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वो बांझ ना थी

वो बांझ न थी

“विमला, तुम्हारे बेटे की शादी को सात साल गए लेकिन अभी तक कोई खुशखबरी नहीं आई, कहीं बहू में कोई कमी तो नहीं, मेरी मानो तो किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाओ।” इस तरह की बातें करके पड़ोसन तो चली गयी लेकिन विमला के मन में शक का बीज बो गयी। विमला के शक का बीज धीरे धीरे अंकुरित होने लगा और एक दिन वह वृक्ष बन कर मायरा को घेर कर खड़ा हो गया।

“क्यों बहू, खुश खबरी कब दोगी, अब तो सात साल हो गए तुम दोनों की शादी को। मैं भी बूढ़ी हो गयी हूँ कब तक प्रतीक्षा करूंगी अपने पोते पोती का मुंह देखने का, बहू! अब मैं कह देती हूँ मुझे जल्दी से जल्दी इस घर में खेलने वाला नन्हा बाल गोपाल चाहिए।” विमला ने मायरा को चेतावनी देते हुए समझाया और फिर पूजा करने चली गयी।

मायरा उसके पति राहिल और माँ विमला ही तो रहते थे पूरे घर में, मायरा कम पढ़ी लिखी, गरीब घर से, गाँव की रहने वाली सीधी साधी लड़की थी लेकिन घर के काम काज में पूरी तरह दक्ष थी, घर का सारा काम, सीना पिरोना, साफ, सफाई, खाना बनाना बर्तन धोना और कपड़े भी, सब वह स्वयं ही करती थी, घर का काम निबटा कर सास के पैर दबाना और जब तक सास सो न जाए तब तक पैर दबाते हुए सास के पास ही बैठी रहती।

सास के सोने के बाद मायरा अपने कमरे में जाती, तब तक राहिल प्रतीक्षा करते करते सो जाता अतः वह भी चुपचाप आकर उसके बराबर में लेट कर कुछ देर राहिल के चेहरे को निहारती और फिर सो जाती। इस तरह की दिनचर्या हो तो बच्चा कहाँ से होगा लेकिन विमला को कौन समझाये, वंश आगे बढ़ाने के लिए बहू और बेटे को पर्याप्त समय देना भी जरूरी है।

राहिल एक साड़ियों की दुकान पर नौकरी करता था, पूरा दिन मेहनत करने के बाद रात में जल्दी ही नींद आ जाती थी। ज्यादा देर जाग नहीं सकता था क्योंकि अगले दिन काम पर जाने के लिए जल्दी जागना होता था।

राहिल एक मात्र संतान थी, जिसे विमला ने पति की मृत्यु के पश्चात बड़ी कठिनाइयों से पाला, अतः राहिल ने हमेशा अपनी माँ को खुश देखना चाहा था, माँ की खुशी के लिए वह बड़े से बड़ा बलिदान भी कर सकता था।

मायरा के पिता मजदूरी करके घर चलाते, लड़के की चाह में पाँच बेटियाँ पैदा हो गईं, जिनमे मायरा सबसे बड़ी थी, वह भी एक घर में साफ सफाई का काम करती थी लेकिन किसी तरह जोड़ जुगाड़ करके मायरा की शादी कर दी। मायरा ने शादी के बाद काम करना छोड़ दिया, मायरा की शादी के एक साल बाद मायरा की माँ के भी बेटा पैदा हो गया, इतनी प्रतीक्षा के बाद लड़का हुआ जो बहुत ही लाड़ला बन गया, बाकी सभी लड़कियां उपेक्षित सी हो गयी इसलिए मायरा ने अपने घर आना जाना बन्द कर दिया।

सात साल से ज्यादा समय हो चुका था लेकिन मायरा को कोई सन्तान नहीं हुई, विमला अब और प्रतीक्षा नहीं कर सकती थी, एक दिन उसने राहिल की दूसरी शादी करने की ठान ली। राहिल के प्रतिरोध करने पर विमला ने कहा, “मैं एक बांझ को अपने घर में और ज्यादा दिन नहीं रख सकती, अच्छा हो आज ही इसको इस घर से निकाल कर तेरी दूसरी शादी कर दूँ, मैं अपने पोते पोती का मुंह तो देख सकूँगी, मैं इस सुख के साथ तो मर सकूँगी की मेरा वंश आगे बढ़ रहा है।” विमला एक दिन मायरा को डॉक्टर के पास ले गयी, सारे परीक्षण करने के बाद डॉक्टर ने कह दिया कि मायरा का माँ बनना मुश्किल है।

डॉक्टर की बात सुनकर मायरा को बड़ा धक्का लगा और इसी आधार पर विमला ने बेटे की दूसरी शादी करने का निर्णय ले लिया और इसके लिए अपने बेटे को भी तैयार कर लिया लेकिन मायरा को तलाक दिये बिना कैसे शादी करता तो विमला ने मायरा को प्यार से समझा कर पूरी तरह शीशे में उतार लिया। मायरा ने बिना किसी शर्त के राहिल को तलाक दे दिया, इस तरह राहिल की दूसरी शादी के लिए रास्ता साफ हो गया।

कुछ दिन तक सब ठीक चलता रहा लेकिन विमला मौका तलाश रही थी कि कैसे मायरा को घर से निकाला जाए और वही हुआ जिसकी आशंका थी, जब राहिल अपने शयनकक्ष में अकेला था तो मायरा किसी काम से शयनकक्ष में चली गयी, जो नई बहू को अच्छा नहीं लगा और उसने उसकी शिकायत अपनी सास से कर दी, इस बात पर विमला ने मायरा को धक्के मार कर घर से निकाल दिया।

