Those blue envelopes books and stories free download online pdf in Hindi

वो नीले लिफाफे

वो नीले लिफाफों में नीले पन्नों पर लिखे ख़त जिसमें से एक मनमोहक सी खुशबू आती है, मेरी अनोखी प्रेम कहानी की अनोखी ही दास्तान है।अब भी साल के पहले दिन वह नीले लिफाफे वाला खत उसी खुशबू से महकता अवश्य आता है।ऐसा प्रतीत होता है कि वह अनामिका मेरे आसपास ही कहीं मौजूद है, जिसे महसूस तो करता हूँ, लेकिन पहचान नहीं पाता।अब मैंने उसे तलाशना छोड़ दिया है, लेकिन उसकी उपस्थिति मेरे हृदय के एक कोने में मेरी आखिरी सांस तक रहेगी।
अनामिका, यह नाम मैंने ही उसे दिया है, अब क्या करूँ,नाम उसने कभी बताया ही नहीं।पहला रजिस्टर्ड पत्र पहली ही तारीख को तब आया था जब मैंने बीकॉम में डीयू के एक कॉलेज में एडमिशन लिया था,नया माहौल, नए मित्र।हालांकि मैं दिल्ली में ही अपने परिवार के साथ रहता था लेकिन रोज कॉलेज जाने के लिए मेट्रो से एक घँटे की यात्रा करनी होती थी।रोज आते-जाते मेट्रो में भी कई लोगों से परिचय हो गया था।खैर, उस दिन घर पहुंचने पर वह पत्र माँ ने मेरी तरफ गहरी निगाहों से देखते हुए मुझे पकड़ाया था।मेरे असमंजस भरे भाव देखकर उनकी अनुभवी आँखे समझ गईं थीं कि मैं भी अपरिचित ही हूँ खत भेजने वाले से।उस खत में अनामिका ने मेरे बारे में ही लिखा था, मेरे कॉलेज जीवन के लिए शुभकामनाएं दीं थीं, प्रेषक की जगह 'सिर्फ आपकी' सम्बोधन से थोड़ा आश्चर्यचकित हुआ था, फिर सोचा कि किसी दोस्त ने मजाक किया है।
अगले महीने फिर वह नीला लिफाफा मेरे हाथों में था,इस बार गनीमत रही कि मेरे घर में होने के कारण मैंने ही रिसीव किया था।इस बार उसने स्पष्ट किन्तु अत्यंत शालीन शब्दों में अपनी भावनाएं अभिव्यक्त की थी कि मैं जबसे प्रेम को समझने लगी हूँ, तबसे सिर्फ आपको प्यार किया है लेकिन न तो मैं आपसे फिलहाल प्रतिदान चाहती हूँ, न ही आपके लक्ष्य में अवरोध उत्पन्न करना चाहती हूँ।बस आपको जीवन के हर क्षेत्र में पूर्णतया सफल देखना चाहती हूँ।हर माह की पहली तारीख को उसके नियमित खत आते रहे।
मैं एक गम्भीर प्रकृति का ,पढ़ाकू टाइप का युवक था,जिसका फिलहाल एक ही लक्ष्य था,अच्छे अंकों से बीकॉम करने के बाद CA क्लियर करना।मैं हैरान था कि कौन थी वह,जिसे मुझसे इस कदर प्यार हो गया था।कुछ समय तक तो मैं अपने मुहल्ले में आसपास की,अबतक की सहपाठिनी,अभी कॉलेज की यहाँ तक की मेट्रो में अक्सर मिलने वाली युवतियों में उसे तलाशने,पहचानने का प्रयास करता रहा।लेकिन किसी में भी अनामिका नजर नहीं आती थी।अंततः उसे खोजना बन्द कर दिया।साल बीतते रहे,किन्तु पहली तारीख को वे खत आने बदस्तूर जारी रहे, अगर अवकाश होना होता तो कोरियर से आता,शायद ही कभी पहली से दूसरी तारीख हुई हो।
