एक्स रे बाबा (11) 205 305 2 हाथों में ऐ के 56 थामे जंगलों में भटकना ही हमारी ज़िन्दगी थी, हर पल खतरा रहा करता था कि कब किधर से कोई गोली आएगी और हममें से किसी एक की कहानी हमेशा के लिए ख़तम हो जाएगी | 18 जवानों की टुकड़ी है हमारी और सब अलग अलग जगहों से कोई जम्मू से है तो कोई पंजाब से कोई दिल्ली से तो कोई आंध्रा से किसी को पूरी भाजी पसंद है तो किसी को इडली पर हम सबका लक्ष्य एक है दुश्मन का खात्मा | मैं एक CRPF का जवान हूँ, झारखंड के जंगलों में भटकना शौक सा बन गया है अब | सब बोलते हैं करुणा की आँखें नहीं X-रे है और सच ही बोलते हैं क्योंकि कोई भी नक्सली मेरी आँखों को धोखा नहीं दे सकता | प्यार से मुझे X रे बाबा बोलते हैं मेरे साथी | वो दिन मुझे अच्छी तरह से याद है सुबह के 5 बजे थे और हमको एक घर में नक्सलियों के सरगना बद्री के छुपे होने की खबर मिली थी | प्लान था की उजाला होने से पहले उस घर पर हमला किया जाए | मेरा दिल आज भी हर ऑपरेशन की तरह ज़ोरों से धड़क रहा था पर यह डर सिर्फ साईट पर पहुचने से पहले का हुआ करता है | 5 बज कर 3 मिनट पर हम गाडी में सवार हुए और 5 बजकर 17 मिनट पर उस घर से 100 मीटर की दूरी पर उतरे | अब्दुल ग्रुप की कमांड कर रहा था मुझे मेरे 4 लोगों के ट्रूप के साथ छत पर चढ़ने का इंस्ट्रक्शन मिला | हम सभी दबे पाँव छत की तरफ बढ़ लिए | हलके हाथों से रस्सी फेंकी गई और एक एक कर के हम उस 12 फीट ऊँची छत पर चढ़ गए | विक्रम नार्थ से कवर दे रहा था और जग्जोत आगे के दरवाजे के ठीक बाहर | अब्दुल ने फैसला किया था कि पीछे के दरवाजे को तोड़कर अन्दर दाखिल हुआ जाए | पर कुछ गड़बड़ हो गई दरवाजा भीतर से या तो जाम था या जाम किया गया था और उस शोर ने अन्दर मौजूद लोगों को सँभलने का मौका दे दिया | गोलियां चलने लगीं | अब्दुल ने हमें इशारा किया कि मैं अपने 4 लोगों के साथ घर के भीतर उतर जाऊं | हर तरफ से गोलियों की आवाजों ने माहौल गर्म कर दिया था | अन्दर कितने लोग होंगे हमें कोई अंदाजा न था | एक बार तो दिल में आया कि अब्दुल को मना कर दूं पर फिर दिल पर हाथ रख के 2 बार आल इस वेल बोल कर मैं भीतर की ओर बढ़ लिया | मेरे साथी मेरे पीछे ही थे | सीढ़ी से उतर कर मैंने जायजा लिया | घर की तीन तरफ की खिडकियों पर 2-2 नक्सली एके 47 लिए बाहर की ओर गोलियां दाग रहे थे | हम 5 थे और वो 6 या शायद और भी एक चूक हमारी जान ले सकती थी | मैंने अपनी टीम को हाथ से सबको साथ में फायर करने का आदेश दिया | पिरामिड की संरचना बनाकर हमने बंदूकें तान ली | उनको हमारे यहाँ होने की कोई भनक नहीं थी | जैसे ही मैंने उंगली से 3 का इशारा किया हम सबने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी धुएं के गुबार के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था एकाएक दूसरी तरफ सन्नाटा पसर गया | हममें से 3 ने फायरिंग रोक दी | वो छह के छह ज़मीं पर पड़े थे | हमने फायरिंग रोकी और मेरे चारों साथियों ने घर के चारों कोने संभाले और मैंने खिड़की पर आकर स्मोक बम दाग दिया | ये इस बात का इशारा था कि मैदान हमारे कब्जे में है | धुएं का गुबार देखकर बाहर भी सन्नाटा छा गया | मैंने तेज़ कदमो से बढ़ते हुए दरवाजा खोल दिया | और कुछ ही देर में सारा ट्रूप अन्दर आ गया | अब्दुल ने अन्दर आते ही कहा " X रे बाबा की जय हो | " और हम घर की तलाशी लेने में लग गए | उस कमरे में ढेरों असलहे और बम बरामद करने के बाद जैसे ही बीच में पड़ी रजाई को हटाया हमारे होश से उड़ गए | लगभग 20 साल की, हलके गेहुंए रंग की एक लड़की सोई हुई थी | वो ऐसे सो रही थी जैसे कुछ हुआ ही न हो | अब्दुल चिल्लाया