आज मायरा खाली हाथ सड़क पर खड़ी थी, अपने मायके भी नहीं जा सकती थी, पहले ही उन पर चार लड़कियों का बोझ था, किसी तरह महिला आश्रम में रात बिताई और सुबह काम ढूँढने उसी घर में गयी जहां शादी से पहले काम करती थी। सर्वेश अपनी पत्नी के साथ काफी बड़े घर में रहते थे, उन्हे कोई मेहनती काम करने वाली चौबीस घंटे के लिए चाहिए थी। मायरा को वापिस काम के लिए आया देख सर्वेश खुश हो गए और उन्होने मायरा को अपने यहाँ चौबीसों घंटे के लिए नौकरानी रख लिया।

मायरा सब कुछ भूल कर सारा दिन काम में लगी रहती, अपनी लगन, मेहनत और समझदारी के कारण सर्वेश और भूमिका की प्यारी हो गयी। मायरा की ईमानदारी के कारण भूमिका अपना पूरा घर उसके भरोसे छोड़ जाती, सर्वेश तो पूरा दिन दुकान पर रहते, शाम को ही घर आते थे।

उस दिन भूमिका अपने मायके गयी थी, शाम को मौसम अचानक बहुत खराब हो गया, आँधी, तूफान, घनघोर बारिश, ओला वृष्टि और बादलों की घडघड़ाहट, चमक दमक कर इधर उधर गिरती हुई दामिनी लग रहा था जैसे पृथ्वी को जलाकर खाक कर देगी। भूमिका को डर लगने लगा, कहीं इतने भयानक मौसम में सर्वेश मेरे घर आते हुए बीच रास्ते में फंस न जाएँ और उसने फोन करके सर्वेस्ग को आने से मना कर दिया।

सर्वेश भूमिका को लेने ससुराल ना जाकर घर पर ही आ गए। मायरा ने खाना तैयार कर लिया था लेकिन सर्वेश पहले फोन पर भूमिका से बात करने लगे उसके बाद फ्रिज से व्हिस्की की बोतल निकाल कर थोड़ी सी गिलास में डाली, पानी और बर्फ डाल कर पीने लगे, सर्वेश को शराब पीते हुए नशे में याद ही नहीं रहा कि वह कितनी शराब पी गए, बीच बीच में थोड़ा खाना खाया, भूमिका तो घर पर भी नहीं थी जो सर्वेश को ज्यादा शराब पीने से रोकती और मायरा कुछ कह ना सकी वह नौकरानी जो थी।

बाहर अभी भी बहुत तेज बारिश हो रही थी, बिजली भी चमक रही थी, सर्वेश खड़े होकर शयनकक्ष की तरफ जाने लगे तो लड़खड़ा कर गिर पड़े, मायरा सहारा देकर सर्वेश को शयनकक्ष तक ले गयी। नशे में धुत सर्वेश ने बिस्तर पर लेटते हुए मायरा को भी अपने बाहुपाश में कस लिया। मायरा छूटने की असफल कोशिश करती रही लेकिन तब तक दोनों के अंदर का तूफान बाहर आने की कोशिश करने लगा एवं मायरा तूफान के सामने हार गयी, पहली बार मायरा को किसी पुरुष के संसर्ग से पूर्ण आत्म संतुष्टि का अहसास हुआ, उसके अंदर बहुत कुछ बदल गया और परिणामस्वरूप मायरा गर्भवती हो गयी।

इस बात को जानकर मायरा को बहुत खुशी हुई कि वह बांझ नहीं है लेकिन साथ ही साथ वह डर भी गयी अगर सर्वेश ने इस बच्चे को अपनाने से इंकार कर दिया तो???? फिर भी मायरा ने मौका देख कर सारी बात सर्वेश को बताई, सर्वेश ने समझदारी से काम लिया, बहाने से मायरा के रहने का प्रबंध दूसरी जगह कर दिया साथ ही उसने मंदिर में जाकर मायरा से शादी भी कर ली। निश्चित समय पर मायरा ने एक सुंदर बच्ची को जन्म दिया जिसका नाम जाहन्वी रखा, जाहन्वी को सर्वेश और मायरा ने बड़े लाड़ प्यार में पाला, अच्छी और उच्च शिक्षा देकर कामयाब बनाया।

सर्वेश की अपनी पहली पत्नी से कोई संतान नहीं थी, अतः जाहन्वी ही उसकी उत्तराधिकारिणी हुई। सर्वेश की साड़ियों की दुकान थी, सर्वेश कुछ बूढ़ा हुआ तो जाहन्वी उसके साथ दुकान पर हाथ बंटाने लगी, राहिल भी वहीं काम करता था। राहिल जाहन्वी को एकटक देखता ही रह गया। सर्वेश ने राहिल को टोक दिया तो राहिल बोला, “आपकी लड़की की शक्ल हु बहू मायरा से मिलती है।”

सर्वेश ने कहा, “हाँ, यह मायरा की ही बेटी है।” और पूछा कि तुम मायरा को कैसे जानते हो।

मायरा मेरी पत्नी थी जिसे मैंने और मेरी माँ ने बांझ कहकर तलाक दे दिया था और घर से निकाल दिया था लेकिन इसका मतलब तो यह है कि वह बांझ नहीं थी शायद मेरे ही पुरुषत्व में कमी थी और इसी कारण मेरी दूसरी पत्नी को भी आज तक कोई संतान नहीं हुई।

अगले ही दिन से वह खराब स्वास्थ्य का बहाना करके नौकरी छोड़ कर चला गया। अब राहिल मायरा के साथ किए गए दुर्व्यवहार पर बहुत पछता रहा था लेकिन अब मायरा किसी और की हो चुकी थी जो बांझ नहीं थी।