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मौसम चुनाव का

राजनीति अब काली कोठरी है। सत्ता सुख आज परम सुख माना जा रहा है। राजनीति में शरण लेना हमेशा मुनाफा का ज़रिया है आज का दिन में। राजनीति में शरण लेने का आनंद मानो स्वर्ग में अपसरा मिल गई हो और राजनीति के स्वर्ग की अपसरा को हासिल करना बिना राजनाति के काल कोठरी में घुसे संभव नही है। तिगड़मबाज़ी, झुठावादा, जाति, वंशवाद से राजनीति का घिनौना खेल चल रहा है। इनके वादे रुपी नदी के जल में जनता डूब रही है पर जनता की प्यास नहीं बुझती। कुंभकरण को सोने के अलावा कुछ दिखता नही था, वहीं हाल नेताओं का हैं जिन्हें सत्ता सुख के अलावा कुछ नही दिखता। इस सुख को पाने के लिए चुनाव रुपी सीमा को पार करनी होती है। जो जीत गए उनके दसों ऊंगलियाँ घी में होती है बाकी सब गुड़ गोबर। सत्ता हासिल करने से पहले ये ऐसे देश की समस्याओ को लेकर चिंतन व्यक्त करते हैं मानो इनको दस बेटी बिहानी हो। चुनाव के बाद जनता की दशा अपना काम बनता भाड़ में जाऐ जनता गूंगों बहरो की नहरी कौन किसी की सुनता। चुनाव का समय आते ही नेता लोग जनता के पीछे ऐसे चक्कर लगाते लगातें हां जैसे लैला के पीछे मजनु, जुलियट के पिछे रोमियों और सत्ता हासिल करने के बाद वे जनता से ऐसे पीछा छुड़वाते हैं जैसे लोग दुध से मक्खी निकाल फेंकते हों। सत्ता प्राप्त करने के लिए छत्तिस को संबंध तिरसठ में बदल रहा है। देश में सात पति वाली गठबंधन की सरकार बड़ी निर्लजता के साथ बनती और टूटती है। ऐसी सरकार में गाल फुलाने, तुम रुठी रहो मैं मनाता रहुँ का खेल चल रहा है। विकास का दावा हाथी की दाँत की तरह खाने के कुछ और दिखाने के कुछ और।जितनी विकास की बातें होती है उतनी ही लूट का जुगाड़ होता है I मौसम चुनाव का आने वाला है I नेताओं की बेचैनी बढ़ रही है दिल का धड़कन तेज हो रही है। नेताजी वादा का बरसात कर रहे हैं ,जनता इस बरसात में भीगती नहीं है ।फिर होता है 5 साल का सुखाड़ इस दौरान नेताजी का 2500000 का शौचालय लाखों को रोजगार गरीब किसान का कर्जा माफ 25 करोड़ का भवन बनता है। ग्रामीण क्षेत्र में बिजली पास करवाने का वादा इत्यादि चार दिनों दिन ऐसे फैल रहा है जैसे कि आजकल करोना। भ्रष्टाचार की जड़ दिनों दिन इतनी गहरी होती जा रही है जैसे कि समुद्र। समुद्र का पानी उलीचने पर घटता नहीं है, भ्रष्टाचार मिटाने पर मिटता नहीं है। भ्रष्टाचार सुरसा की तरह विशाल रूप ले रहा है। जब इसका सब्र का बांध टूट जाएगा तो जनता किसी की सुनेगी नहीं।
चुनाव होने वाला है नेताओं के दिल में ख्याली पुलाव पक रहे हैं। अगला प्रधानमंत्री मेरे ही दल का होगा। लगता है हर दल स्वप्न देख रहा है लेकिन अब जनता सोई नहीं वह सब देख रही है अभी खुली दिमाग की आंखों से। नई सोच की नई पहल अब होगी नई झरोखों से। कितनों के सपने टूटेंगे कितनों की सत्ता की कुर्सी छूटेगी। आज शास्त्री जी गुलजारी लाल नंदा जी की सादगी सच्चरित्र गायब है। देश की अरबों की सपंति एक व्यक्ति फरार हो जाता है किसी को चिंता नहीं। चिंता है एक दूसरे पर दोषारोपण करें। कब तक देश में पैसा पहुंचे एवं पैरवी से काम होगा। इसे आखिर मिटाएगा कौन? देश को तरह-तरह के नारो से लुभाया जा रहा है। एक नारा ऐसा आया पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया । आखिर कब पड़ेगा इंडिया और कब बढ़ेगा इंडिया इसे देखने के लिए तरस गई । तब तक दूसरा नारा आया बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ इसका क्या हुआ 1 साल में भारत में 34000 से अधिक महिलाओं का हुआ रेप। 86% बलात्कार के मामले अभी भी लंबित है। महिला सुरक्षा से जुड़े तमाम कानूनों के बावजूद देश में 1 घंटे में देश में चार बलात्कार होते हैं यह बात देश की उच्चतम न्यायालय कैसी है नागरिकता है। तीन-चार साल की मासूम बच्ची इस हैवानियत का शिकार हो रही है। यह प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। आज हमारा जनप्रतिनिधि हवालात में हवा ले रहा है तो आम आदमी क्यों ना बढ़ावा दे। चुनाव बहुत नजदीक है नेताओं की थैली खुली हुई है विदेश यात्रा, रोड शो नेताओं की चमक-दमक से जनता को लुभाया जा रहा है। काम के बदले नाम परिवर्तन जारी है। क्या नाम बदल कर सता हासिल होगा? जनता की समस्या जनक जी कि धनुष की तरह हिलती-डुलती नहीं है। सवाल है कि नेताओं की अदृश्यता से जनता दुख क्यो भोगें ?
चुनाव आ रहा है देश में स्वच्छता अभियान जोरों शोरों से जारी है। क्या यह अभियान स्वच्छ नेता चुनने के लिए नहीं होना चाहिए? नेताओं को अगर सत्ता हासिल हो जाए सत्ता हासिल होना अर्थात को कुबेर जी की धन की प्राप्ति होना। तो वह भला किसका सोचेगा? एक सवाल मेरे जहन में आ रहा है कि जो गरीब का बेटा है, सच्चरित्र, निष्ठावान है, समाजसेवी है, जिसके कारण वह चुनाव जीत नहीं सकता है। क्या उसे सत्ता में आने का कोई हक नहीं है? क्या उसे आने के लिए आरक्षण नहीं मिलना चाहिए? चुनाव नजदीक है हमें सोचना होगा कि सत्ता की साझेदारी ऐसे हो जिससे आम आदमी का कल्याण हो सके।