22 Va ghar raajmahal books and stories free download online pdf in Hindi

22 वां घर राजमहल

२२ वां घर / राजमहल

नीलिमा शर्मा

आप सबको मेरा प्रणाम | बहुत दिन से आप मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन की कहानियाँ पढ़ रहे हैं और मैं ख़ामोशी से इन सब कहानियों को घटित होते देख रहा हूँ | अगर आप मेरा परिचय जान लेने को उत्सुक हैं तो आपको बताना चाहता हूँ कि मैं इस बिल्डिंग का एक बंद फ्लैट हूँ जो आपसे संवाद कर रहा हूँ |

यह जो मेरे भीतर एक वास्तु या आत्मा रहती हैं न निरंतर आस पास संवाद करती रहती है | धर्मशास्त्र से लेकर वास्तु और दर्शनशास्त्र तक यह बात कहता हैं कि जहाँ सकारात्मकता रहती हैं वहां खुशियाँ रहती हैं | जहाँ स्वार्थ और नकारात्मकता रहती हैं वहां व्याधियां अपना डेरा जमा लेती हैं | हैरानी हुई न …….

कभी किसी पेंट के विज्ञापन में आपने सुना था न कि दीवारें बोल उठेंगी | लेकिन साहेब किसी भी घर की दीवारें कभी नहीं बोलती| उसमें रहने वाले लोग बोलते हैं ...खुशियाँ जहाँ होती हैं वहां शब्द/संवाद स्पष्ट सुनाई देते हैं और जहाँ गम हो उदासी हो वहां सिर्फ मौन पसरा रहता हैं …

”बहुत रहने लगा हूँ आजकल मैं मौन
फिर भी मेरे भीतर बोलता यह कौन “ ( निविया )

आइये आज सबसे पहले आपको अपने जन्म की कथा सुनाता हूँ |इस क्राउन पैलेस बिल्डिंग का नाम कभी राजमहल था | यह दस बीघा जमीन राजा ठाकुर को अपने पिताजी से विरासत में मिली थी | राजा ठाकुर ने इस जमीन पर एक हिस्से पर जहाँ अब यह बिल्डिंग बनी हुयी हैं अपने लिए तीन पक्के और चार कच्चे कमरों का मकान बनाया हुआ था | बाकी पूरी जमीन को लोहे की काँटों वाली तार से घेर कर खेती की जाती थी और गेहूं और मौसमी सब्जी की फसल लहलहाया करती थी | दो गाय एक बैल एक बकरी और बत्तख का जोड़ा पूरे माहौल को एकदम शुद्ध बनाये रखते थे |बतखों की पकपक से माहौल खुशनुमा सा रहता था | रानी ठाकुर ने आंगन में बड़े ही प्यार से आम और नीम पारिजात और चमेली के पेड़ रोप दिए थे |

आगन की ख़ाली जमीन पर मुख्य दरवाज़े से लेकर बैठक तक गेंदे के पीले फूलों की अलग ही छटा बिखरी रहती थी | क्यारी के किनारे तिरछी नुकीली ईंटो से रोक बनायीं गयी थी| एक छोटा सा ट्यूब वेल खेत की जमीन के दूसरे कोने पर लगा था जहाँ से फसलों को पानी दिया जाता था |जब जब हैंडपंप में कोई खराबी आ जाती या रेतीला पानी आने लगता था तो रानी ठाकुर अपनी बेटियों के साथ जाकर मिटटी और पीतल के घड़ों में पीने का पानी भी ट्यूबवेल से भर लाया करती थी |नीम की ठंडी हवा में बैठा भरापूरा परिवार एक खुशहाल परिवार था | यह राजमहल सच के राजमहल का सा सुखी था |

राजमहल तो वही होता हैं न जहाँ खुशियाँ बसेरा करें | जहाँ परिवार के मुखिया की चलती हो | धन धान्य भरपूर हो | बच्चो की किलकारियां हो, सेवक हो | लेकिन जब बड़े बड़े राजपाट और रियासतें ख़त्म हो गये | यह तो राजा ठाकुर का छोटा सा अपना ही साम्राज्य था जहाँ उसकी पुश्तैनी जमीन ही उसकी रियासत थी |उसके बेटे ही राजकुमार थे उसकी पत्नी ही रानी थी | इक्कीसवी सदी की आहट शुरू हो चुकी थी | बड़ी कार बड़ा मकान विदेश यात्रा महँगा ऐशोआराम का सामान ..राजा ठाकुर के परिवार के लोगो का मानस भी अब बदलने लगा था |

