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फिल्म रिव्यू ‘भूत- पार्ट वनः द हॉन्टेड शिप’- बॉक्सऑफिस पे ये शिप तैरेगी या डूब जाएगी..?

दुनिया के किसी भी देश में होरर जोनर को ज्यादा उत्त्म दरज्जा कभी माना नहीं गया, फिर चाहे वो फिल्में हो या किताबें. इस जोनर के सिनेमा एवं साहित्य को कोई सिरियस लेता ही नहीं हैं. लोगों को ये गलतफहेमी है की होरर लिखना या बनाना आसान होता है, बस कुछ गिने-चुने फोर्म्युला डाल दो, धमाकेदार बेकग्राउन्ड म्युजिक बजा दो, हिरोइन को इधर-उधर भगा दो और हो गई होरर की रेसिपी तैयार… लेकिन एसा बिलकुल भी नहीं है. होरर फिल्म बनाना कोई मूंगफली छीलने जितना इजी काम नहीं है, और करन जोहर निर्मित बोलिवुड की लेटेस्ट होरर फिल्म ‘भूत- पार्ट वनः द हॉन्टेड शिप’ देखकर फिर से एक बार साबित हो गया है की बाकई में एक अच्छी होरर फिल्म बनाना आसान नहीं है.

‘भूत’ की कहानी सत्य घटना पर आधारित है. साल 2011 में 9000 टन वजन का एक कार्गो शिप मुंबई के जूहु बीच पर आके रेत में धंस गया था. एम.वी. विजडम नाम के उस शिप को श्रीलंका के कोलंबो से गुजरात के अलंग शिप-ब्रेकिंग यार्ड में ले जाया जा रहा था. समंदर के बीच उसके टोइंग रस्से तूट जाने की वजह से वो शिप मुंबई आ गया था. (अब एसी घटना में किसी भूत का हाथ, पैर या सर होने की गुंजाईश हो ही एसा मानने की जरूरत नहीं है क्योंकी एसे को-इन्सिडन्स होते रहेते है. सेम घटना गुजरात के वलसाड में भी डॅढ-दो साल पहेले घटी थीं जब एक बहोत ही बडा ‘आवारा’ जहाज बिना किसी क्रू मेम्बर के दांडी के किनारे आके फंस गया था.) एम.वी. विजडम हॉन्टेड था या नहीं, ये तो पता नहीं लेकिन फिल्म ‘भूत’ का जो शिप है वो पक्का हॉन्टेड है.

तो भई, जुहू बीच पर सुस्ताने या डराने के लिए आए 200 मीटर लंबे, 10 माले जितने उंचे शिप पर एक भी कर्मचारी नहीं है. तो शिपिंग कंपनी में काम करनेवाले कर्मचारी पृथ्वी (विकी कौशल) अपना मर्दाना कौशल दिखाने के लिए शिप पर पहुंच जाते हैं. अपने भूतकाल के ट्रोमा से जूज रहे पृथ्वी को शिप पर कुछ एसी चीजें दिखाई देतीं हैं जो एक आम आदमी की सेहत के लिए ठीक नहीं होती. लेकिन भैया, ये तो हैं अपने बोलिवुड के हिरो, इन्हें तो किडा होता हैं हर एक चीज में उंगली करने का, तो ये पीछे कैसे रहे. वो तो ले लेते हैं पंगा भूत से, और फिर… फिर क्या होता है? फिर वो ही होता है जो एक आम, एवरेज हिन्दी होरर फिल्म में होता है…

‘भूत’ का बेकड्रोप बढिया है. होरर फिल्म में जो होने चाहिए वो टेक्निकल एलिमेन्ट्स सटिक हैं. भूतिया शिप का सेट, कमाल की सिनेमेटोग्राफी, दिलधडक बेकग्राउन्ड म्युजिक,… दर्शक वाकई में डर जाए, चौंक जाए एसे 7-8 सीन भी हैं. चुटकी बजाकर आनेवाला भूत सच में डराता है. लेकिन इतना काफी नहीं हैं. काफी होता अगर स्क्रिप्ट भी बजबूत होतीं. फर्स्ट हाफ अच्छा है, लेकिन सेकन्ड हाफ में जब कहानी उसी घिसेपिटे फोर्म्युला ट्रेक पर चलने लगती है तब बोरियत महेसूस होने लगती है. दर्शकों को डराने के लिए वो ही चौंचले इस्तेमाल किए गये हैं जो हम सालों से देखते आए हैं. मिरर में दिखता भूत, मेइन लीड के पीछे से सरकता भूत, जूनी-पुरानी कपडे की गुडिया, बिस्तर के नीचे भूत, हाथ हिलाकर लोगों को हवा में फेंकनेवाला भूत… क्या यार, बस भी करो. कुछ नया करो. यहां तक की भूत का गेटअप भी जापानी क्लासिक होरर ‘द रिंग’ से चुराया हुआ है. वो फिल्म इन्टरनेशनल ब्लॉकबस्टर क्या हो गई, सब वैसी ही भूतनी दिखा दिखा कर डराने में लगे पडे हैं. पुराने सफेद पेटिकोट में लिपटा सडा-गला शरीर, चहेरे को ढंकते गिले बाल और कडकडाती हड्डीयां… इससे अलग भूत का कोई लूक हो ही नहीं सकता क्या..?

फिल्म की तकरिबन हर एक फ्रेम में विकी कौशल दिखते हैं. उनका काम अच्छा है. छोटे से रोल में भूमि पेंडनेकर भी अच्छी लगीं. आशुतोष राणा वो ही तोटके आजमानेवाले भूत-भगाउ बाबा बने हैं जो वो ‘राज’ में बने थे. इतने अच्छे एक्टर के ये दुर्दशा..! बाकी के कलाकार बस ठीक ही हैं. निर्देशक भानु प्रताप सिंग का काम ओके-टाइप है. उन्हीं की लिखी कहानी इतनी कमजोर और रिपिटेशन से भरी पडी है की महज दो घंटे की फिल्म भी लंबी लगती है. थोडा-बहोत डराने में वो सफल रहे हैं, लेकिन फिल्म ओवरऑल कोई खास असर नहीं छोड पाती. VFX अच्छे हैं, बहेतर हो सकते थे. फिल्म का क्लायमेक्स निहायती वाहियात है. ‘भूत’ का सब से कमजोर पक्ष इसका एन्डिंग ही है. फिल्म में केवल एक गाना है, जिसके होने ना-होने से कोई फर्क नहीं पडता. भानु प्रतापजी, आप से नम्र निवेदन है की ‘पार्ट वन’ बना दिया तो बना दिया, ‘पार्ट टु’ बना के दर्शकों के मथ्थे मारने की गुस्ताखी मत किजिएगा.

कुल मिलाकर देखें तो इस ‘भूत- पार्ट वनः द हॉन्टेड शिप’ का बॉक्सऑफिस पर डूबना तय है. विकी कौशल के डाय हार्ड फैन भी निराश ही होंगे. 5 में से 2.5 स्टार्स. बोलिवुडवालों अगर ‘तुंबाड’ जैसा कुछ नया होरर बना सकते हो तो बनाओ, वर्ना इस जोनर को छूओ ही मत.