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स्वीच ऑफ


कैंटीन से ठहाकों की गूँज सुनाई दे रही है । वैसे आमतौर पर यहाँ गहरी उदासी ही पसरी रहती है । यहाँ बिकनेवाली सारी चीजों को पता है कि बिकना है क्योंकि ये बेशर्म पेट मानता ही नहीं । अस्पताल का कैंटीन जिसमें कभी – कभार सिस्टर्स और इक्के – दुक्के डॉक्टर दिख जाते हैं । ठहाके लगाने वाली सिस्टर्स हैं ।
सिस्टर मेरी ने ठहाकों के बीच से कहा - “सिस्टर एनी इस एग रॉल से काम नहीं चलने वाला हमें तो बड़ी पार्टी चाहिए”। हेड नर्स बनना इतना भी आसान नहीं ।
अरे ! ‘अगले साल तुम भी बन जाओगी’ ।
भैया एक बड़े स्प्राइट की बोतल देना । सबने प्लास्टिक के ग्लास में स्प्राइट लेकर चियर्स किया ।
थोड़ी देर की हँसी – ठिठोली के बाद एक चुप्पी छा गई । एक – दूसरे से अलग होने का सन्नाटा कल से सिस्टर एनी हेड नर्स होकर आईसीयू में ड्यूटी देंगी ।
सिस्टर हमलोग आपको मिस करेंगे । चाय के समय बहुत याद आयेगी । देखते ही देखते हर्ष के माहौल में एक विषाद की रेखा खींच गई ।
सिस्टर एनी ने कहा – “मैं समय निकालकर मिलने आ जाया करूंगी”।
आज आईसीयू में पहला दिन है सबसे उम्रदराज नर्स समझा रही है – “ किस पेशेंट को सीपीएपी सिस्टम लगाना है तो किसे ऑक्सीजन , पेशेंट मॉनिटर को कितनी देर पर देखते रहना है” । सिस्टर एनी ध्यान से सारी बातों को रिवाइज कर रही थी क्योंकि इन सभी मशीनों से पाला पड़ चुका था । तभी आईसीयू के र्रिसेप्श्न पर फोन की घंटी बजी ।
“ जल्दी करना होगा एक पेशेंट आ रही है उसे साँस लेने में तकलीफ है । उसे वार्ड से डॉक्टर ने वेंटीलेटर पर रखना रिकमेंड किया है” ।
बेड तैयार हो गया ऑक्सिजन और सलाईन ड्रिप के साथ वार्ड से पेशेंट के साथ उसके रिश्तेदार ,नर्स वार्ड बॉय के साथ ट्रॉली के पीछे – पीछे आईसीयू तक पहुँचे । सिक्यूरिटी गार्ड ने रिश्तेदार जो उस रोगी का बेटा था उसे वहीं बाहर ही रोक दिया ।
सिस्टर एनी आज पीछे – पीछे सारे मशीन को लगाना सीख रही थी । दूसरी नर्सों ने रोगी के ब्लू कपड़े को बदल दिया अब मरीज ने गुलाबी कपड़ा पहन लिया । अस्पतालों में भी कपड़ों से मरीजों के रुतबे का पता उनके कपड़ों से होता है ।
तभी छोटे चोंगे से एक अनाऊंशमेंट सुनाई पड़ा मरीज के नाम के साथ यह बोला जा रहा था कि “उस पेशेंट के साथ जो हैं वो आ जाएँ”। रिश्तेदार यानि बेटा दौड़कर पहुँचा अबकी बार गार्ड ने रोका नहीं बाहर जूते उतारकर अंदर एक उम्मीद और दहशत के साथ वो आईसीयू के रिसेप्शन तक पहुँचा ।
“ आपको इन सभी जगह पर सिग्नेचर करना होगा”
इस दशा में सामान्य रूप से कोई कुछ पढ़ता नहीं सिस्टर बता रही है इस पर साइन कीजिये हमलोग पेशेंट का हाथ – पैर बांधेंगे, ये वेंटीलेटर तो ये ऑक्सिजन ----------तो ये ---- जाने कितनी जगह सिस्टर ने साइन करवाया ।
बेटा पूछ रहा – “अभी वो कैसी हैं”?