अचानक एक हादसे में राजा और रानी ठाकुर का एकसाथ देहांत हो गया और यह राजमहल अब राजकुमारों के लिए विरासत का बड़ा हिस्सा पाने का अखाड़ा बन गया | घर की बेटियों ने भाइयों भावजो के साथ साथ बैठकर सम्पूर्ण संपत्ति का सही सही बंटवारा किया और सारी जमीन बेचकर सब भाइयों को उनके हिस्से का पैसा थमा दिये|

आज जिस स्थान पर क्राउन पैलेस बिल्डिंग बनी हुयी हैं| कभी यहाँ पर(राजा ठाकुर के समय) पक्के कमरे बने हुए थे | हरे कांच की खिड़कियाँ थी ताकि धूप भीतर ना आ सकें | शीशम की लकड़ी के नक्काशीदार दरवाज़े मुख्य कमरे की शोभा बढाते थे | लाल ईंटों वाला फर्श जिनको ठाकुर बेटियों ने बोरी से रगड़ रगड़ कर आईने की तरह चमका दिया था | कमरों के साथ एक रसोईघर जहाँ पर बाहर की तरफ एक खुला चौका भी था | मिटटी और भूसे को गूंधकर बनाया चुल्हा जिस पर घर के पीसे आटे और खेत से आई ताज़ी सब्जियां पकती थी तो वाह ………हर तरफ सब्जी की ताजगी और मसालों की महक हवाओ में तैरती रहती थी | जिसको भूख न भी हो दो रोटी ज्यादा ही खा लेता था | (मास्टर शेफ वाले शेफ भाटिया उस ज़माने में होते तो चुमेश्वरी खाना कह कर न जाने कितने चुम्मे उड़ा देते )

बिल्डर ने जब मजदूरो की सेना से पक्के कमरों को कुदाली और बड़े वाले भारी हथोड़े से तुडवाया था न तो एक एक ईंट कराह उठी थी | उनका आर्तनाद कोई नही सुन रहा था| उनका बहता लहू अदृश्य था | गारे और लाल बदरपुर से चिनी हर ईंट ने दूसरी ईंट का हाथ इतने कस के थाम रखा था कि उनको अलग अलग करने में मजदूरों को अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ी थी |

उन ईंटों के खंडित मृत अवशेष आज भी इस बिल्डिंग की नीव का हिस्सा हैं और अक्सर अपनी आत्मा को उन फ्लैट्स के हिस्सेदारों के सुख दुःख के साथ जोड़ने की कोशिश करते हैं, जो अब यहाँ के स्थायी निवासी हैं| लेकिन जिस प्यार दुलार और स्नेह से राजा ठाकुर ने अपने राजमहल की नींव रखी थी| एक एक दीवार को चिनवाया था| उतना धैर्य बिल्डर में कहाँ था | उसको तो जल्दी जल्दी इस इमारत को खडा करना था | सभी फ्लैट्स बेचने थे और धन कमाना था |

आँगन में लगे नीम को जब काटा गया था तो उस पर लगी निम्बोलियों ने हवा के साथ साथ खुद को मिटटी में इस तरह एकाकार कर लिया था जैसे कोई छोटा नटखट बच्चा किसी निष्ठुर मां द्वारा अपने दादा दादी से दूर ले जाए जाने पर जार जार रोता हैं| बार बार उनकी गोदी में दुबकता हुआ वो हर कोशिश करता हैं उसको अपने बुजुर्गो संग रहने दिया जाए, जुड़ा रहने दिया जाए लेकिन ……| निम्बोलियाँ भी बहुत रोई चिल्लाई ताकि वो भी इस मिटटी में जज्ब हो सकें ..आज भी न जाने कितने मृत बीज इस इमारत की नीव में जमींदोज हैं |

कभी हड़प्पा या मोहनजोदड़ो जैसी खुदाई अगर इस तरह की पुरानी इमारतो को तोड़कर बनाये होटलों या गगन चुम्बी इमारतो की जाएँ तो न जाने कितनी सिसकियाँ आपको उन नन्हे पौधो की मिलेगी जिनके फूल खिलने को थे लेकिन उनको उजाड़ कर मलबे में फेंक दिया गया था, कांच की बारीक महीन किरचे इन मार्बल के फर्श की कई परतों नीचे लहुलुहान होगी जो पहले से बने कमरों की खिडकियों पर सुसज्जित थे |

