मृग - प्रस्तावना

उपोद्घात कंचन मृग (उपन्यास) स्कन्द पुराण में बुन्देलखण्ड का नाम राज्य के रूप में जुझौती उपलब्घ होता है। इसमें गाँव सम्मिलित थे। हेन सांग ने इसे चि-चि-टो कहा है। कनिंघम का मत है कि चि-चि-टो जुझौती ही है। इस क्षेत्र में जुझौतिया ब्राह्माणों की बहुलता है। जुझौती का उल्लेख अबू रिहाँ ने भी किया है जिसकी राजधानी खजुराहो थी। चन्देलों के समय में चन्देल शासक जयशक्ति के नाम पर यह क्षेत्र जेजाक भुक्ति के नाम से अभिहित किया जाता था। महाभारत काल में यह क्षेत्र चेदि देश के अन्तर्गत था जिसका शासक शिशुपाल था । बुन्देलखण्ड का पश्चिमी भाग ...Read More

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कंचन मृग - 1 अपराध हुआ रानी जू

1. अपराध हुआ रानी जू ‘चित्ररेखा’ , चित्ररेखा दौड़ती हुई चन्द्रावलि के सामने अपराधी की भाँति आकर खड़ी हो उसकी खड़े होने की मुद्रा से चन्द्रा को हँसी आ गई। उसने पूछा ‘आज इतने श्रृंगार की आवश्यकता कैसे पड़ी, चित्रे?’ चित्रा की आँखें ऊपर न उठ सकीं। चित्रा चन्द्रा की मुँहबोली सेविका होने के साथ ही अभिन्न सहेली भी थी। चित्रा के मन की बातें चन्द्रा पढ़ लेती थी और चित्रा से भी चन्द्रा के अन्तर्मन की बात छिपती न थी। सावन का महीना लग चुका था। विवाहिताएं मैके आकर किलोल करने लगीं थीं। चित्रा के माता-पिता का देहान्त ...Read More

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कंचन मृग - 2 जइहँइ वीर जू

2. जइहँइ वीर जू- बालक उदास था। आँखें भरी हुई थीं। माँ से कहा कि उसे सैन्य बल में लिया गया। माँ घर की देहरी पर बैठी पत्तल बना रही थी। ‘पतरी तव हइ पेट पालइ का, काहे बिलखत हव’ ‘म्वहिं का कुछ करै का है। तैं दिन भर लगी रहति ह्या तबहुन पेट न भरत। म्वहिं यहइ काम करैं-क है का? ‘हाथ पांव चलइहव तौ रोटी मिलइ ! ये ही मा सुख मिलइ।’ ‘काम मा म्वहिं लाज नाहीं आवइ। घ्वरसवार बनै क मन रहइ। घ्वर सवार कइ कमाई ज्यादा हवै। का त्वार मन नाहीं कि म्वहिं कुछ ज्यादा ...Read More

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कंचन मृग - 3 उड़ि जा रे कागा

3. उड़ि जा रे कागा रूपन को घर छोड़े पूरे बारह महीने बीत गए। पुनिका प्रायः आकर रूपन की को ढाढ़स बँधाती, पत्तल बनाने में उसकी सहायता करती । रूपन को दम मारने की फुर्सत नहीं थी। वह उदयसिंह का विश्वास पात्र सैनिक था। उदयसिंह हर कहीं उसे साथ रखते। रूपन भी अपनी ओर से कोई कोर कसर नहीं छोड़ता। ‘न’ करना उसने सीखा नहीं था। संकटपूर्ण स्थितियों का सामना करने में वह दक्ष हो गया था। पर घर छूट गया था। माँ घर पर थी। कुछ ड्रम्म और संदेशा मिल जाता पर उसके मन की साध धरी की ...Read More

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कंचन मृग - 4. माई साउन आए

4. माई साउन आए- बारहवीं शती का उत्तरार्द्ध। महोत्सव वास्तव में उत्सवों का नगर था। नर-नारी उल्लासमय वातावरण का करने में संलग्न रहते। ऋतुओं के परिवर्तन के साथ ही नगर का परिवेश बदल जाता । सावन में घर-घर झूले पड़ जाते। नीम या इमली की डाल पर बड़े-बड़े रस्से लगाकर लकड़ी के मोटे पटरे बाँध दिये जाते। नवयुवतियाँ साँझ ढलते ही झूलों पर झूलतीं और कोमल कंठों से सावन गातीं। उन गीतों को सुनकर हर व्यक्ति जीवन की कटुता भूल जाता। अभावों और आकांक्षाओ की अनापूर्ति के मध्य भी जीवन की सरसता छलक उठती। रस बरसने लगता। चन्द्रा के ...Read More

