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मुंह खुला का खुला रह गया

मुंह खुला का खुला रह गया

आर 0 के0 लाल


दीप बहुत ही संस्कारी लड़का था। उसके पापा अदावल उसकी तारीफ करते नहीं थकते थे। मन ही मन गुनगुनाते रहते, “मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राज दुलारा...”। उन्होंने उसका नाम भी दीप ही रखा था। जब दीप बहुत ही छोटा था तभी अदावल से उसकी पत्नी ने तलाक ले लिया था। मामला ज्यादा पेंचीदा तो नहीं था मगर एक छोटी सी बात पर रोज घर में किचकिच होती थी। उसकी पत्नी सुनन्दा उस पर बहुत शक करती थी। न जाने क्यों उसे लगता था कि अदावल उसके प्रति वफादार नहीं है। एक बार अदावल अपने पैतृक गांव किसी शादी में गया हुआ था जहां हंसी मजाक का माहौल था और अदावल भीं गांव की कुछ लड़कियों से ठिठोली कर रहा था। तभी सुनंदा भी वहाँ आ गई। वहाँ का माहौल देख सुनन्दा को लगा कि उसके पीछे सब गड़बड़ चल रहा है । लड़कियां तो भाग गईं मगर अदावल की जिंदगी में हंगामा खड़ा हो गया। उसने बहुत सफाई दी मगर कोई फायदा नहीं हुआ। फिर तो अनेक मामलों पर आए दिन दोनों में तू-तू मैं-मैं और लड़ाई होने लगी। दो वर्ष का दीप समझ नहीं पा रहा था कि वे दोनों क्यों लड़ रहे हैं। वह बेचारा डरा सहमा सा रहने लगा था। सुनन्दा वैसे तो बहुत बड़े घर की थी और पढ़ी-लिखी थी मगर वह किसी की बात सुनने को तैयार नहीं होती थी। वह अदावल से तलाक लेने की जिद करने लगी । दीप पर लड़ाई का असर न पड़े इसलिए अदावल ने अपनी पत्नी को अलग हो जाने की इजाजत दे दी थी और उनका तलाक हो गया। उन दोनों ने बच्चे की कस्टडी का मामला कोर्ट-कचहरी में ले जाने की बजाय आपसी सहमति से सुलझा लिया था कि दीप एक एक साल करके अपनी मम्मी और अपने पापा के पास रह सकता है। चूंकि उस उम्र में दीप को मां की ज़्यादा ज़रूरत थी इसलिए उसे मां के पास ही रहने दिया हालांकि अदावल सुनन्दा को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराता रहा।

अब दीप की परवरिश सिंगल पेरेंटिंग से होने लगी थी । चार साल की उम्र के दीप को ज़्यादा कुछ समझ नहीं आया । माँ के साथ रह कर वह पिता की अनुपस्थिति का आदी हो गया था मगर उसकी मानसिकता बदलने लगी थी । उसे पापा जो चाहिए था। दीप बार-बार सोचता रहता कि आख़िर उसके मम्मी-पापा अलग क्यों रह रहे हैं। उसका कोमल मन आहत हो जाता जिससे उसके मानसिक विकास पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा था। अदावल बच्चे को ज़्यादा से ज़्यादा समय देना चाहता था मगर यह संभव नहीं हो पा रहा था। जब भी वह सचिन से मिलता उसका आत्मविश्वास बढ़ाने की बात करता और उसे समझाता कि किसी चीज़ से डरने की ज़रूरत नहीं है, क्योकि वह हर समय उसके साथ है।

अपनी मम्मी के साथ रहने के बाद दीप जब अपने पापा के पास आया तो देखा कि उसके पापा बहुत उदास और टूटे हुए लग रहे थे। उनकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी और चेहरे पर कोई चमक नहीं थी जैसे बरसों से बीमार हों। दीप के मन में अपने माता

पिता के लिए कुछ करने विचार आता, तो वह सपने बुनने लगता कि कैसे वह उन्हें मिलाने में उनकी मदद करेगा परंतु वास्तविक जीवन में केवल अपने भीतर घुटने के सिवा कुछ नहीं कर सका ।

