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दीप शिखा - 4

दीप शिखा

तमिल उपन्यास

लेखिका आर॰चुड़ामनी

हिन्दी मेँ अनुवाद

एस॰भाग्यम शर्मा

(4)

“मैं शादी नहीं करूंगी !” यामिनी चिल्लाई | कौन सी लड़की ऐसा नहीं कहती ? यह तो एक प्राकृतिक विरोध है, मन पर पर्दा डालने वाला, एक झूठ है, इसके लिए इतना सोचने की जरूरत नहीं | अचानक से इसके जीवन की दिशा बदल जाएगी नए-नए रिश्तों से जुड़ना पड़ेगा ऐसे में इसका यह सोच नए परिवेश में कैसे रहेगा ? मन हमेशा स्थिर नहीं होता| डर दूर होते ही रिश्ते की मिठास, उसकी पूर्णता को वह महसूस करेगी | ऐसा ही सोच पेरुंदेवी पति से कहने लगी “अभी ऐसे ही बोलेगी | कल ही शादी के बाद दो दिन आकर अपने साथ रहने को कहेंगे तो बोलेगी ‘वे ऐसा, वो वैसा बहाने बनाकर वहाँ से नहीं आएगी आप देखना |”

सिर में लगी कंघी को मेज पर रख यामिनी घबराई आवाज में बोली |

“अम्मा, मैं ऐसे ही नहीं बोल रही हूँ ! सुचमुच में ही कह रहीहूँ | शादी के बारे में सोचना ही मुझे पसंद नहीं, मुझे कुछ अजीब सा लगता है, मुझे मरने के लिए बोल रहे हो एेसा लगता है......”

“छिं छिं, ऐसे अपशकुन की बातें मत बोल | शादी नहीं करोगी तो क्या करोगी ?”

यामिनी को समझ नहीं आया क्या कहे | उस समय कोई अद्रश्य लक्ष्य जैसे उसे पुकार रहा था उस ही की आवाज उसका पीछा कर रही थी, वह गृहस्थ जीवन में प्रवेश नहीं चाहती थी | वह इसका स्पष्टीकरण न दे सकी | पर वह विद्रोह कर सकती थी | अपने पक्ष में वह किसी साथी को ढूंढ भी सकती थी |

उसका विरोध सिर्फ एक ख्याल ही नहीं था, उसकी बुद्धि विरोध के तरीके खोज रही थी | शादी का ख्याल ही उसे परेशान कर रहा था | भूख, नींद, प्यास आदि जो जरूरी है वह सब सुगमता से समझ और कर रही थी |

“बोल रे !”

“दूसरा कुछ और करना है तो इसके लिए मैं मना नहीं कर रही हूँ | पर मैं शादी नहीं करूंगी, ये ही बात है |”

“बहुत ही अच्छा है | कोई सुनेगा तो हँसेगा | छोटी उम्र से तेरी इच्छा के मुताबिक तुझे छोड़ दिया | लाड़ प्यार करने पर तुम स्वच्छंद हो जाओगी ऐसा नहीं सोचा था । कोई नहीं चाहिए, ऐसा सोच तुम अकेली शून्य में आकाश को देखते हुए बैठी रहती हो ना, इसे भी वैसा ही विषय समझ लिया क्या ?”

“तुम्हारी जो इच्छा हो कह लो अम्मा | पर मैं शादी नहीं करूंगी|”

“नहीं बोलोगी तो तुम्हें कौन छोड़ देगा ?”

“छोड़ना ही पड़ेगा | मुझे शादी नहीं करनी | मुझे बाध्य करने का तुम्हें अधिकार नहीं है |”

अठारह साल की युवा लड़की साधारण शरीर और सुंदर चेहरे वाली लड़की अचानक आँखों में एक भयंकर समुन्द्र जैसागहरा विचित्र सा भाव उसमें आ गया | उसकी दृष्टि को देख कर एक समझ न आने वाला भय पेरुंदेवी को डरा रहा था | उसे देख पेरुंदेवी थोड़ी देर मौन रह गई | पास में बैठे सारनाथन ने असमंजस में बेटी को देखा |

“इतने पक्के इरादे से बोल रही है ये लड़की ! तो हम कुछ दिनों तक अपने इरादे को टाल दें तो क्या है ?” सारनाथन अपनी पत्नी से बोले |

“दोबारा सोचने की कोई जरूरत नहीं | इसमें जिद्द ही ज्यादा है | जब काम अपने हाथ की मुट्ठी में है तब ही काम कर लेना चाहिए | ऐसे ही इस शादी को कर देना ही अच्छा है | इसके अलावा अन्ना (बड़ा भाई) भी जल्दी कर रहे हैं|” बोली पेरुंदेवी |

