24. आसौं कै सावन राजा घर करौं- शिशिरगढ़ पतन की सूचना जैसे ही परमर्दिदेव को मिली, वे चिंतित हो उठे। उन्होंने अन्तरंग सभा में विचार-विमर्श किया पर किसी निर्णय पर नहीं पहुँच सके। माहिल उन्हें बार-बार समझाते रहे कि यदि चाहमान नरेश आक्रमण करते हैं तो वे सँभाल लेंगे। अन्तरंग सभा के अन्य सदस्यों ने जानना चाहा कि वे कौन सी प्रक्रिया अपनाएँगे किन्तु माहिल ने स्पष्ट नहीं किया। महोत्सव में युद्ध कला में निष्णात वीरों का अभाव न था। पर इनमें से किसी ने भी किसी युद्ध का नेतृत्व नहीं किया था। परमर्दिदेव अब अधिकतर अस्वस्थ रहते। उन्होंने युद्ध में उतरना लगभग छोड़ दिया था।
माहिल का भी एक स्वप्न था और उसी स्वप्न को पूरा करने के लिए वे दिन-रात एक किए रहते थे। परमर्दिदेव का आधिपत्य उन्हें कष्टकर लग रहा था। उनके एक पुत्र था अभयी। जब तक उदय सिंह महोत्सव में थे, अभयी का आना-जाना बहुत कम होता था। पर अब अभयी महाराज परमर्दिदेव की सुरक्षा में आ गए थे। । सत्ता केन्द्र प्रायः षड्यन्त्र के भी केन्द्र बन जाते हैं। माहिल चाहते थे कि पृथ्वीराज महोत्सव को पराजित करें और राज्य अभयी को मिल जाए। पर यह बात वह किसी को बताते नहीं थे। अभयी को भी इस बात का कोई आभास नहीं था। उन्हें महोत्सव की सुरक्षा का भार सौंपा गया था, जिसे वे पूरी निष्ठा से निभा रहे थे।
अन्ततः वह दिन आ ही गया, जिसकी आशंका थी। चाहमान की विशाल वाहिनी ने चामुण्डराय के नेतुत्व में महोत्सव घेर लिया। गोपालकों की गायों को सैन्य शिविरों में रोक लिया गया। श्रेष्ठियों, किसानों से खाद्य सामग्री की आपूर्ति के लिए कहा गया। दुर्ग के फाटक बन्द हो गए। अन्दर की सुरक्षा बढ़ा दी गई। महोत्सव में जल के स्रोत कूप और सरोवर थे। कीर्ति सागर महाराज कीर्तिवर्मन द्वारा बनवाया गया विशाल सरोवर था। महोत्सव के चारों ओर सरोवरों की एक श्रृंखला थी। चाहमान सेनाएँ यद्यपि दुर्ग को चारों ओर से घेरे हुए थीं किन्तु चामुण्डराय का जमावड़ा कीर्ति सागर पर था।
महोत्सव की सैन्य शक्ति से चाहमान की सैन्य शक्ति अधिक थी। सम्पूर्ण नगर में नृत्य-गान बन्द हो गए। महाराज परमर्दिदेव निरन्तर विचार-विनिमय में ही लगे रहते। पर उन्हें कोई उपाय सूझ नहीं रहा था। माहिल इस बात पर बल दे रहे थे कि महाराज पृथ्वीराज को बिना कुछ दिये कोई बात कैसे की जा सकती है? महारानी मल्हना यद्यपि चतुर राजनीतिज्ञ थीं किन्तु इस समय वे भी अपने को असमर्थ पा रहीं थीं। लोग इस समय उदय सिंह को स्मरण करते, उनके शौर्य एवं साहस की चर्चा करते पर महोत्सव का संकट टलने का नाम नहीं ले रहा था। सावन का आगमन किसी में हुलास भरने में सक्षम नहीं था। बाल-वृद्ध, नर-नारी सभी चाहमान सेना से भयभीत थे। चामुण्डराय की चौकसी से कोई बच नहीं पा रहा था। जन-जन में यह प्रचारित हो रहा था कि दुर्ग के भीतर यदि कोई चिड़िया आकाश की ओर उड़ती है तो चामुण्डराय उन पर बाज छुड़वा देता है।
