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फेयरवेल पार्टी

फेयरवेल पार्टी

आर 0 के 0 लाल

बड़े भले आदमी थे, श्री दीना नाथ जी। सब उन्हें पंडित जी कहते थे। सीधा साधा जीवन एवं उच्च विचारों के प्रतीक माने जाते थे। उन्होंने हमारे दफ्तर में पूरे अड़तीस वर्षों की सेवा की थी। क्लास फोर से क्लास टू तक पहुंचे थे परंतु उनमें कोई घमंड नहीं था। उनकी फेयरवेल पार्टी में अच्छी खासी भीड़ थी। पंडित जी को पहली बार लगा था कि उन्हें कितना चाहते हैं उनके दफ्तर के लोग, अपने परिवार वालों से भी ज्यादा। यह सोच कर तो उनके आंसू ही बह निकले थे। फेयरवेल के मौके पर उनसे कुछ उपयोगी बातें बताने के लिए कहा गया जो जूनियर कर्मचारियों के काम आए।

ऐसे समय पर बोलना आसान नहीं होता फिर भी श्री दीना नाथ जी ने भरे गले से प्रवचन देना शुरू किया - “ प्यारे दोस्तों! मैंने जीवन में बहुत तरक्की की। एक नहीं, तीन बार प्रमोशन हुआ । आपकी नज़रों में भले ही सफल व्यक्ति रहा हूं परंतु कभी रात में अचानक नींद टूट जाती है तो घंटों अपने को कोसता हूं। मेरी शिक्षा ने मुझे भूखों मरने से बचा तो लिया पर हम कभी जीवन का भरपूर मजा नहीं ले पाए। आज के युग में जीने के लिए एक अलग प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए, क्योंकि जीवित रहना कोई मजाक नहीं है। स्कूलों में जीवन जीने की कला कहीं नहीं पढ़ाई जाती। इसलिए जीवन की समस्याओं से जूझते जूझते अक्सर सेहत खराब हो जाती है। अब तो बहुत से लोगों को फेयरवेल पार्टी नसीब ही नहीं होती पहले ही चल बसते हैं।

ज्ञान बघारना तो उनकी हमेशा से आदत रही है, इसलिए वे बोलते ही रहे - ”आप लोग अपने जीवन को इस तरह प्लान करें ताकि आपका स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन ना बिगड़े।” उन्होंने अपने अनुभव साझा करते बेवकूफ ना बनने की सलाह दी, जरुरी, जानकारियां एकत्रित करके उनसे लाभ उठाने, स्वास्थ्य एवं अपने अधिकार के प्रति सजग रहने, हमेशा सृजनात्मक बने रहने और विभिन्न परिस्थितियों में अलग अलग ट्रिक के साथ कार्य करने की बात पर जोर दिया, खासतौर से कार्यालय में इन बातों को जरूर अपनाएं। कहा-”जीवन की विभिन्न समस्याओं का नए तरीके से सामना करें। दुर्भाग्य की बात है कि अधिकांश लोग अपनी क्षमता का पूरा उपयोग नहीं करते। कार्य में आने वाली भावनात्मक एवं सांस्कृतिक बाधाओं को दूर कर अगर आप काम करेंगे तो निश्चित ही आपको अधिकतर समस्यायों का हल मिल जाएगा।” वैसे तो दफ्तर में सभी लोगों ने मुझसे जरूरत से ज्यादा काम लिया है उसकी वजह से मैं अपना व्यक्तिगत जिंदगी ठीक से नहीं जीत सका इसलिए आप सभी को कार्यालय के काम एवं अपने व्यक्तिगत कार्य के बीच एक संतुलन बनाने की आवश्यकता है।” अंत में दीनानाथ जी ने सभी व्यक्तियों का आभार व्यक्त किया और अपनी वाणी को विराम दिया।

मुझे लगा कि लोगों को कुछ समझ में नहीं आया फिर भी सभी ने तालियां बजाई और उन्हें भावभीनी विदाई दी और चंदे से मंगाए गए चाय समोसे एवम मिठाई का आनंद लिया। घर जाते समय रास्ते भर मैं सोचता रहा कि पंडित जी ने बातें तो सही कही थी। याद आया कि मुझे भी कई बार बेवकूफ बन कर आर्थिक हानि एवं मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है। कम पढ़े लिखे सब्जी वाले, फल वाले भी हमें चूना लगा देते हैं क्योंकि हम अपनी शान में कार में बैठे बैठे ही ऑर्डर करते हैं । बाद में लगता है कि अगर हम सजग होते तो हमारे साथ ऐसा ना होता। लोभ में आकर कई बार बचत एजेंट, लॉटरी आदि के चक्कर में फंस कर अपनी गाढ़ी कमाई भी गवांई है। आज भी इंटरनेट पर तरह-तरह के झांसा देने वाले विज्ञापनों के चक्कर में हम आते ही रहते हैं।

