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फिल्म रिव्यू ड्रीम गर्ल

एक दौर था जब फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाले अभिनेता की एंट्री धमाकेदार हो तो फिल्म सुपरहिट हो मानी जाती थी। फिल्म को कहानी भले ही घिसी पिटी क्यूं ना हो . पर बन दौर बदल रहा है और लोगो की पसंद भी। अब लोगो को फिल्म में चाहे कोई भी अभिनेता हो बस उन्हें दमदार कहानी और अभिनय से मतलब है।
राज शांडिल्य का नाम तो आप सबने सुना होगा, आरे वही जिसने कृष्णा और कपिल शर्मा को इस मुकाम तक पहुंचाया है । उनके नाम लगभग 600 स्क्रिप्ट लिखने का रिकॉर्ड है। राज शांडिल्य कॉमेडी सर्कस के स्क्रिप्ट लिखने के दौरान ही दर्शक की पसंद भांप लिए होंगे की लोगो को कौनसी केरेक्टर ज्यादा हंसा पाती है , औरत के रूप में औरत की आवाज या साड़ी पहने मर्द में औरत की आवाज।
तो अब बात करते हैं फिल्म की, नाम है ड्रीम गर्ल, जिसे निर्देशक हैं राज शांडिल्य और मुख्या भूमिका में आयुष्मान खुराना व नुसरत भारूचा है, दूसरे भूमिकाओं की बात करें तो अनु कपूर , मनजोत सिंह, विजय राज, अभिषेक बनर्जी और निधि बिष्ट हैं।
यहां आयुष्मान खुराना की बात किया जाए तो उन्होंने जितनी भी फिल्म की है अपने आप में एक रिस्क है, चाहे ओ विकी डोनर में एक स्पर्म डोनर की बात हो या शुभमंगल सावधान में गुप्त रोग से ग्रसित कि कहानी , और अब ड्रीम गर्ल में चोरी छुपे लड़की की आवाज में बात करने वाला अभिनय। सभी फिल्मों में उनके अभिनय में कोई दो मत नहीं है कि लाजवाब थी।
कहानी है करमवीर सिंह( आयुष्मान खुराना ) की जो पढ़ा लिखा बेरोजगार है और उसके पापा जगजीत सिंह ( अनु कपूर ) की एक दुकान है और वो पूरी तरह कर्जे में डूबे हुए हैं। कई बैंकों से वो उधार के चुके है और बैंक वाले कभी भी उनका घर और दुकान सिल करवा सकते है । करम की एक खास बात यह है कि उसे बचपन से ही मथुरा वाले सीता मां के नाम से पहचानते हैं क्यूंकि वो मौहल्ले में रामनवमी के अवसर पर होने वाले नाटक में सीता का रोल करता है, जिसके बदले उस कुछ पैसे भी मिल जाते है और ये बात हमेशा से ही जगजीत की को खटकती है। वो चाहते हैं कि उनका बेटा कहीं और कोई इज्जत वाली नौकरी करे। बाप के तानों से परेशान और घर की हालत देखते हुए सबसे छुप कर मजबूरन छोटू ( राजेश शर्मा ) के यहां कॉल सेंटर में नौकरी करने लगता है। ये बात वो मंगेतर माही ( नुसरत भरूचा ) और जिगरी यार स्माइली ( मनजोत सिंह ) को भी नहीं बताता। कहानी ठीक चल रही होती है कि तभी पूजा ( लड़की की आवाज में बात करने वाला करम ) जिन जिन लोगो से बात करती है उन्हें पूजा से असल में प्यार हो जाता है, समस्या खड़ी होने शुरू होती है।
रिव्यू - कहानी अच्छी है स्वांद भी हंसी से लोट पोट करने वाली, पर लगता है राज साहब को फिल्म खत्म करने की जल्दी थी, इसलिए तो करम और माही की प्रेम कहानी उन्होंने पनपने है नहीं दिया और सगाई करवा दिया,। इंटरवल से पहले की कहानी थोड़ी धीमी है और जब तक अपनी रफ्तार पकड़ती है फिल्म ही खत्म हो जाती है।
अंत में फिल्म के द्वारा एक संदेश भी दिया गया है पर कहीं ना कहीं उस संदेश को भी कहानी में आलू गोभी की तरह भुनाया गया है। एक तरफ तो किसी लड़की को उसके प्रोफेशनल लाइफ से जज ना करने का संदेश दिया गया है तो दूसरी तरफ पूजा को कहीं कहीं एक लूज केरेक्टर करार किया गया है।
इसमें कोई शक नहीं की जितने भी अभिनेता और अभिनेत्री हैं फिल्म में किसी कि भी अभिनय कमजोर हो। जिसका जितना स्क्रीन मिला उन्होंने अपना बेहतर दिया है, चाहे वो जगजीत सिंह से बने शायर अनु कपूर हो पुलिस बने विजय राज की।
मेरे तरफ से 3 स्टार्स।