Safai wala books and stories free download online pdf in Hindi

सफाई वाला

सफाई वाला

हल्द्वानी एक खूबसूरत जगह तो है ही लेकिन संसाधन कम होने के कारण ज़्यादातर लड़के पढ़ लिख्ङकर भी नौकरी करने बड़े शहरों का रुख कर ही लेते हैं। सूरज को बी॰ ए॰ पास करने के बाद भी जब अपने शहर में कोई नौकरी नहीं मिली तो वह दिल्ली आ गया। दिल्ली उसके लिए बिलकुल ही नया शहर था, उसका यहाँ पर कोई जानने वाला भी नहीं था अतः इतने बड़े शहर में उसके रहने खाने की समस्या भी होनी ही थी, मगर वह तो पूरी तरह संघर्ष करने के इरादे से आया था। दिन में नौकरी के लिए दौड़ता और रात में फुटपाथ पर ही सो जाता, जो थोड़े से पैसे उसके पास थे वो भी खत्म होने वाले थे मगर नौकरी की अभी दूर दूर तक कोई आशा नहीं थी। पढ़ा लिखा था मगर कोई नौकरी नहीं दे रहा था क्योंकि काम करने का कोई तजुर्बा नहीं था और मेहनत मजदूरी वाली नौकरी इसलिए नहीं मिली कि वह पढ़ा लिखा था।

पैसे खतम हो गए थे, रहने और खाने की समस्या आन पड़ी तो सूरज ने तय किया कि अब वह अनपढ़ बनकर ही नौकरी माँगेगा। दिल्ली के दिल कनाट प्लेस के निकट ही एक बड़ी टैक्सी कंपनी में उसको गाड़ियों की साफ सफाई करने की एक नौकरी मिल गयी। कंपनी के पास एक से एक चमचमाती गाड़ियों की पूरी कतार थी, जिनकी सफाई करते करते सूरज को सुबह सवेरे से रात तक काम करना पड़ता। अपने काम से निबट कर सूरज वहीं नजदीक के ढाबे पर खाना खाता और सड़क किनारे बने कंपनी के दफ्तर में ही सो जाता, इस तरह सूरज की रहने खाने की समस्या तो हल हो गयी।

सूरज गाड़ियों की सफाई बड़ी ही लगन और मेहनत से करता जिससे गाडियाँ और भी ज्यादा चमकने लगीं। गाड़ी के अंदर या बाहर जरा भी धूल मिट्टी या गंदगी होती तो सूरज को कचोटती रहती, इसलिए वह कपड़ा लेकर तब तक लगा रहता जब तक उसको स्वयं संतुष्टि न हो जाती। एक बार एक ड्राईवर पूछने लगा, “सूरज! तू गाड़ी के साफ हो जाने के बाद भी कपड़ा लेकर क्या साफ करता रहता है?”

सूरह कहने लगा, “साहब जी! मेरा काम ही मेरा भगवान है और जब तक मुझे मेरे काम मे मेरा भगवान नजर नहीं आ जाता में संतुष्ट नहीं हो पता।”

सूरज की सफाई से सभी ड्राईवर बड़े ही खुश थे, क्योंकि उनकी चमचमाती, चमकदार, साफ सुथरी गाडियाँ पाँच सितारा होटेलों में जब बड़े बड़े लोगों को लेकर जाती थीं तो वो लोग ड्राईवर को अच्छी ख़ासी टिप दे जाते थे जो उन्हे पहले नहीं मिलती थी। अपनी टिप में से सभी ड्राईवर सूरज को भी कुछ न कुछ दे देते थे जिससे उसका रोज़ का चाय पानी और खाने का खर्चा निकल आता था। इस तरह सूरज अपनी तंख्वाह के पूरे पैसे यानि कि दस हजार रुपए अपने घर पर अपनी माँ के पास भेज दिया करता था। अपने काम से सूरज बड़ा खुश रहता इसलिए सभी ड्राईवर भी सूरज से बड़े खुश थे, उन्होने सूरज को गाड़ी आगे पीछे करना भी सिखा दिया क्योंकि अगर सूरज गाड़ी आगे पीछे कर लेता तो ड्राईवर को भी आराम मिल जाता था।

