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खट्टी कैरी

खट्टी कैरी
“आज मैं बिलकुल भी नहीं रुकूँगी, सीधे घर जाऊँगी, रोजाना माँ से डांट खानी पड़ती है सब बच्चे तो स्कूल से जल्दी आ जाते हैं, तू कहाँ रह जाती है इतनी देर तक” योगेश को इतना कहकर स्कूल से निकल कर सुनीता तेज तेज कदमों से घर की तरफ चल पड़ी।

“सुनीता! रुको तो जरा, अच्छा आज मैं ज्यादा देर तक नहीं रोकूँगा, बस थोड़ी देर के लिए तो रुक जाओ, उस पेड़ पर बड़ी खट्टी कैरी लगीं हैं, मैं स्वयं पेड़ पर चढ़ कर तेरे लिए कैरी तोड़ कर, अपने हाथों से छील कर तुझे खिलाऊँगा, क्या कैरी खाने को भी नहीं रुकोगी?”

“कैरी! वाह, अच्छा तो जल्दी चल, ज्यादा देर मत लगाना,”

“हाँ भाई हाँ, मैं आज देर नहीं लगाऊँगा, बस दौड़ कर जाता हूँ, पेड़ पर चढ़ कर कैरी तोड़ कर रख लुंगा तब तक तू भी पेड़ के नीचे आ जा।” जल्दी जल्दी आम के पेड़ के नीचे पहुँच कर सुनीता खट्टी कैरी का स्वाद लेने लगी।

“योगेश कैरी खा कर मजा आ गया, तू रोज मुझे ऐसे ही खट्टी कैरी खिलाएगा ना?”

“हाँ हाँ क्यों नहीं, तेरे लिए तो मैं पेड़ पर क्या आसमान पर चढ़ जाऊंगा।”
सुनीता योगेश को अपनी बाहों में भर ज़ोर से दबाती है और कहती है, “तू कितना अच्छा है योगेश, मेरा कितना प्यार करता है, कौआ तू पूरी ज़िंदगी मुझे ऐसे ही प्यार करता रहेगा?”

“हाँ सुनीता, मैं जब तक जीऊँगा, बस तुझे ही प्यार करूंगा, हमेश ही तुझे खुश रखूँगा।”

“अच्छा अब जल्दी से घर चल, आज तो माँ डंडा लेकर दरवाजे पर बैठी होगी।”

“चलो अब दौड़ कर घर चलते हैं, देर नहीं होगी।”

सुनीता घर पहुंची तो माँ आज घर पर नहीं थी, चाबी पड़ोस में रख कर गयी थी। माँ को घर पर न पाकर सुनीता उदास हो गयी और सोचने लगी, ‘पता नहीं कहाँ गयी होगी, सब ठीक तो होगा या कोई गड़बड़ है कहीं।’

माँ ने खाना बनाकर रखा हुआ था, सुनीता ने खाना गरम किया और खाने लगी लेकिन खाना खाने में उसका मन नहीं लग रहा था आधा अधूरा खाकर ही छोड़ दिया।

आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली सुनीता अब घर के छोटे मोटे काम भी कर लेती थी। बचपन से योगेश और सुनीता एक साथ पढ़ रहे थे, अतः आपस में बाल सुलभ प्रेम था।

माँ की प्रतीक्षा कर ही रही थी कि तभी माँ आ गयी और खुशखबरी दी, “सुनीता तेरी मामी के यहाँ लड़का हुआ है, अभी आठवाँ महीना ही चल रहा था कि अचानक दर्द हुआ तो अस्पताल ले गए, मेरे पास पता भिजवा दिया था तो मैं भी तुरंत ही अस्पताल चली गयी, भगवान की कृपा से सब कुछ ठीक से हो गया, अब मुझे थोड़ी देर बाद कुछ कपड़े और जरूरी सामान लेकर लेकर दोबारा अस्पताल जाना पड़ेगा, शायद रात में वहीं रुकना पड़े, शाम को तेरे पिताजी आ जाएंगे तब तक घर का व अपना ध्यान रखना, किसी भी गैर आदमी के लिए दरवाजा मत खोलना और हाँ सुन, मैं खाना बना कर रख रही हूँ, खाना अस्पताल में भी लेकर जाना है और तुम दोनों का बना कर रख दूँगी, समय से खाना खा लेना, पापा को भी गरम करके खिला देना।”

“अच्छा माँ हाँ, मैं कब जाऊँगी छोटे भाई को देखने, छोटा सा प्यारा सा कितना सुंदर होगा ना?”