“मैं नहीं करूंगी, नहीं करूंगी, नहीं करूंगी !” यामिनी आवेश के साथ मेज पर दनादन हाथ से मुक्के मारने लगी | फिर, दुखी हो तेज स्वर में रोने लगी |

सँवारने के लिए खोले गए रेशमी घुँघराले बाल रोने के कारण, घुटने तक आ गए, उसने उसके चेहरे और पीठ को ढक लिया वह ऐसा लगा जैसे वह अंधेरे में डूब गई | सारनाथन जी को बहुत दया आई | “मत रो माँ (सभी को माँ बोलते है) यामिनी | सब कुछ सही हो जाएगा |” वे पास जाकर उसके सिर को सहलाने लगे |

बादल छंट गए जैसे यामिनी सिर को एकाएक झटकाकर दूर जा खड़ी हुई |

“छूओ मत अप्पा |”

फिकर से, तड़पते हुए माँ-बाप उसकी तरफ देखने लगे |

पेरुंदेवी के आँखों में एक योजना दिखाई दी | इसका स्वभाव तो बदला ही नहीं ! यामिनी जब छोटी सी लड़की थी तब एक समारोह के लिए घर में सब लोग इकट्ठा हुए थे | बच्चे व बच्चियाँ इकट्ठे हो खेल रहे थे | चौपड़, ताश, साँप-सीढ़ी, गेंद, छुपन-छुपाई खेलना शुरू किया तो बच्चे खूब शोर मचा रहे थे | बच्चे जहां भी जाते वहाँ तो खूब शोर-शराबा होता ही है | अचानक यामिनी अलग होकर अकेली आकर बैठी | थोड़ी देर के ही बाद छोटा रामेशन पेरुंदेवी के पास आया |

“अत्तैय यामिनी आधे खेल में ही आ गई, उसे दुबारा खेलने आने को बोलो ना........”

“क्यों आ गई ?”

“पता नहीं ! अचानक ‘मैं अब नहीं खेलूँगी’ बोल कर चली गई |”

“इस बेवकूफ को और क्या काम है ? एकांत एकांत जब देखो तब एकांत |”

बोलने पर रोमेशन के गाल में डिम्पल पड़ रहे थे ‘पर वह खेलने नहीं आ रही’|

“क्यों नहीं जा रही हो ?”

“मुझे पसंद नहीं”

“बहुत बड़ी हो गई हो, जो पसंद ना पसंद बोलने को | क्यों पसंद नहीं ? वही तो कम से कम बोलो तो |”

“छुपन-छुपाई के खेल में दूसरों को छूना पड़ता है अम्मा |”

“अरे पापी ! छूने से क्या ?”

“मुझे, पसंद नहीं | मुझे कोई छूए या मैं दूसरों को छूऊँ दोनों ही मुझे पसंद नहीं” पेरुंदेवी से हिला भी नहीं गया |

“ये कितनी पागल है ना अत्तैय (बुआ) ? आखिर में मुझे ही दौड़कर इसे पकड़ना था | मैंने उसके हाथ को छूआ भी नहीं था कि ये जोर की आवाज में चिल्लाई तुम्हें पता है ?” रामेशन ने शिकायत की |

“मैं तुम्हारे लिए ही सिर्फ नहीं बोली “बाबू ! (रामेशन का घर का नाम) मेरे पास जो भी आए मुझे पसंद नहीं, तुम नाराज मत हो? यामिनी ने उसे अपनी सफाई दी |

पेरुंदेवी का हृदय बर्फ सा जम गया | ये क्यों ऐसी है अपनी लाड़ली बेटी !

“तुम्हें इस तरह बातें नहीं करनी चाहिए यामिनी | बच्चे सब छूकर नहीं खेलते क्या ? उसमें क्या गलती है ?” वह एकदम तड़पती हुई बच्ची के समझ न आने वाली बात बोल रही है वह यह भी भूल गई और बोली “बाबू ने तुम्हारे हाथ को छुआ इसीलिए तुम आ गई ? कल वही तुमसे शादी करने वाला है, याद रखना |”

बच्ची का चेहरा एकदम से स्याह हो गया | शादी जैसे शब्दों को पूरी तरह समझने की उसकी उम्र नहीं है, फिर भी मारने से दुखेगा ऐसा सोच उसने कहालेकिन उसके शब्दोंने उसमें विरोध को जन्म दिया |

“ये सब कुछ नहीं | मैं शादी नहीं करूंगी | उस समय तो बच्चे की बात है अक्ल नहीं है अबोध है ऐसा सोच सकते हैं पर आगे जो वह बोली उसी ने माता को अधीर कर दिया | ‘मैं बहुत ज्यादा पढ़ने वाली हूँ, मैं अंबूलै जैसे नौकरी करने वाली हूँ’ ये साधारण बच्चों वाली बात तो नहीं बोली उसने | पेरुंदेवी कुछ नहीं बोली तो वह आगे बोली “मैं अकेले ही रहूँगी |”

