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अन्ततः

अन्ततः

अपनी पिछली ज़िन्दगी कुरेदने की कोशिश करती हूँ तो एक अनबुझी सी पहेली लगती है, जिसे मैं खुद आज तक नहीं समझ सकी।

वह व्यक्ति सबसे आहत और दुखी होता है, जिसे किसी से प्यार हो पर जिसका अंत सिर्फ त्याग और समझौते पर आकर रुक जाए। उस वक़्त मुझे भी लगता था कि मैं उन्हें दिल की गहराइयों से प्यार करना चाहती हूँ । बहुत अजिबोगरिबो तरीके से हमारा प्रथम परिचय हुआ। उम्र का एक लम्बा अन्तराल साथ ही उनका वक्तित्तव गहन चिंतन में डूबा हुआ। उसके विपिरित में वाचाल शरारती। आप अपने आपको कहीं कहीं गंम्भीर पाती हूँ। लेकिन ज़िन्दगी में वे और उनकी यादों के चिन्ह कुछ भी नहीं रहे। यदि कुछ शेष रह भी गए तो उन्हें बहुत अधिक धुंधला पाती हूँ । उन्हें शायद आभास नहीं था कि उनके परिवार में अन्दर ही अन्दर हमारे रिश्ते की बात उठी है।

मैं सदा उन्हें नमस्कार करती और वो सभ्यता और शालीनता के मीठे स्वर में मेरा अभिनन्दन स्वीकार करते। यह हमारी हर मुलाकात का सिलसिला था। उन्होंने प्रथम परिचय में मेरे अभिवादन के पश्चात् बड़ी आत्मीयता से मेरा नाम पुछा और मेरे नाम को मेरे योग्य न बताकर मुझे रश्मि ना दे दिया। और मुझसे मेरे इस नए नाम से पुकारने की इज़ाज़त मांगी। मन ही मन मैं उनकी ही होकर रह गयी। मेरे दिल दिमाग पर उनका एकाधिकार हो गया। मैं मन ही मन उन्हें जीवन की मंजिल मानने लगी थी । बदले में मुझे भी शायद सच्चा प्यार मिला, उस वक़्त तो उम्र बचपन की थी। शायद बहुत ज्यादा अक्ल नहीं रखती थी। पर आज याद करती हूँ तो पाती हूँ कि उस व्यक्ति ने पवित्र प्यार देने का प्रयास किया था। कभी गलत दिशा में मुड़ने के लिए प्रेरित नहीं किया। फिल्मो में या जो आजकल के रोमांस में दिखावा व छल फरेब साथ ही एक घिनोनपन देखती हूँ तो अपने और उनके संबंधो में और आज के इन तथ्यों में ज़मीन असमान का सा फर्क पाती हूँ ....... । कभी कभी हम दोनों भाव विहल भी हो जाते, लगता था भविष्य में शायद समाज की कटु सीमाएं स्वतः टूट जायेंगी। मैंने उन्हें ईश्वर से ऊँचा अहोदा देने की ख्वाहिश मन में रखी थी। उनके मन में अपना स्थान बनाये रखने के लिए उनकी हर सम्भव सेवा की । उनके आदर्शों को अपने जीवन में ढालने का प्रयत्न किया। मैं तो उनको एक समय के अंतराल के बाद अपना सर्वस तक समर्पित करने की भावना रखती थी। परन्तु उन्होंने कभी मर्यादा का उलंघन करने की कोशिश नहीं की।

उनका स्वभाव, वक्तित्क्व, पवित्र विचार मेरे जीवन के आदर्श बन गए। उन्होंने मुझे प्यार दिया पर मैं उस वक्त उसे समझ नहीं सकी। उन्होंने कभी प्यार ज़ाहिर नहीं किया। कभी किसी बात की पहल करना जैसे उनके स्वभाव से कोसो दूर था। मौन प्रेम को समझने में मैं असमर्थ रही। दिखावा वे कर न सके। उन्हें कभी अहसास नहीं हो सका कि मैं उन्हें गंभीरता से महसूस कर पा रही हूँ। उन्होंने मेरे प्रति हमेशा एक अबोध बच्ची के प्रति जो भावाना होती है, उस तरीके से प्यार दिया। मेरे जीवन का वह प्रथम प्यार था। निश्चय ही वो मधुर क्षण अमूल्य और अनोखे थे। मैं उनकी ज़िन्दगी का हर पहलु अपनी ज़िन्दगी में समेटने की इच्छा रखने लगी थी। लेकिन तेज रफ़्तार ज़िन्दगी में ये संभव नहीं था। उनके साथ जीवन व्यतित करने के सुन्दर सपने, कल्पनाएँ संजोयी थी, मेरा उन पर कोई अधिकार नहीं था। फिर भी मैं अपने ख्वालों में उनके प्रति एक हक के स्वरों को बोलना चाहती थी। जो कभी न बोल सकी।

