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निक्की और छोलेवाला

निक्की और छोले वाला

ट्रेन की खिड़की के पास बैठा शुभम दूर वृक्षों को ट्रेन के साथ साथ चलते हुए देख रहा था, वृक्षों को इस तरह तेज गति से चलते हुए देखना उसे बहुत अच्छा लगता इसलिए वह ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर ही जाकर बैठता, स्वयं में खोये हुए शुभम को किसी ने कंधे पर हाथ रख कर पुकारा, “शुभम ले छोले खा।”

अचानक इस तरह किसी ने कंधे पर हाथ रख कर पुकारा तो शुभम सकपका गया, लेकिन अपने ही गाँव के कुम्मू को हाथ में छोले का पत्ता लेकर खड़े देखा तो वह संभल गया और बोला, “नहीं भाई! मैं छोले नहीं खाऊँगा।” शायद शुभम के पास पैसे नहीं थे।

कुम्मू बोला, “देख शुभम, तू सीधा कॉलेज से ही आ रहा है और मुझे पता है कि तुझे भूख भी लगी है और मैं तेरा बड़ा भाई हूँ, यहाँ और कोई तो है नहीं तेरा ख्याल रखने के लिए, अब मुझे ही ख्याल रखना है इसलिए तू यह पत्ता पकड़ और खा ले, मैं तो बड़ा हूँ तेरे से पैसे नहीं लूँगा।”

अब तक निक्की भी अपना गाना खत्म करके कुम्मू के पास आकर खड़ी हो गयी और कुम्मू ने उसे भी छोले का एक पत्ता बनाकर दे दिया। निक्की ट्रेन में गाना गाकर भीख मांगती थी और ज़्यादातर उसका एक ही गाना होता था, “भगवान दो घड़ी जरा इंसान बनकर देख , दुनिया में चार दिन मेहमान बन कर देख।” सब लोग इस गाने को निक्की की मधुर आवाज में बड़े चाव से सुनते लेकिन पैसे देने के समय ज़्यादातर लोग तो आँख बंद करके बैठ जाते जैसे सो रहे हों। फिर भी कुछ लोग उसको पैसे पकड़ाते, उसकी आवाज और गाने की तारीफ करते बस इसमे ही निक्की खुश हो जाती।

तभी कुम्मू ने ज़ोर से आवाज लगाई, “छोले, चटपटे छोले।” कुम्मू शुभम के गाँव का ही एक लड़का था जो रोजाना ट्रेन में छोले बेचकर अपने घर का गुजारा करता था, घर में विधवा माँ जो ज़्यादातर बिमार रहती थी और छोटा भाई जिसे कुम्मू पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बनाना चाहता था। कुम्मू जब कभी भी ट्रेन में शुभम को कॉलेज आते जाते देखता तो उसे अपने छोटे भाई की याद आ जाती और वह शुभम को चटपटे छोले देने से स्वयं को रोक नहीं पाता था।

निक्की भी सुबह से शाम तक एक से दूसरे डब्बे में जा जाकर गाना सुनाती फिर दूसरी ट्रेन में चढ़ जाती और उसमे भी वही गाना गा कर लोगों का मनोरंजन करती रहती। कभी कभी कोई यात्री अपनी पसंद का कोई फिल्मी गाना गाने को कहता तो निक्की सुना देती अगर वह गाना उसको याद होता, उस गाने को सुनने वाले यात्री उसको अलग से पैसे भी दे देते थे। जो कुछ कमाती उसी में निक्की के घर का गुजारा चलता, घर में बस एक शराबी बाप जिसने स्टेशन के पास ही झुग्गी डाल रखी थी, बेटी जो कमाकर लाती उसी से दारू पीता अगर कुछ बच जाता तो उस दिन घर का चूल्हा भी जल जाता और दो रोटी निक्की के पेट में भी पड़ जाती अन्यथा तो कुम्मू के दिये छोले खाकर ही गुजारा करना पड़ता।

ट्रेन अपनी गति से चल रही थी, टी॰टी॰ टिकट चैक कर रहा था, एक गंजा आदमी टी॰ टी॰ को देखकर टॉइलेट में घुस गया लेकिन टी॰ टी॰ भाँप गया और टी॰ टी॰ ने गंजे आदमी को पकड़ ही लिया, उसके पास टिकट नहीं था तो टी॰टी॰ ने जुर्माना भरने को कहा, उस आदमी ने जवाब दिया, “साहब अगर मेरे पास पैसे होते तो मैं टिकट ना खरीद लेता? मेरे पास पैसे नहीं हैं, और मैं जुर्माना भी नहीं भर सकता।”

