lout kar aaunga ek baar fir books and stories free download online pdf in Hindi

लौट कर आऊँगा एक बार फिर

लौट कर आऊँगा एक बार फिर

रितिक का शव घर से निकलते ही निकिता फूट-फूट कर रो पड़ी...आस पास खड़े लोगों की आँखों में भी आँसू झिलमिला रहे थे । रितिक था ही इतना प्यारा कि बरबस सभीं को अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। वर्षो जीवन मृत्यु से झूलने के पश्चात् आखिर मौत विजयी हो ही गई थी...भरपूर इलाज करवाया, पैसा पानी की तरह बहाया । ऐलोपैथिक, होमियोपैथिक, आयुर्वेदिक कोई भी चिकित्सा पद्वति उन्होंने नहीं छोड़ी थी । लोगों के कहने पर मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरूद्वारे जाकर भी उसके स्वास्थय एवं लंबी उम्र की मन्नतें माँगी किन्तु फिर भी वह उसको मौत के मुँह से निकाल नहीं पाई थी ।
‘मत रोइये भाभी...सोच लीजिए आपका और उसका साथ बस इतना ही था ।’ उसकी ननद प्रिया ने उसे समझाते हुए कहा ।


‘ हाँ निकिता, तूने तो अपनी तरफ से हर संभव प्रयत्न किया किंतु यहीं आकर तो इंसान हार जाता है...।’ दीर्घ श्वास लेते हुए उसकी जिठानी नमिता ने उससे कहा ।

‘ धीरज धर बहू, भाग्य के लिखे को आज तक कोई नहीं मिटा पाया है । आज नहीं तो कल यह स्थिति तो आनी ही थी, इस अकेलेपन की विभीषिका से बचने के लिये ही मैं बार-बार तुझे सलाह देती रही लेकिन उस समय तुमने मेरी बात पर ध्यान ही नहीं दिया । अब स्वयं को संभालो तथा अमित को भी, यदि तुम ही हिम्मत हार जाओगी तो उसे कौन संभालेगा ?’ माँजी ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा ।

अपनी-अपनी तरह से सभी उसे सांत्वना देने का प्रयास कर रहे थे लेकिन निकिता के कानों में उनकी बात पहुँच ही नहीं रही थी । वह तो अतीत के उन क्षणों में पहुँच गई थी...जहाँ उसका रितिक उसकी बाहों में हँस रहा था, मुस्करा रहा था । कभी वह किसी खिलौने के लिये मचल रहा था तो कभी अमित के साथ स्कूटर पर बैठकर घूमने की जिद कर रहा था...सुख-दुख के क्षण एक-एक करके उसके मनमस्तिष्क में चलचित्र की तरह घूमने लगे...
उतार-चढ़ाव तो मानव जीवन के अहम् हिस्से हैं लेकिन उसके जीवन में इनका असर थोड़ा ज्यादा ही था । पैदा होते ही पिता की मृत्यु हो गई थी । यद्यपि माँ को पिता के आफिस में ही अनुकम्पा नौकरी मिल गई थी किंतु जीवन में आये सूनेपन के एहसास ने उसका बचपन असमय ही छीन लिया था...जीवन में खुशियों का महत्व उसे विवाह के पश्चात् अमित जैसा समझदार पति प्राप्त होने पर पता चला ।

निकिता की खुशियों का ठिकाना न रहा जब उसे अपनी कोख में किसी फूल के खिलने का अहसास हुआ । वह दोनों बेसब्री से उसके आगमन की प्रतीक्षा करने लगे । नियमित चैकअप के लिये जाना, डाक्टर की सलाह के अनुसार चलना तथा नवागंतुक के स्वागत के लिये स्वयं को तैयार करना उसका दैनिक कृत्य हो चला था । उसके भविष्य के स्वप्न बुनने में उन दोनों ने कई रातें जागते-जागते बिता दी थीं । आखिर वह समय भी आ गया जब उस फूल के खिलने के दिन गिनती के रह गये । एक दिन वह चैकअप के लिये गई तो डाक्टर ने उसे तुरंत अस्पताल में दाखिल होने के लिये कहा ।
कुछ चेकअप के पश्चात् सीजेरियन आपरेशन करने का निर्णय लेना पड़ा...होश में आने पर पुत्ररत्न की प्राप्ति पर मातृत्व के गौरव के अहसास से अभिभूत अपने सभी कष्टों को भूलकर उसे सीने से चिपकाये कभी वह उसका हाथ देख रही थी तो कभी आँख, नाक, कान...वस्तुतः उसके लिये यह बात महत्व नहीं रखती थी कि होने वाला बच्चा पुत्र है या पुत्री, जो भी हो बस स्वस्थ होना चाहिए, यही उसकी आकांक्षा थी ।

‘ बेचारी अब कभी माँ नहीं बन पायेगी...। ’

बाहर बात करती नर्स के शब्द उसके कानों को छेदते चले गये थे...सुनकर निकिता स्तब्ध रह गई । एक बार सोचा कि उसको बुलाकर पूछे । फिर सोचा कि शायद वह किसी अन्य के बारे में बातें कर रही हो...! अमित के आने पर वह अपने मन की दुविधा उससे छिपा नहीं पाई, उसका प्रश्न सुनकर वह गंभीर हो उठा...फिर उसकी ओर प्यार भरी नजरों से देखते हुए गंभीर स्वर में कहा, ‘निकिता, शरीर के जिस अंग का महत्व ही न रह जाए या जिस अंग के कारण जान को खतरा हो उसको निकाल ही दिया जाना उचित है...यही तुम्हारे केस में हुआ है । इंफेक्शन के कारण गर्भाशय निकलवाने का निर्णय लेना पड़ा ।’