कक्षा में बैठ कर सुनीता योगेश को घर की सारी बातें बता ही रही थी कि तभी अध्यापक महोदय आ गए और उन दोनों को बातें करते देख अध्यापक ने दोनों को कक्षा से बाहर निकाल दिया। कक्षा से बाहर निकल कर योगेश सुनीता को लेकर आम के बाग में चला गया और पेड़ पर चढ़ कर उछल कूद करने लगा। उछल कूद करते हुए योगेश का पैर फिसल गया और वह धड़ाम से नीचे गिर गया, सुनीता बुरी तरह घबरा गयी और दौड़ कर योगेश के पास गयी।

भगवान की कृपा रही कि योगेश को कोई गहरी चोट नहीं लगी, वह तुरंत ही उठ खड़ा हुआ, मगर सुनीता तो योगेश से लिपट कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी, योगेश उसको समझा रहा था फिर भी वह रोये जा रही थी, बड़ी देर बाद जब सुनीता का रोना बंद हुआ तो वे दोनों कक्षा मे वापस आ गए, किसी से उन्होने इस घटना का जिक्र नहीं किया।

साथ पढ़ते हुए दोनों बड़े हो गए, योगेश IMA कि परीक्षा पास करके भारतीय सेना मे अधिकारी बन गया और सुनीता को तो पढ़ाने का शौक था अतः वह अध्यापिका बन गयी।

योगेश छुट्टिओं में घर पर आया हुआ था, एक शाम दोनों घूमने निकल गए और बहुत सारी बातें जो दोनो के अंदर पता नहीं कब से कैद पड़ी थी निकल कर बाहर आने लगी।

बातें करते हुए समय का बोद्ध ही नहीं रहा, काफी देर हो गयी थी........

“अब हमें घर चलना चाहिए”

“हाँ योगेश, बड़ी देर हो गयी है, घर वाले चिंता कर रहे होंगे”

“कल मैं तुम्हारे घर आऊँगा तुम्हारा हाथ मांगने, अब हम ज्यादा दिन एक दूसरे से दूर नहीं रह सकते।”

दोनों घर की तरफ चल दिये, पहले योगेश ने सुनीता को उसके घर छोड़ा बाद में अपने घर पहुँच कर अपने मम्मी पापा से अगले दिन सुनीता के घर चलने को कहा। घर वालों को यह रिश्ता तो पहले से ही मंजूर था, औपचारिकता के लिए कुछ रस्में निभानी थी।

सभी रस्मों रिवाज के साथ योगेश और सुनीता की सगाई हो गयी, दोनों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

खुशी के इस माहौल को गमगीन बना दिया जब योगेश ने बताया कि कल उसकी छुट्टी समाप्त हो रही है और वह वापस जा रहा है।

“सुनीता! मैं अबकी बार लंबी छुट्टी लेकर आऊंगा और तुम्हें भी अपने साथ लेकर जाऊंगा,” इतना अशवासन देकर योगेश बांदी पोरा कश्मीर के अपने सैनिक कैंप में चला गया।

सब कुछ ठीक ही चल रहा था, उस रात योगेश ने जब चार आतंकवादी सीमा पार करके कश्मीर में घुसते देखे तो उसने चारों को वहीं पर ढेर कर दिया........

न जाने कहाँ से एक गोली आकर योगेश के सिर में धंस गयी, योगेश बेहोश हो गया, उसके साथियों ने योगेश को उठाकर बेस हॉस्पिटल पहुंचाया, वहाँ से हवाई जहाज द्वारा दिल्ली लाया गया........

