Ek aur kissa Nirbhaya nahi Koi aur dikhta books and stories free download online pdf in Hindi

एक और किस्सा निर्भया नहीं और दिखता

भाभी 10:00 बज रहे हैं होली के दिन है क्या मुझे कोई घर छोड़ देगा l
दीप्ति " भैया को आने दे"
काजल " भाभी आप छोड़ आओ "
"होली का महोत्सव हो रहा है हमारी गली में l आपको तो पता है लोग कैसी-कैसी नजरों से देखते हैं l पिछले वर्ष ऐसे ही एक लड़की को कमरे में बंद करके....."
दीप्ति " अच्छा अब बस कर और चुप हो जाओ , देव नीचे आओ चलो काजल दीदी को घर छोड़ने चले "
देव " ठीक है मां क्या पैदल जाना है ?"
दीप्ति " हां बेटा गाड़ी नहीं है"

. होली की चहल-पहल चारों ओर थी , बाजारों में पिचकारी रंग लगे हुए थे l देव दीप्ति और काजल चल पड़े l हवा के थपेड़ों से दीप्ति का आंचल कभी इधर गिरे कभी उधर गिरे l
देव " मां अपना दुपट्टा संभालो , आपकी कमीज भी उड़ रही है"
दीप्ति " बेटा मैं 40 साल की हूं कोई बच्ची तो नहीं
कोई बात ही नहीं चल तू मेरे साथ है l "⁷
देव " मां तुम लगती नहीं ना 40 की , मेरे से भी छोटी लगती हो 15 साल की "
दीप्ति " चल छोड़ झूठे , चलो काजल ,देव पैर जल्दी चलाओ
इसको छोड़ घर भी तो जाना हैl "
धीमी धीमी हवा चल रही थी , आसमान में घनघोर घटाएं फैली हुई थी , गजब दृश्य था सूखे पत्ते इधर-उधर दौड़ रहे थे l
देव " काजल दीदी आपका घर कहां है ? किस नुक्कड़ तक मुझे लेकर जाना है आपने l
काजल " देश भैया आ गया घर मेरा , धन्यवाद भैया धन्यवाद भाभी चलो आप कल मिलते हैं ,"
दीप्ति " काजल कल ठीक समय पर आई सुबह मुझे बहुत काम होता है और कल अल्फाजों के रंग मे भी मुझे भाग लेना है "
देव " चलो मां चले अब बहुत ठंड लग रही है "
राह में दीप्ति का आंचल उड़ रहा था , उधर से एक बाइक आती है और दीप्ति की चुन्नी को उठाकर हवा में फेंक देते हैं l
बाइक दीप्ति और देर का आगे पीछे घूमती जाती है l दीप्ति देव को का हाथ पकड़ खड़ी हो जाती है l
देव " मां घबराओ मत मैं हूं ना "
दीप्ति " कोई बात नहीं बेटा मैं सब संभाल लेती हूं "
देव ने लाठी पकड़ी और बाइक को गिरा दिया l
देव "तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी मां को छूने की "
बाइक सवार " अभी तक तो छुआ नहीं था अब तो उड़ा कर देखे जाएंगे इसको "
देव " तेरी हिम्मत कैसे हुई "
देव सिर्फ 15 साल का लड़का था , उसने अपनी सारी हिम्मत जुटा उन बाइक सवारों को ललकारा और मारना शुरू किया l
दीप्ति ने कोलाहल मचाया और आसपास के बस्ती वालों को बुलाया l उसी वक्त एक बाइक सवार ने चाकू निकाल देव को मारा , देश के कांधे पर चाकू का निशान देख दीप्ति जोर से चिल्लाई " बेटे "
अब दीप्ति का कलेजा आग से धड़क उठा , उसके बेटे को कोई छुए भी तो उसका कलेजा फट जाता था तो आज किसी ने उसे चाकू मारा , अब उसका काली का रूप सामने आया l झांसी की रानी की तरह वह लड़ने को तैयार हो गई l
दीप्ति काली की तरह उन पर सवार हो गई , और उनके ही हथियार से चाकू से उनको मारने लगी उसी वक्त बस्ती के लोग आ गए और दीप्ति को रोक लिया ll
पुलिस और एंबुलेंस दोनों वहां आ गई और उन गुंडों को पुलिस थाने ले गई l
आकाश में घनघोर घटाएं छा गई घमासान वर्षा हो उठी l ऐसा प्रतीत हो रहा था की भगवान भी इंसान से रुष्ट हो l दीप्ति का काजल फैल चुका था , वह अपने बेटे की बांह पकड़ तिलमिला रो रही थी डॉक्टरों से पूछ रही थी कब तक वह ठीक होगा

बसती के लोगों की प्रतिक्रिाएं भी अलग अलग थी कुछ लोग मदद कर रहे थे तो कुछ औरत के कपड़ों पर सवाल कर रहे थे

पुलिस भले ही उन गुंडों को ले गई लेकिन सवाल यही था कि क्या दो लोगो को जेल में डालने से समस्या समाप्त हो जाती है

वो कौन थे जो राह चलती औरत के दामन पर हाथ डाल कर चले गए ?
क्या औरत का सम्मान इतना ही है लोगो की नज़रों में ??
दीप्ति अपने साथ हुई वारदात से घबरा चुकी थी उसने देव को शहर से दूर भेज दिया अपने से दूर शायद दीप्ति को लगता था अब ये शहर सुरक्षित नहीं रहा लेकिन क्या यह समस्या का समाधान था ??
सवाल तो कड़ा है लेकिन समस्या का हल किसे जानना है हमे बस खुद को सुरक्षित रखना है शायद!!

प्राचीन काल से ऐसी अवधारणा हमने ही तो पुरुष में डाली है वह सब कुछ कर सकता है लेकिन औरत के लिए बंदिशे है
औरत जो कि शक्ति का रूप है
औरत जो जन्म देती है
औरत जो जिंदगी भर किसी ना किसी की सेवा में लीन है
औरत जो जिस घर में पैदा हुई उसका पराया धन और जिस पराए घर में जाती है उसे अपना बना लेती है फिर भी पीड़ित औरत ही है
रोज़ हिंसा का शिकार है
कभी समाज की नज़रों से
कभी रास्ते में बदमाशों से
कभी पति के हाथो से

हिंसा जो रोज़ घटती है
हिंसा जिसका शिकार दीप्ति हुई उसका बेटा देव हुआ हिंसा जो आज तक औरत के साथ काल की तरह उसका पीछा नहीं छोड़ रही