‘ तो क्या अब मैं कभी माँ नहीं बन पाऊँंगी...?’ निकिता ने रोते हुए कहा था ।

‘ तो क्या हुआ निकिता, आज के युग में एक बच्चे की परवरिश करना ही मुश्किल होता जा रहा है...मैंने तो पहले से ही सोच रखा था चाहे बेटा हो या बेटी...‘हम दो हमारे एक’ का सिद्धान्त अपनाते हुए अपने बच्चे की उचित परवरिश के लिये दूसरे बच्चे की बात सोचेंगे भी नहीं...।’ सहज स्वर में अमित ने उसे समझाते हुए कहा था ।

अमित की बातें निकिता को संतुष्ट नहीं कर पा रही थीं । वह जानती थी कि उसे दुख न हो इसीलिये वह ऐसी बात कह रहे हैं वरना ऐसा कौन होगा जो पूर्ण परिवार नहीं चाहता...!! जीवन में अचानक आये इस भूकंप के कारण वह मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गई थी । अधूरेपन का अहसास उसे तोड़ने लगा था ।
‘ निकिता तुम दुखी क्यों होती हो, कम से कम हम उन लोगों से तो अच्छे हैं जिन्हें किसी कारण संतान सुख नसीब नहीं हो पाता है । हमारे पास हमारा बेटा रितिक है, उसकी खुशियाँ अब हमारी खुशियाँ हैं । इसके साथ ही मेरा तुमसे आग्रह कि तुम अपनी इस मानसिक स्थिति से बाहर निकलो...कहीं ऐसा न हो कि तुम उन खुशियों के लिये जो तुम्हें मिल ही नहीं सकती, वर्तमान को कष्टप्रद बना लो । इस मासूम को अपने प्यार से वंचित रखो । एक बात और इस बात का जिक्र तुम किसी से यहाँ तक कि माँ से भी मत करना...वह इस बात को पचा नहीं पायेंगी तथा बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगेगी ।’ उसकी दशा देखकर अमित बार-बार उसे समझाते हुए कहते ।
अमित के प्यार तथा रितिक की भोली मुस्कान ने उसे जीवन के उस कटु सत्य से उबारा था...उसकी सारी दुनिया रितिक के इर्द गिर्द ही सिमट कर रह गई थी । रितिक की भोली भाली भावभ्ांगिमाओं में खोकर वह अपनी छोटी सी दुनिया को सजाने संवारने में लगी थी ।

अभी पाँच महीने ही बीते थे कि रितिक को ज्वर हो गया । साथ ही साथ शरीर में सूजन भी आ गई...डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने कुछ टेस्ट करवाने के लिये कहा । जब डाक्टर को रिर्पोट दिखाई तो उन्होंने चिंताग्रस्त स्वर में कहा,‘ आपका बेटा सिकिल सैल एनीमिया नामक बीमारी से ग्रस्त है...।’

‘ सिकिल सेल एनीमिया...।’ अमित ने पूछा ।

‘ जी हाँ अमित साहब ।’

‘ यह कौन सी बीमारी है ?’ अमित ने पुनः पूछा क्योंकि उसने इस बीमारी का नाम ही नहीं सुना था ।

‘ यह बीमारी आनुवांशिक है...।’

‘ डाक्टर साहब हम दोनों में से तो किसी को यह बीमारी नहीं है ।’

‘ हमारे शरीर की आनुवांशिक संरचना ही ऐसी है कि किसी पीढ़ी में किसी बीमारी के जीन्स सुसुप्तावस्था में रहते हैं तथा किसी पीढ़ी में यह चरमावस्था में पहँच जाते हैं क्योंकि आप दोनों ही इस जीन्स के कैरियर हैं अतः आपके बेटे में यह चरमावस्था में उपस्थित हैं ।’

‘ डाक्टर साहब आप यह क्या कह रहे हैं, हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा है । प्लीज सरल शब्दों में समझाइये तथा इसके उपचार के बारे में विस्तृत रूप से बताइये । ’

‘ यह बीमारी रक्त से संबंधित है...मानव को जीवित रखने के लिये रक्त की अहम् भूमिका रहती है । रक्त के एक घटक लाल रक्त कोशिका के अंदर पाये जाने वाले हीमोग्लोबिन की संरचना में परिवर्तन के कारण यह बीमारी हो जाती है । इसके लिये जीन्स जिम्मेदार हैं...लाल रक्त कोशिका के एक कण में हीमोग्लोबिन के 28 करोड़ कण रहते हैं ।
हीमोग्लोबिन फेफड़ों द्वारा आक्सीजन को शरीर के सभी अंगों को भेजता है, ऐसे वक्त सिकिल सैल गुणधर्म वाले मालीक्यूल लाठी जैसा आकार धारण कर लेते हैं और ऐसे लाठियों के गट्ठे लाल रक्त की कोशिका में जमा होने लगते हैं जिसके कारण लाल रक्त की लचीली और गोलाकार कोशिका कड़क और हँसिया के आकार में बदल जाती है । ये सिकिल सैल बच्चे की रक्तवाहिनियों में फँसकर रक्त प्रवाह में बाधा पहुँचाते हैं जिसके कारण शरीर में सूजन आ जाती है । एक स्वस्थ लाल रक्त कणिका 120 दिन जिंदा रहती है जबकि सिकिल सेल सिर्फ 40 दिन जिंदा रह पाती हैं । आक्सीजन की कमी के कारण बच्चे में तरह-तरह के संक्रमण होने का डर रहता है तथा...।’

‘ तथा क्या डाक्टर...?’