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कंचन मृग - 5. सत्ता को कभी-कभी निर्मम होना पड़ता है

5. सत्ता को कभी-कभी निर्मम होना पड़ता है- महारानी मल्हना मूर्च्छित हैं। सेविकाएं उन्हें सँभालने का प्रयास कर रही उनकी आँखों से निरन्तर अश्रु बह रहे हैं। चित्रा भी पहुँच कर पंखा झलने लगती है। कुछ क्षण में महारानी की आँख खुलती है। उसी समय मन्त्रिवर माहिल प्रवेश करते हैं। महारानी की प्रश्नवाचक मुद्रा माहिल को अन्दर तक बेध देती है पर वे उत्तरीय सँभालते हुए बोल पड़ते हैं- ‘महाराज ने उचित ही किया महारानी। एक राज्य में दो सत्ता केन्द्र नहीं हो सकते जैसे एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती।’ महारानी ने माहिल पर एक बेधक ...Read More

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कंचन मृग - 6. हमें थोड़े करवेल्ल चाहिए

6. हमें थोड़े करवेल्ल चाहिए-नगर के एक मार्ग पर अयसकार रोहित जा रहा था। दूसरी ओर से एक व्यक्ति चाल से आते हुए दिखा। रोहित पूछ बैठा ‘सुना नहीं आपने ?’‘क्या ?’‘दशपुरवा खाली करने का आदेश दे दिया गया है।’‘मुझे कुछ भी पता नहीं। राजा महाराजाओं के पीछे मैं नहीं रहता। कोई आता है कोई जाता है विद्या हेतु अधिकांश समय काशी रहा। हमें थोड़े कारवेल्ल चाहिए, उन्हें लेने जा रहा हूँ। पत्नी ने कहा है। उसकी इच्छा है तो कारवेल्ल लाऊँगा ही ?’‘यह कारवेल्ल क्या है ?’‘अरे कारवेल्ल नहीं जानते। करेला को कारवेल्ल कहा जाता है।’‘आपका पाणिग्रहण कुछ ...Read More

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कंचन मृग - 7. यह क्या हो गया दीदी ?

7. यह क्या हो गया दीदी ? दशपुरवा में आल्हा की बैठक में भारी भीड़ है। सभी अपने-अपने ढंग सोच विचार में मग्न हैं। बहुत से लोग प्रतिक्रिया न व्यक्त कर आल्हा के निर्देश की प्रतीक्षा में हैं। रूपन ने पहुँच कर प्रणाम करते हुए निवेदन किया कि महाराज ने भेंट करने की अनुमति नहीं दी। उनकी इच्छा है कि तत्काल हम लोग यहाँ से कहते कहते रूपन की आँखों में अश्रु भर आए। बैठक में सभी के मुखमण्डल पर विभिन्न प्रकार के भाव आ-जा रहे थे। कुछ आक्रामक तेवर के साथ कुछ कहना चाहते थे आल्हा ने रोक ...Read More

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कंचन मृग - 8. हर व्यक्ति चुप है

8. हर व्यक्ति चुप है- चन्द्रा मुँह ढाँप बिस्तर पर पड़ी है। चित्रा पंखा झल रही है। चित्रा चन्द्रा प्रसन्न करना चाहती है पर उसे कोई युक्ति नहीं सूझती। उसने शक्ति भर प्रयास भी किया पर चन्द्रा के कष्ट को कम न कर सकी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? चन्द्रा की विकलता कम होने की अपेक्षा बढ़ती जा रही थी। चित्रा मन बहलाने के लिए कोई कथा या संवाद सुनाने का प्रयास करती पर इससे चन्द्रा की अशान्ति कम न होती। कभी-कभी मन और उद्विग्न हो उठता। चित्रा ने कहा कि लहुरे वीर से ...Read More

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कंचन मृग - 9-10. विश्वास नहीं होता मातुल