रात में सड़के करीब करीब खाली रहती तो सूरज किसी भी ड्राईवर को साथ लेकर गाड़ी चला कर एक चक्कर कनाट प्लेस का लगा लेता और ऐसे सूरज एक पूरा ड्राईवर बन गया। सूरज ने अपना ड्राइविंग लाइसेंस भी बनवा लिया, तभी कंपनी के एक ड्राईवर को काम छोड़ कर अपने गाँव जाना पड़ा तो उसने मालिक को बता दिया कि मेरे वाली गाड़ी सूरज चला लेगा उसके पास ड्राइविंग लाइसेंस भी है और वह गाड़ी चलाता भी बहुत अच्छी है। मालिक ने गाड़ी में स्वयं बैठकर सूरज से गाड़ी चलवाई तो यह जान कर बहुत खुश हुआ कि सूरज होशियारी और ज़िम्मेदारी से गाड़ी चलाता है अतः मालिक ने गाड़ी चलाने के लिए सूरज को दे दी और सूरज का वेतन भी बढ़ा दिया।

सूरज की गाड़ी एक पाँच सितारा होटल में लगी थी जहां पर बड़े बड़े लोगों का आना जाना लगा रहता था। एक तो सूरज की गाड़ी सबसे अलग चमकती, दूसरे उसका व्यवहार बरबस ही अपनी तरफ खींचता था, जो एक बार सूरज की गाड़ी में यात्रा कर लेता वह जब भी होटल में ठहरता तो सूरज को ही बुलवाता था। मुंबई के एक बड़े व्यापारी जब एक बार सूरज की गाड़ी में बैठे तो वह सूरज के व्यवहार से बड़े ही प्रभावित हुए और हमेशा सूरज को ही बुलवाते। उन्होने सूरज को एक टैक्सी लेकर दे दी एवं कहा, “देखो सूरज! इस कार को तुम चलाओ, जो भी कमाओगे वह सब तुम्हारा होगा और किश्तों में मेरा पैसा लौटाते रहना।” सूरज इस शर्त पर राजी हो गया और अब वह वेतन वाले ड्राईवर की जगह स्वयं अपना मालिक बन गया।

सूरज की अच्छी कमाई होने लगी और उसने एक और गाड़ी लेकर उसी होटल में लगा दी। धीरे धीरे सूरज का कारोबार बढ़ता गया और उसके पास कारों का पूरा काफिला हो गया जिसमे एक से एक महंगी कार थी। ड्राइवरों की पूरी पलटन, सफाई वाले और सभी तरह के कर्मचारी उसकी कंपनी में थे। सफाई वाला आज एक बहुत बड़ी कंपनी का मालिक बन गया था जिसका नाम उसने सफाई वाला टैक्सी कंपनी रख दिया, अपनी माँ के हाथों उसने अपनी कंपनी के दफ्तर का उदघाटन करवाया। सूरज अपने व्यवहार और मेहनत से दिनों दिन तरक्की करता जा रहा था जो कुछ लोगों की आँखों में चुभने लगी।

एक दिन एक ड्राईवर रोते हुए सूरज के पास काम मांगने आया, पहले तो सूरज ने मना कर दिया लेकिन वह व्यक्ति सूरज के पैरों में गिर कर गिड्गिड़ाने लगा। जो एक धार्मिक प्रवृति का व्यक्ति हो, दया भाव जिसके मन में भरा रहता हो, जिसको अपने काम में भगवान के दर्शन हो जाएँ, वह व्यक्ति किसी का रोना गिड्गिड़ाना कैसे देख सकता था, अतः उसने उस ड्राईवर को अपनी कंपनी में रख लिया।