फ्रेंड्स इट्स अ ट्रैप | गेट आउटसाइड ऑफ़ हाउस फ़ास्ट | पर मैंने न में सर हिला दिया | अब्दुल कभी मेरी बात नहीं टालता था | और जाते जाते सब वहीँ रुक गए | फिरोजी रंग का सलवार कुरता पहने वो बड़े आराम से सो रही थी | मैं आगे बढ़ा और अपने बन्दूक के हत्थे से उसे हिला दिया | वो घबरा कर उठ बैठी | पहले उसने हमको देखा और फिर उस कमरे में मची तबाही को | वो समझ नहीं पा रही थी कि इस वक़्त डरे रोये या चिल्लाये | हम सबकी बंदूकें उसकी ही तरफ थी | और वो बीच में हाथ पैर सिकोड़ कर बैठी थी | अब्दुल ने गिरजेश से उसकी तलाशी लेने को कहा पर मैं पहले ही आगे बढ़ गया | उसे हाथों से पकड़ कर उठा दिया | उसकी बिलोरी आखों से आंसू निकल रहे थे और मेरे हाथ के इशारे पर वो बुत की तरह खड़ी हो गई थी | मैंने हलके हाथों से उसकी तलाशी ली और फिर उसका एक हाथ पकड़ कर उसे बाहर की ओर लेकर चल दिया | सब मुझे ही देख रहे थे | दरवाजे पर पहुचते ही मैंने मुड़कर बोला ," तीन आदमी मेरे साथ आ जाओ बाकी शिनाख्त और पंचनामे का प्रोग्राम तैयार करो | अब्दुल मुझे ऐसे देख रहा था जैसे कि कोई भूचाल आ गया हो | पर भूचाल तो आया था वास्तव में | वो भी मेरे दिल में | मुझे पहली ही नज़र में उस लड़की से प्यार हो गया था | उसका हाथ अभी भी मेरे हाथ में था और वो मेरे पीछे सर झुका कर चलती चली जा रही थी | मैं उसे लेकर अपनी गाडी में बैठा और हेड क्वार्टर आ गया, मैंने उसे जेल तो नहीं पर कैद ज़रूर किया | हेड क्वार्टर के गेस्ट लॉज के एक कमरे में | अभी तक न तो मैंने उससे कुछ पूछा और न वो कुछ बोली | गार्ड्स को ध्यान रखने को बोलकर मैं अपने कमरे पर आ गया | कुछ घंटे बैठा मैं बस उन 15 मिनटों को याद कर रहा था जब वो मेरे साथ थी | कुछ अजीब सी कशिश थी उसमे | कुछ खीच सा रहा था मुझे उसकी तरफ | मेरी ये ख़ामोशी अब्दुल की आवाज़ से टूटी | करुणा शंकर, क्या आप जानते हैं आपने रूल वोइलाशन किया है और आपकी इस हरकत के लिए आपको सस्पेंड भी होना पड़ सकता है | " अब नौकरी की क्या परवाह करें हुजुर, मुर्दे भी कभी काम किया करते हैं " अब्दुल की तरफ देख कर मैंने एक शेर दाग दिया | " अबे पगला गए हो क्या? " साहब को पता चला न तो मर हो जाओगे तुम |" अब्दुल भीतर आते हुए बोला | " लड़की कहाँ है ?" उसकी आवाज़ में ठसक थी | "लोज में" मैंने कहा | "लोज में? वो लोज में क्या कर रही है? " उसने पूछा " मैंने रखा है " मैंने ज़वाब दिया | "मुझे उसकी कस्टडी चाहिए | पूछताछ करनी है | " अब्दुल बोला | "वो लड़की मासूम है | " मैंने टका सा जवाब दे दिया | " करुणा, जितनी गोलियां वहां चल रहीं थी , मुर्दा भी खड़ा हो जाता और तुमको अजीब नहीं लगा कि वो सो रही थी | जूं भी नहीं रेंगी उसके कानो पर ? कमाल नहीं लगता?" अब्दुल वाजिब बात कर रहा था | और मैंने अन्धो की तरह उसे उसे लाकर लॉज में ठहरा दिया | मैंने तुरंत अपने बूट पहने और अब्दुल को लेकर लॉज की तरफ बढ़ चला | मन में कई सवाल आ रहे थे और जवाब शायद उस लॉज के कमरे में था | जैसे ही हम दरवाजा खोल कर कमरे में दाखिल हुए तो देखा कि वो खिड़की से बाहर ताक रही थी |उसे अंदाजा भी नहीं हुआ की हम उस कमरे में मौजूद हैं "ऐ लड़की " अब्दुल ने उसे बुलाया | पर वो अभी भी बस हमारी तरफ पीठ किये बाहर घूर रही थी | मैंने आगे बढ़कर उसके कंधे पर हाथ रखा | मेरा हाथ रखना ही था कि पलट कर मेरे गले लग गई और बच्चों की तरह फूट फूट कर रोने लगी | पर उसके रोने में आवाज़ नदारद थी बस साँसों की आवाज़ और आंखो के आंसू | मुझे समझते देर नही लगी कि यह बोल नहीं सकती और शायद सुन भी | उसकी सिसकियाँ बढती जा रही थीं और मेरे धड़कने , मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ और अनजाने ही मेरा हाथ उसके सर पर चला गया | उसकी बाहों ने मुझे भींच सा लिया | फिर एकाएक मैंने उसे हलके से खुद से दूर किया और कमरे से बाहर निकल गया | उस एहसास ने मेरे रोम रोम में हलचल सी मचा दी थी | मेरा खुद से सवाल कि क्या कर रहा हूँ मैं और भीतर से कोई जवाब नहीं आया | कुछ देर में अब्दुल मेरे पीछे पीछे चला आया | "कुछ नहीं बोलती , कुछ समझती भी नहीं बस घूरती रहती है |" अब्दुल का वो स्टेटमेंट क्वेश्चन मार्क लिए था | मैं बस उसके चेहरे को देख रहा था | ज़वाब क्या दूं सूझता ही नहीं था | " एक काम कर तू उससे अकेले में बात कर , भरोसा करती है तुझपर शायद कुछ तो बताये कि कौन है कहाँ से आई है और वहां क्या कर रही थी |" मैंने हाँ में अपनी गर्दन हिला तो दी पर मैं उससे दूर रहना चाह रहा था | अब्दुल मेरा हाथ पकड़ कर ब्रिगेडीअर साहब के कमरे की ओर बढ़ लिया | 2 मिनट में ही सारी बात हो गई और मुझे इस केस के आर्डर थमा दिए गए | "वो लड़की हमारे लिए इम्पोर्टेन्ट है | प्लीज हैंडल द केस वेरी केयरफुली, नहीं तो ह्यूमन राईट वाले धरने पर बैठ जायेंगे बाहर यहाँ |" जाते जाते ब्रिगेडिएर साहब ने हिदायत दे दी | यस सर, आई विल डू माय बेस्ट" कहकर मैं निकल लिया | थमते कदमो से मैं फिर से लॉज के उस कमरे में जाकर खड़ा हो गया | वो सामने ही घबराई सी बैठी थी | मुझे देख अपने सिकोड़े हाथ पैरों को आराम की हालत में कर के दूसरी ओर देखने लगी | मैं पास में जाकर खड़ा हो गया | अब वो मेरी शक्ल देख रही थी जैसे पूछ रही हो कि मैं कहाँ था अब तक | मैंने कांपते लफ़्ज़ों में उसका नाम पूछा | पर वो खामोशी नहीं टूटी | वो पल ऐसा लग रहा था जैसे दुनिया में तीसरा कोई भी नहीं है | मैंने फिर ऊँगली के इशारे से पूछने की कोशिश की | उसके होठों पर हलकी सी मुस्कान आई और मेरी जान में जान | मुझे बैठने का इशारा करती हुई उसकी वो बिलोरी आँखे मुझे तके जा रही थीं मैं पास ही बैठ गया | मेरा हाथ अपने हाथ में लेते हुए उसने अपनी ऊँगली से मेरे हाथ पर सारिका लिख दिया | मैं अचानक से उठ बैठा और वहां से निकल कर सीधे ब्रिगेडीअर साहब के कमरे में जाकर रुका | "सर मुझसे ये काम नहीं होगा | आप अब्दुल से बोल दीजिये वो ही बात करे उससे | " "व्हाई एनी प्रॉब्लम ? " ब्रिगेडीअर साहब ने पूछा | "सर, आई कैन नॉट डू फेक थिंग्स, शी इस डैम इनोसेंट गर्ल ." मेरी आवाज़ थर्रा सी रही थी | उन्होंने रिसीवर उठाया और अब्दुल को अन्दर भेजने को बोला | मैं कमरे में खड़ा दीवारों को देख रहा था | मेरी उँगलियाँ मुट्ठियां भीचने और खोलने का खेल सा खेल रही थीं और दिल ऐसे धड़क रहा था जैसा मौत को सामने देख के भी कभी न धड़का था | कुछ देर में अब्दुल सामने था | "अब्दुल, करुणा शंकर इस मिशन पर काम नहीं करना चाहता | तुम क्या बोलते हो?" साहब ने उसके आते ही बोला | "सर वो करुणा सिर्फ उसकी आइडेंटिटी पता कर ले बाकी मैं कर लूँगा |" अब्दुल ने साफ़ सा ज़वाब दिया | "करुणा, कैन यू डू इट ?" ब्रिगेडीअर साहब ने मुझसे पूछा | " जी सर |" मैंने फिर से हाँ बोल दिया | और अगले दिन की सुबह किस्मत ने मुझे फिर से उसी कमरे में खड़ा कर दिया | मैं फिर से कल को दोहराता हुआ उसके बगल में जाकर बैठ गया और उसका हाथ अपने हाथ पर लेते हुए उस पर घर लिख दिया | अब उसकी बारी थी उसने बोकारो लिखा | और फिर मेरा नाम पूछ बैठी | मैंने हलके हाथों से उसकी कलाई पर करुणा लिख दिया | वो हंस पड़ी | मैंने हाथों से इशारा किया तो उसने लिखा ," तुम लड़का नाम लड़की ?" और फिर खिलखिला के हँस पड़ी | मैं भी अब थोडा सहज हो रहा था पर दिलकशी थी कि रुकने के नाम भी नहीं