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सौदागर

सौदागर

उसे कौन नही पहचानता ।

इतना बङा आदमी ? और मेरे दरवाजे पर ? ठीक है । बात यकीन करने की नही है, लेकिन है तो सच । इतना बङा आदमी और इतनी विनम्रता । किसी को यकीन होगा क्या । हम लोग तो इतनी विनम्रता के आदी नही । और तो और इतनी विनम्रता हमे आती भी नही । हम तो सदा दूसरों पर हावी रहने की कोशिश मे लगे रहते । ज़रा सा किसी को अपने से कमजोर पाया नही कि, उसपर हावी हो जाव । यही हमारे जीने का तरीका , यही हमारा ढंग । हम जानते हैं, अगर हम हावी न हुये तो अगला हम पर हावी हो जायेगा । और हावी होने के इस खेल मे कई बार तो नौबत हाथा पाई तक पहुच जाती है और अंततः फैसला हो ही जाता है कि कौन किस पर हावी रहेगा । विनम्र होना हम जैसे लोगो के लिये न सिर्फ अपमान जनक होता है; बल्कि खतरनाक भी । यह शायद हम छोटे लोगो के अंदर का भय ही है जो हमे इतना आक्रामक बनाये रखता है ।

लेकिन उसे क्या ? उसे किसका डर है ? वह इतना बङा आदमी उसपर हावी होने की कोई सोच भी कैसे सकता है । वह चाहे जितना मुसकुराये । लेकिन हम जैसे छोटे लोगो पर कोई इतनी कृपा क्यों करेगा । अब बताइए कोइ क्योंकर यकीन करेगा ? लेकिन सच तो यही है ।

इतनी चौङी मुस्कान; और मुस्कान है कि चेहरे से उतरने का नाम नही लेती । चेहरे पर चमक ऐसी मानो रोज दूध मलाई मलता हो । बदन पर महंगा सूट, टाई और चमचमाते जूते । वह अपने दोनो हाथ जोङे कहता है "नमस्ते ।"

अब यह तो मेरे लिये भी नाकाबिले यकीन है । आखिर इतना सम्मान मुझे क्यों ? अरे! हमे तो कोई इतना बङा आदमी डाटे फटकारे तो समझ मे भी आये ।

"सर, क्या मै आपका दो मिनट का समय ले सकता हूं ?" वह बङी विनम्रता से पूछता है ।

दो मिनट क्यों, सारी जिंदगी ले ले । सर... उसने मुझे सर कहा । मै कभी कलपना मे भी इस सम्मान का अधिकारी नही हूँ । शायद ऐसे ही होते होंगे बङे लोग । इतना बङा आदमी मुझे नमस्ते करता है, सर कहता है; मै कैसे उसकी बात ठुकरा दूं ।

"मै अंदर आ सकता हूँ? " वह पूछता है और मै सम्मान पूर्वक उसे बुलाकर सोफे पे बिठाता हूँ ।

वह बैठकर सोफे के हत्थे पर हाथ पटकता है जैसे सोफे की मजबूती का अनुमान लगा रहा हो । मूझे शर्म आरही है । ऐसे सस्ते सोफे को तो उसने जीवन मे कभी छुआ भी नही होगा ।

मैने उसे पानी के लिये पूछा जिसे उसने विनम्रता पूर्वक मना कर दिया । उसने अपना परिचय देना शुरू किया "मै एक बिजनेसमैन हूं ।" वह बोला ।

"जी... जी... यह तो सारी दुनियाँ जानती है ।" मैने कहा ।

"अरे नही , आप तो शर्मिंदा कर रहे है । एनीवे... धन्यवाद ।" उसने बङी चतुराई अपनी प्रशंसा स्वीकार की ।

"अरे ! आप खङे क्यों है ? बैठिये न । आप तो घर के मालिक हैं ।" उसने बात आगे बढ़ाई । चुपचाप बैठ जाने के सिवाय मेरे पास चारा ही क्या बचा था ।

"कबसे रह रहे है इस जगह पे ?" उसने पूछा जरूर लेकिन जवाब का इंतजार करने के बजाय आगे बोला "वैसे यहां की लोकालिटी इतनी ठीक नही है । आप को जरा सावधान रहने की जरूरत है । क्योंकि आप एक शरीफ आदमी नजर आते है ।" मै किस तरह इंकार कर सकता था । "जी...जी..." मै इतना ही कह पाया ।

उसने अपने कीमती सूट को ठीक किया "वैसे मुझे आपकी चिंता हो रही थी । आज के जमाने मे शरीफ आदमी का जीना बङा मुश्किल है । क्यों ?"

