Hamesha-Hamesha - Part 6 books and stories free download online pdf in Hindi

हमेशा-हमेशा - 6

उधर अपने अपार्टमेंट में पहुँचकर शमा ने दरवाज़ा बंद किया और सोफ़े पर बेजान सी लुढ़क गयी। गालों पर बहते गर्म आंसू उसके सीने में धधकते ज्वालामुखी को और भड़का रहे थे। उसे ख़ुद पर बेहद गुस्सा भी आ रहा था और अपने हाल पर दया भी आ रही थी। आज जाने क्यों उसे अपनी ही फीलिंग्स समझ नहीं आ रहीं थीं। आज इतने सालों बाद अकरम को अपने सामने पाया। वो बढ़कर अकरम को गले लगाना चाहती थी पर जब वो आगे बढ़ा तो न जाने क्यों उसे रोक दिया। और अब ये क्यों ही उसे परशान किये जा रहा था! मोहब्बत है या ख़त्म हो गयी, शमा ने ख़ुद ही से सवाल किया। दिल ने चीख-चीख कर दोहराया की है और बेपनाह है। और फिर अपने सवाल पर शर्मिंदा हो उसकी रुलाई फूट पड़ी। समझ नहीं पा रही थी कि वो आज खुश थी या नहीं!

दरअसल पिछले पांच सालों में स्कूल और बच्चे ही शमा की ज़िन्दगी बन चुके थे। ज़िन्दगी कभी गुलज़ार थी या फिर से रंगीन हो सकती है, ये सब उसने सोचना ही बंद कर दिया था। सब कुछ भुला चुकी थी। जैसे, सलेटी-धूसर रंगों में ख़ुद को छुपकर उसने उजालों और शोख़ रंगों से तौबा कर ली हो! ये तो बस पूजा और मानव की दोस्ती का ही सहारा था, जिसकी वजह से शमा फिर से हँसने-मुस्कुराने लगी थी वर्ना उसने ख़ुद को काम में जैसे झोंक सा दिया था। कभी-कभी उसे अकरम की, उसके साथ बिताये वक़्त की बहुत याद आती थी पर वो ख़ुद को किसी और तरफ़ बिज़ी कर दिया करती थी। गुज़रे सालों में एक अकरम के प्यार की यादें ही तो थीं जो उसकी वीरान ज़िन्दगी में हौसला अफ़ज़ाई किया करती थीं मगर फिर भी कभी अकरम से मिलने की उसने कोशिश नहीं की थी।

ऐसा नहीं था कि शमा उससे मिलना नहीं चाहती थी, बल्कि ये तो उसके दिल में छुपा वो ख़्वाब था जिसके बारे में वो ख़ुद से भी दिन की रौशनी में बात करने से कतराती थी। शमा ने सोचा नहीं था कि कभी ऐसा कभी हो पायेगा पर वो ख़्वाब एक ख़ूबसूरत सच बनकर सामने आ गया था।

शमा ने अपनी ज़िन्दगी की हक़ीक़त अपने माज़ी को मान लिया था और मुस्तक़बिल को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर हाल से नाता तोड़ लिया था। लेकिन आज अचानक ग्रीन वैली में अकरम को देखकर, शमा की धड़कनों की रफ़्तार ठीक वैसे ही बढ़ी थी जैसे सात साल पहले, लखनऊ में पहली बार अकरम से टकराने पर बढ़ी थीं।

बारहवीं के एग्ज़ाम्स का रिज़ल्ट आया था और पूजा ने शहर में टॉप किया था। इसी के सेलिब्रेशन के लिए दोनों सहेलियाँ घरवालों को मनाकर, अकेली फ़िल्म देखने गयी थीं। फ़िल्म के बाद फास्टफूड का प्रोग्राम था और वक़्त के मुताबिक़ घर भी वापस पहुँचना था। इसी सोच में, सहारागंज से "मर्दानी" देखकर निकली दोनों अपनी ही दुनिया में मगन थीं कि फ़िल्म के डायलॉग्स को दोहराती शमा, जोश-जोश में दूसरी तरफ़ से आ रहे अकरम से जा भिड़ी। ग़लती अपनी थी तो क्या कहतीं, बस दोनों चुपचाप नज़रें चुराकर खिसक लीं। अकरम ने कहा भी था, "हेल्लो मैडम! अजीब तरीका है आपका!" दोनों लडकियां इग्नोर कर के वहाँ से भाग ली थीं।

फिर एक दिन चौक में दोनों पानी-बताशे (गोल-गप्पे) खाने में मशग़ूल थीं कि अचानक अकरम भी वहीँ पहुँच गया। वो शायद अपनी बहनों के लिए पानी-बताशे पैक करवाने आए था। पूजा का मुँह उसे देखकर खुला का खुला रह गया था। शमा ने पहले उसे आँखे दिखाकर मुँह बंद करने का इशारा किया फिर अपना मुँह खली होने पर उस से पूछा। पूजा को हक्का-बक्का देखकर वो पलटी और अकरम को पहचानते ही शर्म से पानी-पानी हो गयी। अकरम उन्हें इग्नॉर कर के अपने काम में लगा रहा। दोनों सहेलियों ने जाकर उससे माज़रत की और फिर दोस्ती हो गयी और वो एक मुलाक़ात जल्द ही मुलाक़ातों के सिलसिले में बदल गयी थी।