थोड़ी देर वेट कीजिए आप दूर से खड़े होकर देख लीजिएगा ।
अब उस बेटे की माँ का नाम बेड में बदल चुका था ।
“बेड नंबर बारह”
बेटे को बुलाया गया दूर से उसने पेशेंट मॉनिटर की आड़ी – तिरछी लाइनों को समझने की कोशिश की ।
पल्स रेट , ब्लड – प्रेशर , कार्बन – ऑक्सिजन जैसी बातों को देख ।
सिस्टर ख़्याल रखिएगा कह वह रिशेप्श्न से एक कार्ड लेकर बाहर चला गया ।
सिस्टर देखिएगा जाने कितने लोगों ने कहा होगा सिस्टर एनी से ।
आज आईसीयू में इस पहले वेंटिलेटर वाले पेशेंट को देखकर मन में एक गज़ब की खलबली मच गई ।
आमतौर पर इस पेशे वाले सेवा भाव के साथ मरीज से एक विरक्ति का भी नाता जोड़ लेते हैं । लेकिन आज सिस्टर एनी को अपनी माँ और भाई याद आने लगे वैसे ही विवश था उसका भाई और वो दूर थी ।
आज उसे अपनी माँ का चेहरा सामने दिखने लगा । जितनी देर सिस्टर एनी की ड्यूटि रहती सारे पेशेंट के साथ उस पेशेंट का पूरा ख़्याल रखती । हर शाम चार बजे दूर से ही देखने बेड नंबर बारह का बेटा आता । सिस्टर एनी की प्रार्थना और दवाइयों ने रंग दिखाया पांचवे दिन डॉक्टर्स ने वेंटिलेटर हटाने का निर्णय लिया ।
सिस्टर एनी ने वेंटिलेटर स्वीच ऑफ कर एक सुकून की साँस ली । हालांकि ऑक्सिजन लगे उस पेशेंट को देख दूर से देख मुस्कुराई – “आईसीयू में पहली सफलता । मन – ही – मन खुश थी सिस्टर एनी उसके बेटे को देख एक सुकून मिलता ।
“आज वो कितना खुश था डॉक्टर ने वार्ड में ले जाने बोल दिया था। साँस देनेवाली यह मशीन अजीब होती है इसके लगने के बाद लगभग मरीजों के रिश्तेदार नाउम्मीद हो जाते हैं”।
सिस्टर एनी ने सबकुछ सीख लिया । अब वो आईसीयू में सबकी चहेती बन चुकी थीं । डॉक्टरों की जुबान पर उसका ही नाम रहता था । वेंटिलेटर लगाना और स्विच ऑफ करने का काम उसका ही रहता था । पिछले छ : महीने में वेंटिलेटर पर गये सारे मरीज़ बच गये थे । वैज्ञानिक आविष्कारों और दवाइयों से जिलाने वाले डॉक्टर और नर्स एक – बार जरूर कहते आपका हाथ शुभ है । मन – ही – मन खुश होती सिस्टर एनी जब घर जाती तो अपने बेटे , पति सब पर उसी ऊर्जा के साथ ध्यान देती थी । बेटे को थोड़ी देर पढ़ाना, स्कूल की बातें करना तो अपने टिफ़िन के लिए भी पति के पसंद का सामान बनाती थी ।
सेवा भाव की शपथ लेकर किए जानेवाले अपने व्यवसाय के साथ न्याय करते हुए परिवार पर ध्यान देना बिरले लोगों का काम है । बेटे के फाइनल एक्जाम हो गये । दस दिन की छुट्टी ले ली थी पति और बच्चे के साथ अगले सोमवार को शिलोंग जाने का प्रोगाम है । आज बाज़ार से दो जींस , कुछ कुर्ते बेटे और पति के लिए टी – शर्ट लेकर आई ।
पूरे उत्साह में थी सिस्टर एनी । भला क्यों न हो पिछले दो साल से कहीं नहीं गई थी ।
आज उसकी सेकंड शिफ्ट ड्यूटी थी सिस्टर रोज से घूमने के सारे प्रोग्राम बता रही थी। तभी सिस्टर मेरी ने चिंता जताते हुए कहा – ‘टीवी के समाचारों व एक नई की बातें करने लगी’ ।
फिर मरीजों के साथ काम करते उस दिन का निकल गया । घूमने जाने में चार – पाँच दिन बचे थे । टीवी के समाचारों ने एक चिंता उभार दी थी फिर भी अब तक अपने देश और शहर में बीमारी ने दस्तक नहीं दी है यह आश्वस्ति थी ।
अभी घर पहुँची ही कि अस्पताल से फोन आया – “ सिस्टर आपको फिर से अस्पताल आना पड़ेगा । इमरजेंसी ड्यूटी है जल्दी आ जाइए”।