मेरे व्योहार में अपने प्रति उदासीनता का अहसास होता था उन्हें, यह बात मुझे उनके एक अभिन्न मित्र के द्वारा पता चली। शायद उन्हें मेरे व्योहार से काफी ठेस पहुंची थी। एक समय के पश्चात कभी कभी मुझे भी उनके व्योहार में बेरुखी का बर्ताव झलकने लगा। वो सारी कमियां मुझे बाद में महसूस हुयी। तब की की अपनी किसी किसी गलती पर पश्चताप तो होता है, पर .....? वे दुसरे शहर चले गए .. अपने घर ।

महीनो गुज़र गए। समय बहुत परिवर्तनशील होता है । उनकी सगाई अन्यत्र हो चुकी थी। मर्द का अहम् और स्वाभिमान बहुत ऊँचा होता है। उन्होंने मुझसे दूरियां बना ली और मेरे मधुर सपनो पर धुंध की परत जमने लगी। ज़िन्दगी अजीब वीरानी में डूबी सी लगने लगी। मैं इस कद्र अपने आपको अकेला और टूटा हुआ पाने लगी कि निराशा में आत्महत्या करना ही बहुत सरल दिखाई देता था,पर मैं ऐसा कोई कदम उठाना नहीं चाहती थी। जिसके कारण समाज में वो लोग कलंकित हो जाएँ जिन्होंने मुझे माँ बाप का नाम दिया। समाज में एक इज्ज़त का स्थान दिया। मुझे अपने पैरों पर चलना सिखाया। अपने अनुभवों के आधार पर गिरकर उठने का भाव बताया। परन्तु मेरा जीवन अंधकारमय हो गया। एक लम्बे अंतराल के बाद एकाएक उनसे आमना सामना हुआ। पता चला वे बहुत निराश थे लेकिन आज वे एक बंधन से मुक्त हो चुके थे । वे अपनी सगाई तोड़ चुके थे। उस दिन एक तरफ तो मुझे अथाह सुकून मिला पर दूसरी तरफ उनकर वक्तितव में पहली कमी नज़र आई। उनके हाथों एक अन्य निरीह व अनजान लड़की की ज़िन्दगी तबाह हुयी थी । जिसका उन्हें थोडा भी पछतावा नहीं था। जबकि वह बात मुझे रह रह कर कचोटती थी।

इन सबके बावजूद मुझे अपनी कीमत बढ़ी हुयी सी प्रतीत होने लगी आखिर मेरी वजह से उन्होंने अपने परिवार में पहली बार बड़ों की अवहेलना की । मेरी जगह बनाने के प्रयास में । मैं सारी बेरुखी, नफरत, शक व प्रतिशोध की भावना को भुलाकर फिर एक बार मधुर सपनो का संसार बुनने लगी। उसी तरह हजारो की.मी. दूर रहकर भी बहुत नजदीकी का अहसास रखने लगी। ठीक उसी तरीके से जो सबकुछ पहले था। समयावधि गुज़रती चली गयी। बाद की कुछ मुलाकातों के बाद एक मुलाकात में मैंने पाया कि वे मुझसे कुछ कहना चाह रहे हैं। मैं तो इस कदर भावशून्य हो गयी जैसे वह मेरर जीवन का निर्णय सुनाने वाले हैं। उन्होंने मुझे देखा, ऐसा लग रहा था जैसे हम आगामी कुछ ही पलों में रो देंगे। उन्होंने मुझसे कहा कि आज 15 अगस्त है, आज का दिन हम हमेशा याद रखेंगे, आज आजादी का दिन है, मैं तुम्हे रिहा करना चाहता हूँ । एक बेबस और लाचार मन से । इतना कह कर उन्होंने एक ख़त मेरी ओर बढ़ा दिया। मैंने देखा उनकी आँखों में आसूं थे, उनके मूंह से सिर्फ एक धीमा स्वर निकला, अलविदा।

मेरा दिमाग लगता था शून्य हो गया है, अन्दर ही अन्दर कंपकपाहट सी महसूस हो रही थी। घर आकर पत्र खोला, मेरी आँखें खुद भरी हुयी थी, पत्र में लिखा था-