मुझे याद आरहा हैं जब रानी ठाकुर ने आम के पेड़ की पौध लगाते हुए कहा था “ ठाकुर जी हम तो नहीं रहवेंगे लेकिन हमारे पोते जरुर इस पेड़ के आम खाकर हमको याद करा करेंगे “
“हट बावली , हम क्यूँ न रह्वेंगे , लम्बी उम्र जियेंगे हम दोनों , पोते के भी जातक इस आम के पेड़ खावेंगे और हम दोनों यही नीम के थल्ले उनके संग अपना बुढ़ापा काटेंगे “

“नहीं जी , मेरी अम्मा कहा करें थी कि जो आम के पेड़ लगावे हैं न, उसको कभी फल न खाण को मिलते | बस मेरा परिवार जीता रहे खुस रहे | मैं तो उनके लिए ही यह पेड़ लगाऊं |”

रानी ठाकुर के मुंह से जैसे विधि का विधान भविष्य की बोली बोल रहा था| उनके जाने के कुछ बरस बाद ही यह राजमहल क्राउन पैलेस बन गया | ठाकुर के सबसे छोटे बेटे गजेंदर ने इस इमारत में एक फ्लैट अपने लिए ले लिया और स्वयं बच्चो के साथ विदेश चला गया | बाकी भाई गाजियाबाद में कोठी बनाकर कोई छोटा मोटा काम धंधा करते हुए रहने लगे थे | आखिर विकास और तरक्की की दौड़ में उनको भी भागना था |

जानते हो इस इमारत को पूरा होने में दो बरस का समय लग गया था | सब फ्लैट भीतर से एकदम एक जैसे | लेकिन उनमें रहने वाले सब एक दूसरे से एकदम अलग | कुछ लोग बहुत खुश होकर यहाँ रहने आये थे तो कुछ जैसे मजबूरी में बस यहाँ रेन बसेरा बनाये हुए थे |

मेरे एकदम सामने फ्लैट में लड़का लड़की रहते हैं | मुझे लगता था जैसे वो पतिपत्नी हैं लेकिन जिस तरह से लड़की ने लड़के को बेईज्ज़त करके घर से बाहर निकाला तो पता चला यह तो बिना विवाह करें साथ रहने वाले लोग हैं ...समय ऐसा हैं भाई, रहे ऐसे ही साथ, लेकिन साथ रहने के भी अपने नियम होते हैं | यह आजकल के बच्चे खासकर लडकियां बिना सोचे समझे क्षणिक आवेश में ऐसे फैसले क्यों ले लेती हैं कि बाद में पछताती हैं | बेपेंदी के लौटे की तरह के रिश्तों में यहाँ वहां लुढकते यह लोग मुझे जरा पसंद नही आते | मुझे क्या ………..मैं एक मकान हूँ ………...घर नहीं न |

यहाँ वैसे भी अधेड़ लोग ज्यादा रहते हैं जिनके बच्चे कहीं बाहर सेटल है या अकेले रहने वाले युवा लोग | एक दुक्का बच्चों के साथ रहने वाले परिवार हैं | संयुक्त परिवार प्रथा तो शहरो में खत्म ही हो चुकी हैं | आज यह प्रथा होती तो यह राजमहल राजमहल ही रहता क्राउन पैलेस नही |

बोर तो नही हो रहे मेरे से संवाद करते हुए …..आइये कुछ और लोगों के बारे में भी बताता हूँ ...

यहाँ एक फ्लैट में एक प्रेग्नेंट कामवाली बाई भी आती हैं | वो लॉक डाउन की वज़ह से अपनी मेमसाहेब के साथ रहने को मजबूर हैं और मैं बहुत खुश हूँ कि कुछ समय बाद ही चाहे एक किलकारी इस बेसमेंट में भी सुनाई देगी | तलाकशुदा बहू के साथ कुछ दिन रहने आई सास हो या लॉकडाउन की वज़ह से घर से काम करते युवा \ सब अलग अलग मूड और तेवर के साथ समय बीता रहे हैं |

शाम का अँधेरा बढ़ रहा हैं हर तरफ सन्नाटा हैं | वैसे भी लॉक डाउन की वज़ह से आजकल सब लोग घर पर हैं| कहीं आना जाना नहीं हैं तो ख़ामोशी भी मुझसे बातें करने आ बैठती हैं | आज सुबह बिग बाजार वालों ने सोसाइटी में स्टाल लगाकर जरुरी सामान और सब्जियां उपलब्ध करायी हैं | बिल्डिंग से बाहर निकलना मना हैं लेकिन यह मन के विचार तो सारे ब्रह्माण्ड की सैर कर आते हैं |

आप भी एक कप चाय बनाकर लाइए तब तक मैं भी अपने आप को सम्हालता हूँ …….