धीरे-धीरे वह खुशबू मेरे अहसासों में घुलती चली गई।खत के शब्दों में भरे जज़्बात मेरे मन में भी छप गए।वह शब्दों से निकलकर कब मेरे हृदय में समा गई, मैं जान ही नहीं सका।उसके काल्पनिक चित्र मेरा मस्तिष्क बनाया करता।सच कहूँ तो मुझे भी अनामिका से इश्क़ हो गया,बेसब्री से उसके ख़त की प्रतीक्षा करता,कभी-कभी उसके औऱ अपने पागलपन पर झुंझलाहट भी आती।आज के वाट्सएप, मोबाईल के जमाने में उसके पत्र आश्चर्यजनक ही थे,आज की युवती इतने खूबसूरत ढंग से खत लिख सकती है, सोचकर मैं चकित हो जाता था।कभी सोचता कि बीच में औऱ पत्र भी तो लिख सकती है, यह एक तारीख का क्या शग़ल है,लेकिन जबाब तो मिलना नहीं था।इतना तो मैं समझने लगा था कि वह मुझे अच्छी तरह जानती है, उसे मेरी खुशी,दुःख, पसंद, नापसंद सब ज्ञात था,मैं ही बेवकूफ उसे खोज नहीं सका । किसी मित्र को मैं अपनी अनोखी प्रेमकहानी के बारे में बताता तो सब बेवकूफ बताते मुझे, इसलिए मित्रों की लव स्टोरीज सुनकर बस मुस्करा देता।
मेरा कॅरियर सुस्थापित हो गया था, अतः अब परिवार की इच्छा थी कि मैं विवाह कर अपनी गृहस्थी बसा लूँ।आज के समय के अनुसार मुझसे पूछा गया कि क्या मैं किसी कन्या को पसंद करता हूँ, अब उन्हें मैं क्या बताता कि जिससे प्यार है, उसे जानता भी नहीं, इसलिए माँ पर छोड़ दिया कि वे अपने हिसाब से देख लें।माँ ने अपनी सखी की कन्या नैना से मेरा विवाह करा दिया।बीस वर्ष के वैवाहिक जीवन में मैं यह विश्वास से कह सकता हूँ कि नैना एक परफेक्ट संगिनी है,सुंदर, समझदार,शिक्षित और सबसे बड़ी बात जैसे वह मेरे मन की हर बात बिना कहे समझ जाती है।विवाहोपरांत जब दो-तीन वर्ष में हम एक-दूसरे को अच्छी तरह से जान-समझ गए थे तो एक बार उसे अनामिका के बारे में बताना चाहा था लेकिन बताने का साहस नहीं जुटा सका कि कहीं गलत न समझ बैठे।मैं एक काल्पनिक प्रेम की खातिर अपने सुखद जीवन को दांव पर नहीं लगाना चाहता था।
कभी-कभी सोचता हूँ कि अनामिका कहाँ होगी,अपने जीवन में खुश तो होगी न?काश!दुनिया से प्रस्थान करने के पूर्व एक बार मिल पाता उससे।उसके बारे में,उसके परिवार के बारे में शिद्दत से जानना चाहता था।उसे बता पाता कि मैं भी उससे मुहब्बत करने लगा था उसे बिना जाने-पहचाने।प्यार सिर्फ़ शारीरिक ही नहीं होता है, वह आत्मा से भी किया जा सकता है।कभी कभी कल्पना करता हूँ कि काश!मेरी नैना ही मेरी अनामिका होती,मेरी पहली अनोखी औऱ मौजूदा प्रेम,मेरी आत्मसंगिनी,मेरी जीवन संगिनी।एक समानता तो थी कि नैना को भी नीला रंग बेहद पसंद था,नीली साड़ी, नीले कपड़े,नीले पर्दे,बेडशीट,बेडरूम की नीली दीवारें।मैं कभी मजाक करता कि तुम्हारा नाम नैना की बजाय नीलिमा होना चाहिये था तो वह तिरछी नजर से देखते हुए मुस्कुरा देती।
********