अदावल अकेले रह कर अपने को तैयार कर लिया था कि वह कैसे अपने बच्चे के जीवन को सवांर देगा । इसीलिए उसने दूसरी शादी भी नहीं की। जब दीप की कस्टडी अदावल के पास आयी तो उसने दीप को एक नए तरीके से आवश्यक संस्कार देना शुरू किया। अदावल उसे अपनी भावनाओं व परेशानियों को पूरी तरह शेयर करने को कहता जिससे सचिन सिंगल परेंटिंग की वजह से कुंठित न हो जाए। वह दीप को भारतीय परंपाओं एवं रामायण जैसी गाथाओं के उपदेश देता, उसे व्यावहारिक ज्ञान, विज्ञान एवं पर्यटन

स्थलों से अवगत कराता। इस प्रकार दीप अदावल से कुछ ज्यादा ही हिल मिल गया था। वह अपनी मम्मी की जगह अपने पापा के साथ ज्यादा रहना चाहता था। सुनन्दा ने भी बच्चे की ईच्छा के आगे घुटने टेक दिये और उसे अपने पापा के पास ही रहने दिया।

अदावल उसे पढ़ाता और अच्छा करियर बनाने के लिए उसकी जरूरी कौंसेलिंग भी करता। उन्होंने कभी किसी काम के लिए दीप को डिस्करेज नहीं किया और कभी नहीं कहा कि तुझे कामयाबी नहीं मिलेगी, इसलिए तुम यह काम नहीं कर सकते ।

दीप भी अपने पिता की तारीफ और उनकी बातें करके गौरवान्वित होता । दीप अपने पिता को अपना आदर्श मानता कि वे दुनिया का सबसे अच्छा पापा हैं । वह कहता कि हमारा पालन पोषण करने में हमारे पिता ने न जाने अपने कितने ही सपनो को भुला दिया महज हमारे ही सपनो के खातिर । जब हम बडे हो जाएंगे तो उनकी पूरी सेवा करेंगे। अपने अलग हो गए माँ, बाप को भी मिला देंगे।

दीप कहता, “मैं जानता हूं कि लोग कहते हैं कि आजकल बच्चे अपने पैरंट्स का पहले की तरह सम्मान नहीं करते। उनसे वे उम्मीदें तो रखते हैं, पर मौका आने पर उनकी जिम्मेदारियों से मुंह फेर लेते हैं। कई लोग तो उन्हें ओल्ड एज होम में पहुंचा देते हैं। मैं ऐसा कदापि नहीं करूंगा। मैं हमेशा उनके सुख दुख में साथ रहूँगा”। दीप कभी अपने पिता को पलट कर जवाब नहीं देता था तथा कभी उनसे ऊँची आवाज़ में बात नहीं करता था। कोई भी कार्य करने से पहले उनसे चर्चा जरुर करता था। उसका मेरा मानना था कि आपस में बातचीत करके मसलों का हल करने की कोशिश करें तो सभी तरह की बात बन सकती है। अदावल को भी

विश्वास था कि उसका बेटा सदैव उसे अपने सर आँखों पर रखेगा और दोनों साथ साथ पूरा जीवन हंसी खुशी गुजारेंगे।

ग्रेजुएट होते ही दीप को एक बड़ी कंपनी में मैनेजर की जॉब मिल गयी। उसकी पोस्टिंग दूर चेन्नई में हुयी । दीप और अदावल दोनों एक दूसरे को छोडने को तैयार नहीं थे मगर अदावल ने अपने बच्चे के भविष्य के लिए अपने सीने पर पत्थर रख लिया। उसे विदा करते वक्त वे मन ही मन बहुत रोये थे फिर भी अपने को ढाढ़स बधाते रहे, “ मैं तो बाप हूँ सब सह लूँगा”। दीप अपने पिता को भी अपने साथ ले जाना चाहता था परन्तु अदावल अपनी नौकरी कैसे छोड़ सकता था।

बीस साल बाद दोनों अलग हो गए थे। फोन ही एकमात्र सहारा था उनके सम्बन्धों को सींचने के लिए। कुछ दिनों तक रोज सुबह-शाम घंटों बातें होती लेकिन वह सिलसिला बहुत दिनों तक नहीं चल सका। काम के बोझ के कारण फोन का सहारा भी क्षीण होता गया। धीरे धीरे फोन काल एक फ़ार्मेलिटी जैसी हो कर हिचकी जैसी हो गयी। अदावल चाहता कि दीप से खूब गुफ़्तुगू करे पर जब भी वह फोन मिलाता तो दीप का ज़्यादातर यही जवाब होता कि अभी मीटिंग चल रही है। फिर फोन काट देना पड़ता। एक दो दिन के लिए वह घर भी आता तो थका होता , आराम करता और जल्दी ही वापस लौट जाता। दोनों मन ही मन बहुत करने की सोचते पर सोचते ही रह जाते।