इस फ्लैट में रहने वाले अधिकतर लोग यादों के रोलर कोस्टर पर सवार हैं कभी रोमांच से खुश हो उठते तो कभी अनजाने भय से भयभीत | कभी रूमानी यादों की बारिश में भीग जाते हैं तो कभी बिछड़ने की तीखी कसक से आँखें लाल किये शून्य में निहारते रहते हैं | हर फ्लैट के भीतर एक अलग मौसम हैं एक अलग मूड हैं | हर बंद दरवाजे के पीछे एक अलग ही कहानी हैं और दरवाज़ा खुलते ही नकली मुस्कराहट और शुष्क मौन जैसे स्वागत करता हैं |
वो आपकी निविया क्या कहती हैं
सुना होगा तुमने दर्द की भी एक हद होती हैं
मिलो हमसे हम तो अक्सर उसके पार जाते हैं ….




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सुबह कितनी प्यारी हैं न ...बीती विभावरी जाग री …..शीतल मंद बयार बह रही हैं | अरुनोदय का समय हैं | सात घोड़ों वाले रथ पर सवार सूर्य मंद गति से आता हुआ प्रतीत हो रहा हैं | साथ वाले फ्लैट की बालकोनी में रखे गमलो में लगे पौधे की मुस्कराहट उतनी ही मासूम लग रही हैं जितनी रानी ठाकुर के लगाये गेंदे और चंपा और पारिजात की लगती थी |

मौसम में अभी भी वो हर बरस वाली तपिश महसूस नही होती हैं| किसी फ्लैट में गाना बज रहा हैं इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो ना .. मेरा मन भी नतमस्तक हो उठता हैं सच ईश्वर सर्वशक्तिमान सत्ता आप मानव मन को कमजोर मत होने देना | उनको विश्वास हैं कि इस वैश्विक बीमारी को परास्त कर देंगे | दिल्ली भी ना जाने कितनी बार उजड़ी लेकिन हर बार फिर से बस गयी है न| यह कोरोना भी जरुर समाप्त होगा लेकिन जाने से पहले न जाने कितने तकियों की रूई को सिसकियों से गीला करके जाएगा| मेरे सोहने रब्बा इन तकियों पर सोये हुए /जागते हुए सरों को हिम्मत और शक्ति देंना |

सामने से शर्मा जी कुछ कागज लिए जा रहे हैं कभी कभी तो नफरत होती हैं इस आदमी से , भेदती आँखों वाले इस आदमी में जैसे दस बीस आदमी रहते हैं, सामने वाले के चरित्र अनुसार यह आदमी अपना चरित्र बदल लेता हैं ……….जो भी हो दिल का अच्छा हैं मदद करने को आतुर ..शायद तभी इस सोसाइटी का सचिव भी हैं | वैसे आत्म मुग्ध लोग बहुत सारे हैं इस सोसाइटी में ..

पता अब तक नही बदला हमारा
वही घर हैं वही किस्सा हमारा
( अहमद मुश्ताक )

अब शायद आप सोच रहे हैं कि एक घर कैसे जजमेंटल हो सकता हैं | पत्थर में जान नही होती लेकिन दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता हैं ...गुनगुनाने वाले लोग जब इन्हीं दीवारों से मन ही मन बतियाते हैं ना तो उनकी यादों का कारवां रुकता नही हैं| .मैं जानता हूँ उनके आंसुओं की बारिश जब अपने वेग के साथ बरसती है तो उसकी सीलन मुझे भी महसूस होती हैं |