‘ ऐसे बच्चे का जीवन ज्यादा नहीं होता ।’ कहकर डाक्टर चुप हो गया ।

सुनकर वे दोनों संज्ञाशून्य हो गये थे...उन्होंने कैन्सर, एडस, टी.बी. जैसी अनेक जानलेवा बीमारी के नाम सुने थे किन्तु यह बीमारी उनके लिये नई तो थी ही, उनकी खुशियों को ग्रहण लगा गई थी । डाक्टर के मुख से सच्चाई जानकर निकिता फूट-फूट कर रोते हुए बोली थी,‘ डाक्टर एक बार पुनः परीक्षण कर लीजिए, मेरे रितिक को ऐसी बीमारी नहीं हो सकती, आपको अवश्य कुछ गलतफहमी हुई है ।’

’डाक्टर, आज मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है, आखिर इस बीमारी का कोई तो इलाज होगा... जितना भी खर्चा हो हम करने के लिये तैयार हैं पर रितिक को इस बीमारी से मुक्त कर दीजिए ।’अमित ने डबडबाई आँखों से पूछा था ।

‘ अमित साहब, यह सच है कि मेडिकल साइंस ने तरक्की की है किंतु कहीं-कहीं पर हमारे हाथ बंधे हुए हैं, वैसे जिंदगी मौत पर किसी का भी वश नहीं है,कभी-कभी अच्छा भला इंसान अचानक चला जाता है और बीमार उचित चिकित्सा और दवाओं के सहारे लंबी जिंदगी जी लेता है । हम दवायें देगें और आप दुआ करिए...। आखिर उम्मीद के सहारे ही दुनिया जिंदा है, वैसे बोन मैरो टफांसप्लांट से इस बीमारी से निजात पाई जा सकती है पर इसके लिये सगे भाई बहन का ही मज्जा प्रत्यारोपण में लाया जा सकता है ।’

‘ सगे भाई बहन का...पर...मैं तो बच्चा पैदा करने में अक्षम हूँ ।’ अचानक निकिता के मुँह से निकला ।

‘ क्या...?’ डाक्टर ने कहा ।

‘ जी हाँ डाक्टर...रितिक के होने के समय निकिता के गर्भाशय में संक्रमण हो गया था जिसकी वजह से उसे निकालना पड़ा ।’

‘ ओह ..!’

‘ क्या मेरे या अमित के बोन मैरो को प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकता ? ’ निकिता ने आशा भरी निगाहों से डाक्टर की ओर देखते हुये कहा ।

‘ संभव है अगर डोनर का अस्थिमज्जा, मरीज के शरीर के अस्थिमज्जा से मैच कर जाये तब भी प्रयास किया जा सकता है पर ऐसे केसेस में भी फिफ्टी-फिफ्टी का चांस रहता है...अगर आप कहें तो प्रयास करके देखते हैं ।’

इसके पश्चात् कुछ दिन विभिन्न टेस्ट करवाने में गुजरे पर उनकी आशा निराशा में बदल गई जब डाक्टर ने कहा आप दोनों में से किसी का भी अस्थिमज्जा रितिक के अस्थिमज्जा से मैच नहीं करता अब स्थिति से समझौता करने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं था ।

डाक्टर ने दवाइयाँ लिख दी थीं पर बार-बार डाक्टर के कहे शब्द हताश निराश निकिता के दिल में हथौड़े की तरह लगते...अब उसका स्वस्थ भाई या बहन कहाँ से लाये...? अगर अमित दूसरा विवाह कर लें तो...हाँ यही इस समस्या का समाधान है...।

मन की बात अमित से कही...उसकी बात सुनकर वह आक्रोशात्मक स्वर में कहा,‘ दूसरा विवाह...आखिर यह बात तम्हारे मन में आई कैसे...? क्या तुम्हें पता नहीं है कि बिना तलाक लिये दूसरा विवाह करना कानूनन जुर्म है...क्या तुम रितिक की विमाता लाकर उसके जीवन को नर्क बनाना चाहती हो...?’

‘ मैं तो रितिक की जान बचाने के लिये यह सब करना चाहती हूँ...जिस औरत से आपका विवाह होगा, उससे सारी बातें करके उसको विवाह के लिये तैयार करेंगे ।’

‘ तुम क्या समझती हो कि हमें ऐसी औरत मिल जायेगी जो अपने बच्चे की जिंदगी से खिलवाड़ करने देगी...फिर इसका क्या भरोसा कि उससे उत्पन्न संतान भी स्वस्थ ही हो...।’

‘ पर प्रयत्न तो किया जा सकता है...।’

‘ प्रयत्न...पर मैं यह सब नहीं चाहता । दूसरा विवाह तो कदापि नहीं...अगर हमारे भाग्य में बच्चे का सुख है तो यही ठीक हो जायेगा...। वैसे भी जो हमारे पास है उसे सहेजने के बजाय तुम दूसरे की कामना कैसे कर सकती हो ? तुम जानती हो जब वह ठीक था तब भी मैं दूसरे बच्चे के पक्ष में नहीं था अब जब वह बीमार है तब तो मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता...!! क्या ऐसे समय दूसरा बच्चा लाकर हम उसकी उचित देखभाल कर पायेंगें....? दूसरा बच्चा लाकर हम रितिक की अवहेलना नहीं कर सकते हैं, वह भी ऐसे समय जब उसे हमारे प्यार और देखभाल की अधिक आवश्यकता है । शायद तुम नहीं जानती कि एक अस्वस्थ बच्चे को पालना, स्वस्थ बच्चे को पालने से भी ज्यादा दुश्कर है, यह मत भूलो रितिक चाहे जैसा भी हो, हमारा बेटा है । आज यह बात तुमने कही लेकिन आज के बाद ऐसी बात मैं सुनना नहीं चाहता । रितिक ही हमारा वर्तमान है और भविष्य भी...उसकी देखभाल में मैं कोई कमी नहीं होने दूँगा । मैं आशावादी हूँ निक्की, शायद हमारा प्यार तथा उचित देखभाल उसे इस बीमारी से निजात दिला दे । ’

‘ अगर दूसरा विवाह नहीं, तो सैरोगेसी द्वारा भी हम अपना बच्चा प्राप्त कर सकते हैं ।’ निकिता ने हार न मानते हुये कहा ।

‘ निकिता क्या हम एक स्त्री की कोख खरीद कर क्या उसके साथ अन्याय नहीं करेंगे ? माना वह हमारा अंश नौ महीने अपनी कोख में रखेगी...पर क्या उसे उससे मोह नहीं होगा ? उससे उसके बच्चे को छीनना क्या उचित होगा ?’

