Ye kaisi raah - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

ये कैसी राह - 14

भाग 14

रिजल्ट के दिन की खुशी अरविंद जी का परिवार शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता था। अनमोल की मेहनत सार्थक हुई थी तो अरविंद जी का कोटा भेजने का फैसला भी सही साबित हुआ था। उस रात सब ने बहुत ही खुशी से एक साथ मिल कर खाना खाया, और फिर सब बहुत रात तक बातें करते रहे। इन बातों में भविष्य की प्लानिंग ज्यादा थी ।

अब प्रतीक्षा थी सभी को कांउसलिग की। ये यकीन था कि अच्छा काॅलेज मिलेगा, पर कौन सा मिलेगा इसकी

जिज्ञासा अनमोल को बहुत थी। सावित्री चाहती थी

कि अपने शहर से पास के काॅलेज में ही एडमिशन मिल जाए तो अच्छा हो। दो साल तक बेटा दूर रहा था,अब वो और दूर नहीं रहना चाहती थी। मिल तो दूसरे अच्छे काॅलेज भी जाते,पर ये फ़ैसला लिया गया कि कानपुर आईआईटी प्रतिष्ठित काॅलेज भी है, और घर से बहुत दूर भी नहीं है। बड़े ही आराम से हर छुट्टी में अनमोल घर आ सकता है, इसलिए इसी काॅलेज में काउन्सलिंग के लिए रजिस्ट्रेशन कर दिया गया। पहली लिस्ट में ही अन-

मोल का नाम आ गया था। तय तारीख पर अरविंद जी

अनमोल को लेकर कानपुर गए। अनमोल को कंप्यूटर

साइंस ट्रेड में एडमिशन मिला था । पूरे दिन की भाग-दौड़ के बाद एडमिशन हुआ। ढेर सारी औपचारिता

पूरी करने में पूरा दिन लग गया । सबसे बड़ी समस्या थी फीस जमा करना। अरविंद जी को ये नहीं पता था कि इतनी बड़ी रकम की जरूरत पड़ेगी फीस के लिए ।

उन्होंने हनी और मनी की शादी के लिए को जमा पूंजी

रक्खी थी। वही रुपए लेकर आए थे।

अनमोल को इन सब बातो की भनक भी नहीं लगने देना चाहते थे, वरना वो परेशान होगा। एक बार अनमोल पढ़ ले फिर रुपए पैसे की कोई कमी नहीं रहेगी। यहां से पढ़ाई करने के बाद लाखों का पैकेज मिलता है ये उन्हे पता था। किसी तरह सारा काम निपटाया।

अब बारी हॉस्टल की थी। जो दैनिक इस्तेमाल की चीजें

थी उन्हे खरीद कर दिया। कुछ कपड़े भी खरीद कर

दिए। वहां सब अच्छे अच्छे कपड़ों में दिख रहे थे।

पर अनमोल के कपड़े उनकी तरह नहीं थे।

इन सब के बाद, अरविंद जी ने अनमोल को हॉस्टल

छोड़ा और जाने से पहले गले लगा कर रोने लगे।

उनकी बरसो की तपस्या आज सफल हुई थी।

अनमोल भी लिपट कर रोने लगा। था तो सोलह साल

का बच्चा ही। भले ही अरविंद जी ने कुछ नहीं कहा था पर उसे इस बात का आभास था कि पापा ने उसकी पढ़ाई पर अपनी लगभग सारी जमा पूंजी खर्च कर दी है। अनमोल बड़े की भांति पापा को तसल्ली देते हुए बोला

" पापा..! बस चार साल की बात है मै आपको हर वो सुख दूंगा। जो एक बेटा दे सकता है।"

अरविंद जी बेटे के इस आश्वासन से अंदर तक द्रवित हो

गए। नम आंखें मुस्कुरा उठी । जिसे इतने जतन से पाला पोसा अब वो सुख दुख का भागीदार बनने जितना बड़ा हो गया है ।

भर्राई आवाज को ठीक करते हुए वो बोले,

"हां बेटा ..! मुझे पता है तुम मेरे पास हो, फिर मुझे किसी चीज की आवश्यकता नहीं है।"

चलते वक़्त अनमोल ने पिता के पांव छुए और बोला

"पापा..! अपना ध्यान रखना ।"

फिर बाय करते हुए अंदर हॉस्टल में चला गया।

अरविंद जी की आखों से आंसू झर रहे थे। उन्होंने पलट

कर पीछे नहीं देखा। बस हाथ ऊपर उठा दिया। जल्दी

जल्दी तेज कदमों से मेन गेट की ओर चल दिए।

ट्रेन का समय था नहीं इसलिए बस से ही घर के लिए

निकल लिए।

घर पहुंच कर सभी ने घेर लिया ,उन सबको उत्सुकता

थी अनमोल के कॉलेज के बारे में जानने की।

अरविंद जी हंसते हुए बोले,

" कोई मुझे चाय पानी भी पूछेगा या सब को अन्नू के कॉलेज के बारे में ही जानना है।"

"सॉरी पापा..! "

कहती हुई हनी जल्दी से पानी लेने चली गई। मनी भी चाय बनाने उठी पर इस शर्त के साथ की जब तक वो ना आ जाये,पापा अपना मुंह बंद रखेंगे।

दादी खुश तो थी पर उन्हे संदेह था कि ज्यादा पढ़ - लिख कर उनका अन्नू उनसे दूर ना हो जाए।