9. विश्वास नहीं होता मातुल आल्हा प्रस्थान का निर्देश दे ही रहे थे कि माहिल आते दिखाई पड़ गए। रुक गए, माहिल को प्रणाम कर पूछा, मातुल कोई नया संदेश ?’ कोई नवीन संदेश नहीं है। सत्ता केन्द्र षड्यन्त्र के केन्द्र बनते जा रहे हैं जिस पर विश्वास कीजिए, वही जड़ काटने का प्रयास करता है। आपके निष्कासन से मुझे भयंकर पीड़ा हो रही है’, कहते-कहते माहिल की आँखों में आँसू आ गए।‘इतने दिन का ही अन्नजल विधि ने लिख रखा था मातुल । माँ शारदा की अनुकम्पा बनी रहे तो सभी कष्टों का निवारण होता रहेगा। महाराज सुखी ...Read More

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कंचन मृग - 11-12. अब वे अकेले हो गए हैं

11. अब वे अकेले हो गए हैं- प्रातः लोग तैयारी कर ही रहे थे कि शिशिरगढ़ से पुरुषोत्तम कुछ अश्वारोहियों के साथ आ पहुँचे। उन्होंने आल्हा का चरण स्पर्श किया। आल्हा ने उन्हें गले लगा लिया तथा वस्तु स्थिति से अवगत कराया। उदय सिंह और देवा ने भी आकर पुरुषोत्तम का चरण स्पर्श किया। ‘हम लोग अलग न जाकर शिशिरगढ़ में ही वास करें, पुरुषोत्तम ने प्रस्ताव किया। ‘शिशिरगढ़ भी महोत्सव का ही अंग है। यहाँ निवास महाराज परमर्दिदेव की आज्ञा का उल्लंघन होगा,‘आल्हा ने संकेत किया।’ ‘अब चंदेल सीमा के बाहर ही निवास उचित होगा। जो आरोप हम ...Read More

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कंचन मृग - 13-14. मेरी यात्रा को गोपनीय रखें

13. मेरी यात्रा को गोपनीय रखें-मध्याह्न भोजन के पश्चात महाराज जयचन्द अलिन्द से निकलकर उद्यान का निरीक्षण कर रहे उद्यान की हरीतिमा नेत्रों को प्रीतिकर लग रही थी। इसी बीच प्रतिहारी ने आकर निवेदन किया-‘महाराज, एक साधु आप से मिलना चाहते हैं। उन्होंने अपना अन्य कोई परिचय नहीं दिया। कहते हैं कि महाराज से ही निवेदन करूँगा।’‘यहीं ले आओ।’‘कुछ क्षण में साधु प्रतिहारी के साथ उपस्थित हुए। महाराज साधु को लेकर अलिन्द में आ गए। महाराज के संकेत पर सेविकाएँ हट गई। सेविकाओं के हटते ही साधु ने जटा हटा दी। माहिल ने महोत्सव की नवीनतम जानकारी दी और ...Read More

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कंचन मृग - 15. उद्विग्न नहीं, सन्नद्ध होने का समय है

15. उद्विग्न नहीं, सन्नद्ध होने का समय है उदयसिंह का मन अब भी अशान्त था। शिविर के निकट ही कच्चे बाबा का आश्रम था। वे उस आश्रम की ओर बढ़ गए। आश्रम के निकट ही गंगा का निर्मल जल प्रवाहित हो रहा था। बाबा जिनकी अवस्था पचास से अधिक नहीं रही होगी, एक वट वृक्ष के नीचे कुशा की आसनी पर पद्मासन मुद्रा में बैठे थे। उनके पास कुछ जिज्ञासु मार्गदर्शन हेतु इकठ्ठा थे। उदयसिंह ने निकट जा कर प्रणाम किया। बाबा के संकेत करते ही उदयसिंह भी निकट ही एक आसनी पर बैठ गए। उदयसिंह की आँखों को ...Read More

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कंचन मृग - 16. जौरा यमराज को भी कहते हैं

16. जौरा यमराज को भी कहते हैं सायंकाल महाराज जयचन्द ने मंत्रिपरिषद के सदस्यों से विचार-विमर्श प्रारम्भ किया। जयचन्द परमर्दिदेव का सम्बन्ध सौहार्दपूर्ण था। महाराज परमर्दिदेव द्वारा निष्कासित व्यक्ति को शरण देने का अर्थ महोत्सव से अपने सम्बन्धों को कटु बनाना था। पण्डित विद्याधर ने दोनों राजकुलों की महान परम्पराओं का उल्लेख करते हुए सुझाव दिया कि महाराज परमर्दिदेव से सम्बन्ध बनाए रखना ही उचित है। कुछ अन्य सदस्यों ने माण्डलिक की प्रशंसा की। उनकी कर्त्तव्यनिष्ठा एवं रण कौशल रेखांकित किया। यह भी कहा गया कि इन्हें शरण दे देने से कान्य कुब्ज का सैन्यबल अधिक सुदृढ़ हो जाएगा। ...Read More

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कंचन मृग - 18. दिल्ली की ओर भी प्रस्थान कर सकता है

18. दिल्ली की ओर भी प्रस्थान कर सकता है- महाराज पृथ्वीराज जिन्हें ‘राय पिथौरा’ के नाम से भी जाना है, को सत्ता सँभाले अभी पाँच वर्ष ही हुए थे। उनमें युवा रक्त फड़फड़ा रहा था। वे धनुर्विद्या में पारंगत थे। उन्होंने शब्द बेधते हुए बाण चलाने की कला सीखी थी। उनके यहाँ चामुण्डराय, चन्द, कदम्बवास, कन्ह जैसे कुशल योद्धा थे। कदम्बवास और माँ कर्पूरदेवी के संरक्षण में ही अवयस्क पृथ्वीराज ने राज भार सँभाला था। पर अब वे अनुभवों की सीढ़ी पर एक एक पग आगे बढ़ रहे हैं। कदम्बवास का संरक्षण अब भी था पर महाराज अब स्वतन्त्र ...Read More

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कंचन मृग - 19. पारिजात शर्मा कहाँ नहीं गए?

19. पारिजात शर्मा कहाँ नहीं गए? पारिजात शर्मा कहाँ नहीं गए? नदियों के श्मशान घाट पर महीनों बिताने के भी वे सुमुखी का पता नहीं लगा सके। उनकी दाढ़ी बढ़ गई थी। बाल बढ़कर उलझ गए थे। वस्त्रों से भद्रता का अंश निकल चुका था। कहीं कुछ मिलता तो खा लेते। निरन्तर चिन्ता मग्न चलते रहते। आज वेत्रवती के तीर पहुँचकर वे पूरी तरह थक चुके थे। घाट पर पहुँच, उन्होंने नदी का जल पिया। घाट पर लगे एक अश्वत्थ पेड़ के नीचे बैठते ही, उन्हें नींद आ गई। फिर वही स्वप्न, जिसे वे सैकड़ों बार देख चुके हैं। ...Read More

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कंचन मृग - 17. ऋण चुकाने का अवसर आ गया

17. ऋण चुकाने का अवसर आ गया कान्य कुब्ज नरेश का विशाल सभा कक्ष। पंडित विद्याधर सहित मन्त्रिगण अपने पर आ चुके। वनस्पर बंधु भी सभा में आकर महाराज की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कुछ क्षण में ही महाराज जयचन्द श्री हर्ष एवं कुँवर लक्ष्मण के साथ आकर अपना आसन ग्रहण करते हैं। महाराज जयचन्द अपने हाथ से आचार्य को ताम्बूल वीटक प्रदान करते हैं, यह सम्मान श्री हर्ष को ही प्राप्त है। आचार्य श्री हर्ष स्वाभिमान की प्रतिमूर्ति हैं, वे किसी से दबते नहीं। महाराज से भी उचित अनुचित पर चर्चा करते और उचित का ही पक्ष लेते। ...Read More

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कंचन मृग - 20. यह युद्ध नहीं युद्धों की श्रृंखला थी

20. यह युद्ध नहीं युद्धों की श्रृंखला थी- चाहमान नरेश का अंतरंग सभा कक्ष, जिसमें मन्त्रिगण एवं मुख्य सामन्त हैं। महाराज पृथ्वीराज के प्रवेश करते ही सभी लोगों ने खड़े होकर महाराज का स्वागत किया। बाइस वर्षीय महाराज की आँखों में राज्य विस्तार की आकांक्षा झलक रही थी। युवा रक्त युद्ध भूमि में अपना प्रदर्शन करने के लिए हरहरा रहा था। आखेट में रात्रि जागरण के कारण आँखें लाल हो उठी थीं। आज की सभा में चामुण्डराय अधिक उत्तेजित थे। उनकी एक सैन्य टुकड़ी को महोत्सव में अपमानित होना पड़ा था। उन्होंने महाराज के सम्मुख निवेदन किया, ‘महाराज, महोत्सव ...Read More