" मैं सदा तुम्हारा ऋणी रहूँगा, क्यूंकि तुमने मुझे जो पवित्र व अल्ल्हड़ शोख प्यार दिया मेरी हर संभव सेवा की, शायद मेरे लियर कई बार अपनी आँखें भी नम की। निश्चित ही तुम ही मेरे जीवन का सर्योतम प्यार हो। लेकिन मुझे इस बात की सदा तकलीफ रही कि मेरी तरह तुम गंभीर नहीं रही एक उदासीनता बनाये रखी। कहीं कहीं पर ज़रूरत से ज्यादा दूरी बनाये रखी, यदि नजदीक आकर भी देखती तो पाती कि मैं किसी मर्यादा सा सीमा को तोड़ने की आदत अपने में नहीं रखता। खैर।

मैंने तुमसे सदा के लिय दूर रहने का निर्णय बहुत ही भारी व् दुखी मन से लिया है। मुझे लगने लगा है कि हम एक होकर कभी सुखी नहीं रहेंगे। मैं समझ चूका हूँ कि मेरे परिवार के सस्स्य तुम्हे वो सम्मान नहीं दे सकेंगे जिसके काबिल तुम हो। तुम मन की बहुत कोमल हो, इस तथ्य से मैं भली भाँती परिचित हूँ। मैं नहीं चाहता कि तुम्हे एक सुखी जीवन देने के बजाय घुटन भरी ज़िन्दगी सौंपूं। घर का विद्रोह कभी भी तुम पर उभर सकता है। तुम अत्यंत निराशापूर्ण जीवन जी रही हो, यह देखकर अत्यंत दुःख होता है। तुमने सदा मेरा सम्मान किया है, मैं चाहता हूँ तुम सदा मेरे दिए नाम रश्मि की तरह रोशन रहो। तुम मुझे बेवफा कह सकती हो, लेकिन मैंने तुम्हारे जीवन से दूर होने का निर्णय प्यार के बलिदान के लिए नहीं, वफ़ा के लिए किया है।

उन सभी कदमो के लिए तुमसे क्षमा की अपेक्षा रखता हूँ जिनके कारण तुम्हारे हिर्दय को ठेस पहुंची हो, मुझे तुम्हारे पवित्र प्यार पर फक्र है। ज़िन्दगी में एक साथी बहुत आवश्यक है एक लड़की के लिए, यह नहीं कहता कि तुम कमज़ोर हो। उम्मीद करता हूँ तुम सही व्यक्ति के चयन में भूल नहीं करोगी (जीवन साथी के रूप में ) एक सुझाव देना चाहूँगा मैं तुम्हे मेरी बात और थी हालांकि कुछ उमीदें मैं भी रखता था मैं तो जा रहा हूँ पर समझाना चाहता हूँ - अब जिसका प्यार तुम्हे मिले उसे इसी तरह पवित्र प्यार देना, पर कुछ नजदीकी भी ज़रूरी है, एक दुसरे के प्रति। सीमायों को मत तोड़ो पर विश्वास बना रहे, इतना करीब ज़रूर जाओ। अंतर्मुखी हमेशा घुटते हैं इससे बाहर आने का प्रयत्न करो। तुम्हारी आगामी ज़िन्दगी की सफलता चाहता हूँ।

अलविदा तुम्हारा - राज

मुझे पत्र पढ़कर महसूस हुआ कि जैसे मैं अभी घुटन से मर जाउंगी। मैंने वह पत्र कितनी बार पढ़ा मैं खुद ही जानती- हर लाइन दिमाग पर हथोड़े का सा प्रहार करती लग रही थी। आज तक नहीं समझ सकी कि ऐसा कौन सा दबाव, कौन सी पारिवारिक मज़बूरी थी, जो वे मुझसे नहीं कह सके। प्रश्न यही उठता है कि ज़िन्दगी के हर मोड़ पर नारी से ही त्याग की अपेक्षा रखी जाती है। पुरषो का फ़र्ज़ बन गया है। नारी से सिर्फ लेते रहने का। मेरे मन की व्यथा शायद कोई कभी महसूस नहीं कर सकेगा मेरी समर्पण की भावना को ही उन्होंने गलत माना कितना बड़ा त्याग लिया मुझसे। मेरे पास क्या आया,प्यार, सेवा व् समर्पण की इच्छा रखने के बदले- मात्र त्याग।

काश पुरुष नारी के पवित्र हिर्दय की मधुरता का उचित मूल्यांकन कर सकने में समर्थ व् सक्षम होते। उन्होंने मेरा हित किया हो या नहीं, मैं सदा हर कदम पर उन्हें कायर, बुझदिल होने की संज्ञा ज़रूर दूंगी।

अंततः

काश, वे अपने निर्णय में मुझे शामिल कर पाते।