सिर की गोली तो चिकित्सकों की टीम ने निकाल दी लेकिन योगेश को होश नहीं आया।

सुनीता पर तो जैसे वज्रपात ही हो गया, गुमसुम सी सुनीता घंटो बैठकर बस योगेश को ही निहारती रहती।

समय बीतता गया लेकिन योगेश की दशा में कोई सुधार नहीं हुआ, वैसे योगेश के सभी अंग ठीक प्रकार से काम कर रहे थे।

दो वर्ष बीत गए, घर वाले सुनीता पर दूसरी जगह शादी करने का दबाव बनाने लगे, माँ बाप ने समझाया, “बेटा! हम भी बूढ़े हो रहे हैं तेरी शादी करके ऋण मुक्त हो जाना चाहते हैं, योगेश का तो पता नहीं, उसको होश आएगा भी या नहीं, दो वर्ष हो गए हैं, चिकित्सक भी कोई सही जानकारी नहीं दे रहें हैं।”

माँ बाप की बातें सुनकर सुनीता भी चुप हो जाती उसके पास कोई जवाब नहीं था। एक दिन एक अच्छा सा लड़का देखकर उसके साथ सुनीता की शादी तय कर दी, सुनीता के देह तो घर पर थी मन तो उसका योगेश में ही लगा था और उसने हाँ ना कुछ नहीं कहा, फिर एक दिन शादी का दिन भी आ गया........

सुनीता अग्नि के चारों तरफ फेरे लगा रही थी, पंडितजी मंत्रोचर कर रहे थे, महिलाएं मंगलगान कर रही थी, घर वाले मंडप को घेरे खड़े थे, योगेश तो अस्पताल में बेहोश ही था........

नर्स को ऐसा लगा जैसे योगेश को कोई बेचैनी हो, उसका शरीर हिलने डुलने लगा था कि ____ तभी अचानक योगेश ज़ोर से चिल्लाया, “नहीं सुनीता नहीं, तुमने मेरी प्रतीक्षा क्यों नहीं की, मेरी धड़कन अभी भी तेरे लिए धडक रही है।” और योगेश उठ कर बैठ गया, यह किसी चमत्कार से कम नहीं था........

वहाँ उपस्थित नर्स ने तुरंत चिकित्सक को बुलाया और सारी बात बताई, सभी जांच करने पर योगेश को हर तरह स्वस्थ पाया इसलिए चिकित्सक ने बाहर बैठे योगेश के घर वालों को यह शुभ सूचना देकर योगेश के पास मिलने के लिए बुला लिया।

सभी लोग बहुत खुश थे कि योगेश को होश आ गया लेकिन ........

सब के बीच में सुनीता को देखा तो योगेश हैरान होकर बोला, “सुनीता तुम यहाँ कैसे, तुम्हारी तो शादी हो रही थी, फेरे हो रहे थे।” सुनीता समझ गयी कि योगेश ने बहगोशी में ऐसा कोई सपना देखा है.........

“अच्छा तो मेरी शादी का सपना देख कर तुम्हारी बेहोशी टूटी है, मैं कैसे किसी और से शादी कर सकती हूँ, बचपन से तो मेरे मन पर तुमने कब्जा कर रखा है।” और सुनीता योगेश को बाहों में भरकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।

सब लोग बाहर चले गए और उन दोनों को अकेला छोड़ दिया, काफी देर बाद सुनीता का रोना बंद हुआ, बड़ी देर तक दोनों एक दूसरे को निहारते रहे........

जल्दी ही योगेश चलने फिरने लगा और पहले कि तरह सब काम स्वयं करने लगा........

अच्छा सा मुहूर्त देख कर योगेश और सुनीता की शादी हो गयी........