इसमें उचित अनुचित की क्या बात है ? आजकल बहुत से लोग ऐसा कर रहे हैं । वैसे भी वह जब पैसों के लिये अपनी कोख उधार देगी तो उसे बुरा क्यों लगेगा ? ’

‘ तुम स्वार्थ में अंधी हो गई हो तभी तुम स्त्री होकर भी स्त्री की मानसिकता को नहीं समझ पा रही हो !! यह तो किसी की गरीबी का मजाक बनाना हुआ...और किसी की बात तो मैं नहीं जानता पर मैं किसी औरत की भावनाओं से नहीं खेल सकता ! क्या इतना सब करके भी हम स्वस्थ बच्चा प्राप्त कर पायेंगे ?’ कहकर वह अपने कमरे में चले गये ।

अमित के विचार सुनकर निकिता गर्व से भर उठी थी । अमित का यह रूप उसने पहली बार देखा था, सचमुच उसे गर्व हुआ था उनकी सोच पर...रितिक और उसके के प्रति उसके असीम प्यार पर...। जिस सहजता से अमित ने उसका मान रखा था उसी सहजता से रितिक की बीमारी को लिया था ।
समय के साथ जिंदगी और दुश्कर होती गई...परेशानियों, चिंता और तनाव का दौर प्रारंभ हो गया । रितिक को लगातार चैकअप के लिये ले जाना आवश्यक हो गया था...जब आवश्यकता पड़ती खून चढ़ाया जाता । नियमित दवाइयाँ, परहेज नित्य का क्रम बन चुका था...जीवन चल रहा था लेकिन उस जीवन में खुशियों से ज्यादा चिंतायें थी...खौफ था...डर था... दूसरे शब्दों में दहशत थी और दहशत में जीना मृत्यु से भी ज्यादा भयंकर है...इसका उसे एहसास हो चला था ।

रितिक ही उनका भूत, भविष्य और वर्तमान था । वही उनकी छोटी सी दुनिया का सूरज और चाँद था.....उसके लिये उन्होंने न जाने क्या-क्या स्वप्न देखे थे किन्तु उसकी बीमारी ने उनके सारे स्वप्नों को तोडकर रख़ दिया था । उन्होंने तो कभी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा फिर बार-बार उनके जीवन में ही ऐसी घटनायें क्यों घटित हो रही है, यह बात उनकी समझ से परे थी ।

निकिता को अपनी असमर्थता पर बेहद दुख होने लगा था लेकिन अब तो उसके पास कोई उपाय ही नहीं था । कभी-कभी परिस्थतियों पर अपना वश नहीं होता...। बार-बार यही मन में आता कि आज के समय में विवाह कुंडली मिलाकर नहीं वरन् रक्त परीक्षण करवाकर होना चाहिए ।

अपने मन की बात मन में ही रखनी पड़ती थी । अमित से इस संदर्भ में कुछ भी नहीं कह सकती थी । वह जानती थी कि वह भले अपने मुख से कुछ न कहें पर अपने अपने बच्चे के लिये कुछ न कर पाने की मनःस्थिति के कारण वह भी मन ही मन घुल रहे हैं...सच है इंसान को अपना दुख स्वयं सहना पड़ता है । रितिक चाहे जैसा भी है उनका बेटा है...उनका वर्तमान और भविष्य है । नित्य मन में एक ही प्रण करती कि वह उसकी देखभाल में कोई कमी नहीं होने देगी...शायद उसका प्यार तथा उचित देखभाल उसे इस बीमारी से निजात दिला दे ।

धीरे-धीरे मन के अपराधबोध से मुक्ति पाकर वह पूर्ण रूप से रितिक की देखभाल में लग गई थी । उनकी देखभाल का ही फल था कि कुछ दवाओं और समय-समय पर ब्लड टफांस्फ्यूजन के सहारे रितिक सामान्य जिंदगी जीने लगा था...।

समय का चक्र धीरे-धीरे खिसकता रहा, वह समय भी आ गया जब रितिक ने स्कूल जाना प्रारंभ कर दिया...उसकी समझने की शक्ति विलक्षण थी । उसकी योग्यता को देखकर एक बार उसकी अध्यापिका ने प्रसंशा करते हुये कहा,‘ रितिक पढ़ाई में अच्छा है अगर वह नियमित क्लास में आया करे तो और भी अच्छा करेगा ।’

‘ जी आगे से ध्यान रखूँगी ।’

‘ क्या बात है निकिताजी ? आप परेशान लग रही हैं । कोई परेशानी हो तो बताइये शायद मैं आपकी कुछ सहायता कर सकूँ ।’ खुशी की बजाय दुख की एक क्षीण रेखा उसके चेहरे पर खिंची देखकर वह उससे पूछ बैठी थी ।

‘ नहीं ऐसी कोई बात नहीं है ।’ कहते हुए वह सकपका गई थी किंतु उसके बाद वह काफी सावधान रहने लगी थी तथा ऐसे अवसरों पर यथासंभव सहज रहने का प्रयास करने लगी थी ।
एक बार उसकी सास उसके पास आई । उनकी पारखी निगाहों से रितिक की बीमारी छिप न सकी...उन्होंने उसे समझाते हुये कहा,‘ बहू, रितिक अब बड़ा हो गया है । उसको अब तुमसे ज्यादा एक साथी की आवश्यकता है । वैसे भी तुम्हें अब उसकी बीमारी पर इतना खर्च करने की अपेक्षा वंश बेल को आगे बढ़ाने के लिये सोचना चाहिए ।’