कुछ दिन तक तो उस ड्राईवर ने ठीक काम किया, लेकिन वह तो सूरज के पास उन लोगों ने भेजा था जो सूरज की तरक्की से दिन रात जलते थे, और एक दिन वह ड्राईवर सूरज की सबसे महंगी कार लेकर नेपाल भाग गया। सूरज को न तो गाड़ी के बारे में पता चल रहा था और न ही ड्राईवर के बारे में, ऊपर से ड्राईवर के घर वालों ने सूरज की झूठी शिकायत पुलिस में कर दी कि इसने हमारे आदमी को मार कर कहीं छुपा दिया है।

जिन दुश्मनों ने सूरज के विरुद्ध यह रचना रची थी अब वह इस कहानी को अंजाम तक पहुंचाना चाहते थे और उन्होने उस ड्राईवर को मारने की साज़िश रच डाली। नेपाल में उस ड्राईवर को कुछ लोगों ने घेर लिया और मार कर वहीं पर फेंक दिया, गाड़ी भी वहीं खड़ी कर दी। उस ड्राईवर और सूरज दोनों की ही किस्मत अच्छी थी कि ड्राईवर मरा नहीं, जब होश आया तो स्थानीय लोगों की सहायता से ठीक हो गया, जबकि दुश्मनों ने तो पूरा षड्यंत्र रच दिया था, इधर सूरज के नाम FIR करवा कर और उधर ड्राईवर को मार कर।

जो व्यक्ति अपने काम में और हर मजबूर में भगवान के दर्शन करता हो भला भगवान उसका बुरा कैसे होने देते। ड्राईवर ने नेपाल में ही उन लोगों के खिलाफ FIR करवाई जिन्होने उसको गाड़ी चुराने के लिए उकसाया था और बाद में उसको मार कर फेंक गए थे। वो सभी लोग नेपाल से दिल्ली भाग आए थे अतः नेपाल पुलिस उस ड्राईवर को गाड़ी सहित दिल्ली ले आई।

उस ड्राईवर के ब्यान पर दिल्ली पुलिस ने उन सब लोगों को गिरफ्तार कर लिया एवं सूरज को उसकी गाड़ी बरामद कर के दे दी।

सूरज की तरक्की से जल कर जो लोग सूरज के खिलाफ षड्यंत्र रच रहे थे, सूरज की टैक्सी कंपनी बंद करवाना चाह रहे थे उनकी अपनी टैक्सी कंपनी बंद हो गयी और वो खुद भी हत्या के प्रयास के आरोप में बंद हो गए।

ड्राईवर को सूरज ने छुड़वा लिया लेकिन उसको अपने यहाँ नौकरी पर नहीं रखा बल्कि उसको एक पुरानी टैक्सी किस्तों पर दे दी जिससे वह अपना गुजारा कर सके।

समस्या तो बड़ी थी और भगवान की कृपा से सुलझ भी गयी लेकिन अब माँ बोली, “बेटा! अब मैं तुझे ऐसा फंसाऊगी कि तू जीवन भर निकल नहीं पाएगा, ये तेरी बचपन की मित्र रागिनी है, मैंने आज इसे और इसके माँ बाप को तेरी शादी पक्की करने को बुलाया है।”

सूरज ने रागिनी को देखा तो बड़ा प्रसन्न हुआ, रागिनी शर्मा गयी, सूरज बोला, “रागिनी! तूने अभी तक शादी नहीं की? मैंने तो सोचा कि तू शादी करके ससुराल चली गयी होगी और मैं पूरी उम्र कुँवारा ही रहकर आज़ाद रहूँगा लेकिन तू तो तब से ही हथकड़ी लिए बैठी है, मैं वहाँ की हथकड़ी से बचा तो यहाँ लग गयी।” सूरज की बात सुन कर सब लोग हंस दिये और दोनों को दिल से आशीर्वाद दिये।