अस्पताल में अफरा – तफरी मचा हुआ था । सिस्टर एनी को आईसीयू में बीस और बेड लगवाने की हिदायत मिल गई । कुछ पेशेंट जो वेंटिलेटर पर नहीं थे उन्हें वार्ड में शिफ्ट करने बोल दिया गया । यहाँ के बाकी पेशेंट्स को दस बेड वाले नए आईसीयू में भेज दिया गया । डॉक्टर , नर्स , वार्ड बॉय सफाई कर्मी सभी इधर – उधर भाग रहें । मानो अस्पताल पर कहर टूट पड़ा हो ।
सिस्टर एनी अपनी सेवा और प्रतिज्ञा के अनुसार तलीन्नता से काम में जुट गईं है इसी बीच डॉक्टर्स के साथ दो बार छोटी मीटिंग भी हो चुकी है ।
नई बीमारी छुतहा थी नये वार्ड में भी काम करने के लिए एक्सपर्ट नर्स रखे जा रहे थे । सिस्टर एनी को आईसीयू में ही रहना है उनके पास रहेगा मशीनों के हैंडिलिंग का काम ।
“सिस्टर आपके हाथ तो शुभ हैं मरीज के ठीक होने पर ही आपको वेंटिलेटर स्वीच ऑफ करना पड़ा है” ।
एनी हैरान है उसे तो घूमने जाना था । उसकी टिकट ख़ुद-ब –खुद कैंसिल हो गई । गाडियाँ बंद हो गईं हैं । कल्पना से समय का इस कदर पलटना उसने अपने जीवन में पहली बार देखा था ।
आज वार्ड से दो मरीजों को आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया है अब सिस्टर एनी की ड्यूटी आठ घंटे की नहीं चौबीस घंटे की हो चुकी थी ।
इन रोगियों के साथ काम करने के लिए प्रोटेक्सन के सारे तरीके अपनाने के बावजूद एक भय की कहीं अनजाने में वो इन्फेकशन को घर नहीं लेकर चली जायेगी । अब न कोई रोगी को देखने आता न कोई सिग्नेचर वहाँ करवाया जा रहा था । मरीज सिर्फ़ किसी परिवार के नहीं देश के अस्पताल के डॉक्टर के नर्स के थे । इनके नाम क्या बेड नंबर भी पूछनेवाला कोई नहीं था दिन – ब – दिन आईसीयू में रोगियों की संख्या बढ़ने लगी ।
रोज डॉक्टर ,नर्स सबकी मीटिंग एक नई स्ट्रेटेजी नई प्लानिंग होती । दूसरी तरफ वेंटिलेटर के साथ पेशेंट के मॉनिटर को हर पल नज़र रखती सिस्टर एनी अपने भारी-भरकम प्रोटेक्टिव ड्रेस में जाने कब रो लेती और जाने कब आँसू सूख जाते ।
एक संतोष था उसके बेटे के साथ पति तो हैं ।
सेवा और कुछ करनेवाले भाव में अपने इन्फेक्टेड होने का डर खत्म हो चुका था । शुरू में आईसीयू में आये मरीज को आज चार दिन हो चुके हैं । अजीथ्रोमयसिन की डोज़ से बुखार तो थोड़ा कम है लेकिन साँसों की ऊपर-नीचे जाती लाइनें अबनॉर्मल है । ब्लड और यूरिन टेस्ट की रिपोर्ट ठीक नहीं है । फेफड़े में लगातार कार्बन – डाई- ऑक्साइड भरते जा रहा है । आस –पास के सभी बेडों पर मरीज पड़े हुए हैं एक – दूसरे की पहचान से नावाकिफ़ । मरीज नीम – बेहोशी में हैं उन्हें अपने बारे में कुछ नहीं पता जद में तो हैं डॉक्टर बचा लेना है ।
पांचवें दिन मरीज के सभी अंग काम करना बंद कर चुके हैं । वेंटिलेटर के भरोसे साँसें चल रही हैं मेडिकल टीम का रिपोर्ट आ चुका है । सिस्टर एनी के जीवन में स्वीच ऑफ करने का ऐसा दिन जिसमें ऑफ करते ही मरीज की साँसें टूट जायेंगी ।
एनी अपने को समझा रही है नौकरी का यह हिस्सा है उसने अपना फर्ज़ तो निभाया ।
मरीज के घर फोन लगाकर एनी इंतज़ार करने लगी फोन पति ने उठाया । सिस्टर एनी ने कहा – “ आपकी पत्नी सो रही हैं उनके बारे में ज्यादा कुछ बता नहीं सकते । सब इलाज की कोशिश में लगे हैं अगले पल क्या हो जाये कुछ पता नहीं ?
