छोड़ दो मुझे, मैं तुम्हें अब अपने साथ रखना नही चाहता, एक पल में सतीश ने कामना को कह दिया , सामने 6 साल की कीर्ति बस समझने की कोशिश कर रही थी कि क्या बात कर रहे है मम्मी पापा,क्यों एक दूसरे से लड़ रहे है, आवाज का स्वर जितना तेज़ होता जा रहा था उतनी ही तीव्र गति से कीर्ति के अश्रु निकल रहे थे, पर शायद वो काफी नहीं थे दोनों का दिल पिघलाने के लिए,
दो दिन पहले जब कामना ने कहा कि ऐसे रोज रोज मैं बच्चें के साथ आना जाना नही कर सकती , 4 घंटे लगते है यहाँ से , आप समझने की कोशिश करो, मेरे ऑफिस में रोज झगड़ा होता है काम पर देरी से पहुँचने पर, जाने से पहले मुझे कीर्ति को भी स्कूल छोड़ना पड़ता है, तुम ये जिम्मेदारी भी तो नही बाँटना चाहते , मुझे कोई शौक भी नही है कि मैं इतना कष्ट पाकर ऑफिस और घर दोनों की जिम्मेदारी उठाऊ, पर वो भी तुम्हे मंजूर नही, न तुम कीर्ति के कार्यों में मेरी मदद करना चाहते हो, और ना रसोई के कार्य में, तुम भी तो बस एक जिम्मेदारी निभा रहे हो अपने ऑफिस की, पर मुझसे अपेक्षा करते हो कि मैं ये सारी जिम्मेदारी एक साथ उठाऊ, और उफ्फ तक ना करू।
क्यों गाँव से तुम माताजी पिताजी को नही ले आते , कम से कम वो रहेंगे तो कीर्ति के साथ थोड़ा समय बिता पाएंगे, उसे अकेला महसूस नही होगा, हमारी अनुपस्थिति में कीर्ति को जो परेशानी होती है वो नही होगी और घर भी खुला रहेगा,
सही कह रही हो , तुम हम तीनों का काम तो कर नही सकती और मेरी माँ को बुलाना चाहती हो जो सारा दिन आया बनकर तुम्हारे बच्चो को संभाले, अगर इतनी ही समस्या थी तो नही करती थी बच्चा, मेरे माता पिता अब बुढ़ापे में यह सब करेंगें।
सतीश मैने ऐसा क्या बोल दिया और अपने बेटे के बच्ची को प्यार देना उसकी सहायता करना एक आया का दर्जा है, मानना पड़ेगा तुम्हारी सोच को , तो क्यों नही कह देते मुझसे की मैं सिर्फ घर की जिम्मेदारी उठाऊ, क्यों मुझे नॉकरी करनी पड़ रही है,
अच्छा तुम चाहती हो कि घर का तुम्हारा बच्चें का सबक खर्चा मैं अकेला उठाऊ, कहाँ तक मैं तुम्हारी फरमाइशें पूरा करूँगा, कम से कम तुम कमाती हो तो भविष्य की हम कुछ योजना तो कर सकते है
तो आखिर तुम चाहते क्या हो , ना तुम ये चाहते हो कि मैं नॉकरी छोड़ू औऱ न तुम मेरे घर के काम में हाथ बटाना चाहते हो, और ना ये चाहते हो कि माता पिता यहाँ आये । तो मैं क्या निर्जीव प्राणी हूँ जिसे तकलीफ़ नही होती, जो थकती नही, जिसे ख़ुद के लिए वक़्त नही चाहिए। मैं इंसान हूँ रोबोट नही, पर तुम्हारी इंसानियत कही मर गयी है।
ये बहस ख़त्म होने वाली नही थी, क्योंकि हमारे देश में एकभगवान वो है जिसे पूरी दुनिया मानती है और एक भगवान पति को बना दिया जाता है पत्नियों के लिए सिर्फ़,
जो उनके भविष्य की नींव रखता है, ऊपर वाला भगवान तो बिना डिग्री के भी सबके साथ सही ही न्याय करता है जैसा उनकी किस्मत का आधार हो परन्तु नीचे वाला भगवान डिग्री धारक वो भगवान होता है जो अपने आप ही किस्मत बनाता है।
विज्ञान में आपने मेंडल का प्रभाविकता का नियम पढ़ा होगा, जिसमें प्रभावी लक्षण अप्रभावी लक्षणों पर भारी पड़ जाते है।
हमारे देश में भी अधिकतर पुरुषों की यही सोच है जो प्रभाविकता के नियम का पालन करती है, शायद एक वज़ह यह भी है कि हमारा देश विकसित देशों की श्रेणी में नही आता । क्योंकि यहाँ औरतो के हर प्रभावी गुण को अप्रभावी गुणों में तब्दील कर देता है।
बराबरी का दर्जा आज भी हमारी महिलाओं को नही दिया जाता। वे आज भी अपने एक पहल के लिए जाने कितने पापड़ बेलती है, परन्तु फिर भी वे अपनी किस्मत का एक निर्णय लेने की अधिकारी नही है।
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सोनिया चेतन कानूनगों