‘ माँजी, डरती हूँ कि कहीं दूसरे बच्चे की परवरिश के कारण मैं रितिक की ठीक से देखभाल न कर पाऊँ ।’ निकिता ने सहज स्वर में कहने का प्रयत्न किया था जबकि रितिक के संबंध में सासू माँ की बातें सुनकर उसे बहुत बुरा लगा था ।

अमित के मना करने के कारण उसने अपने जीवन के कटु अध्याय का जिक्र किसी से नहीं किया था, क्योंकि सच्चाई सुनकर उसे लोगों से अनेकों प्रकार के प्रश्नों की आशंकायें थी । वह स्वयं को किसी के सामने दयनीय नहीं बनाना चाहता था क्योंकि उसे लगता था कि ऐसी स्थिति में लोग चाहे सामने सहानुभूति प्रकट करें लेकिन बाद में मजाक बनाने से नहीं चूकेंगे...और यह स्थिति उसे स्वीकार्य नहीं थी ।

‘ बहू, भावनाओं में बहने की अपेक्षा व्यावहारिक बनना सीखो वैसे भी तुम तो जानती ही हो कि रितिक की जिंदगी के दिन गिनती के हैं तो फिर उस पर पानी की तरह रूपया बहाने से क्या फायदा ?’

‘ माँजी...आप तो माँ हैं...एक माँ होकर आप भला ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं ? माँजी, रितिक मेरा बेटा है, उसकी खुशी हमारी खुशी है...वैसे भी जीवन का तो किसी के पता नहीं है फिर उसे जीवन की छोटी-छोटी खुशियों से वंचित क्यों रखें ? जिंदगी भले ही छोटी हो किंतु सार्थक और खुशियों से भरी पूरी हो, यही सोचकर हम चाहते हैं कि वह जब तक जीये अच्छी और खुशनुमा जिंदगी जीये ।’ निकिता के स्वर में आक्रोश के साथ-साथ असहजता आ गई थी ।

‘ रितिक तुम्हारा बेटा है तो मेरा पोता भी है लेकिन तुम दोनों की आँखों में पट्टी बंध गई है, अरे, बांझ गाय को भी कोई चारा खिलाता है...।’ माँजी ने उसे दुनियादारी सिखाते हुए कहा था ।

‘ माँजी, वह हमारा बच्चा है, उस पर हम खर्च करें या न करें, हमारी मर्जी है, जहाँ तक दूसरे बच्चे का प्रश्न है, रितिक की देखभाल में कोई कमी न रहे इसलिये हम अभी उस बारे में सोच भी नहीं सकते...और यह निर्णय मेरा अपना ही नहीं है वरन् अमित का भी है ।’ कहकर उसने बात को समाप्त करना चाहा था ।

उसके उत्तर को वह अपनी अवमानना समझकर रूठकर चली गई थी । लेकिन वह दोनों करते भी तो क्या करते...? असहाय थे...रितिक ही उनका सब कुछ था । उसके रहते उन्हें न अपने वर्तमान की परवाह थी और न ही भविष्य की चिंता थी, बस वे उसे किसी तरह ठीक होते देखना चाहते थे ।
एक दिन निकिता रितिक को उसका होमवर्क करा रही थी किंतु उसका ध्यान पढ़ाई में न देखकर उसने पूछा,‘ क्या बात बेटा ?’

‘ मॉम, क्या मैं सचमुच ज्यादा दिन नहीं जीऊँगा ?’
एकाएक उसने उसकी आँखों में झाँकते हुए पूछा ।

‘ तुम ऐसा क्यों कह रहे हो बेटा ? तुम बहुत दिन जीओगे ।’ यथासंभव स्वर को सहज बनाते हुए उसने कहा था ।

‘ मॉम, आप झूठ बोल रही हो, यदि ऐसा नहीं है तो आप रोज मुझे दवाइयाँ क्यों खिलाती हो, बार-बार मुझे अस्पताल में क्यों एडमिट होना पड़ता है ?’ तीखे स्वर में उसने पूछा था ।

‘ बेटा, बीमारी तो कभी भी किसी को भी हो सकती है, इसमें सोचने की क्या बात है ? तुम्हें बार-बार बुखार हो जाता है उसके लिये दवा चल रही है, कुछ दिनों बाद बंद हो जायेंगी ।’

‘ आप झूठ बोल रही हैं, यदि ऐसा नहीं है तो उस दिन दादी अम्मा क्या कह रही थी ? ’

‘ अपनी साइंस की कॉपी निकालो...काफी होमवर्क करना है । यदि पूरा करके नहीं गये तो मैडम डाँटेंगीं ।ं’ निकिता ने उसका ध्यान हटाने के लिये विषय बदलते हुए कहा ।

‘ नहीं मॉम, कुछ बात तो अवश्य है तभी मुझे रोज दवाइयाँ खानी पड़ती है, बार-बार खून बदला जाता है, इसमें काफी पैसा खर्च होता है ।’ सिर झुकाते हुए उसने उसकी बात को अनसुना करते हुए पुनः पूछा ।

‘ बेटा तुम ऐसा क्यों सोचते हो ? पैसा तो बच्चों के लिये ही कमाया जाता है । अब हम अगर तुम पर नहीं खर्च नहीं करेंगे तो और किस पर करेंगे...? तुम ही तो हमारे एकलौते लाड़ले बेटे हो...मेरी आँखों के सूरज चाँद हो ।’ कहकर उसने रितिक को अंक में भरते हुए अपने चेहरे पर हँसी लाने का असफल प्रयास करते हुए रितिक को हँसाना चाहा था किंतु चाहकर भी वह उसके चेहरे पर सहज स्वाभाविक मुस्कान नहीं ला पाई थी ।