ले रही थी | उसने हाथों के इशारे से सवाल किया ," तुमने मेरे पिता को क्यों मारा ?" और मेरा ज़वाब नहीं बल्कि सवाल आया ," कौन है तुम्हारा पिता?" उसने फिर से मेरे हाथ पर कुछ लिखा, मेरे रोंगटे से खड़े हो गए | उसने मेरे हाथ पर बद्री लिखा था | ये लड़की बद्री की बेटी थी | गूंगी और बहरी | मासूम | बच्चों की तरह भोली और एक नक्सली की बेटी ? वो कमरा घूमने सा लगा था और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इस इश्क की दीवार लांघनी है कि नहीं | उसकी आँखें अभी भी मुझ पर ही टिकी थीं जैसे जवाब के इंतज़ार में हों लेकिन मैं क्या कहता, उसे तो शायद पता भी नहीं था कि उसका पिता एक नक्सली था | मैंने उसके हाथ पर एक थपकी सी दी और कमरे से बाहर निकल आया, तेज़ कदमो से बढ़ता हुआ मैं अब्दुल के दरवाजे पर जाकर रुका, "पर अब्दुल से कहूँगा क्या, कि मेरे भीतर का फौजी हार मानने लगा है, करुणा इतना कमज़ोर निकला कि एक दिन में ही इश्क कर बैठा ?" अनजाने में ही पर मैंने उस लकड़ी के दरवाजे पर एक मुक्का सा धर दिया | जब तक मैं संभल पाता अब्दुल दरवाजा खोल कर मेरे सामने खडा था | "अबे, क्या हुआ बे? सनी देओल की घायल देख ली क्या? दरवाजा तोड़ दे तू मेरा |" मैंने हल्की सी मुस्कराहट में अपना सवाल दबा लिया | "कुछ बात करनी है मुझे उस लड़की के बारे में |" मैं अपनी झल्लाहट छुपाने की कोशिश में था | "बताओ जवान क्या खबर है?" अब्दुल कुछ ज्यादा ही चहक रहा था आज | "पहले तू बता इतना खुश क्यों है? " मैंने पूछ ही लिया | "तुझे नहीं पता ! ब्रिगेडियर साब ने मेरा और तेरा नाम गैलंट्री अवार्ड के लिए भेजा है | बेटा पगड़ी खरीद लो 15 अगस्त को अवार्ड मिलेगा तुमको |" अब्दुल की दी हुई खुशखबरी से मैं कैसे खुश होता, मैं तो कातिल था उसकी नज़र में | "वो बद्री की बेटी है |" मैंने एक झटके में उसे कह दिया | "क्या, वो बद्री की बेटी है? नाम क्या है उसका?" अब्दुल ने पूछा | "सारिका " मैंने कहा | "पर बद्री की बेटी तो 3 साल पहले ही मर चुकी है और उसका नाम सारिका तो नहीं था |" अब्दुल बोला । "क्या मतलब |" अब सवालों की परते मेरे दिल को ढकने लगी थीं | "हो सकता है ये दूसरी बेटी हो |" मैंने अब्दुल के सामने तर्क रखा | "करुणा, अब्दुल की एक ही बेटी थी रीमा और वो बद्री की लेडी ब्रिगेड की कमांडर थी | तीन साल पहले CRPF की ही 28वीं बटालियन के कैप्टन वीर सिंह ने उसका एनकाउंटर किया था |" अब्दुल बहुत कॉंफिडेंट था अपने तर्क पर | "एनकाउंटर ! अगर ये बद्री की बेटी नहीं है तो फिर ये कौन है और अगर ये बद्री की बेटी है तो वीर सिंह ने किसको मारा ?" मेरे तो दिमाग पर हथोड़े से बरस रहे थे | "अब्दुल तू रुक मैं अभी आया |" कहकर मैं फिर से सारिका के पास पहुँच गया | जेब से कागज़ और पेन निकाल कर मैंने उसपर अपना सवाल लिखा ," सारिका कौन है ?" उन्ही सवाली बिलोरी आँखों से उसने जवाब दिया "मैं" मेरा अगला सवाल था ,"तो फिर रीमा कौन है ?" उसने लिखा, " बाबु जी की असली बेटी |" "असली?" मैंने फिर पूछा | "तुम फौजिओं ने मुझे फिर से अनाथ किया है |" उसके इस जवाब ने मेरे सामने कई सवाल खड़े कर दिए | आखिर हमारा क्या कसूर हम तो बस अपना काम करते हैं | "फिर से? मैंने एक और सवाल किया | अबकी वो लिखने में कुछ ज्यादा ही वक़्त ले रही थी | मैं उसकी आखों की चुभन को महसूस सा करता वहां खड़ा रहा | इंतज़ार कर रहा था कि कब राज़ की वो परत इस सवाल का ज़वाब बनकर मेरे सामने आएगी | एक लम्बी सी चिट्ठी लिखकर उसने मेरे हाथ में थमा दी और इशारा सा किया कि मैं इसे अकेले में पढूं | उस कागज़ में सिमटी कहानी को लेकर मैं अपने कमरे में आ गया | क्या लिखा