महाराज परमर्दिदेव ने अन्तरंग सभा की, जिसमें सभी मन्त्री, राजकुमार ब्रह्मजीत , समरजीत, अभयी सम्मिलित हुए। महारानी मल्हना भी सभा में उपस्थित थीं। यह निर्णय लिया गया कि सैन्य बल का मनोबल बनाये रखने के लिए अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण पर विशेष बल दिया जाए। अयसकार रोहित को बुलाकर उन्हें इस कार्य में तेजी लाने के लिए कहा गया। दुर्ग में भोजन और जल का अभाव नहीं था पर प्रतिवर्ष होने वाले भुजरियों के पर्व की चर्चा सभी की जिह्वा पर थी। सावन में होने वाले इस पर्व में बहनें कीर्ति सागर में भुजरियाँ सिरा कर भाइयों को भेंट करती थीं। कीर्ति सागर पूरी तरह घिरा हुआ था। वहाँ कोई पर्व करना सीधे युद्ध को निमंत्रण देना था।
बालिकाओं की एक टोली चन्द्रा से मिली। सभी की इच्छा थी कि पर्व मनाने की व्यवस्था की जाए। पर इसका दायित्व कौन ले? सभी उदय सिंह को स्मरण करतीं। उदय सिंह का नाम आते ही चन्द्रा की आँखें भर आईं। आज वे होते तो महोत्सव को यह दिन न देखना पड़ता। हार-जीत की कौन जाने पर उदय सिंह के आने पर महोत्सव की हँसी लौट सकती थी। उसकी आँखों से अश्रु गिरते रहे। चित्रा से भी देखा नहीं जा रहा था। बोल पड़ी, ‘रानीजू हर व्यक्ति यही कह रहा है कि यदि आज वीर जू होते।’’
‘‘वीर जू जैसा व्यक्ति कहाँ मिलेगा चित्रे?’’
‘‘आज्ञा हो तो मैं ही उन्हें खोजने जाऊँ।’’
‘‘तू बड़ी भोली हैं चित्रे, तेरा यह सुन्दर रूप तेरे लिए संकट खड़ा कर देगा।’’
‘‘मैं रूप बदल सकती हूँ रानी जू।’’
‘‘तेरा मेरे साथ रहना आवश्यक है, तू मेरा प्राण है चित्रे।’’
‘‘मै आपकी दासी हूँ रानीजू। वीर जू ने इतना विश्वास कैसे पा लिया स्वामिनी?’’
‘‘वीरजू ने किसी के साथ विश्वासघात नहीं किया। किसी ने कुछ अपेक्षा की तो वे वहाँ दिखाई पड़े। भय तो उन्हें छू नहीं गया है। कभी उन्होंने यह नहीं कहा कि मुझसे यह कार्य नहीं होगा। अत्याचार, अन्याय का विरोध करते हुए असमर्थो के तारन हार रहे हैं वे। सभी का विश्वास पाना कठिन है, पर वे इसमें उत्तीर्ण हुए हैं।’’
‘‘वे हम लोगों का भी बहुत ध्यान रखते थे, रानी जू।’’
‘‘आज जो शक्तिशाली हो जाता है, दूसरों पर आक्रमण कर लूटपाट करता है। आक्रमण कारी विजितों के साथ दुर्व्यवहार कर उन्हें दास दासी बना लेते हैं। वीर जू ने कभी ऐसा नहीं किया। नारी अपहरण का वे निरन्तर विरोध करते रहे। उन्होंने कभी भी विजित को सम्मान देने में भूल नहीं की। माण्डव नरेश को हराकर भी उन्होंने राज्य उनके परिवार को सौंप दिया।’’
‘माण्डव पर आक्रमण के समय तो बहुत छोटे थे’। ‘वे उस समय बारह पूरा कर तेरहवें में प्रवेश कर रहे थे। किशोरावस्था झाँकने लगी थी। पर उन्होंने अपने को दाँव पर लगा दिया। मातुल के शब्द उनके हृदय को बेध गए थे। मातुल ने समझा था कि उनका समापन हो जाएगा, पर वे विजयी होकर लौटे। छोटे जोगी बनकर उन्होंने सम्पूर्ण माण्डव को छान डाला। बड़े भैया आल्हा, पुरुषोत्तम , चाचा तालन, देवा सभी थे पर वीर जू की बात ही और थी।’