मैंने अनुभव किया है कि ऑफिस की कैंटीन में बैठने से काफी समझ आती है। उस दिन भी वहां कुछ लोग अपना रोना रो रहे थे। कोई कह रहा था कि इस बार उनकी कई कैजुअल लीव लैप्स हो गई है, तो किसी को जी पी एफ से अग्रिम देने से मना कर दिया गया है, किसी को जबरदस्ती मेमो पकड़ा दिया गया है और जवाब मांगा गया है। किसी का अभी तक इंक्रीमेंट नहीं लगा है तो किसी को जबरदस्ती क्रॉस लगा दिया जाता है। संजय जी बहुत दुखी थे क्योंकि उन्हें रोज डांट पड़ती है कि उन्हें कुछ नहीं आता जाता। कैंटीन में बैठकर चाय बिस्कुट खाते हुए अपनी अपनी बात सभी को समझाने का प्रयास कर रहे थे और अपने अपने अधिकारियों को भला बुरा कह रहे थे।

वहां बैठे राम दयाल जी यह सब सुन रहे थे वह भी बोल पड़े - “कल विदाई समारोह में पंडित जी की बात में दम था कि सही जानकारियां ना होने के कारण हमें अपना कार्य करने और कराने में परेशानी होती है। हम संविधान की बातें तो करते हैं लेकिन हमने कभी संविधान पढ़ा ही नहीं । हम इनकम टैक्स तो देते हैं लेकिन उसके नियमों की हमें सही जानकारी नहीं है । हमें अवकाश, वेतन निर्धारण, पेंशन,जीपीएफ आदि नियमों का कम ही ज्ञान है । हमें ऑन लाइन रेलवे टिकट बुकिंग, ऑनलाइन पेमेंट करना नहीं आता इसलिए हमें एजेंट्स का सहारा लेना पड़ता है अथवा दूसरे के आगे हाथ जोड़ना पड़ता है। फिर भी हमें सीखने में कोई खास दिलचस्पी नहीं होती परिणाम स्वरूप जो दे उसका भी भला जो न दे उसका भी भला कहावत पर सब्र करना पड़ता है।”

कैंटीन में बैठे बड़े बाबू ने तो सबको चुप ही करा दिया था। डांटते हुए बोले- “ मैं तो इसी महीने रिटायर हो रहा हूं, मेरी तो कट ही गई ना जाने आपका क्या होगा। आप लोग जीवन भर दूसरों की गलतियां ही निकालते रहेंगे या कुछ अपनी कमियो के बारे में भी सोचेंगे।” उन्होंने भी उपदेश दिया कि बहुत से कारणों से हम हमेशा तनाव में रहते हैं और दफ्तर तक का काम सही ढंग से नहीं कर पाते। अन्य जगहों पर हम अपना भी काम नहीं करा पाते। इसलिए नए तरीके से कार्य करने की कोशिश करनी चाहिए। काम के लिए दूसरों की तारीफ भी करनी चाहिए मगर झूठी तारीफ या चापलूसी नहीं। लोगों से हंस कर बातें करेंगे तो कोई अधिकारी आप का कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा फिर क्यों मुंह लटकाए रहते हैं। कभी-कभार गलती करना और डांट खाना तो सभी के लिए स्वभाविक है । उसे सॉरी कह कर भूल जाना चाहिए। आप लोग तो अपने ईगो में जीते हैं। गुरुजी कहते हैं कि सॉरी एक महा मंत्र है जो उबलते दूध पर ठंडे पानी का काम करता है।”

फिर वे बिना दक्षिणा लिए कुछ गुरुमंत्र भी दिए जिन्हें हर एक को अपने कार्यालय में प्रयोग करना चाहिए जैसे दफ्तर में आप अपनी नौकरी करें और दूसरे को उनकी नौकरी करने दें। ज्यादा मदद करने के चक्कर में आप फंस सकते हैं। हो सके तो न किसी को उधार दे और न किसी से उधार लें। सामाजिक जीवन में आगे बढ़ने के लिए जान पहचान बढ़ानी चाहिए और मित्र बनाना चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर वे आपके काम आ सकें परंतु मित्रता एक कला है जो सबके बस की बात नहीं है। घर में भी बीवी बच्चों को वक्त जरूर दें । उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाएं ताकि वे खुद कमाए और यह न सोचें कि उनके लिए उनका बाप धन, दौलत, मकान सब कुछ छोड़कर मरेगा।”

इन सब बातों से हमारी सेक्शन वाले सभी लोग बड़ा कंफ्यूज हो गए हैं किसी को कुछ समझ नहीं आता।

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