अप्सरा से शादी books and stories free download online pdf in Hindi

अप्सरा से शादी

अप्सरा से शादी






निकल जाओ रूपा। देवराज इंद्र ने रूपा को श्राप देते हुए कहा। तुम्हारा मन स्वर्ग के कार्यों में नहीं लगता। जाओ तुम पृथ्वी लोक में रहोगी।


देवराज इंद्र मुझे क्षमा कर दीजिए - रूपा ने अनुनय करते हुए कहा। इंद्र थोड़ा पसीजे। बोले ठीक है लेकिन 1000 वर्षों तक तुम पृथ्वी पर रहोगी। रूपा ने राहत की सांस ली।


रूपा स्वर्ग लोक की रूपवती गुणवती अप्सरा थी। क्षण भर में ही रूपा सादे पृथ्वीवासियों जैसे कपड़ों में पृथ्वी के सुजानपुर नामक गांव में थी।


गांव के ठाकुर रणवीर अपनी जीप में वहां से गुजर रहे थे। वे रूपा से बोले तुम कौन हो और यहां क्या कर रही हो। रूपा बोली मैं रूपा हूं। मुझे काम की तलाश है। मेरे मां-बाप भाई-बहन कोई नहीं हैं।


ठाकुर बोले तुम क्या-क्या कार्य जानती हो। रूपा बोली मैंने गणित से एमएससी किया है। इसके अलावा मैं घर के सभी कार्यों में निपुण हूं। ठाकुर बोले ठीक है मैं तुम्हें अपना पी.ए. नियुक्त करता हूं और तुम्हारी सैलरी ₹5लाख प्रतिमाह होगी। रहना, खाना हमारे साथ ही होगा।


रणवीर का चरित्र व स्वास्थ्य चंद्रमा व सूरज की तरह निर्मल व सबल था।



भाग-2

ठाकुर रणवीर ने रूपा को अपना पीए नियुक्त किया। साथ ही रूपा को गांव में घूमकर सभी लोगों के कष्टों के बारे में जानकर एक रिपोर्ट बनाने को कहा गया।


रूपा ने पाया कि गांव के कुछ लोग बेहद अमीर हैं, कुछ साधारण हैं तो कुछ बेहद गरीब। खेतों में पानी की कमी है। रोजगार कम हैं। गांव के अधिकांश मकान टूटे फूटे हैं। हफ्ते भर में यह रिपोर्ट रणवीर को सौंपी गई।


रणवीर एक स्वस्थ,जुझारू व्यक्ति था। वह इन सब समस्याओं का समाधान शीघ्र करना चाहता था। अब धन की कमी आड़े आ रही थी।


रूपा दिव्य दृष्टि की स्वामिनी थी। उसकी दिव्य दृष्टि ने भांप लिया कि रणवीर की पुश्तैनी हवेली में सात गुप्त धन से भरे तहखाने हैं। जिन पर नाग देवताओं का पहरा है।


रूपा ने अपनी दिव्य शक्ति से रणवीर को सपने में यह जानकारी दी। रणवीर ने जागते ही नाग पूजा करवाई और सपने में देखी जगहों पर खुदाई शुरू करवाई। उसे अकूत धन मिला। रणवीर ने सबसे पहले अपनी हवेली की मरम्मत, रंग रोगन व सौंदर्यीकरण करवाया।


फिर गांव के मकानों की मरम्मत, रंग रोगन करवाया। और रणवीर का गांव स्वर्ग से सुंदर दिखाई देने लगा।


फिर गांव के खेतों की चकबंदी करवाई। सिंचाई के लिए नहर खुदाई। आवारा पशुओं को बधिया किया। खेती व पशुपालन में उन्नत बीज व उन्नत तकनीकों का प्रयोग किया। गांव वालों को उचित मात्रा में धन अपनी तरफ से प्रदान किया और सब का ऋण माफ कर दिया। बंदरों, सुअरों, जंगली पशुओं, आवारा कुत्तों का उचित समाधान कर दिया।


