Kuchh Gaon Gaon Kuchh Shahar Shahar - 18 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर - 18 - अंतिम भाग

कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर

18

"तो फिर मैं क्या करूँ बताइए। मेरे भी तो बेटी को लेकर कई अरमान हैं," सरोज आँखों में आँसू भर कर बोली।

"इस माहौल में पले-बढ़े बच्चों के लिए यह आँसू बहाना सब पुरानी और इमोशनल ब्लैकमेल की बातें हैं। जमाना बड़ी तेजी से बदल रहा है सरोज। यदि हम भाग नहीं सकते तो जमाने के साथ चल तो सकते हैं।"

"वो हमारे बच्चे हैं जी। उनका भी तो अपने माता-पिता के प्रति कोई कर्तव्य है या नहीं..."

"जरूर है..." सुरेश भाई प्यार से पत्नी के गालों पर ढुलकते आँसू पोंछते हुए बोले... "हम यह क्यों भूल जाते हैं कि इन बच्चों ने हमें माता-पिता कहलाने का सौभाग्य दिया है, सुख दिया है। अपनी तोतली बातों से हमें आनंदित किया है। हम कितने गर्व से सिर उठा कर कह सकते हैं कि हम निशा और जितेन के माता-पिता हैं। जिन बच्चों ने हमें इतना प्यार दिया, मान दिया... अब हमारा भी तो कोई कर्तव्य बनता है अपने बच्चों के प्रति। उन्हें अपने पंख फैला कर खुली हवा में उड़ने दो सरोज। उनके पैर अपनी ममता की डोर से इतने भी मत बांधो कि वो कट जाएँ"

"वो तो सब ठीक है पर मैं क्या करूँ। जवान बेटी का सोच कर चिंता तो होती ही है ना।"

"निशा अब जल्दी ही घर से बाहर रह कर नौकरी शुरू करने वाली है। अब वह पैसों के लिए हमारे ऊपर निर्भर नहीं करेगी। यदि उसके कामों में ज्यादा मीन-मेख निकाली या सायमन को कोसा तो वह घर ना आने के बहाने ढूँढ़ने लगेगी। यदि हम चाहते हैं कि बच्चे हमारे रहें तो उनके साथ दोस्तों वाला व्यवहार रखना होगा। हँस कर या रो के हमें उनकी पसंद को अपनाना ही पड़ेगा।"

"अब अपने ही पेट के जायों को हम सही राह नहीं दिखा सकते..."

"ठीक कहा आपने सरोज। सोचिए... इस साल जितेन भी युनिवर्सिटी जा रहा है। बच्चे के पैर एक बार घर से बाहर निकले तो वह फिर पलट कर वापिस नहीं आएगा। इस उम्र में घर से बाहर आजादी में जीने का मजा ही कुछ ओर होता है। हमें तो स्वयं को भाग्यशाली समझना चाहिए कि हमारे दोनों बच्चे पढ़ाई में अच्छे हैं।"

"मेरा जितेन ऐसा कभी नहीं करेगा," सरोज आँसू पोंछते हुए बोली।

"इतनी उम्मीदें मत लगाओ सरोज। भगवान कृष्ण ने भी गीता में कहा है कि अपना कर्तव्य करते जाओ फल की अपेक्षा मत करो। जितनी जल्दी हम बच्चों के बिना अकेले रहने की आदत डाल लें उतना अच्छा है। वो हमारे बच्चे जरूर हैं किंतु उन्हें तभी सलाह दो जब वह माँगे। हमारे पास यदि जीवन के अनुभव हैं तो वह हम से अधिक पढ़े लिखे हैं। हम पुराने जमाने के हैं और वो आज की पौध हैं। हमें उन्हें स्वतंत्र करना ही होगा नहीं तो वह हमसे दूर होते जाएँगे।"

"कभी कभी तो मुझे आपकी बातों से डर लगता है। समझ में ही नहीं आता कि आप क्या कह रहे हैं।"

"क्यों कि आप एक माँ हैं जो अपने बच्चों को हर समय आँचल में ही छुपा के रखना चाहती हैं।"