पास बैठी बेटी की आवाज़ आ रही थी विडियो कॉल से माँ को देखना है ।
“नहीं आईसीयू में विडियो कॉल नहीं कर सकते”
बातों – बातों में सिस्टर ने धर्म और संस्कार की बातें पूछ ली ।
मेडिकल टीम के निर्णयानुसार रोगी को चैन से मरने देना है साँसों की लड़ाई को रोकनी है । अब मशीन स्वीच ऑफ कर देनी है । वार्ड के सारे मरीज बेसुध पड़े हैं । सिस्टर एनी ने उस पेशेंट के बेड के चारों ओर का पर्दा गिरा दिया । काँपते हाथों से वेंटिलेटर का स्वीच ऑफ किया जैसे पूरी मेडिकल टीम रुक गई हो । सारी धड़कने उसी मशीन के इर्द- गिर्द रुक गई हो ।
एनी ने मरीज का हाथ पकड़े रखा था । मरीज के मॉनिटर की लाइट मद्ध्म होने लगी थी । ऊपर – नीचे जाती लाइनें सपाट हो चुकी थी । पाँच मिनट के अंदर टंगा हुआ दम टूट चुका था । सिस्टर एनी की आँखों में नमी थी । मानो इस मौत की अकेली गवाह । सबसे अलग होकर दम तोड़ गई पीछे कोई देखनेवाला भी खड़ा न हो सका । दास्ताने डले हाथों ने स्पंदन को महसूस किया था ।
अस्पताल के निर्णय अनुसार उस मरीज को बॉडी पैक में रख दिया गया ।
सिस्टर एनी को पहले दिन की बात बार – बार याद आ रही थी । ‘आपके हाथ शुभ होते हैं , मरीजों को बचने के बाद स्वीच ऑफ करनेवाले हाथ। एक बार पेशेंट
अनमने ढंग से काम कर रही सिस्टर एनी को आज खाँसी आ रही थी हल्का बुखार भी था । जैसे ही ये बात पता चली सिस्टर को आइसोलेट कर दिया गया । आईसीयू से बच्चे से पति से अलग एक दुनिया जहां खुद की टापू थी ।
सिस्टर मेरी स्वाब टेस्ट के लिए लेने गई तो एनी बोले जा रही थी – “मैंने उसे नहीं मारा , मैंने उसे नहीं मारा । एनी ऐसा मत सोचो वो तो हमारे जॉब का हिस्सा है । देखो ईश्वर से प्रार्थना करो तुम्हारे रिपोर्ट नेगेटिव आये ।
अजीब सा व्यवहार करने लगी एनी – नहीं , नहीं मैंने तो कितनी बार स्वीच ऑफ किया ये लाइनें सपाट नहीं हुई थी ।
टेस्ट रिपोर्ट आ चुके थे एनी को सामान्य खाँसी –बुखार थी । लेकिन एनी अपने कपड़े फाड़ने लगी थी रहरहकर बाल नोंचने लगती खाली यही कहती मैंने उसे नहीं मारा ।
दिन – ब – दिन हालत खराब होने लगी । अपने बच्चे और पति को नहीं पहचान पाने वाली एनी को अस्पताल ने सदमा करार दिया है अब उसे स्वस्थ होने के लिए मनोचिकित्सालय में रहना पड़ेगा ।