योगेश ने स्वस्थ होकर सेना की अपनी ड्यूटि शुरू कर दी वहीं सेना के स्कूल में सुनीता भी अध्यापन कार्य करने लगी।

आज सुनीता फिर खट्टी कैरी खा रही थी क्योंकि अब वह खुश खबरी सुनाने वाली थी।

खट्टी कैरी
“आज मैं बिलकुल भी नहीं रुकूँगी, सीधे घर जाऊँगी, रोजाना माँ से डांट खानी पड़ती है सब बच्चे तो स्कूल से जल्दी आ जाते हैं, तू कहाँ रह जाती है इतनी देर तक” योगेश को इतना कहकर स्कूल से निकल कर सुनीता तेज तेज कदमों से घर की तरफ चल पड़ी।

“सुनीता! रुको तो जरा, अच्छा आज मैं ज्यादा देर तक नहीं रोकूँगा, बस थोड़ी देर के लिए तो रुक जाओ, उस पेड़ पर बड़ी खट्टी कैरी लगीं हैं, मैं स्वयं पेड़ पर चढ़ कर तेरे लिए कैरी तोड़ कर, अपने हाथों से छील कर तुझे खिलाऊँगा, क्या कैरी खाने को भी नहीं रुकोगी?”

“कैरी! वाह, अच्छा तो जल्दी चल, ज्यादा देर मत लगाना,”

“हाँ भाई हाँ, मैं आज देर नहीं लगाऊँगा, बस दौड़ कर जाता हूँ, पेड़ पर चढ़ कर कैरी तोड़ कर रख लुंगा तब तक तू भी पेड़ के नीचे आ जा।” जल्दी जल्दी आम के पेड़ के नीचे पहुँच कर सुनीता खट्टी कैरी का स्वाद लेने लगी।

“योगेश कैरी खा कर मजा आ गया, तू रोज मुझे ऐसे ही खट्टी कैरी खिलाएगा ना?”

“हाँ हाँ क्यों नहीं, तेरे लिए तो मैं पेड़ पर क्या आसमान पर चढ़ जाऊंगा।”
सुनीता योगेश को अपनी बाहों में भर ज़ोर से दबाती है और कहती है, “तू कितना अच्छा है योगेश, मेरा कितना प्यार करता है, कौआ तू पूरी ज़िंदगी मुझे ऐसे ही प्यार करता रहेगा?”

“हाँ सुनीता, मैं जब तक जीऊँगा, बस तुझे ही प्यार करूंगा, हमेश ही तुझे खुश रखूँगा।”

“अच्छा अब जल्दी से घर चल, आज तो माँ डंडा लेकर दरवाजे पर बैठी होगी।”

“चलो अब दौड़ कर घर चलते हैं, देर नहीं होगी।”

सुनीता घर पहुंची तो माँ आज घर पर नहीं थी, चाबी पड़ोस में रख कर गयी थी। माँ को घर पर न पाकर सुनीता उदास हो गयी और सोचने लगी, ‘पता नहीं कहाँ गयी होगी, सब ठीक तो होगा या कोई गड़बड़ है कहीं।’

माँ ने खाना बनाकर रखा हुआ था, सुनीता ने खाना गरम किया और खाने लगी लेकिन खाना खाने में उसका मन नहीं लग रहा था आधा अधूरा खाकर ही छोड़ दिया।

आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली सुनीता अब घर के छोटे मोटे काम भी कर लेती थी। बचपन से योगेश और सुनीता एक साथ पढ़ रहे थे, अतः आपस में बाल सुलभ प्रेम था।

माँ की प्रतीक्षा कर ही रही थी कि तभी माँ आ गयी और खुशखबरी दी, “सुनीता तेरी मामी के यहाँ लड़का हुआ है, अभी आठवाँ महीना ही चल रहा था कि अचानक दर्द हुआ तो अस्पताल ले गए, मेरे पास पता भिजवा दिया था तो मैं भी तुरंत ही अस्पताल चली गयी, भगवान की कृपा से सब कुछ ठीक से हो गया, अब मुझे थोड़ी देर बाद कुछ कपड़े और जरूरी सामान लेकर लेकर दोबारा अस्पताल जाना पड़ेगा, शायद रात में वहीं रुकना पड़े, शाम को तेरे पिताजी आ जाएंगे तब तक घर का व अपना ध्यान रखना, किसी भी गैर आदमी के लिए दरवाजा मत खोलना और हाँ सुन, मैं खाना बना कर रख रही हूँ, खाना अस्पताल में भी लेकर जाना है और तुम दोनों का बना कर रख दूँगी, समय से खाना खा लेना, पापा को भी गरम करके खिला देना।”

“अच्छा माँ हाँ, मैं कब जाऊँगी छोटे भाई को देखने, छोटा सा प्यारा सा कितना सुंदर होगा ना?”