वो बोली,

"अरविंद तू चाहे जो कह पर तेरी तरह नौकरी करता अन्नू तो क्या बुरा था। कम से कम पास तो रहता।"

अरविंद जी ने बुरा सा मुंह बनाया, और बोले

"क्या मां..! आप भी किसकी तुलना कर रहीं है।

कहां मै कहां अनमोल। अनमोल मेरे पूरे साल के बराबर

सैलरी हर महीने पाएगा।"

मां बोली,

"मुझे पैसो की चाह नहीं बस मेरे बच्चे मेरे पास रहे। फिर पैसे की कमी मुझे नहीं खलती।"

वक़्त के साथ अनमोल की पढ़ाई भी शुरू हो गई।

परी का इस साल बी. ए. फ़ाइनल ईयर था। वो साथ

साथ बी.एड. की तैयारी भी कर रही थी।

हनी और मनी के लिए एक दो रिश्ते अरविंद जी ने देख रखे थे। उनकी इच्छा थी दोनो बेटियों की शादी अच्छी नौकरी वाले लड़के से करे। बात आगे बढ़ती सब कुछ तय हो जाता। पर जब बात लेन देन की आती तो रिश्ता टूट जाता। अरविंद जी मन मसोस कर रह जाते ।

अनमोल के अच्छे भविष्य के लिए उन्होंने अपनी सारी

कमाई दांव पे लगा दी थी। सारी कोशिश नाकाम हो रही थी। अरविंद जी बहुत परेशान थे।

तभी एक दिन अचानक उनके बचपन के मित्र जवाहर

दीक्षित का तबादला यहीं उनके शहर में ही हो गया।

बिना किसी सूचना के वो अचानक एक संडे आ गए।

अप्रत्याशित रूप से बचपन के मित्र को सामने देख कर

अरविंद जी मारे खुशी के "अरे! हीरू" कहते हुए गले

लग गए। सम्मान सहित मित्र को अरविंद जी अंदर के आए। जवाहर जी के बच्चो के बारे में पूछने पर, अरविंद जी ने बड़े गर्व से बताया,

"अनमोल तो कानपुर आई आई टी में पढ़ रहा है। बेटियां हैं यहां अभी बुलाता हूं ।"

कहकर ,आवाज लगा कर,अरविंद जी ने बच्चियों को बुलाया। परी और मनी तो आ गई पर हनी शरमा रही थी। तब जवाहर जी ने कहा ,

"मेरी बाइक से तो बचपन में कितना घूमी हो, और अब अपने हीरू चाचा से शरमा रही हो।"

बचपन में जब भी हनी जवाहर जी को देख लेती हिलू चाचा ही बोलती। उनकी गोदी से उतरती ही नहीं थी।

ज्यादा जोर देने पर सकुचाती हुई हनी बाहर आई।

उसके प्रणाम करने पर जवाहर जी ने स्नेह से सर पर

हाथ फेरा और आशीष दिया।

वो बोले,

"बिटिया कितनी बड़ी हो गई है और बेहद सुंदर भी। जब मैंने देखा था तब तो छोटी सी थी।"

अरविंद जी ने कहा,

"और बता हीरू ..!अब तो बाल और गोविन्द भी बड़े हो गए होंगे !"

"हां..! अब तो दोनों हीं सर्विस में आ गए है ; बाल रेलवे में ड्राईवर है और गोविन्द ग्रामीण बैंक में कैशियर है।"

जवाहर जी ने कहा ।

दोनो मित्र सुख - दुख की बाते कर रहे थे, अपनी

परेशानी बताते हुए अरविंद जी ने कहा,

"क्या बताऊं..? जो कमाया बच्चो की पढ़ाई में लगा दिया, अब हनी की शादी के लिए जहां कहीं भी जाते ही पहले लोग लड़की के गुण नहीं देखते है ,बस दहेज़ की मांग ही रख देते है। अब तू ही बता कहां से लाऊं इतनी रकम की लड़के वालो की मांग पूरी कर सकूं।"

जवहर जी ने प्रतिउत्तर में सिर हिला कर "हूं "कहा ।

कुछ ही देर बाद जब जवाहर जी जाने लगे, तभी हनी और मनी खाने की थाली लेकर आ गई, मनी बोली,

"चाचा जी..! हाथ धो लीजिए और खाना खा कर तब

जाइए आप हमारे सामने पहली बार घर आए है ; हम

बिना खाए नहीं जाने देंगे। आप दीदी के हाथ का खाना

खा कर तो देखिए इतना स्वादिष्ट बनाती है कि आप हर

सन्डे आएंगे।"

जवाहर जी मुस्कुराते हुए बोले,

"अब तो खाना हीं होगा मेरी हनी बिटिया ने जो बनाया है।"

अरविंद जी और जवाहर जी ने साथ - साथ खाना खाया। जब जवाहर जी जाने लगे अरविंद जी उन्हें बाहर तक छोड़ने आए और कहा,

"अगले सन्डे को भाभी जी और मेरे दोनों भतीजों को लेकर आओ। बहुत समय हो गयाउन्हें देखे।'

जवाहर जी ने कहा,

"हां..! अरविंद.! वो सब भी तुम लोगों से मिलना चाहते है,मै अगले सन्डे सब को लेकर आऊंगा।"

इतना कह कर जवाहर जी चले गए ।

 

क्या अगले सन्डे जवाहर जी सब को लेकर अरविंद जी के घर आए। क्या हुआ जानिए अगले भाग में।