इस सोसाइटी मे बहुत कम बच्चे हैं और जो हैं भी तो लॉक डाउन की वज़ह से सब घर में बंद हैं| मोबाइल टी वी और ऑनलाइन क्लासेज के साथ व्यस्त इन बच्चो की किलकारियों को झगड़ों को बहुत याद करता हूँ|
किसी के Fm पर गाना बदल गया शायद रेडियो मिर्ची से कहीं और बदल दिया होगा ….दुनिया में अगर आयें हैं तो जीना ही पड़ेगा ……बालकनी में बैठकर चाय पीते हुए वो पीले फूलो वाली दीदी हो या संजीदा सी अपाला आंटी जी या अकेले रहते लड़के लड़की का आसमान में उडती चिड़ियों को तकना सब जीवन के क्षण भंगुर होने का अहसास दिलाता हैं |

सुबह सुबह टॉप फ्लोर से आती तबले की थाप पर जब दादरा और कहरवा की ताल बजायी जाती हैं कसम से मन झूम उठता हैं ..कानफोडू संगीत ….मैं तेरा बॉय फ्रेंड तू मेरी गर्ल फ्रेंड/ डी जे वाले बाबू मेरा गाना बजा दो जैसे गीत सुनकर जो सीने में जलन हुयी थी उसपर एक नर्म फाहा सा रखा हुआ महसूस होने लगा था |

दिन जैसे जैसे आगे बढ़ रहा था ..बंद दरवाजों के पीछे से आती सम्मिलित खुसफुसाहट से पूरी बिल्डिंग गुलज़ार हो रही थी | बर्तनों की टकराहट बालकोनी में सूखते कपडे , रसोई घरो से आती पकवानों की महक
यह सब एक उत्सव जैसी फीलिंग दे रहे थे | अब आप कहेंगे लॉकडाउन में उत्सव तो जी हाँ .सब घर के सब लोग साथ हैं तो उत्सव ही होगा न |

खुद पर हो विश्वास और कर्म पर हो आस्था
कितनी भी बाधाएं आये मिल जाता हैं रास्ता
(आर कुमार )

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रिश्तों की परिभाषा और मिठास को कायम रखते संवाद \ कहीं कहीं से घरेलूं झगड़ों की चीख चिल्लाहट तो कहीं से बेबात दरवाज़ा खोल कर बार बार देखना जैसे कहीं जाने या किसी के आने का इंतज़ार हो …..जिन्दगी एक अनौखे मंच पर अभिनय कर और करवा रही थी | ऐसा कभी किसी ने सोचा था क्या? नही किसी ने नही सोचा होगा कि ऐसी दर्द भरे दिन भी आयेंगे … टी वी पर पैदल घर लौटते मजदूरो को देख जिनका मन का दर्द से कराह उठेगा और दो मिनट बाद ही वो लोग फेसबुक पर जलेबी गोलगप्पे की तस्वीर लगायेंगे |

आजकल सबका होना अच्छा भी लग रहा था ….अन्यथा एक दुक्के फ्लैट को छोड़ कर सब तरफ़ ताले ही लगे रहते थे या घर में पीछे कोई एक दो बुजुर्ग रह जाते जो दरवाज़ा बंद कर मौन धारण किये रहते थे इसलिए शायद राजा ठाकुर कहते थे कि वो समय भी सुख का समय होगा जब हम बुजुर्ग होकर सिर्फ घर के ताले बनकर रह जायेंगे | |

आजकल तो आपस में परिजनों के मध्य भी संवाद ही खत्म हो गया हैं | लेकिन बिल्डिंग में सब एक दूसरे का हाल पूछने लगे थे | मास्क पहनकर आँखों से मुस्कुराने लगे थे | घर के सब काम मिलकर करने लगे थे |

उस दिन एक अधेड पति पत्नी भोपाल से आई पंजाबन से पूछ रहे थे ….आपकी रसोई से सांबर की खुशबु बड़ी अच्छी आरही थी, क्या आप रेसिपी शेयर करेगी?
“अरे मेरी बहू मद्रासन हैं न वही बनाती हैं जी , मैं तो कभी नही खाती ,आपको भिजवा दूँ”
यह महिला जब जोर की आवाज़ में अपनी बहु को आवाज़ लगाती हैं तो …..
“..हमें तो रेसिपी चाहिए थी ,नहीं नहीं जी सांबर नहीं चाहिए , हम यू ट्यूब से देख लेंगे “ कहते हुए जल्दी से दोनों अपने फ्लैट में घुस गये |क्या ज़माना आ गया हैं | कटोरी भरकर खाना सब्जी बदलने का रिवाज़ ख़त्म हो गया हैं |