उसके इस तरह के एकांत व अकेली रहने की बात को सुन कर सारनाथन आश्चर्य में पड़ गये | उसको समझना उन के लिए दूसरी भाषा के कागजों के पुलिंदों को खोल-खोल कर पढ़ने जैसा भ्रमित करने वाला होता |

एक बार जब वह पूर्ण युवती बनी तब की बात है |

वह हमेशा की तरह रात में बड़ी उदास और दुखी हो बैठी थी | उसी समय वे भी उसी को देखते हुए मौन होकर थोड़ी दूर पर बैठे थे |

रात, वह भी अंधेरी काली रात, उस अंधेरे को दूर करने की कोशिश में तारे जी जान लगा कर चमक रहे थे | हवा में एक खुशबू थी| रात की रानी के फूल अंधेरे में खुशबू फैला रहे थे या अंधेरा ही फूल बनकर खिला था ?

स्वयं की लिखी कुछ कविताओं को वह धीमी आवाज में पढ़ रही थी | पर उसके शब्द पता नहीं क्यों वहाँ फैले मौन को कम नहीं कर रहे थे | कविता तो मन के मौन से प्रकट होने वाला तत्व ही है क्या?

अकेले या एकांत में बड़बड़ाने का क्या अर्थ ? क्या ये सामान्य है ? उसकी कोई भी खास सहेली नहीं है वे जानते थे | कुछ सहेलियों थीं ऐसे ही, एक बार उसको कुछ जानने वाली सहेलियां घर आईं| दूसरे दिन सब साथ पिक्चर जाएंगे, ऐसा कह उन लोगों ने सिनेमा का टिकट भी ले लिया | यामिनी उस समय उन्हें रोक न पाई | दूसरे दिन सिनेमा जाने के समय सिर दर्द का बहाना कर घर पर ही सोई रही | उसने उन्हें अपना दोस्त नहीं समझा क्या ?

उसकी रुचि साहित्य पढ़ने में थी | वह रुचि उसने सारनाथन से ही विरासत में प्राप्त की थी| परन्तु परिवार, कुटुम्ब, प्रेम, प्यार वगैरह को लापरवाही से दूर छोड़ देती | उसका प्रेम रात के अंधेरे से ही है क्या?

उसका रंग काला था पर उसमें खूबसूरती की चमक थी ! कविता में जैसे वर्णन आता है वैसे चमकीली आँखें, भोहें जैसे तीर की कमान सी झुकी हुई, पनीली पतले-पतले होंठ, मुंह पर लावण्य, ऐसा लगता है जैसे सुंदरताकी कोई मूरत हो |

उस दिन तल्लीनता से अपने अप्पा से बातें करने लगी | माँ की ममता सारनाथन की आँखों में दिखाई दे रही थी, जो डर के कारण उस समय सूख गई थी जब वह पैदा हुई थी । तब उससे स्नेह न रखने वाले अप्पा समय के साथ-साथ उसके ऊपर स्नेह उड़ेलने लगे | वह भी दूसरों की अपेक्षा उनसे अधिक घनिष्टता का अनुभव करती थी |

“पूरी दुनिया को घूमकर देखकर आने की इच्छा होती है अप्पा ! संसार में जो कुछ है सबको जानने की इच्छा होती है | चन्द्र मण्डल, दूसरे ग्रहों को ही नहीं संसार के किसी कोनेको भी न छोड़ सभी जगह यात्रा कर देखने की इच्छा है |”

वे आश्चर्य चकित रह गए | संसार के प्रति बिना किसी अपनत्व के ये क्या इच्छा है ! न समझ में आने वाली ये क्या तड़प है ! समय आने पर शायद वह परिपक्व हो जीवन में रुचि लेगी क्या ?

उसका ऐसा सोचना उच्च स्तर के सोच का नतीजा है क्या ? पूरी दुनिया के लिए ही अपने को समर्पित करने वालों में ढूँढने से यही बात उनमें भी होती है क्या ? इसी कारण शादी करने से जीवन का विस्तार खत्म हो संकुचित हो जाएगा शायद यही सोच कर ही गृहस्थ जीवन नहीं चाहती है । उसके मना करने का यहीएक कारण है क्या ? किसी के साथ रहने की इच्छा ही नहीं है, मनुष्यगत स्नेह, प्रेम आदि को बांटना ही नहीं चाहती और इन सबसे दूर रहना चाहती है ऐसा भी हो सकता है ? गृहस्थ जीवन साथ रहने का है और ये तो अकेले अंधेरे को देख कर रहना चाहती है इसीलिए जिद्द कर रहीहै ? गृहस्थ जीवन में आने से डर रही है या ये सिर्फ उसका बचपना ही है ? ‘सेक्स’ से डरना आदि तो नहीं ? ऐसी अनेकों बातों को सोच-सोच कर वे डर रहे थे वह शादी करने से क्यों डर रहीहै ?