उसके पश्चात् वह चुप होता चला गया था । कमरे में बैठा-बैठा वह पता नहीं क्या सोचता रहता था । लगता था उसकी जीने की इच्छा ही समाप्त हो गई है...स्कूल जाने के लिये कहती तो वह कहता,‘ मॉम, पढ़ने से क्या फायदा ? ’

‘ ऐसा क्यों कहते हो बेटा, पढ़ोगे नहीं तो कैसे जीवन आगे बढ़ेगा...? पढ़ाई तो प्रत्येक बच्चे के लिये आवश्यक है ।’

‘ मॉम, आप ठीक कहती है लेकिन मेरे जैसे व्यक्ति जिसके जीवन के दिन गिनती के हैं वह पढ़कर क्या करेगा ?’

‘ बेटा, तुम पता नहीं क्यों व्यर्थ की बातें सोचते रहते हो...जहाँ तक जीवन का प्रश्न है, हर व्यक्ति के दिन गिनती के होते हैं, यह बात अलग है कि कोई साठ वर्ष जीता है और कोई बीस वर्ष...। मुख्य बात यह है कि हम अपने गिनती के दिनों का कैसे उपयोग करते हैं ? कोई सौ वर्ष जीने पर भी कोई ऐसी उपलब्धि प्राप्त नहीं कर पाता जिससे कि दुनिया उसे याद रखे और कोई अपनी छोटी सी उम्र में भी ऐसे काम कर जाता है कि उसका नाम अमर हो जाता है...सरदार भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोस जैसे लोगों की जिंदगी लंबी नहीं थी किंतु फिर भी आज भी उनका नाम लोग गर्व से लेते हैं, यहाँ तक सूरदास और मैडम क्यूरी का अंधत्व भी उनकी राहों में बाधा नहीं बन पाया...।’ निकिता ने उसे समझाते हुए कहा था ।

उसकी बड़ी-बड़ी बातें उस 12 वर्षीय मासूम को क्या समझा पाती जबकि वह स्वयं ही स्थिति से समझौता कर पाने में स्वयं को असमर्थ पाती रही थी...बातें करना आसान है लेकिन उनको अपने जीवन में उतार पाना बेहद कठिन है, इस बात का उसे अनुभव था ।

रितिक को अवसाद में जाते देखकर निकिता घबड़ा गई थी, डाक्टर से बात की तो वह बोले,‘ उसके सामने आपको ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए थीं । आप तो जानती ही हैं कि किसी भी बीमारी से उबरने के लिये व्यक्ति में आत्मशक्ति की बेहद आवश्यकता होती है, जबकि आपकी जरा सी असावधानी से रितिक के केस में इसका अभाव हो गया है । अब फिर से उसमें आत्मविश्वास जगाना होगा । अब जब उसे पता चल ही गया है तो बात छिपाने की अपेक्षा उसे सब कुछ सच सच बता देना ही अच्छा है जिससे कि वह जीवन की कड़वी सच्चाई सहने तथा उससे लड़ने की क्षमता पैदा कर सके ।’

जो बात उसने और अमित ने यथासंभव रितिक से छिपाकर रखी थी वही बात माँजी की थोड़ी सी असावधानी से खुल गई थी । दरअसल माँजी ने जबसे उसकी बीमारी के बारे में सुना था तब से ही वह उसके प्रति उदासीन हो गई थी...। उनका कहना था जब मालूम है कि उसकी जिंदगी थोड़ी है तो उससे इतना लगाव क्यों ? कहीं ऐसा न हो कि उससे बिछड़ने के बाद जिंदगी गुजारनी भी कठिन हो जाए...पर जो सामने है, अपना अंश है, क्या उससे विरक्ति संभव है ?

डाक्टर तथा उसके स्कूल के दोस्तों सुशांत, पीयूष, अरमान के समझाने पर रितिक ने स्कूल जाना तो प्रारंभ कर दिया था किंतु उसका पहले वाला चुलबुलापन समाप्त हो गया था । स्कूल से आने के पश्चात् वह सदैव अपने कमरे में बैठा-बैठा कुछ लिखता रहता...। जैसे ही वह उसके कमरे में प्रवेश करती, वह उसे छिपा लेता...दिखाने के लिये कहती तो कहता,‘ प्लीज मॉम, इसे अभी मत पढ़ो,जब पूरा हो जायेगा तो मैं स्वयं आपको पढ़ने के लिये दे दूँगा ।’

‘ भाभी, लीजिए चाय पी लीजिये ।’ ननद का आग्रहयुक्त स्वर सुनकर वह अतीत से वर्तमान में आई ।

‘ हाँ बहू, चाय तो पी ले । वैसे भी तुमने दो दिन से कुछ नहीं खाया है...।’ जिन माँजी ने अपनी बात न मानने के कारण उससे बोलना छोड़ दिया था । उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा ।

‘ माँजी, कुछ भी खाने का मन नहीं है ।’ असहाय स्वर में उसने कहा था ।

‘ बहू, मरने वाले के साथ जाया तो नहीं जा सकता ।, अब तुम अपने को भी सँभालो और अमित को भी....मेरी बात मान लेते तो कम से कम घर में ऐसा सन्नाटा तो न छाया रहता ।’ आँखों में भरे आँसुओं को पोंछते हुए उन्होंने कहा था ।