"चलो अब सो जाएँ सुबह जल्दी उठना है। सब को एयरपोर्ट पर भी तो छोड़ने जाना है।"

***

सरला बेन बहुत खुश हैं। आज इतने वर्षों के पश्चात उनके मन की मुराद जो पूरी हो रही है। जिस घर में वह लगभग पिछले 22 वर्षों से रह रही हैं दिल से उसे कभी अपना नहीं माना। उनका घर तो वो था जिसे पति के साथ मिल कर तिनका-तिनका जोड़ कर बनाया था।

बिस्तर पर लेटते ही सरलाबेन सोचों में डूब गईं...।

बस आज की रात और। कल शाम को मेरी इतनी लंबी वर्षों की प्रतीक्षा पूरी हो जाएगी। आखिर निशा ने अपना वादा पूरा कर ही दिया।

निशा ने तो वादा पूरा करके दिखा दिया किंतु क्या मैं इतने वर्षों के पश्चात नवसारी जा कर ठीक कर रही हूँ... माँ बाबू जी तो कब के चले गए। नवसारी में कौन होगा... ना जाने वहाँ जाकर क्या मिले। अपने भाई भाभियों के विषय में मैं कुछ जानती भी तो नहीं। क्या इतने सालों के बाद वह लोग वहीं होंगे...

यह सब अच्छा नहीं लग रहा... अपनी एक चाहत के लिए एक छोटी सी बच्ची को खतरे में डाल रही हूँ। निशा की अभी उम्र ही क्या है केवल 22 साल। फिर साथ में सायमन... एक पराया लड़का। भगवान ना करे कोई बात हो गई तो उसके माता-पिता को क्या जवाब देंगे। मैं इतनी स्वार्थी कब से बन गई। एक सपने, एक परछाईं के पीछे मैं सब को इतनी दूर ले कर जा रही हूँ...

मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि नवसारी में कोई होगा भी या नहीं। कैसा नवसारी... कौन सा नवसारी... पता नहीं आगे जा कर क्या मिले। किसी ने मुझे पहचानने से भी मना कर दिया तो... नहीं मैं बच्चों को इतने बड़े जोखिम में नहीं डाल सकती। यदि बच्चों के साथ कोई ऊँच-नीच हो गई तो सरोज तो मुझे माफ कर भी दे किंतु मैं स्वयं को कभी माफ नहीं कर पाऊँगी।

मैं अभी नीचे जाकर सरोज और सुरेश भाई से बात करती हूँ। लेकिन कहूँगी क्या... वह लोग भी क्या सोचेंगे कि सारी उम्र नवसारी के गुण गाती रही और समय आने पर डर गई। सब लोग मेरी हँसी उड़ाएँगे... नहीं... मैं क्या करूँ... हे भगवान... आप ही कुछ ऐसा चमत्कार कर दो कि कल का जाना रुक जाए।

सरला बेन के दिमाग में एक उथल-पुथल मची हुई थी।

निशा भी क्या सोचेगी। वैसे ही सुरेश भाई का हाथ तंग रहता है ऊपर से इतनी महँगी हवाई जहाज की टिकटें। यह मैंने क्या किया। सरला बेन इधर से उधर करवटें बदल रही थीं। कभी उठ कर कमरे में टहलने लगतीं तो कभी खिड़की के सामने जाकर खड़ी हो जातीं। दरवाजा खोलतीं नीचे जाने के लिए फिर बंद कर देतीं। उन्हें किसी पहलू भी चैन नहीं था।

घबराहट बढ़ती जा रही थी। माथे पर ठंडा पसीना आ रहा था। सरला बेन जाकर बिस्तर पर लेट गईं। माथे पर पसीना और शरीर बुरी तरह से काँप रहा था। सरला बेन ने काँपते हाथों से तकिया उठा कर सीने के साथ भींच लिया। रजाई को अपने चारों ओर कस के लपेट कर आँखें बंद कर लीं। साँसें तेज चल रही थी। साँसें तेज चलने के पश्चात भी सरला बेन को साँस लेने में तकलीफ हो रही थी। सारा शरीर पसीने से यूँ भीग रहा था मानों किसी ने बाल्टी भर कर पानी उन पर फेंक दिया हो। वह कभी गर्मी और कभी सर्दी महसूस करने लगीं।