कक्षा में बैठ कर सुनीता योगेश को घर की सारी बातें बता ही रही थी कि तभी अध्यापक महोदय आ गए और उन दोनों को बातें करते देख अध्यापक ने दोनों को कक्षा से बाहर निकाल दिया। कक्षा से बाहर निकल कर योगेश सुनीता को लेकर आम के बाग में चला गया और पेड़ पर चढ़ कर उछल कूद करने लगा। उछल कूद करते हुए योगेश का पैर फिसल गया और वह धड़ाम से नीचे गिर गया, सुनीता बुरी तरह घबरा गयी और दौड़ कर योगेश के पास गयी।

भगवान की कृपा रही कि योगेश को कोई गहरी चोट नहीं लगी, वह तुरंत ही उठ खड़ा हुआ, मगर सुनीता तो योगेश से लिपट कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी, योगेश उसको समझा रहा था फिर भी वह रोये जा रही थी, बड़ी देर बाद जब सुनीता का रोना बंद हुआ तो वे दोनों कक्षा मे वापस आ गए, किसी से उन्होने इस घटना का जिक्र नहीं किया।

साथ पढ़ते हुए दोनों बड़े हो गए, योगेश IMA कि परीक्षा पास करके भारतीय सेना मे अधिकारी बन गया और सुनीता को तो पढ़ाने का शौक था अतः वह अध्यापिका बन गयी।

योगेश छुट्टिओं में घर पर आया हुआ था, एक शाम दोनों घूमने निकल गए और बहुत सारी बातें जो दोनो के अंदर पता नहीं कब से कैद पड़ी थी निकल कर बाहर आने लगी।

बातें करते हुए समय का बोद्ध ही नहीं रहा, काफी देर हो गयी थी........

“अब हमें घर चलना चाहिए”

“हाँ योगेश, बड़ी देर हो गयी है, घर वाले चिंता कर रहे होंगे”

“कल मैं तुम्हारे घर आऊँगा तुम्हारा हाथ मांगने, अब हम ज्यादा दिन एक दूसरे से दूर नहीं रह सकते।”

दोनों घर की तरफ चल दिये, पहले योगेश ने सुनीता को उसके घर छोड़ा बाद में अपने घर पहुँच कर अपने मम्मी पापा से अगले दिन सुनीता के घर चलने को कहा। घर वालों को यह रिश्ता तो पहले से ही मंजूर था, औपचारिकता के लिए कुछ रस्में निभानी थी।

सभी रस्मों रिवाज के साथ योगेश और सुनीता की सगाई हो गयी, दोनों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

खुशी के इस माहौल को गमगीन बना दिया जब योगेश ने बताया कि कल उसकी छुट्टी समाप्त हो रही है और वह वापस जा रहा है।

“सुनीता! मैं अबकी बार लंबी छुट्टी लेकर आऊंगा और तुम्हें भी अपने साथ लेकर जाऊंगा,” इतना अशवासन देकर योगेश बांदी पोरा कश्मीर के अपने सैनिक कैंप में चला गया।

सब कुछ ठीक ही चल रहा था, उस रात योगेश ने जब चार आतंकवादी सीमा पार करके कश्मीर में घुसते देखे तो उसने चारों को वहीं पर ढेर कर दिया........

न जाने कहाँ से एक गोली आकर योगेश के सिर में धंस गयी, योगेश बेहोश हो गया, उसके साथियों ने योगेश को उठाकर बेस हॉस्पिटल पहुंचाया, वहाँ से हवाई जहाज द्वारा दिल्ली लाया गया........