‘माँजी...।’ वह चिल्लाना चाहकर भी चिल्ला नहीं पाई, न ही कह पाई कि वह मासूम कुछ दिन और जी लेता यदि उसके कानों में आपकी बात नहीं पड़ती ।
लोग कहते कि समय गहरे से गहरे घावों को भर देता है...किंतु उसके घाव तो समय के साथ-साथ बढ़ते जा रहे थे...। जब वह उसके खिलौनों, कपड़ों, किताबों को देखती तो अनायास ही आँखें बरसने लगतीं । कभी-कभी तो उसका पूरा दिन उसकी यादों के बीच ही गुजरता...। अमित उसकी दशा देखकर चिंतित हो उठा था, वह उसे समझाने की बहुत कोशिश करता किंतु कोई परिणाम नहीं निकलता था...लगता था उनके लिये जीवन समाप्त हो गया है...चारों तरफ अँधेरा ही अँधेरा है ।

एक दिन वह रितिक की कपड़े की अलमारी सहेज रही थी कि उसकी नजर अलमारी के कोने में रखी डायरी पर गई...खोलकर देखा तो पहले पेज पर ही पेंसिल से अपना चित्र बना देखकर चौंक गई....

मेरी प्यारी माँ,
साथ हमारा थोड़ा ही है...
पर आप मेरे दिल में
रहोगी सदा,
भले ही इस जन्म में
माँ का कर्ज न उतार पाऊँ,
पर वायदा है इतना,
लौटकर आऊँगा
एक बार फिर...
इंतजार करना....

इसी तरह के उद्गारों से डायरी भरी पड़ी थी...लेकिन एक पेज पर नजर ठहर गई...

दर्द का सैलाब दिल में
दिखा सकता नहीं,
सुलगना नियति मेरी,
खामोशी, उदासी तकदीर मेरी ।

रोना नहीं, रूलाना नहीं
निराशा का तोड़ कवच
होठों पर हँसी खिलती रहे
कामना सदा यही मेरी ।

आँखों से आँसू निकल रहे थे लेकिन मन उसकी कविताओं को पढ़ कर गर्व से भर उठा...मात्र चौदह वर्ष की छोटी सी उम्र में उसने वह सब कर दिया जिसे करने के लिये शायद दूसरों को कई जन्म लेने पड़ें...!! कौन कहता है, मेरा रितिक मर गया ? वह तो आज भी जिंदा है, अपनी कविताओं में...उसकी कविताओं का संकलन प्रकाशित करवाने का इरादा अमित को बताया तो उन्होंने भी खुशी-खुशी अपनी सहमति देकर किसी प्रकाशक से बात करने का आश्वासन दिया ।

उसकी कविताओं को पढ़कर प्रकाशक सहज ही किताब प्रकाशित करने के लिये तैयार हो गया...रितिक की किताब के प्रकाशन का काम प्रारंभ हो गया था...

वह दिन भी आ गया जब रितिक की पुस्तक का लोकार्पण होना था...शहर की जानी मानी हस्तियाँ समारोह में उपस्थित थीं । रितिक के मित्र सुशांत ने उसकी कविताओं के पाठ की पेशकश की । उसकी कविताओं के पाठ पर सुधीजनों की दाद पर वह भावविभोर हो उठी...

माँ तुम
मुझे किधर ढूँढ रही हो,
मैं तो सदा
तुम्हारे पास ही हूँ ।

तुम्हारे दिल में...
तुम्हारे हर अहसास में,
तुम्हारी अलकों में,
तुम्हारी पलकों में,
मैं ही तो छिपा हूँ ।

तुम्हारी हर सांस में
मेरा ही तो नाम है...
फिर तुम
दुखी क्यों हो ?

तुम जिसे देखोगी,
उसी में मुझे पाओगी...
आँसू पोंछो,
मुझे पहचानो ।

हर्ष विषाद
इस जीवन के हिस्से...
विषाद त्याग
हर्ष को अपनाओ,
जीवन सफल हो जायेगा ।

एकाएक निकिता को लगा कि रितिक मरा कहाँ है वह तो सुशांत के रूप में आज भी उसके सामने है...वह आज भी उसके पास, उसके साथ है । एकाएक उसके अंदर छाया सारा विषाद मिट गया । उसने रितिक की पुस्तक अपने सीने से लगा ली तथा साथ ही एक निर्णय किया कि वह उसके नाम से उसके स्कूल में एक छात्रवृत्ति देगी जिसके अंतर्गत साहित्य में सर्वाधिक अंक लाने वाले छात्र एवं काव्य प्रतियोगिता में विजयी उम्मीदवारों को वह रितिक पुरस्कार से नवाजेगी...शायद यही उसकी उसके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

मन में संकल्प लिये वे घर लौट रहे थे कि एक जगह भीड़ देखकर अमित ने कार रोक दी । पूछने पर पता चला कि एक कार का एक्सीडेंट हो गया है । अमित कार से बार निकले, देखा...लोग तमाशा देख रहे हैं यहाँ तक कि कुछ लोग तो एक्सीडेंट का वीडियो भी बना रहे थे पर सहायता के लिये कोई आगे नहीं बढ़ रहा है । अमित ने कुछ लोगों की सहायता से कार में फंसे आदमी और स्त्री को बाहर निकाला तथा अस्पताल की ओर चल दिये । आदमी जहाँ गंभीर रूप से घायल था वहीं घायल स्त्री दर्द से बुरी तरह तड़प रही थी । वह प्रेगनेंट थी । अस्पताल पहुँचकर अस्पताल वालों ने बहुत सारी फारमेल्टी पूरी करवाकर ही उनका इलाज प्रारंभ किया । अमित जहाँ शांतिपूर्वक सारी फारमेल्टी पूरी कर रहे थे वहीं निकिता उस घायल औरत को सांत्वना देती हुई सोच रही थी कि अस्पताल का स्टाफ इतना संवेदनहीन क्यों है ? इन्हें घायलों की चीख पुकार सुनाई क्यों नहीं देती ? घायल को लाने वाले का बायोडाटा पूछने की बजाय वह उसके इलाज की ओर ध्यान क्यों नहीं देते ? उन्हें अपनी फीस की चिंता क्यों रहती है ? बिना पैसा जमा करवाये वे मरीज को हाथ भी नहीं लगाना चाहते, ऐसा क्यों ?