दीप सारी बातें समझता था। वह अपने पिता को पूरी तरह सपोर्ट करने के साथ ही उस के लिए बहुत समय बिताना चाहता था। दीप उनके लिए सपने बुनता, उन्हें अपने साथ रख कर उनकी सेवा करना चाहता था। वह अपने पापा को वर्ल्ड टूअर कराना चाहता था। उसे पता था कि अदावल अब बुढ़ापे की ओर अग्रसर हो रहा है और उनकी देखभाल करने वाला कोई होना चाहिए। तनख्वाह मिलने पर कई बार उसने कुछ रूपये अपने पापा को भेजे मगर अदावल पैसे न चाह कर दीप का समय चाहता था। लेकिन दीप के पास समय ही नहीं था।

अदावल ने कुछ दिनों बाद दीप की शादी बहुत धूम धाम से अर्चना से करा दी। अर्चना भी दीप के पास रहने लगी। अब दीप को बिलकुल समय नहीं मिलता कि वह अपने पिता के बारे में कुछ कर सके। उसकी प्लानिंग भी सब कुछ आने वाले

दिनों के लिए टलने लगी ।

अदावल को कई बार लगा कि कि शादी के बाद उनका बच्चा उन्हें भूल गया है। वह अपनी बहू से उसका हाल -चाल पूछ कर संतुष्ट होने का प्रयास करता और कहलवाता कि दीप से कह देना, “जब भी समय मिले, एक फोन कर ले और उनका

हालचाल पूछ ले। वह बातें कब करेगा जब मैं एक दिन इस संसार से विदा ले लूँगा “। अदावल पूछता कि उसे कोई कष्ट तो नहीं है। वह खुद तो दुख सहन कर लेने की बात करता किन्तु उसकी आंच भी बच्चों पर पडने नही देना चाहता था ।

कुछ दिनों बाद दीप का प्रोमोशन हो गया जिससे उसकी जिम्मेदारियां काफी बढ़ गई थी। कंपनी ने उसे बहुत से ऐसो आराम की सुविधाएं मुहैया करा रखी थी मगर उसे रात दिन काम करना पड़ता था। उसके पास समय ही नहीं होता कि वह अपने पिता से मिल सके या देर तक बात कर सके। इससे उनकी दूरियां बढ़ती चली गई। दोनों सोचते यह काम बाद में कर देंगे। धीरे-धीरे समय बीतता गया। अदावल रिटायर हो गया । वह अपने बेटे के शहर गया मगर अपना दीप उसे नहीं मिला सका। हाँ एक बड़ा मैनेजर जरूर उसे मिला। अदावल के पास बहुत समय था। उसे आशा थी कि उसका बेटा उनके साथ समय बिताएगा, उनके सुख दुख में साथ रहेगा, अपनी सारी बातों को शेयर करेगा मगर ऐसा कुछ संभव नहीं हुआ। अदावल अपना सा मुंह लेकर वापस लौट आया अपने दोस्तों के पास। अब इंटरनेट ही एक सहारा रह गया है जो कभी-कभी दीप के चेहरे दिखा देता।

अचानक अदावल गंभीर रूप से बीमार हो गया । बहुत दिनों तक उसने दीप को कुछ नहीं बताया वरना ब्यर्थ ही वह परेशान होता। जब अदावल को उसके दोस्तों ने उसे अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराकर दीप को सूचित किया तो दीप भागता हुआ अस्पताल पहुंचा। दीप ने देखा कि अदावल उसे देख कर कुछ बोलना चाहता है मगर कुछ कह नहीं पा रहा है । सिर्फ उनकी आंखों से आंसू गिर रहे थे उन्होंने कोशिश की लेकिन कोई आवाज नहीं निकली । उनका मुंह खुला का खुला रह गया । डॉक्टर ने बताया कि अब उसके पापा इस दुनिया में नहीं है तो दीप हक्का बक्का रह गया। अब कैसे कर सकेगा उनसे बात। पापा के बिना उसकी सारी खुशियां बेकार हैं ।

दीप को अपनी गलती का एहसास हुआ। दीप अब सभी बच्चों को समझाना चाहता है कि लोग माता-पिता से बहुत कुछ पूछते हैं मगर उन्हें बहुत कम देते हैं इसलिए कम से कम अपने माता-पिता को इमानदारी से समय देना चाहिए क्योंकि उनकी दुनिया सिर्फ उनके बच्चों के चारों ओर घूमती है।

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