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कंचन मृग - 21. धौंसा बजा

21. धौंसा बजा- शिशिर गढ़ पर वत्सराज पुत्र पुरुषोत्तम शासन कर रहे थे। वत्सराज संस्कृत में श्लोक रचते थे। ‘रूपक शतकम्’ की रचना की थी। पुरुषोत्तम बात के धनी थे। उनकी प्रकृति गम्भीर थी। उन्होंने महोत्सव की प्रतिष्ठा पर आँच नहीं आने दी। पर यह ऐसा अवसर था जब माण्डलिक और उदयसिंह गाँजर क्षेत्र में कान्यकुब्जेश्वर का कर उगाहने में लगे थे। तालन और देवा भी उन्हीं के साथ थे। महोत्सव से माण्डलिक के निष्कासन से उन्हें कष्ट हुआ था पर आल्हा द्वारा शिशिरगढ़ रुकने में असमर्थता व्यक्त करने पर उन्हें लगा था कि वे अकेले हो गए हैं। ...Read More

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कंचन मृग - 22-23. पत्र अपने पास रख लिया

22. पत्र अपने पास रख लिया- शिशिरगढ़ चामुण्डराय ने घेर लिया, यह सूचना प्राप्त होते ही महाराज परमर्दिदेव चिन्तित उठे। उन्होंने अपने मन्त्रियों से विचार विमर्श किया। सभी को यह आशंका हो रही थी कि चाहमान सेनाएँ महोत्सव की ओर भी प्रस्थान कर सकती है। मन्त्रिवर माहिल ने कहा कि वे महाराज पृथ्वीराज के मित्र हैं। उन्हें अपने पक्ष में कर लेंगे ब्रह्मजीत एवं समरजीत दोनों राजकुमारों को लगा कि मातुल पर बहुत विश्वास करना उचित नहीं है पर वे किसी विकल्प पर नहीं पहुँच सके। महारानी मल्हना ने महाराज से कहा कि आल्हा एवं उदयसिंह का निष्कासन उचित ...Read More

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कंचन मृग - 24. आसौं कै सावन राजा घर करौं

24. आसौं कै सावन राजा घर करौं- शिशिरगढ़ पतन की सूचना जैसे ही परमर्दिदेव को मिली, वे चिंतित हो उन्होंने अन्तरंग सभा में विचार-विमर्श किया पर किसी निर्णय पर नहीं पहुँच सके। माहिल उन्हें बार-बार समझाते रहे कि यदि चाहमान नरेश आक्रमण करते हैं तो वे सँभाल लेंगे। अन्तरंग सभा के अन्य सदस्यों ने जानना चाहा कि वे कौन सी प्रक्रिया अपनाएँगे किन्तु माहिल ने स्पष्ट नहीं किया। महोत्सव में युद्ध कला में निष्णात वीरों का अभाव न था। पर इनमें से किसी ने भी किसी युद्ध का नेतृत्व नहीं किया था। परमर्दिदेव अब अधिकतर अस्वस्थ रहते। उन्होंने युद्ध ...Read More

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कंचन मृग - 25. उन्हें सूचित करना ही होगा

25. उन्हें सूचित करना ही होगा- परमर्दिदेव अन्तरंग सभा में चाहमान माँगों पर विमर्श कर रहे थे। एक तीर दुर्ग के अन्दर आते कई लोगों ने देखा। जैसे ही तीर गिरा, चन्दन ने उठा कर उसे मन्त्री देवधर को दिया। तीर की रचना विशिष्ट थी। इस पर भगवती दुर्गा का चित्र बना था । तीर दुर्ग के निकट से ही फेंका गया था। देवधर चिन्तित हुए। दुर्ग के इतने निकट चामुण्डराय का कोई धनुर्धर आया और उसी ने शर सन्धान किया। उन्होंने तीर को महाराज के सामने प्रस्तुत किया। महाराज ने तीर को देखा पर माँग पत्र पर विचार ...Read More