तब टी॰ टी॰ ने उससे कहा, “अब या तो जुर्माना भरो या फिर तुम्हें जेल जाना पड़ेगा, अगले स्टेशन पर उतरकर मैं तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगा।” उनकी बातों में ही अगला स्टेशन भी आ गया और झटके के साथ ट्रेन रुक गयी। टी॰ टी॰ उसका हाथ पकड़कर प्लेटफार्म पर आगे आगे चलने लगा। प्लेटफार्म पर बहुत भीड़ थी, उतरने वाले यात्री उतरकर अपने गंतव्य की तरफ जा रहे थे और चढ़ने वाले दौड़ दौड़ कर ट्रेन में चढ़ रहे थे, तभी गंजे व्यक्ति को अपने ही गाँव का एक व्यक्ति आते हुए दिखाई दिया जिसने पगड़ी पहन रखी थी जैसे ही वह नजदीक आया उस गंजे व्यक्ति ने अपने गाँव वाले व्यक्ति से पगड़ी लेकर अपने सिर पर रख ली और टी॰ टी॰ से हाथ छुड़ाकर पीछे घूम गया जहां वह प्लेटफार्म की भीड़ में गुम हो गया, टी॰ टी॰ उसे ढूँढता ही रह गया। इस पूरी घटना को निक्की बड़े गौर से देख रही थी और वह बड़े ज़ोर से हंसी जब टी॰ टी॰ को गंजा आदमी मूर्ख बना गया, यह बात उसने कुम्मू को हंस हंस कर बताई तो दोनों हँसते हँसते लोट पोट हो गए।

अगले दिन निक्की नहीं आई, कुम्मू ने कई डब्बों में जा जाकर ढूंढा लेकिन उसे कहीं भी निक्की की आवाज नहीं आई। परेशान होकर कुम्मू निक्की के स्टेशन पर उतरकर सीधा निक्की की झुग्गी पर गया। निक्की के सामने सफ़ेद चादर से ढका एक मृत शरीर लेटा था और निक्की उसके पास बैठ कर रो रही थी।

निक्की अकेली ही बैठी थी आस पड़ोस से कोई भी उसके पास नहीं आया। पास जाने पर पता चला कि रात में जहरीली शराब पीकर निक्की के पिता की मौत हो गयी। पिता का अंतिम संस्कार करने के लिए भी निक्की के पास पैसे नहीं।

छोले बेच कर जो थोड़े से पैसे मिले थे उसी से कुम्मू ने निक्की के पिता का संस्कार करवाया, निक्की का अब इस संसार में कोई नहीं था।

आज निक्की का गला रुंघा हुआ था, वह गा नहीं पा रही थी, उसका मन उदास था, जबकि कुम्मू उसे उस दुख से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था लेकिन ना जाने क्यों वह अपने अकेलेपन से बाहर नहीं निकला पा रही थी।

रात बहुत हो चुकी थी, प्लेटफार्म सुनसान था, निक्की ट्रेन से उतरकर अपनी झुग्गी की तरफ बढ़ रही थी कि अचानक राका ने उसको कसकर पकड़ लिया, वह शोर मचाने ही वाली थी कि अलताफ़ ने उसके मुंह पर हाथ रखकर उसका मुंह बंद कर दिया। निक्की छटपटाती रही लेकिन राका और अलताफ़ ने उसको एक कंबल में लपेट कर सुनसान यार्ड में माल गाड़ी के खाली खड़े डिब्बे में ले जाकर पटक दिया और डिब्बे को अंदर से अच्छी तरह से बंद कर लिया।

उन दोनों ने निक्की के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया जिससे वह शोर ना मचा सके, उसके दोनों हाथ और दोनों पैर पाइपों से बांध दिये जिससे वह प्रतिरोध ना कर सके और उसके सारे कपड़े फाड़ कर नग्न कर दिया। अपनी करुण दृष्टि से निक्की बार बार उन दोनों दरिंदों द्वारा अपने ऊपर होते हुए अत्याचार को देखती रही, न कोई भगवान और न ही कोई इंसान उसे बचाने आया और वो दरिंदे पूरी रात बारी बारी से उसके साथ बलात्कार करते रहे।

सुबह होने से पहले ही दोनों दरिंदे खून से लथपथ निक्की को मृतप्राय छोड़ कर वहाँ से भाग गए, बाहर से डिब्बे का कुंडा भी बंद कर गए।

सुबह सुबह कुम्मू छोले का टोकरा लेकर यार्ड से निकलते हुए प्लेटफार्म की तरफ जा रहा था कि उसे खाली पड़े डिब्बे से किसी के कराहने की आवाज आई। कुम्मू ने वहाँ रुककर ध्यान से सुना तो आवाज फिर आई, अब कुम्मू ने डिब्बे का कुंडा खोला और देखा निक्की खून से लथपथ अर्धमूर्छित नग्न अवस्था में पड़ी है। कुम्मू ने तुरंत पुलिस को सूचना दी, दौड़ कर उसके कपड़े उसकी झुग्गी से लाकर पुलिस की महिला सिपाही को दिये और उसको हस्पताल लिवाकर गया। पुलिस ने सामूहिक दुष्कर्म का केस दर्ज करके राका और अलताफ़ को गिरफ्तार कर लिया।