वह दो टूक सवाल कर बैठा । मै कया कहता ? इतना बङा आदमी है । झूठ तो बोलेगा नही ।

"जी हाँ , जी हाँ ।" करके मैने हाँ मे हाँ मिलाई ।

"आप अपनी सुरक्षा का इंतजाम रखते हैं कि नही ?" मैने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा ।"

"किस प्रकार ?" मैने पूछा ।

उसने इधर उधर देखा । फिर बङे राज़दाराना अंदाज मे बोला "कोई हथियार वथियार ..." मुझे शंका मे देख, धीरे से जोङा "... आत्म रक्षा के लिए । बल्कि मै तो कहता हूं , आप एकाध हथियार रख ही लें ।" फिर मुझे दुविधा मे देख कहा "कुछ नही तो एकआध चाकू वगैरह । देखिये ! जमाना खराब है और बाल बच्चों का साथ है इसी लिये कह रहा हूं... । आप फिक्र बिल्कुल न करें , इंतजाम मै कर दूंगा ।"

उसने अपने साथ लाये हुये एक छोटे से सूटकेस को खोला और एक चौङे फाल वाला खंजर निकालकर मेरे हाथ मे थमा दिया ।

"इसे रख लीजिये, यह सस्ता है..." उसने कहा "वैसे तो इसकी कीमत नौ सौ रुपए है, लेकिन आप के लिये सिर्फ सौ रुपए ।"

तत्पश्चात उसने आपना छोटा सा ब्रीफकेस खोला ।

"वैसे मै सभी प्रकार के हथियार बेचता हूं । आप एक नज़र देखिये तो ।... न न ... अरे खरीदने थोङी कह रहा ... देखने कह रहा हूं ... देखने का पैसा थोङी लगता है । देखिये तो ।"

मै हैरान सा देखता रह गया । उसने ब्रीफकेस मे हाथ डालकर निकाला, उसके हाथ मे एक पिस्तौल थी । उसने वह मेरे हाथ मे थमा दी । मैने उसे उलट पलट कर देखने के बाद उसे लौटा दिया । उसके बाद उसने एक बङी सी राईफल निकालकर दिखाई और वापस अपने ब्रीफकेस मे रख ली । फिर कुछ आटोमेटिक गन । फिर उसने पूरा ब्रीफकेस ही खोलकर मेरे सामने रख दिया । मै हैरान था; यह उसका ब्रीफकेस है, या उमर अय्यार की जम्बिल ?

उसके अंदर तोप थे, टैंक थे, राकेट लाॅन्चर और राकेट भी थे ।मिसाइल, और फाइटर प्लेन तक क्या नही था । उसने अपना चेहरा मेरे करीब लाकर, राज़दाराना अंदाज मे बोला "सब कुछ है अपने पास । कभी भी ज़रूरत पङे एक इशारा कर देना बस !" कहकर उसने ब्रीफकेस बंद किया और हाथ मिलाकर मुझसे बिदा लिया । उससे हाथ मिलाकर मै अपने आप को विशेष समझने लगा । अपने आस पङोस के लोग अब मुझे छोटे और नकारे लगने लगे । मै उसे बाहर गेट तक विदा करने गया ।

मुझसे विदा होकर वह चार कदम ही बढ़ा था कि मेरे पङोसी ने हाथ हिलाकर उसका अभिवादन किया, उसने भी आत्मीय मुस्कान के साथ उसके अभिवादन का जवाब दिया और गेट खोलकर उसके घर चला गया । मै कुढ़ता रहा, आखिर क्या जरूरत थी मेरे मेहमान को आपने घर बुलाने की ?

लेकिन तीर तो हाथ से निकल चुका था । उसने मेरे पङौसी से भी वही सब बातें दोहराई और उसे पिस्तौल बेच चला गया । फिर दूसरे पङोसी को भी एक बंदूक बेचने मे कामयाब हो गया ।

अब मुहल्ले में पहली वाली बात नही रह गई थी । सब को पता था कि पङोसी के पास हथियार है । वहां हर एक को लगता कि ऊसका पङौसी उस पर हमला कर सकता है । धीरे धीरे यह डर बढ़ने लगा और हम लोग एक दूसरे से कन्नी काटने लगे । एक दूसरे का हाल चाल पूछना तो दूर सलाम दुआ से भी गये ।

सबसे बुरा हाल तो मेरा था । मेरे पास हथियार के नाम पर एक खंजर या चाकू के सिवा कुछ न था । और लोग तो आधुनिक तकनीक से लैस पिस्तौल और बंदूकें पकङ कर बैठे हैँ । मेरा क्या होगा अगर कुछ गङबङ हुई तो ? मुझे कुछ न कुछ इंतजाम तो करना ही पङेगा । ऐसे केसे चलेगा ? बहुत ही चिंताजनक स्थिति हो गई थी । बेचैनी हद से ज्यादह बढ़ चली थी...