घबराहट थी कि बढ़ती ही जा रही थी। मुझे यह सब क्या हो रहा है। कल मैं कैसे नवसारी जा पाऊँगी। नहीं मैं अभी नीचे जाकर सरोज से बात करती हूँ। गला बुरी तरह से सूखने लगा।

सरला बेन ने मेज से पानी का गिलास लेने के लिए हाथ उठाना चाहा तो वो जैसे बिस्तर के साथ ही चिपक गया हो। वह जितना बिस्तर से उठने का प्रयत्न करतीं उतना ही उसमें धसती जाती। सरला बेन की घबराहट बढ़ने लगी। साँस लेने में तकलीफ होने लगी। जी चाहा बेटी को बुलाएँ किंतु आवाज हलक में ही अटक कर रह गई। बार-बार उठने के प्रयास से वह काफी थक गईं थी। थकावट और दबे साँस के कारण धीरे धीरे उनकी आँखें बंद होने लगीं।

सुबह निशा की आँख खुली तो सात बज चुके थे। रात काफी देर तक वह पैकिंग करती रही थी। उसने सोचा नानी तो कब से उठ कर तैयार ही बैठी होंगी। अभी तक वह मेरे कमरे में क्यों नहीं आईं मुझे जगाने के वास्ते। चलो तैयार हो कर मैं ही जाती हूँ उनके पास। यह भी अच्छा है कि फ्लाइट शाम की है... आराम से निकलेंगे घर से।

निशा ने नीचे आकर देखा तो नानी वहाँ भी नहीं थीं।

"मॉम नानी अभी नीचे नहीं आईं... कमाल हो गया। मैंने तो सोचा था कि वह शोर मचा रही होंगी।"

"नहीं बेटा नानी की उम्र भी तो देखो ना थक गई होंगी। कल कितनी खुश थीं। उत्सुकता के कारण रात नींद भी उन्हें बड़ी देर से आई होगी। अब तुम ज्यादा शोर नहीं मचाओ सोने दो नानी को थोड़ा.. आगे बड़ा लंबा सफर है।"

लंबे सफर के विषय में कोई सरला बेन से पूछे। खामोशी से इस सफर के कितने ही उतार चढ़ाव देखते हुए जिंदगी के 76 वर्ष पूरे किए हैं उन्होंने। आज लंबे इंतजार के पश्चात उनके मन की इच्छा पूरी होने जा रही है।

"निशा बेटा एक बार फिर सोच लो। पता नहीं एक अजीब सी घबराहट हो रही है... भेजने का बिल्कुल मन नहीं कर रहा।"

"मॉम... अब फिर से शुरू मत हो जाइए प्लीज... नहीं तो मेरा भी वहाँ मन नहीं लगेगा। नानी का सोचिए जो कितनी खुश लग रही हैं। बस बहुत हो गया... मेरा मन नहीं लग रहा मैं जा रही हूँ नानी को जगाने।"

"थोड़ा रुक जाओ बेटा सोने दो नानी को... अभी कुछ ही देर में आ जाएँगी नीचे।"

"नहीं माँ मेरा उनके बिना मन नहीं लग रहा। घर कितना सूना सूना सा लग रहा है। अरे भई हम भारत जाने वाले हैं तो घर में कुछ शोर शराबा तो होना चाहिए ना। मैं जा रही हूँ नानी को जगाने...।"

"तुम भी ना..." सरोज हँसते हुए बोली और निशा धड़-धड़ करके सीढ़ियाँ चढ़ने लगी।"

"निशा सीढ़ियाँ चढ़ते हुए बोले जा रही थी, "नानी... नानी उठिए... और कितना सोएँगी। नीचे सब आपका इंतजार कर रहे हैं।"

दरवाजा खोल कर निशा नानी के कमरे में गई। नानी रजाई लपेट कर आराम से सो रहीं थी। उसने आगे बढ़ कर नानी के ऊपर से रजाई हटाई...

"नानी देखिए ना आप सोती रह गईं और जहाज चला भी गया...।"

जहाज तो कब का अपने यात्री को लेकर जा चुका था...।

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