कुम्मू ने निक्की का सब सामान बांध कर झुग्गी खाली कर दी और निक्की को अस्पताल से सीधा अपने घर लेकर गया। घर को पूरी तरह सजाया हुआ था, मंडप भी बनाया था, शादी की पूरी तैयारी थी लेकिन निक्की ने शादी करने से मना कर दिया। कुम्मू की माँ ने भी काफी समझाया लेकिन निक्की अपने फैसले पर अड़ी रही, निक्की को लग रहा था शायद कुम्मू उस पर तरस खाकर शादी करना चाहता है और वह इस समय कोई भी निर्णय लेने की स्थिति में नहीं थी।

निक्की की गवाही और शिनाख्त से राका और अलताफ़ को उम्र कैद हो गयी, उन दरिंदों के लिए यह सजा बहुत कम थी उनको मृत्यु दंड मिलना चाहिए था। इस केस के चलते कई बार निक्की का सामना तरह तरह के प्रैस वालों से हुआ, एक पत्रकार ने निक्की की पूरी कहानी पर एक डॉक्युमेंट्री बनाई जिसमे निक्की ने वह गाना भी गया जो वह हमेशा ट्रेन में गाया करती थी, सभी तरह के लोगों ने वह डॉक्युमेंट्री देखी...........

निक्की की डॉक्युमेंट्री देख कर और उसका गाना सुनकर एक संगीतकार ने उसको अपने साथ एक फिल्म में गाने का मौका दिया, उसका गाना सफल रहा और निक्की के भाग्य के दरवाजे खुल गए, अच्छी आवाज की मालकिन निक्की अब एक बड़ी कलाकार बन गयी।

बड़ी कलाकार होने के साथ साथ निक्की के पास ऐशो आराम की सभी सुविधाएं हो गईं अगर उसके पास कमी थी तो कुम्मू की। गाड़ियों का एक काफिला कुम्मू की गली के बाहर आकर रुका, निक्की अब बहुत बदल चुकी थी, कोई भी उसको पहचान नहीं सका, वह सीधी कुम्मू के घर में चली गयी, सामने माँ बैठी थी, निक्की ने कुम्मू की माँ के पैर छूए और फिर कुम्मू की तरफ घूम कर उसे एकटक निहारती रही। कुम्मू बोला, “निक्की तुम तो काफी बादल गयी हो अब तो तुम्हारे पास सब कुछ है।” “हाँ कुम्मू! सब कुछ तो है बस तुम्हें छोडकर। तुम्हारे बिना मैं बिलकुल अकेली हूँ, आज में स्वयं तुमसे शादी करने का प्रस्ताव लेकर आई हूँ, मुझसे शादी करोगे?”

लेकिन कुम्मू ने शादी करने को मना कर दिया उसका तर्क था कि अब निक्की के और मेरे स्तर में बहुत फर्क है शायद निक्की मुझ पर दया दिखाकर मुझसे शादी करना चाहती है। निक्की को यह अच्छा नहीं लगा और वह बोली, "अगर तुम ऐसा सोचते हो तो मैं आज ही सब कुछ छोड़ कर फिर से ट्रेन में गाना गाने चलूँगी, यहीं रहकर वही सब करूंगी जो पहले करती थी, यहीं रहूँगी और यहीं मरूँगी।"

"कुम्मू मैं तुझसे प्यार करती हूँ, यह तेरा मेरा बचपन का प्यार है, कोई अहसान नहीं है, हम शादी करके मुंबई जाएंगे, मैं गाने गाऊँगी और तुम भारत सरकार की सुविधा स्टार्ट अप का लाभ लेकर वहाँ एक रैस्टौरेंट चलाना, तुम, माँ और छोटा भाई, हम सब एक साथ रहेंगे, अब तो मान जाओ, किसी चाहने वाले को इतना भी मत सताओ।" कुम्मू मंद मंद मुस्कुराया और निक्की को बाहों में भर कर बोला, "ठीक है, अब हम शादी कर ही लेते हैं।"

उन दोनों की शादी तय हुई तो समाचार शुभम तक भी पहुँच गया, शुभम दो दिन की छुट्टी लेकट गाँव आ गया और कुम्मू को बधाई देने पहुँच गया, बधाई देने के साथ ही शुभम ने कुम्मू को शिकायती अंदाज में बोला, “बड़े भाई, आपने छोले खिलाते समय तो हमेशा याद रखा और अब शादी के समय छोटे भाई को भूल गए?” और दोनों खिलखिला कर हंस दिये।