कुछ भी हो असाधारणरूप से वह विचित्र है इसमें कोई संदेह नहीं | उनका मन बहुत असमंजस में रहा | फिर भी पेरुंदेवी के पक्ष को छोड़ नहीं सकते | यामिनी को अकेले रहते हुए एकांत की आदत ही पड़ गई हो ऐसा भी हो तो सकता है? यदि ऐसा हो तो समय के साथ वह ठीक हो जाएगा | ऐसे कई बातों को सोचते हुए उन्होंने सोचा लड़की की शादी बिना किए कैसे रहें ?

शादी की तैयारियां शुरू हो गई |

शादी के मुहूर्त के चार दिन पहले यामिनी घर पर नहीं मिली | परेशान माँ-बाप, दूसरे लोग पूरे शहर में ढूँढने लगे | पुलिस को सूचित किया गया | सारनाथन जी के मन में तरह-तरह के विचार आने से वह परेशान हुए | पेरुंदेवी भी असमंजस में थी | पापी, लड़की इस तरह परिवार को अपमानित करने के लिए कैसे ठान ली, ?

दूसरे दिन रात को यामिनी एरुम्बूर स्टेशन पर रेल में चढ़ने वाली थी तो पुलिस ने आगे होकर पकड़ लिया |

किसी तरह लड़की को ढूंढ कर पकड़ कर लाए तो पेरुंदेवी को तसल्ली हुई तो भी, यामिनी के जोर जोर सेचीखने चिल्लाने से उसे बहुत गुस्सा आया |

“नहीं, मैं शादी नहीं करूंगी, मुझे अच्छा नहीं लगता, मुझे छोड़ दो, मुझे छोड़ दो.......”

“मुंह बंद रख, तेरा जिद्दीपन ज्यादा ही हो गया है| अबकी बार बोलेगी तो मैं तेरे जीभ को जला दूँगी | गधी कहीं की !”

“अम्मा, मुझे शादी नहीं करनी, मैं नहीं करूंगी, मुझे पसंद नहीं..... अप्पा इसे रोक दो, आप तो...... मेरे लिए शादी रोक दो अप्पा.......अप्पा |”

तड़पी, लड़ाई करी, चिल्लाई, उछली ये सब सारनाथन सहन न कर पाये | “वह इतना शादी का विरोध कर रही है ! हम गलती तो नहीं कर रहे ? इस शादी की तैयारी को रोक दें क्या ? इसकी उम्र भी ज्यादा नहीं हुई | अठारह ही तो है | कुछ साल बाद देखेंगे !” उनके कहते ही पेरुंदेवी ने विरोध किया |

“बहुत अच्छी है आपकी बातें | ये सब साधारण सी बातें है | कितनी ही लड़कियां पहले शादी के लिए मना कर तूफान खड़ा करती हैं फिर पति के साथ खुशी से रहती हैं ! जो शर्मीली लड़कियां होती हैं वे शादी बोलते ही ‘हाँ’ कह कर मुँह थोड़ी ना फाड़ती है ? अभी ऐसा ही रहेगा | गले में तीन गांठ (पीले मंगल सूत्र मोटी रस्सी जिसमें पति तीन गांठ लगाता है) पड़ जाए सब ठीक हो जाएगा | पहले से ही इतना अपमानित हो रहे हैं | मेरा भाई है इसलिए कुछ नहीं कह रहा है | इस समय आप शादी को टाल देंगे तो हम फिर पूरी उम्र सिर नहीं उठा सकते |”

वह बिदकी, दूसरे दिन भी लड़ी | बहुत रोई गिडगिड़ाई | इसी सबके बीच उसका श्रृंगारभी हुआ | आँखों में काजल डाला, तो वह बह कर निकल गया | पूरा श्रृंगार किया | कपड़े दो लड़कियों ने मिलकर बदले | सारे आभूषण पहनाए | बालों को संवार कर चोटी बनाई | चोटी को केवड़े के फूलों से सजाया, रात को दिन बनाने के कितने प्रयत्न करने पड़े | हाथों में मेहँदी लगाई तो ऐसा लगा काले सौंदर्य में आग लग गई हो|

उसकी आँखों में संवेदनाए ही खत्म हो गई | हृदय की धड़कन धीमी हो गई | आँसू से भीगी आँखों के साथ ही गर्दन में मंगल सूत्र भी पहना दिया गया।

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