होगा उसने यही सोचते हुए मैंने उस चिट्ठी की सलवटों को खोल दिया | "करुणा जी, एक आप ही हैं यहाँ जिसपर मैं भरोसा कर सकती हूँ | मेरा नसीब ही तो मेरा दुश्मन है | मुझे मेरे बारे में कुछ नहीं पता | मैं कौन थी ये मेरे लिए भी एक सवाल ही है | आँखें एक अनाथालय में खुलीं और बचपन सवालों का जवाब ढूंढने में गुज़र गया | मेरा खुद से भी यही सवाल रहा कि कौन हूँ मैं | अनाथालय से निकली तो तवायफ के कोठे पर रुकी | आखिर हर अनाथ लड़की की किस्मत यही तो होती है | बेटी बोलने वाले तो कई मिले पर बनाया बद्री प्रसाद ने | पिछले साल गंगा की दहलीज़ पर खड़ी मैं अपनी ज़िन्दगी को फिर से लिखने जा रही थी | सोचा था अगले जन्म में अनाथ बनकर पैदा नहीं हुंगी | भगवान को सिर्फ तस्वीरों में देखा था पर उस दिन वो वाकई मेरे सामने थे | पिता का साया दिया उन्होंने मुझे और बद्री प्रसाद मेरे बाबु जी हो गए | पर शायद किस्मत भी बड़े लोगों की ही लिखी जाती है, मेरी तो घिसी गई है मैं फिर से अनाथ हूँ और फिर से तुमसे वही सवाल कि तुमने मेरे पिता को क्यों मारा ?" चिट्ठी खामोश हो गई थी पर मेरी साँसे उस माहौल को तोड़ रही थीं | मैंने दिल पर हाथ रखा तो महसूस हुआ जैसे हर धड़कन मुझे कातिल बोल रही हो | वो कमरा काटने सा लगा था और ऐसा लग रहा था कि फांसी का एक फंदा अभी नीचे आएगा और मुझे सजाये मौत सुनाने के बाद उस पर लटका दिया जायेगा | "मैं क्या बनूँ इस वक़्त एक फौजी जिसको एक मिशन दिया गया है या एक इंसान जो एक अनाथ के सर पर हाथ रख सके | अब्दुल से क्या बोलूं, ब्रिगेडियर साब को क्या ज़वाब दूं, सारिका से क्या कहूं ? इतना मजबूर तो मैं कभी भी नहीं था |" उस पूरी शाम मैं अपने कमरे से बाहर नहीं निकला | रात भर सोचता रहा कि उसे बोल दूं कि मैं उसका हाथ थामना चाहता हूँ | उसे बोल दूं कि मैं उसकी किस्मत को अबकी करवट नहीं लेने दूंगा | उसे बोल दूं कि मैं उसके साथ अपनी पूरी ज़िन्दगी बिताना चाहता हूँ | मैंने अपने फैसले को एक कागज पर उतार कर उसके सामने कल सुबह रखने का मन बना लिया | अगली सुबह मैं अपनी वर्दी में तैयार था, ठान सा लिया था दिल में कि उसके आगे दिल खोल कर रख दूंगा | तभी दरवाजे की उस दस्तक ने मेरा ख्याल मोड़ दिया | "चल ब्रिगेडियर साब से मीटिंग है, वो प्रोग्रेस जानना चाहते हैं |" अब्दुल था दरवाजे पर | "अबे ये बद्री की असली बेटी नहीं है | अनाथ है, मरने जा रही थी बद्री ने इसे बचाया और इसे अपनी बेटी बना लिया | देख ये चिट्ठी |" मैंने कहते हुए वो चिट्ठी उसके आगे बढ़ा दी | चिट्ठी हाथ में लेते हुए अब्दुल बोला "चल ब्रिगेडियर साब के सामने ही पढेंगे | जल्दी चल, बुलाया है उन्होंने |" अब्दुल वाकई जल्दी में था | हम दोनों ब्रिगेडियर साब के ऑफिस में पहुँच गये | "सो बॉयज, व्हाट इस डेवलपमेंट इन इन्वेस्टीगेशन ? कौन है ये लड़की ?" ब्रिगेडियर साब ने जाते ही सवाल कर दिया | "सर ये ...." मैंने बोलना ही शुरू किया था कि अब्दुल बीच में ही बोल पड़ा, "सर ये लड़की खुद को बद्री की बेटी बताती है और नाम सारिका कहती है, बोल सुन नहीं सकती ये कोई चिट्ठी दी है उसने करुणा को |" कहते हुए उसने चिट्ठी साहब के सामने बढ़ा दी | "आई सी, बट बद्री की बेटी तो ....." ब्रिगेडिएर साहब इतना ही बोल पाए थे कि चिट्ठी ने उनकी ज़बान को रोक सा दिया | चिट्ठी पढ़कर वो मुझसे बोले, " गुड जॉब करुणा, यू कैन लीव नाउ, अब्दुल तुम यहीं रुको |" मैं अपने क़दमों पर उछलता हुआ सा कमरे से बाहर निकल आया | बगीचे से एक गुलाब का फूल तोडा और गेस्ट लॉज की तरफ बढ़ चला | दरवाजे पर पहुंचा तो डॉक्टर उपाध्याय कमरे से बाहर निकल रहे थे | हलकी से मुसकान के साथ मैंने उनका अभिवादन किया और कमरे में जाकर सारिका के पास बैठ गया | न सुन पाने के बाद भी शायद वो मेरे क़दमों को महसूस सा कर लेती थी | मेरे हाथ पर उसने अपना नर्म सा हाथ रख दिया | उसकी बैचेनी मैं महसूस कर पा रहा था | हो भी क्यों न आखिर बंद जो थी 2 दिन से इस चहारदिवारी के भीतर | उसका हाथ थाम कर मैं उसे बगीचे में ले आया | वो हर तरफ हथियार बंद फौजियों को देख रही थी और जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे मेरे हाथों पर उसकी पकड़ बढती सी जा रही थी | मैंने उसे आखों के इशारे से भरोसा दिया कि उसे डरने की ज़रूरत नहीं है | मैं साथ हूँ उसके अभी, और हमेशा और जेब से निकाल कर वो गुलाब उसके सामने रख दिया और आधी रात को लिखी गई वो चिट्ठी जिसमे मेरे दिल की बात थी | चिट्ठी को हाथ में लिए वो मुझे देख रही थी, जैसे पूछ रही हो कि , "कब से?" और मैंने आँखों ही आंखों में कह दिया कि "पहले दिन से" | उसने न तो हाँ कहा और न ही ना बस पलट कर कमरे की ओर चल पड़ी | ये उसकी सहमति थी या इंकार, पता नहीं पर मेरे दिल में खामोशी सी ज़रूर थी आज , एक चुभन सी थी जो वो आज गायब हो गई थी | वो जा चुकी थी और मैं अकेला वहीँ ठिठका खड़ा था, ऐसा अहसास था जैसे वो CRPF का कैंप हसीं वादियों में तब्दील हो गया हो और खुदा का करम देखिये हवाएं सी चल उठी और वो रिमझिम बिन मौसम की बरसात जैसे हर कोई जश्न में हो और साथ में सहमत भी | "करुणा... आजा पकोड़े बने हैं पैंट्री में |" अब्दुल ने मुझे आवाज़ लगाई थी | आज तो मुझे वो काली शक्ल पर काली मूंछ वाला अब्दुल भी खूबसूरत लग रहा था | बारिश के मौसम में मिटटी की वो भीनी सी महक में पकोड़े की खुशबू ... आ हा हा ... मज़ा सा आने लगा था | हर तरफ मोहब्बत ही दिख रही थी मुझे | मैं मुस्कुरा कर सर पर थपकी सी मार कर अब्दुल की तरफ बढ़ चला | "करुणा बाबू क्या बात है, शाहरुख़ वाले लुक्स दे रहे हो आज | क्या हुआ?" अब्दुल मेरी खिंचाई कर रहा था | "चल बे ! कुछ नहीं |" मैंने भाव सा खाया | "ओहो कुछ नहीं | ठीक है भाई हम कौन होते हैं आपके मिजाज पूछने वाले |" अब्दुल अभी भी मेरी खींच रहा था | "बकैती मत पेल |" और पैंट्री में घुसते ही मैंने हेड कुक राधे मोहन को आवाज़ लगाईं ,"राधे जी लगाओ 2 प्लेट गरमागरम पकोड़े |" पकोड़े के हर टुकड़े के साथ मैं सारिका के बारे में ही सोच रहा था और जैसे ही हम दोनों पैंट्री से बाहर निकले तो देखा सारिका गैलरी में ही थी और हलकी सी मुस्कान और प्यारी सी नजाकत से उसने आँखे झपका कर मेरे प्रोपोसल एक्सेप्ट कर लिया था | उस पल तो मानो जैसे मुझे सारी ज़िन्दगी के हर जतन का फल मिल गया हो | दिल कर रहा था कि फिल्मों की तरह उसको बाहों में लेकर एक दो गाने ही गा डालूं | अब्दुल को कमरे पर छोड़कर मैं लॉज पर आ गया | वो चुपचाप हाथ में एक कागज़ लिए बैठी थी | जैसे ही मैं गया वो कागज़ उसने मेरे सुपुर्द कर दिया | मैंने कांपते हाथों से वो कागज़ खोला | पता तो था कि सारिका की हाँ है फिर भी न जाने क्यों एक डर सा लग रहा था | कागज़ में उसका हाले बयाँ था । "करुणा जी, आप बहुत अच्छे हैं | आपने कहा कि आप मुझे चाहते हैं | आपकी चाहत का अंदाजा मुझे उसी दिन हो गया था जिस दिन आपने मेरे हाथ पकड़ कर मेरी जान बचा ली थी | सच कहती हूँ करुणा जी मुझे उस दिन बहुत डर लगा था | मेरे हर तरफ बन्दूक पकडे आपके साथी खड़े थे और लग रहा था कि अभी उनमे से कोई फायर कहेगा और दस बारह गोलियां मेरे जिस्म को छेड़ देंगी | पर आपने हाथ थामा तो ऐसा लगा जैसे आप से कोई पुराना सा रिश्ता है मेरा | बाबू जी ने मुझे जीने का सबक सिखाया था और उनकी बात को मैं छोटी नहीं कर सकती | मैं फिर से मरना नहीं चाहती | पर डर लगता है मुझे यहाँ | ये लोग मेरे ऊपर भी नक्सली होने का तमगा लगाने की कोशिश में हैं | आपके दोस्त कह रहे थे कि मेरा एनकाउंटर करवा कर नक्सली बता देंगे | मैं मरना नहीं चाहती | मेरी ज़िन्दगी आपने बचाई है और अब आपके ही हाथ में है, जैसे चाहिए इस्तमाल करिए |" उसकी दिल की बात पढ़ कर मैं सिहर सा गया | मैंन उसे मरने नहीं दे सकता फिर चाहें मेरे दोस्त ही मेरे दुश्मन ही क्यों न हो जायें | मैंने उसके कंधे पर एक थपकी सी दी और एहसास दिलाया कि मैं हूँ | उसकी उस चिट्ठी को लेकर कमरे में आया और रात के 6 घंटों में मैंने उसे सैकड़ों बार पढ़ा और फिर तय कर लिया कि मैं उसे मरने तो नहीं दे सकता फिर चाहें कोर्ट मार्शल ही क्यों न हो जाये , भोर के चार बजे मैंने लॉज से सारिका को लिया और चोर रस्तों से होता हुआ कैंप से बाहर निकल गया | ये वही रास्ते थे जो हमें ट्रेनिंग के वक़्त हमारे सीनियर्स ने बताये थे पर कभी नहीं सोचा था इनका इस्तमाल मैं एक लड़की को भगाने के लिए करूँगा और वो भी कैंप से ही | मैंने अब्दुल को भी कुछ नहीं बताया था | पता नहीं मुझे बताना था या नहीं पर अब जो हो रहा था वो होने में ही सब कुछ सही थी | जंगल के रास्तों से होते हुए हम पास के गाँव में पहुँच गए और वहां से बस पकड़ कर मुजफ्फरपुर | सारिका बहुत थकी सी लग रही थी | थक तो मैं भी गया था पर अभी सोचने का वक़्त ही नहीं था मेरे पास | अब आगे क्या करना है मुझे, कुछ भी पता नहीं था | मेरे पास कुछ हज़ार रुपये थे और मुझे यह भी पता था कि अब कदम वापस नहीं लिए जा सकते | वैसे भी प्यार और जंग में सब जायज है और ये मेरी पहली मोहब्बत थी | होटल का वो एक कमरा और मैं और सारिका आज बिलकुल अकेले थे | मैं चाहता तो सीमाएं लांघ सकता था पर मैंने नहीं लांघी और शायद वो भी यही चाहती थी | आखिर सच वाले इश्क के कुछ नियम क़ानून तो होने चाहिए और यह सच वाला इश्क था | दोपहर के एक बज चुके थे, मैं अपना मोबाइल भी कैंप में ही छोड़कर आया था | वहां क्या चल रहा होगा मुझे अंदाज़ भी नहीं था पर एक बैचेनी ज़रूर थी | मैं अपने लिए तो बैग पैक कर के ले आया था पर सारिका के पास उस फिरोजी सलवार सूट के सिवा कुछ भी नहीं था | अभी तक सो रही थी वो और सोते हुए तो और भी बला की खूबसूरत लग रही थी | इतनी भोली कि कोई भी देखे तो प्यार कर बैठे और मुझे ही देखो मैं हर पल उसके प्यार में बहता ही जा रहा था | उसे देखकर दिमाग में उठते हुए सारे डर किसी कोने में दुबक से गए थे और मैं जेब में पड़े 9000 रुपयों का एक हिसाब सा लगाते हुए बाहर निकल गया कुण्डी मैंने बाहर से ही लगा दी थी | कुछ सस्ते सूट, एक साड़ी और बाकी ज़रूरत का सामान लेने में मुझे बस एक घंटा ही लगा था मैं जैसे ही होटल के बाहर पहुंचा मुझे एक शख्स बाहर निकलता दिखा, ऐसा लग रहा था जैसे मैंने उसे जानता हूँ बहुत अच्छे से पर डर तो मुझे था इसलिए उससे नज़रें सा चुराता हुआ मैं भीतर चला आया | पर मुजफ्फरपुर में ऐसा कौन हो सकता है जिसे मैं जानता हूँ | मैंने एक बार खुद से "क्या पता" बोला और कमरे की तरफ बढ़ गया | कमरे के दरवाज़े पर भी दिमाग ठनका मेरा | मुझे अच्छी तरह याद था कि कुण्डी मैं नीचे की तरफ कर के गया था पर अभी ये ऊपर की तरफ थी | भीतर गया तो सारिका अभी भी सो रही थी | मैं उसके पास गया और प्यार से उसके सर पर हाथ रख कर बैठ गया | वो जाग गई थी | उसकी सूरत ने भी मेरा शक जगा दिया | उसकी आँखें कह रही थीं कि उसे उठे हुए वक़्त हो चुका है | आँखों में वो भारीपन नदारद था जो सोते से जागने के तुरंत बाद होता है | मेरे भीतर का सोया हुआ एक्स रे बाबा जाग गया था और शक