आजकल सब बैचेन भी है पांचवे फ्लोर के फ्लैट में रहने वाली तंगम और नवें फ्लोर वाले बच्चे अक्षर की तबियत ख़राब हैं| दोनों को अलग अलग हॉस्पिटल में एडमिट किया गया हैं | प्रभू उनको स्वास्थ्य दे ..बहुत दर्द होता हैं किसी का जाना देख कर …. पत्रकार हो या अध्यापिका या हैश टैग के साथ जीवन जीते ,माता पिटा के पास आकर खाना पकाते बच्चे सब जिंदगी के अलग अलग रंग जी रहे हैं | एक दूसरे से रूठे लोग अब सामंजस्य बिठाने लगे है| आपस में सब दूसरे के देख अजनबी हो जाने वाले बाल्कोनी से एक दूसरे से बातें करने लगे हैं|आपस में परिचय लेने / देने लगे हैं कितना अच्छा लग रहा हैं |

एक उम्मीद से दिल बहलता रहा
एक तमन्ना सताती रही रात भर
(फैज़ अहमद )

राजा ठाकुर का यही तो सपना था कि उनके बेटे पोते सब इसी घर में एक साथ हँसते मुस्कुराते हुए जीते रहे … प्रकृति ने इन सबको यहाँ मिलाया |तो क्या हुआ अगर राजा ठाकुर का खून इन सबकी रगों में नही दौड़ रहा हैं एक जमीन पर तो होनी ने इनको साथ ला खडा किया हैं| एक सुरक्षित दूरी बनाये हुए सब एक दूसरे को पहचानने में लगे हुए हैं | एक दूसरे के दुःख में शामिल लोग अब एक दूसरे की अहमियत समझने लगे हैं| अपनी विलासिता की चीजो से शो ऑफ करने की चाह कहीं लुप्त हो रही हैं | इस समय में किसके पास कितना पैसा हैं की महत्ता भी खतम हो गयी हैं | आजकल तो कटरीना भी बर्तन माँज रही हैं तो सुनील शेट्टी भी खाना पका रहा हैं |

इक्का दुक्का लोग लिफ्ट से नीचे उतर कर सोसाइटी में खुली दूकान से जरुरी सामान ले आते हैं | सबके घर के बाहर एक बास्केट रखवाई गयी हैं| दूध वाला गुज्जर भैया सबके घर के बाहर मिल्क पैकेट्स रख जाता हैं | सामने वाले फ्लैट के खुले दरवाज़े को देखकर मुस्कुराना और ग्रीट करना अब एक रस्म नही फ़िक्र लगती हैं | शर्मा जी की भरसक कोशिश रहती हैं कि कोई नीचे घूमने भी न जाए फिर भी इक्का दुक्का लोग शाम के समय नीचे उतर आते हैं | आस पास की सोसाइटीज की खबर भी तब उनको मिलती हैं| राजनीति से लेकर मौसम तक की बातें हो जाती हैं|

संध्या के समय कहीं से जैज़ संगीत की धुन सुनाई देने लगती हैं ..कितनी मधुर स्वर लहरी हैं ……. मेरा मन भी थिरकने को हो आया | टॉप फ्लोर वाला लड़का कॉफ़ी का मग लिए उस सामने वाली बिल्डिंग में रहने वाली से इशारों में बतिया रहा था| जहाँ से इस संगीत की आवाज़ आ रही थी | शायद कोई प्रेम प्रस्फुटित होने को हैं |

हाँ मुझे याद आया राजा ठाकुर का पोता जब पिछले बरस आया था तो उसने मित्रो के लिए यहाँ फ्लैट में एक पार्टी रखी थी| तब भी धीमे सुर में जैज़ संगीत पर सब लड़के लड़कियों ने बारी बारी से नृत्य किया था| कितना खुश थे बच्चे और सच तब मेरी दीवारें पुराने पेंट के साथ भी बोल उठी थी कि हाँ इस घर में भी जीवन रहता हैं
यह कहकर दिल ने मिरे हौसले बढाए हैं
गमो की धूप के आगे ख़ुशी के साए हैं
(माहिर -अल- क़ादरी)

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lockdown को आज ३५ दिन हो चुके | पिछले शनिवार को अक्षर के ईश्वरीय धाम को जाने की खबर सुनी थी और तब से किसी से बात करने का मन ही नहीं था | हर घर की फ़िक्र होने लगी थी | दिए जलाते घंटी बजाते हुए सब कितने सकारात्मक लग रहे थे और पिछले पांच दिन से सब गमगीन | वैसे यहाँ कौन किसका रहता हैं कब तक ? कौन किसको रोता हैं? सब अपने गमो को रोते हैं और अपनी खुशियों को हँसते हैं \