सिर की गोली तो चिकित्सकों की टीम ने निकाल दी लेकिन योगेश को होश नहीं आया।

सुनीता पर तो जैसे वज्रपात ही हो गया, गुमसुम सी सुनीता घंटो बैठकर बस योगेश को ही निहारती रहती।

समय बीतता गया लेकिन योगेश की दशा में कोई सुधार नहीं हुआ, वैसे योगेश के सभी अंग ठीक प्रकार से काम कर रहे थे।

दो वर्ष बीत गए, घर वाले सुनीता पर दूसरी जगह शादी करने का दबाव बनाने लगे, माँ बाप ने समझाया, “बेटा! हम भी बूढ़े हो रहे हैं तेरी शादी करके ऋण मुक्त हो जाना चाहते हैं, योगेश का तो पता नहीं, उसको होश आएगा भी या नहीं, दो वर्ष हो गए हैं, चिकित्सक भी कोई सही जानकारी नहीं दे रहें हैं।”

माँ बाप की बातें सुनकर सुनीता भी चुप हो जाती उसके पास कोई जवाब नहीं था। एक दिन एक अच्छा सा लड़का देखकर उसके साथ सुनीता की शादी तय कर दी, सुनीता के देह तो घर पर थी मन तो उसका योगेश में ही लगा था और उसने हाँ ना कुछ नहीं कहा, फिर एक दिन शादी का दिन भी आ गया........

सुनीता अग्नि के चारों तरफ फेरे लगा रही थी, पंडितजी मंत्रोचर कर रहे थे, महिलाएं मंगलगान कर रही थी, घर वाले मंडप को घेरे खड़े थे, योगेश तो अस्पताल में बेहोश ही था........

नर्स को ऐसा लगा जैसे योगेश को कोई बेचैनी हो, उसका शरीर हिलने डुलने लगा था कि ____ तभी अचानक योगेश ज़ोर से चिल्लाया, “नहीं सुनीता नहीं, तुमने मेरी प्रतीक्षा क्यों नहीं की, मेरी धड़कन अभी भी तेरे लिए धडक रही है।” और योगेश उठ कर बैठ गया, यह किसी चमत्कार से कम नहीं था........

वहाँ उपस्थित नर्स ने तुरंत चिकित्सक को बुलाया और सारी बात बताई, सभी जांच करने पर योगेश को हर तरह स्वस्थ पाया इसलिए चिकित्सक ने बाहर बैठे योगेश के घर वालों को यह शुभ सूचना देकर योगेश के पास मिलने के लिए बुला लिया।

सभी लोग बहुत खुश थे कि योगेश को होश आ गया लेकिन ........

सब के बीच में सुनीता को देखा तो योगेश हैरान होकर बोला, “सुनीता तुम यहाँ कैसे, तुम्हारी तो शादी हो रही थी, फेरे हो रहे थे।” सुनीता समझ गयी कि योगेश ने बहगोशी में ऐसा कोई सपना देखा है.........

“अच्छा तो मेरी शादी का सपना देख कर तुम्हारी बेहोशी टूटी है, मैं कैसे किसी और से शादी कर सकती हूँ, बचपन से तो मेरे मन पर तुमने कब्जा कर रखा है।” और सुनीता योगेश को बाहों में भरकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।

सब लोग बाहर चले गए और उन दोनों को अकेला छोड़ दिया, काफी देर बाद सुनीता का रोना बंद हुआ, बड़ी देर तक दोनों एक दूसरे को निहारते रहे........

जल्दी ही योगेश चलने फिरने लगा और पहले कि तरह सब काम स्वयं करने लगा........

अच्छा सा मुहूर्त देख कर योगेश और सुनीता की शादी हो गयी........

योगेश ने स्वस्थ होकर सेना की अपनी ड्यूटि शुरू कर दी वहीं सेना के स्कूल में सुनीता भी अध्यापन कार्य करने लगी।

आज सुनीता फिर खट्टी कैरी खा रही थी क्योंकि अब वह खुश खबरी सुनाने वाली थी।