कुछ ही मुलाक़ातों में शमा जान गयी थी कि अकरम दिल्ली IIT में पढाई कर रहा था और छुट्टियों के बाद तो उसे वापस जाना ही था पर फ़ोन पर दोनों की ख़ूब बातें होती रहती थीं और गहरी दोस्ती ने दोनों के दिलों में घर बना लिया था। ये तो शमा जब सेकंड ईयर में कुछ दिनों के लिए एक शादी में अलीगढ़ गयी और दोनों दस दिन बात नहीं कर पाए, तब दोनों को अहसास हुआ था कि बात दोस्ती से आगे बढ़ चुकी थी। समझते दोनों ही थे पर खुलकर इज़हार किसी ने नहीं किया था। आँखें बातें कह जाती थीं. आँखें ही सुन लेती थीं।

आज ही के दिन यानि 16 अगस्त को शमा का ग्रेजुएशन का रिज़ल्ट आया था और अकरम ने वो कहा था जो शमा भी कहना चाहती थी। पर उसके बाद ज़िन्दगी बहुत तेज़ चली। इतना तेज़ कि शमा के लिए उसकी रफ़्तार से क़दम मिलाना मुश्किल हो गया था। भागते-भागते वो हांफकर गिर पड़ी थी। अब जाकर थोड़ा दम में दम आया ही था कि आज फिर दिल की धड़कनो से छेड़छाड़ हो गयी।

शमा की ठहरे पानी सी शांत ज़िन्दगी में अकरम ने दोबारा हलचल मचा दी थी। जज़्बात पूरे उफ़ान पर थे। शमा समझ ही नहीं पा रही थी कि क्या करे। पिछली बार माँ बाप के कहने पर उसने ख़ामोशी से अपना दिल ख़ुद ही तोड़ लिया था। अब बहुत मुश्किल से उसके टुकड़ों को जोड़ा था और एक बार फिर अपने दिल को टुकड़ों में बिखेर देने की हिम्मत शमा नहीं जुटा सकती थी।

सोच में डूबी शमा की सोच की श्रृंखला फोन की रिंगटोन की आवाज़ से टूटी। लखनऊ से अम्मी का फोन था। उन्होंने बताया कि शमा के निकाह के बाद अकरम दो साल तक लखनऊ वापस नहीं आया था। अपने बड़े भाई के निकाह में पांच साल पहले जब वो आया तो उसे शमा के तलाक और उसके साथ हुई बदसलूकी के बारे में पता चला। उसने तभी अपनी बड़ी बहन और बहनोई को सब कुछ बताकर मना लिया था लेकिन कुरैशी साहब के ख़ानदान की हैसियत, रसूख और शमा की उस वक़्त की नाज़ुक हालत के बारे में जान कर उन लोगों की हिम्मत नहीं हुई बात करने की। और फिर अग्रवाल साहब शमा को शिमला ले आये तो उन लोगों की रही-सही उम्मीद भी ख़त्म हो गयी। ये सोच कर कि शायद वहीं शमा सेटल हो गयी होगी, उन्होंने किसी और से कुछ नहीं कहा। शादी के बाद बहन और बहनोई वापस टोरंटो लौट गये और अकरम मुंबई चला गया।

अकरम के घरवाले उसकी शादी करना चाह रहे थे इसलिए उसने फिर से लखनऊ आना छोड़ दिया। जब अग्रवाल साहब के समझाने पर कुरैशी साहब ने अकरम के अब्बू से बात की तब जाकर सारा माज़रा सबके सामने साफ़ हुआ। अकरम को उसकी बहन ने टोरंटो सपॉन्सर कर लिया था। कमाल बात ये थी कि लॉटरी के ज़रिए उसे PR स्टेटस भी मिल गया था। अकरम की कंपनी की सिस्टर कंसर्न में इंटरव्यू देकर वो टोरंटो में ही जॉब के लिए सलेक्ट भी हो गया था। वो सिर्फ़ फ्लैट और सामान का सेटलमेंट करने के लिए मुंबई में रुका था। अगले हफ़्ते उसकी फ्लाइट थी कैनेडा की।

यानि उसकी लाइफ़ में अचानक सब बहुत अच्छा हो गया था। जैसी किसी ने जादू की छड़ी घुमा दी हो!

तभी पूजा ने उसे फोन किया था और उसने अपनी टिकट्स एक्सटेंड करवा ली थीं और सीधा चला आया शिमला। आज सब कुछ दांव पर लगाकर वो आया था सिर्फ़ और सिर्फ़ शमा के लिए।

अम्मी ने शमा को बतया कि आने से पहले अकरम ने उनसे और शमा के अब्बू से इजाज़त ली और कहा कि अगर वो हाँ कहेंगे तभी वो शमा से मिलेगा क्योंकि फिर से उसे टूटता हुआ नहीं देख पाएगा।

अब्बू और अपने ग़लत फैसले की माफ़ी मांग कर अम्मी ने शमा को बताया कि अकरम ने सब से कहा था, "मैं पिछली बार की तरह अपनी मंज़िल तक पहुँचकर उसे नहीं खोना चाहता इसीलिए सब की हामी चाहता हूँ!"

अम्मी ने आगे कहा, "शमा, मेरी बच्ची, और अब सब राज़ी हैं।" और अम्मी ने फ़ोन रख दिया।

........ To be continued

- Aditi