मेरे फ्लैट के एकदम उपर वाले फ्लैट में जहाँ सुबह सिर्फ गुरबानी बजती थी या वीक एंड पार्टी में इंग्लिश गाने या दिन भर स्टार प्लस के धारावाहिक वहां अब आजकल नवीनतम पंजाबी गाने बजते थे | अभी उस दिन फुल वोल्यूम पर वे तू लौंग ते मैं लाची बज रहा था | मुझे लगता था यहाँ रहती मुस्लिम कामवाली उर्दू ग़ज़ल पसंद करती होगी लेकिन उस प्यारी सी काली झील सी आँखों वाली लड़की को देख मेरा मन भी कहने को आतुर हो उठा … जीवन से भरी तेरी आँखें मजबूर करें जीने के लिए ……………..

मैं अकेला सुनसान हूँ| एक बरस से मेरे दरवाज़े खिड़कियाँ भी बंद हैं| हर तरफ धूल का अम्बार हैं | कहीं कहीं मकड़ी के जाले भी लग गये हैं | रसोई में रखे मसालों में फंगस लग गयी हैं क्योंकि कोई आता जाता ही नही हैं | मैं मकान हूँ.घर तो वो मकान कहलाता हैं न जहाँ कोई रिश्ता आता जाता हैं| वहां रहने वाले एक एक सामान बड़े अरमानो के साथ घर में लाते हैं और दस बार निहारते हैं| हर कोने को जीवंत रखने की कोशिश करते हैं | असली फूल लगाने की हिम्मत या समय न हो तो नकली फूलो से घर सजाते हैं|

वैसे भी आजकल असली मुस्कराहट भी घरो से उसी तरह गायब हैं जैसे असली फूल | एक दुक्का गमला बालकोनी में रखकर अपने प्रकृति प्रेमी होने का सबूत देते शहरी लोग समय से पानी दे दे बहुत होता हैं |

यह जो आज वैश्विक रूप से कोविड१९ बीमारी फैली हैं मुझे नहीं मालूम इसका असल कारक कौन हैं यह प्रकृति प्रदत रोग है या मानव कारक ?लेकिन लॉकडाउन ने सब लोगो को अहसास दिला दिया हैं कि आप चाहे कितने भी पैसे वाले हो या गरीब अब जीवन और अपनों से बढ़कर कुछ नही होता हैं और अपनों की परिभाषा सिर्फ खून के रिश्तों से नहीं होती हैं ….हर वो अपना हैं जो दुःख परेशानी की घडी में साथ हैं |

तब से तो बहुत प्यार होने लगा हैं तुझसे ए जिन्दगी
जब से जाना तुम फिसल रही हो मुठ्ठी से रेत की तरह
(निविया )




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अप्रैल का महिना हैं आजकल मौसम में ज़रा तेजी होती हैं तो बादल घिर आते हैं और बारिश होने लगती हैं| हर तरफ प्रकृति ने अपना शुद्ध सुंदर स्वरूप दिखाना शुरू कर दिया हैं | ओजोन लेयर रिपेयर होने लगी हैं क्योंकि ज्यादातर ac बंद हैं, कारखाने बंद हैं |सड़कों पर पोलुशन नहीं हैं | गंगा और यमुना नदी का पानी जो कि विषाक्त स्तर को पहुँच गया था आजकल कितना निर्मल स्वच्छ हो गया हैं | बीमारी से लड़ना अपने आप को बचाकर रख एक अलग मुद्दा हैंजिसके लिए सबको लॉकडाउन किया गया हैं ,धरती से प्यार करना एक अलग | लेकिन फिर दोनों आपस में जुड़े हैं ..हम जितना पर्यावरण का ध्यान रखेंगे उतना ही प्रकृति हमें वापिस लौटा देगी ..हमारी आने वाली पीढ़िया भी साफ़ स्वच्छ वातावरण में जी सकेंगी |

हमें अब इस बीमारी के साथ जीने की आदत तो डालनी ही होगी | आखिर कब तक देश को लॉकडाउन करके रखा जाएगा | सबको अपनी जीवन शैली में सुधार करना होगा |कम से कम के साथ जीना एक मूल मन्त्र होना चाहिए
मौत का इलाज़ हो शायद
जिंदगी का कोई इलाज़ नही हैं
( फिराक गौरखपुरी )