चित्रा ने देखा कि वीर जू की चर्चा करते चन्द्रा का मुख मण्डल दमक उठा है, अवसाद का स्थान प्रफुल्लता ने ले लिया है। वह अपनी जिज्ञासा व्यक्त करती रही, ‘सुनती हूँ कि भाभी पुष्पिका को पाने के लिए उन्होंने........।’ ‘हाँ सच सुना है तूने। भाभी की एक झलक पाने के लिये मालिन की बेटी का रूप धारण किया था। यह इस लिए नहीं कि वे जार थे बल्कि इस लिए कि वे भाभी की सहमति प्राप्त कर ही उनका पाणिग्रहण करना चाहते थे। बालिकाएँ आज भी स्वतन्त्र कहाँ है? अपनी इच्छा व्यक्त करने में अनेक बाधाएँ। आक्रमण कारी तो नारी को केवल धन के रूप में परिभाषित करता है। मालिन से पुष्पिका का वर्णन सुन कर उनका मन उनकी ओर आकर्षित अवश्य हुआ था। पर वे पुष्पिका की इच्छा जानना चाहते थे। वे यह भी चाहते थे कि पुष्पिका उन्हें देख-सुन कर ही कोई निर्णय करे। इसके लिए पुष्पिका को संकट में न डाल कर उन्होंने स्वयं संकट का वरण किया था। सुविधाएँ दूसरों के लिए, संकट अपने लिए, यह उनका स्वभाव है। इसीलिए जन-जन आज उन्हें अपना मानता है।’’
‘‘और जोगी बनकर आतिथ्य ग्रहण किया।’’
‘अरे, तू तो सब कुछ जानती है’
‘नहीं रानी जू, मैंने केवल उड़ती बात सुनी है। मैं कुछ भी नहीं जानती।’
‘हाँ, उनके साथ भाई देवा थे। वे भी स्थितियों का आकलन कर लेना चाहते थे। इसीलिए देवा गुरु बने और वीरजू शिष्य। उन्होंने राज महल को छान मारा। भाभी पुष्पिका के व्यवहार से देवा भी संतुष्ट हुए। देवा एक तारा बजाते थे और वीरजू बाँसुरी। यह दृश्य कल्पना में आते ही मुझे हँसी छूट जाती है।’ चन्द्रा सचमुच हँस पड़ी। चित्रा को भी प्रसन्नता हुई। वह इस क्रम को बनाए रखना चाहती थी। पूछ बैठी, ‘सुना है वीर जू नृत्य भी कर लेते हैं’।
‘यह पूछो कि क्या नहीं कर लेते हैं? नृत्य का बाँकपन तो उनकी चाल में ही है। बड़े-बड़े नृत्यकार भी उनकी प्रशंसा करते है। संगीत गुणी लाक्षणिका भी उनके संगीत प्रेम की प्रशंसक हैं। युद्ध और संगीत, कैसा संयोग है। युद्ध तो उनपर थोप दिया गया है चित्रे। कितनों को पराजित कर उन्होंने छोड़ दिया, अपने सभी सैनिकों को भाई समझा, सेवक नहीं।’
‘हम लोगों के प्रति भी उनका व्यवहार कितना मृदु होता था?’
‘वीर जू के स्मरण में भी एक संगीत उभरता है चित्रे-स्नेह का संगीत। एक गीत सुना चित्रे वही ‘आसौं के सावन राजा घर करौ पर कै करियो विदेस’।
स्वामिनी की आज्ञा होते ही चित्रा ने गुनगुनाना प्रारम्भ कर दिया। ताल देने के लिये चन्द्रा की उँगलियाँ थिरक उठीं। चित्रा का मधुर स्वर लहरा उठा-
आसों के सावन राजा घर करौं, पर कै करियो विदेस।
रहौ तों पैराँ हरी चूनरी, जाओं तौ दक्खिनी चीर।
आसों0।
रहौ तो रांधों रस खीर री, जाओं तौ रूखौ भात।
आसौं0।
साँपन ने छोड़ी साँप कांचरीं, नदिया ने छोड़ी कगार।
आसौं0।
राजा ने छोड़ी अपनी धनियाँ, जौ दुख सहोई न जाय।
आसौं0।
साँपन ने लीनी साँप काँचरीं, नदिया ने पकरी कगार।
आसौं0।
राजा ने लीनी धना आपनी, जौ सुख कहौ न जाय।
आसौं0।