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अपराध

सुनसान सड़क दूर-दूर तक फैला अंधेरा , कटीली झाड़ियां और ऊंचे-ऊंचे पेड़। चोर-डाकूऔ के लिए तो यह बेहद ही उपयुक्त स्थान है। लेकिन यहां दूर-दूर तक कोई गांव नहीं, सिर्फ आती हुई और जाती हुई सड़क है और उस पर दौड़ती हुई गाड़ियां, वह भी कभी-कभार। कोई अकेला व्यक्ति इस सड़क पर फस जाए तो उसका डरना स्वाभाविक है। यहां से जब गाड़ियां निकलती है तो सांय...सांय.....की आवाज करते हुए निकलती है।
आज पता नहीं यह कार कहां-से आ धमकी! अपनी चरम गति से जा रही थी, कि अचानक रुक गई, सामने से कोई जानवर रास्ता काट गया। इतनी तेजी से निकला कि दिखाई नहीं दिया।
गाड़ी से कुछ देर घर्रररर..घर्रररर ...की आवाज आती है, और फिर अचानक गाड़ी बंद पड़ जाती है। चालक के बार-बार कोशिश करने पर भी गाड़ी स्टार्ट नहीं होती है। वो गुस्से में , जोर से , स्टेरिंग पर हाथ मारता है, और गाड़ी से बाहर निकल आता है। और बाहर निकल कर भी गाड़ी के टॉप पर जोर से मुक्के से प्रहार करता है। गाड़ी से ठप्प् ........! की आवाज आती है।
वह इधर-उधर टहलने लगता है और कुछ सोच ही रहा होता है, कि अचानक....! किसी के बड़-बडा़ने की आवाज आती है! गिड-़गिड़ाने की आवाज आती है..!
कोई कुछ बक रहा था, कुछ बोल रहा था। कुछ ऐसे शब्द , जिन्हें धीरज ने पहले भी सुन रखा था।
लेकिन यह शब्द अस्पष्ट थे इसी कारण, उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। वह उन शब्दों को सुनने की कोशिश करता है। और अपने कानों को झाड़ियों की तरफ घुमा कर, अपने होठों पर उंगलियां फेरते हुए, कुछ सोच ही रहा होता है,
कि अचानक... वह आवाज़ शनै शनै रोने लगती है। गिड़-गिडा़ती हुई आवाज अब रोती हुई आवाज में तब्दील हो जाती है ।

रोने की आवाज में इतना दर्द था, इतनी करुणा थी , कि उसके होश उड़ गए। यह आवाज उसने पहले भी सुनी थी। इस रोती हुई आवाज़ को उसने पहले भी सुना था, लेकिन उस दिन उसने इस आवाज को अनदेखा कर दिया था, उस दिन इसका कलेजा नहीं पशीचा था। बेरहमी, हैवानियत और हवस ने इसे अंधा कर दिया था।
लेकिन आज वह आवाज साफ सुनाई दे रही थी। धीरज काप रहा था, शरीर थर-थरा रहा था। वह डरते हुए उन झाड़ियों की ओर आगे बढ़ता है, लेकिन अचानक....!
फिर आवाज में ओर एक बार तब्दीली होती है। और अब, वह आवाज जोर-जोर से हंसने लगती है,ऐसा जान पड़ता हैं कोई हंसता है, फिर रोता है।

हंसी भी बड़ी विचित्र थी, जैसे कोई मर गया हो, और उसके वियोग में पागल कोई हंस रहा हो। धीरज थोड़ा भी धीरज नहीं धर पाया और वहां से भागा। हड़-बढ़ाते हुए तेजी से गाड़ी का दरवाजा खोलता है और अपने-आपको अन्दर बन्द कर लेता है।
वह अधमरा सा हो गया था, उसका रोम रोम कांप रहा था। आंखों पर फफूंद नुमा आवरण बन चुके थे और हाथ कांप रहे थे। वह घबराते हुए गाड़ी को चालू करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन गाड़ी में कोई हलचल नहीं।
लेकिन अचानक फिर गाड़ी घर्रररर...घर्रररर... की आवाज करती है और चालू हो जाती है। वो कुछ संभलता है, उसकी जान में जान आ जाती है। वह एक अद्भुत-सी हंसी हंसता है, जैसे कोई काल के मुंह से बचके हंस रहा हो। लेकिन फिर अचानक गाड़ी बंद हो जाती है।

वह डरा और सहमा-सा गाड़ी में बैठा हुआ है। इधर उधर चोरी-चोरी नजरें घुमाकर देखने की कोशिश करता है लेकिन उसे कुछ दिखाई नहीं देता है। गाड़ी की हेडलाइट अपने-आप, अचानक... बंद-चालू , बंद-चालू होने लगती है, और बंद हो जाती है। वह सामने सीधी जाती हुई सड़क पर आगे की ओर देखता है, कुछ दिखाई देता है और फिर भी लुप्त हो जाता है। वह दृश्य बेहद ही ज्यादा डरावना था। अब वह इतना डर चुका है कि अगर कोई उसे थोड़ा सा स्पर्श भी करें तो वो वही मर जाए।