के बादलों ने मेरे दिल पर डेरा डालना शुरू कर दिया था | मेरे भीतर का सैनिक जाग गया था और सोच रहा था कि क्या मैं कट गया? मैंने हलके हाथ से उसे उठा दिया और बाथरूम की तरफ धकेल आया | मैं कमरे की जांच करना चाहता था ऐसा अहसास था कि मेरी गैर मौजूदगी में कोई तो आया था यहाँ | उसके बाथरूम का दरवाज़ा बंद होने के साथ ही मैंने ध्यान से कमरे की तहे पलटना शुरू कर दिया | हर कोना हर दीवार हर पर्दा पर कहीं कोई सुबूत नहीं था | इसे सिर्फ अपना भ्रम मानकर मैंने दरकिनार कर दिया | सारिका नहा कर बाहर आ गई थी और फिर से वही फिरोजी सूट उसके बदन पर था | मैंने पैकेट से निकाल कर उसे लाल रंग का एक प्यारा सा सूट पेश किया और वो मानो बच्चों की तरह चहक सी पड़ी | उसकी इस चहक ने मुझे गवाही दी कि शायद मेरा वो शक गलत ही था | "वो मासूम ही है |" मैंने खुद से कहा | वो अपनी बातें मेरी बांह पर ऊँगली के सहारे बयाँ किया करती थी | उसके दोस्त, उसके खेल, उसके सपने और उसका वो बचपन का खिलौना | बहुत सारी बातें | मैंने उसके लिए एक साड़ी भी खरीदी थी | गुलाबी रंग की वो साड़ी जब वो ओढ़ कर आई तो बला की खूबसूरत लग रही थी | ऐसा हसीं सा पल था वो जिसके लिए मैं ताउम्र इंतज़ार कर सकता था | मैंने उससे पूछा, " इतनी अच्छी साड़ी बांधना तुमने सीखा किससे?" उसने लिखा, " मां से |" मैं बैग से कैमरा लेने अलमारी की तरफ बढ़ा और ठिठक गया | "माँ से? पर सारिका तो बचपन से अनाथ है | फिर ये माँ कहाँ से आई? और साथ ही बद्री ने तो अपनी बीवी को खुद ही मारा था वो भी चार साल पहले" और फिर वो हुआ मुझे जिसकी कतई कल्पना नहीं थी | बैग की एक जेब से मुझे एक मोबाइल मिला और डायल की लिस्ट में नाम था वीर सिंह | मेरी आँखों के आगे एक फिल्म सी घूम गई | होटल के दरवाजे पर मिला वो शख्स कैप्टेन वीर सिंह था, अब मुझे याद आ रहा था वीर सिंह के साथ मैंने ट्रेनिंग में 3 दिन बिठाये थे | पर वीर सिंह यहाँ कैसे? और इस कमरे में मौजूद इस मोबाइल में वीर सिंह का नाम | वीर सिंह ने ही बद्री की बेटी रीमा का एनकाउंटर किया था | इसका मतलब साफ़ था कि न तो रीमा मरी थी और न वीर सिंह ने उसका एनकाउंटर किया था । मैं पलटा और झटके में उसे रीमा बुला दिया और वो चौंक कर ऊपर देख बैठी | मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि करुणा शंकर कट चुके थे | एक्स रे की मिसाल पाने वाले करुणा बाबू ने एक नक्सली को भागने में मदद करी थी | मैंने उसी मोबाइल से अब्दुल को फोन लगाया | वो बदहवास सी बैठी हुई थी अब तक, मेरे एक हाथ में फोन था और एक हाथ में पिस्टल, अब्दुल का फोन बज रहा था तभी रीमा ने भागने की कोशिश की उधर अब्दुल का फोन उठा और इधर मेरे हाथ से ट्रिगर दब गया | "हेलो कौन है ? क्या हो रहा है वहाँ?" गोली की आवाज़ को पहचान गया था अब्दुल | "करुणा बोल रहा हूँ, मैंने रीमा को मार दिया है, बद्री की नक्सली बेटी रीमा को |" अब दोनों तरफ सन्नाटा था अजीब सा सन्नाटा | *** Download Our App Rate & Review Send Review Hitesh Devasthali 3 months ago Sharmila 4 months ago Shridhar Balla 6 months ago kishan parmar 6 months ago Shakti S Nahar 6 months ago More Interesting Options Short Stories Spiritual Stories Novel Episodes Motivational Stories Classic Stories Children Stories Humour stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Social Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews VIKAS BHANTI Follow Share You May Also Like लव कंसलटेंट सोनम by VIKAS BHANTI सुरसा आंटी by 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