ऐसे मे उसका आना जैसे तपते रेगिस्तान में सावन का आना था । मन तो चाहा कि दौङकर उससे लिपट जाऊं । लेकिन वह बंदा, था बङा ही सोफेस्टिकेटेड । उसकी हर बात नपी तुली थी । उसकी मुस्कान से लेकर चाल ढाल तक, उसके बाल की बनावट से लेकर भौंहों की तराश तक और चेहरे की दमक से लेकर जूतों की चमक तक हर एक चीज़ अपने आप मे परिपूर्ण थी । लाखों की कीमत वाले अरमानी के सूट पर एक शल भी न थी । यही सब देख उसे गले लगाने की हिम्मत नही जुटा सका ।

"मै जानता था आपको मेरी ज़रूरत है; इसी लिये चला आया ।" उसके मुख से ऐ उदगार सुन मन उसका आभारी हो गया । उसने चिंतित होते हुए बताया कि पङोसियो के पास आज कल कौन कौन से हथियार हैं और उनके मुकाबले उसने एक आधुनिक मशीनगन की सिफारिश की और कुछ डिस्काउंट भी दिया ताकि मै उसे खरीद सकूं ।

मै गदगद हो गया । देखिये इतना बङा आदमी, हम छोटे मोटे लोगो का कितना खयाल रखता है । बङे लोगों की बात ही अलग होती है ।

जब वह मेरे घर से निकला तो पङोसियो ने फिर उसे घेर लिया । वह बेचारा सज्जन व्यक्ति हर किसी से मिलता हर एक के घर जाकर हर एक की जरूरत पूरी करता ।

रफ्ता रफ्ता पूरे मुहल्ले में एक हथियारों की होङ मच गई । कोई किसीसे पीछे नही रहना चाहता । हर कोई नया से नया और आधुनिक से आधुनिक हथियार चाहता और इसके लिए हरसंभव कीमत अदा करने को तैयार रहता । धीरे धीरे हमारी जमा पूंजी खत्म हो गई । एक एक कर ज्रमीन जायदाद बिक गई । हम कंगाल हो गये लेकिन एक दूसरे से हम हार मानने वाले नही थे ।

लेकिन मानना पङेगा, उसने इन हालात मे भी हमारा साथ नही छोङा । उसने हम पर विश्वास बनाए रखा और हमे एक से बढ़कर एक हथियार मुहैया करवाता रहा । हथियारों की खरीद के लिये हमे बैंको से बिना ग्यारंटी लोन दिलवाया ताकि हम होङ मे बने रहें ।

लेकिन उधार की नैया का कौन खिवैया ....

एक दिन सुबह सवेरे पुलिस आ धमकी । लोन की किश्त के चेक बाउंस हो गये थे । थाने मे पता चला कि पूरा मुहल्ला ही अंदर है । क्यों न हो ? आखिर सब एक ही नाव पर जो सवार थे ।

जब हम सब अपनी अपनी सज़ा काटकर बाहर आए, तो किसी के पास कोई ठिकाना नही था । सब कुछ बैंक ने ले लिया था । अब हम सब बिना किसी धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक भेदभाव के मंदिर, मस्जिद, गिरजा और गुरुद्वारा के सामने हाथ फैलाकर भीख मांगते । ऐसे मे एक दिन फिर वह मिला ।

उसने जूते उतारे और मंदिर मे जाकर बङी श्रद्धा से शीश नवाये । दान मे मोटी रकम दी और बाहर आकर हमारे पास बैठ गया । उसने हमारे हाल पर आफसोस जताया और बताया कि हमे इस हाल मे देख उसे कितनी पीङा है । " आखिर ग्राहक ही हमारा भगवान होता है.... ग्राहक के बिना हम तो कुछ भी नही ।" उसने कहा ।

हमारी आंखों मे आंसू आ गये । कितना महान था वह । उसे अब भी हमारे दर्द का एहसास था । वह अब भी हमारे साथ था....

उसने अपने ब्रीफकेस मे हाथ डालकर निकाला, उसके हाथ मे एक पुस्तक थी । हमारी ओर बढ़ाकर धीरे से बोला "बहुत सस्ती है; चिंता करने की ज़रूरत नही । थोङा थोङा करके चूका देना । दिन भर जो मिलेगा, उससे .... मै रोज शाम को आकर ले लूंगा.... "

मैने पुस्तक हाथ मे लेकर देखा । पुस्तक का नाम था- चिन्ता छोड़ो सुख से जियो

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