अब मैं उपदेश नही दे रहा हूँ ...मैंने देखा हैं लोगो का आना जाना .कितना भी पैसा आपने बना लिया हो लेकिन आपका पैसा आपको किसी इन्फेक्शन से नही बचा पायेगा| अगर आप भीतर से स्वस्थ नही हैं और भीतर से स्वस्थ कब रहेंगे जब आपके आसपास सब कुछ सकारात्मक और स्वस्थ होगा, तो मेरा तो मन कहता हैं कि शनिवार रविवार को सम्पूर्ण लॉक डाउन घोषित होना चाहिए| सिर्फ घर पर रहना हैं अपने शारीरिक मानसिक भावात्मक स्वास्थ्य के लिए ,प्रकृति के लिए ….और आपने आने वाली संतति के लिए ………………

अब मैं तो फ्लैट हूँ मैं अपनी जगह कायम रहूंगा लेकिन आप सब मनुष्य हैं जहाँ भी जाएँ सुरक्षा का खासा ख्याल रखें|.मेरा आप् सबसे भावात्मक नाता हैं , मुझे पसंद हैं खुशियाँ ……………...इस लॉक डाउन ने यह सिखा ही दिया हैं …

आदमी मुसाफिर हैं आता हैं जाता हैं .आते जाते रास्ते में ……………..यादें छोड़ जाताहैं

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मन उदास हो जाता हैं अपने अकेलपन से ऊब होने लगती हैं मेरा भी मन चाहता हैं कि हरा भरा शहर हो कम से कम ट्रैफिक हो | शांत सुरक्षित वातावरण हो | सब अपने साथ साथ रहे …. वो कल एक गाना सुना था …. पंछी पिंजरा तोड़ के आजा ..अपने घर में भी हैं रोटी | कम खा लीजिये लेकिन गम ना खाइएगा |

लॉक डाउन का तीसरा सत्र शुरू हो गया हैं | ना जाने कितने स्तर तक यह सब चलेगा | बीमारों की संख्या लगातार बढ़ रही हैं | सीने में धुक्धुक्की सी लगी रहती हैं | जब जब सामने लिफ्ट का दरवाज़ा खुलता हैं मेरा मन धडक उठता हैं कि कौन हैं ? कहाँ जाना हैं ? कृपया अपनी सुरक्षा का ख्याल रखिये | आप सुरक्षित रहेंगे तो आपके आस पास वाले भी सुरक्षित रहेंगे | आप सब अपने अपने घर में सेफ हैं क्योंकि जरुरी सेवाएँ उपलब्ध कराने वाले आपके लिए दिन रात काम कर रहे हैं | उनका आदर कीजिये |

किसी भी स्वयं सेवी संस्था के माध्यम से भूखों के लिए भोजन का प्रबंध कीजिये| जानवरों को भूखा न रहने दें | सड़क तक निकल आये वन्य जीवों का वध न करें | सबसे जरुरी बात ...घर पर रहे . बार बार हाथ धोते रहे |सकारात्मक रहे \ अपनी इम्युनिटी बढाए |
हो ना मायूस खुदा से ‘बिस्मिल’
ये बुरे दिन भी गुजर जायेंगे
( बिस्मिल अज़ीमाबादी )

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आज सुबह सुबह शर्मा जी किसी को बता रहे थे गजेंदर ठाकुर भारत लौटना चाहते हैं | मेरा दिल बल्लियों उछल रहा हैं | अब वो नोइडा में रहकर एक हॉस्पिटल खोलना चाहते हैं | राजा ठाकुर मेमोरियल हॉस्पिटल | उन्होंने अपने इस फ्लैट का नाम राजमहल रखना निश्चित किया हैं | इस लॉक डाउन के पश्चात हम सबके मूड और मूवमेंट सब बदले बदले से होंगे ..हम सब आजकल जीने के तरीके सीख रहे हैं ….
घर भी वही होगा बस अब सोच बदल गयी हैं ….मुझे भी मुबारक कहिये इस कोरोना संकट के बाद मैं भी मकान से घर हो जाऊं



मेरे खुदा मुझे इतना मो’तबर कर दे
मैं जिस मकान में रहता हूँ उसको घर कर दें
(इफ्तिखार



~~~~~ नीलिमा शर्मा ~~~~~~