सारी फारमेल्टी पूरी करने के पश्चात् घायल आदमी का मोबाइल लेकर उसके इमर्जेन्सी नम्बर पर फोन किया । कुछ ही देर में जिसको अमित ने फोन किया था वह आ गये । वह उनके पड़ोसी नरेंद्र थे । उनसे पता चला कि घायल विनय एक सोफ्टवेयर इंजीनियर है । वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान है । उसके माता-पिता का पिछले वर्ष ही एक रोड एक्सीडेंट में देहावसान हो गया था । लगभग यही कहानी उसकी पत्नी अंकिता की थी । उसके माता-पिता बचपन में ही नहीं रहे थे । भाई-भाभी ने ही उसे पाला था पर उसके प्रेम विवाह करने के कारण उनसे भी उसका नाता नहीं रहा था ।

वे बातें ही कर रहे थे कि डाक्टर आपरेशन रूम से बाहर आये...उनको देखकर अमित और नरेंद्र आगे बढ़े, उनको देखते ही डाक्टर ने कहा,‘ आई एम सॉरी...आपके पेशेन्ट को हम बचा नहीं पाये ।’

‘ ओफ...! ’ कहकर नरेन्द्र पास पड़ी बेंच पर बैठ गये । अमित उनको सांत्वना देने लगे ।

इसी बीच दूसरे ऑपरेशन थियेटर से नर्स बाहर आई तथा कहा,‘ बधाई हो लक्ष्मी हुई है । प्रसूता की हालत देखकर सीजेरियन ऑपरेशन करना पड़ा । बच्चे को तो बचा लिया है पर माँ की हालत गंभीर है । उन्हें आई.सी.यू. में शिफ्ट कर दिया है ।’

‘ क्या मैं माँ से मिल सकती हूँ ?’

‘ अवश्य...आइये ।’

निकिता नर्स के पीछे-पीछे गई, उसे देखते ही अंकिता ने आँखें खोलते हुये बड़ी कठिनाई से पूछा,‘ मेम विनय कैसे हैं ?’

‘ वह ठीक हैं...।’ अनायास ही निकिता के मुँह से निकल गया । वह जीवन मृत्यु के बीच झूल रही अंकिता को सच बताकर उसका आत्मबल कम नहीं करना चाहती थी ।

सुनकर अंकिता ने आँखें बंद कर लीं । इसी बीच नर्स बच्ची को लेकर आई । बच्ची को देखकर उसकी आँखों में खुशी आई पर मुँह से शब्द नहीं निकल पाये, अंततः उसकी आँखों से आँसू बहने लगे ।

‘ तुम चिंता मत करो अंकिता, जब तक तुम ठीक नहीं होती, बच्ची की देखभाल मैं करूँगी ।’ कहते हुये उसने अंकिता के आँसू पोंछे थे ।

अंकिता को सांत्वना देकर वह बाहर आई...नरेंद्र और अमित विनय की बॉडी लेने की प्रक्रिया में जुटे थे । अब तक नरेंन्द्र की पत्नी सीमा भी आ गई थी । बॉडी मिलते ही वे दाहसंस्कार के लिये चले गये ।
देर रात तक वे घर पहुँचे थे । अमित बुरी तरह थके हुये थे अतः शीघ्र ही सो गये पर उसे नींद नहीं आ रही थी । उसे लग रहा था कि वह अभी तक अपने ही दुख को ज्यादा समझती रही पर अंकिता...बेचारी कैसे अपने जीवन का सफर पूरा कर पायेगी ? सुबह उठकर उसने अमित को नाश्ता बनाकर दिया तथा अस्पताल चल दी । अमित ने उसे टोका नहीं, शायद उन्हें भी उनसे मोह हो चला था या एक नागरिक की तरह वह अपना कर्तव्य निभाना चाहते थे ।

किंतु अंकिता ठीक कहाँ हो पाई थी ? चार दिन की बच्ची को छोड़कर वह भी विनय के पीछे-पीछे चली गई । निकिता ने अंकिता के भाई से संपर्क किया किंतु उसने अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों का रोना रोते हुये उस बच्ची को अपनाने में असमर्थता जता दी । अमित और निकिता को उन दोनों की मासूम बच्ची के प्रति उदासीनता देखकर आश्चर्य हुआ था । यह कैसा ईश्वरीय विधान है कि कोई तो बच्चों के लिये तरसता रह जाता है और कोई अपनों के प्रति अपने कर्तव्यों से इस तरह मुख मोड़ लेता है !! अंकिता के भाई-भाभी का उदासीन रूख पाकर उन्होंने उस मासूम को अपनाने का निश्चय कर लिया था ।

बच्ची को गोद में लेते ही रितिक की कविता की पंक्तियाँ उसके जेहन में गूँजने लगी थीं...

मेरी प्यारी माँ,
साथ हमारा थोड़ा ही है...
पर आप मेरे दिल में
रहोगी सदा,
भले ही इस जन्म में
माँ का कर्ज न उतार पाऊँ,
पर वायदा है इतना,
लौटकर आऊँगा
एक बार फिर...
इंतजार करना...।

अचानक उसे महसूस हुआ कि उसका इंतजार समाप्त हो गया है...उसका रितिक लौट आया है इस मासूम के रूप में...उसने उसको अपने सीने से लगा लिया ।

सुधा आदेश