सन्नाटा ओर गहरी नींद ले लेता है। कुछ देर पहले कीट-पतंगों और छिपकलियों की आवाजे आ रही थी। लेकिन अब तो वह भी बंद हो चुकी है।
अचानक फिर कुछ हलचल होती है। वह अपनी नजर उठाकर गाड़ी के फ्रंट कांच से, सीधी जाती हुई सड़क की ओर देखता है। जहां अभी-अभी कुछ देर पहले उसे कोई प्रतिबिंब दिखाई दिया था। घन-घोर अंधेरी रात ऐसी प्रतीत होती है जैसे उसे आज निगल जाएगी। अंधेरा उसकी ओर बढ़ रहा है, उसे ग्रास बनाने के लिए।
अचानक....फिर उसे वही परछाई दिखाई देती है, उसकी ओर आगे बढ़ती हुई। इस घनघोर काले अंधेरे में इंसान को इंसान ना दिखाई दे, लेकिन फिर भी उसे वह साफ दिखाई दे रही थी। भद्दी और कुचली हुई, नीली-नीली आंखें, लाल-लाल होंठ जो नाक से दाईं तरफ खिसके हुए थे। पूरा शरीर झूल रहा था। ऐसा जेसे कीचड़.....!

बिना हड्डी की कोई देह जान पड़ रही थी। वह लड़खड़ाते हुए उसकी ओर आगे बढ़ रही थी। साफ-साफ कहूं तो यह लड़की नहीं थी, कोई गुड़िया थी। इसके ऊपर जैसे शरीर के अंगों को, तितर-बितर लगाया गया हो। वह धीरज की ओर आगे बढ़ने लगी। धीरज डर के मारे कांप रहा था। धीरज की आंखें बाहर निकली हुई थी ,कान सुन्न पड़ गए थे और गाड़ी की सीट पानी-पानी हो रही थी।
वह इस गुड़िया को पहचान चुका था, यह उसी की गुड़िया थी। जिसे उसने सफर के दौरान खरीदा था। यह वही गुड़िया थी, जिसके जरिए उसने एक मासूम सी बच्ची को बहलाया था, और फिर उसे जबरन अपनी कार में दबोच कर अपने साथ ले आया था। वह कितना चीखी....चिल्लाई थी मुझे छोड़ दो, मुझे जाने दो। लेकिन इसने उसकी मासूम सी शक्ल को एक दफा भी ना देखा। ना सोचा! ना समझा! बस....! अपनी हवस के आगोश में आकर अपराध-बोध का सूचक बन गया। वह अपराध कर बैठा जिसकी सजा दुनिया में ,है ही नहीं। जिसकी सजा ना आत्मा दे सकती है ना परमात्मा, और कानून तो कतई नहीं।
अपनी हवस को पूरा करने के लिए उसने एक मासूम से अधखिले फूल को कुचल दिया था। अपनी हवस,अपनी वासना के नीचे रौंद दिया था। इन्हीं निर्दई हाथों से उसके कोमल शरीर को छलनी कर दिया,और फेक आया उसी बीहड़ जंगल में , जहाँ वह जंगली जानवरों का ग्रास बन गई।

गुड़िया पर तितर-बितर चिपके हुए यह अंग उसी लड़की के हैं। वही खून से लथपथ कपड़े , वही नाक, नक्श। वह गुड़िया उसी का साक्षात रुप थी। धीरे-धीरे उसकी और बढ़ती है और फिर.......

अचानक एक छलांग लगाती है और गाड़ी के फ्रंट कांच पर चिपक जाती है। धीरज जोर-जोर से चिल्ला रहा था।गिड़गिड़ा रहा था कांप रहा था लेकिन आवाज निकलने का नाम नहीं ले रही थी। धीरज की घिग्घी बन्द गई थी। गुड़िया ने अपनी गर्दन को चटकाते हुए उसकी ओर देखा, और एक घिनौनी वाहियाद मुस्कुराहट से उसके प्राण निकाल दिए।

धीरज के शरीर से प्राण निकल चुके थे वह मर चुका था। उसका पार्थिव शरीर बिस्तर पर पढ़ा हुआ था। उसने जो कुकर्म किया था उसकी सजा उसे मिल चुकी थी........
शायद.....!
हम बुरे सपने देखते हैं, तो हमारा शरीर हमें जगा देता है लेकिन उसका शरीर उसका साथ छोड़ चुका था। उसकी आत्मा ने उसके प्राण हर लिए। आत्मा से बड़ी परमात्मा होती है, उसी आत्मा ने परमात्मा के आदेश अनुसार, एक सपने का स्वांग रच धीरज को उसके अपराध की सजा दे दी। लेकिन यह सजा उसके लिए काफी नहीं ..
.......सजा ?