अब ठाकुर रणवीर का गांव विश्व की उन्नतशील व श्रेष्ठ गांवों की लिस्ट में आ गया।


गांव के लिए एक उचित कोष की व्यवस्था की गई। जो एक बैंक के रूप में बिना ब्याज लिए गांव वालों की मदद करे।


इस सब में रणवीर को तहखाने से मिले धन का 10% ही खर्च करना पड़ा। अन्य 10% धन को उसने उद्योग धंधों में लगवा दिया।


बाकी 80% धन को उचित रूप से रणवीर ने एक बड़े आधुनिक तहखाने में सुरक्षित रखवा दिया।




भाग -3


तहखाने से धन मिलने की घटना को आज 5 साल हो गए हैं। रणवीर का गांव आज विश्व के श्रेष्ठतम गांवों में माना जाता है। खुद आज रणवीर विश्व के श्रेष्ठतम उद्योगपतियों में से है। तहखाने से मिले धन में से उस समय 20% खर्च हुआ था। आज उसके बदले रणवीर ने 40% वापस तहखाने में सोने के रूप में जमा कर दिया है। आज उसने तहखाने के समस्त धन को सोने की ईंटों के रूप में बदल दिया है। इससे तहखाने का रखरखाव बहुत ही सरल हो गया है।


रणवीर का गांव आज स्वर्ग सा लगता है। जहां का हर व्यक्ति स्वस्थ, सुखी, बलवान, व अमीर है। विश्व की आधुनिकतम हर सुविधा आज उसके गांव में उपलब्ध है। फिर भी वहां का हर व्यक्ति ईश्वर भक्त व सरल है। आज उसके गांव में एक अच्छे शहर व एक अच्छे गांव की सभी आधुनिक तकनीकी सुविधाएं हैं।


रणवीर के गांव में आज दो बाहर के व्यक्ति अपने परिवार के साथ आ रहे हैं। वह इस गांव में बसना चाहते हैं। रणवीर ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। और अपने गांव के हर परिवार के मुखिया को आदेश दिया कि हर परिवार 1-1 ट्रक ईंट व एक-एक लाख रुपये इन दोनों व्यक्तियों को दे। इस तरह बाहर के दोनों परिवार अमीर बन कर इस गांव में बस गए हैं।


आज रणवीर विश्व के सबसे बडे उद्योगपतियों में से एक है। उसने अफ्रीका की सरकारों से एक डील की।


अफ्रीका में उसने बड़े-बड़े फार्म हाउस और फैक्ट्रियां स्थापित की। वहां के भुखमरी से मर रहे लोगों को उसने रोटी, कपड़ा, मकान व रोजगार उपलब्ध करवाया।


महासागर में उसने एक द्वीप खरीदा और वहां के थोड़े से आदिवासियों को रोटी, कपड़ा, मकान व रोजगार दिया और उन्हें आधुनिक व सभ्य बनाया। उसने आदिवासियों के लिए एक सुंदर नगर का निर्माण किया। बाकी बची हुई जमीन पर उसने खेत, फैक्ट्री आदि स्थापित किये और एक ईश्वर की आराधना आदिवासियों को सिखाई।





भाग 4


देवलोक, दानवलोक व मानवलोक में आजकल छंटनी चल रही है। फालतू घोषित लोग अपने - अपने लोकों से भगाए जा रहे हैं। ढेर सारे देव, दानव, मनुष्य अपने ही लोकों से निर्वासित किए जा रहे हैं। बच्चे, बूढ़े, महिलाएं तक अपने - अपने लोकों के दरवाजों पर बैठे हैं। फालतू पालतू जानवर भी बाहर कर दिए गए हैं।


इन 5 सालों में अप्सरा रूपा ने रणबीर को भी तंत्र, मंत्र व यंत्र में प्रवीण बना दिया है। साथ ही यह भेद भी उसके सामने खोल दिया है कि वो एक अप्सरा है।


उसने रणवीर को बताया कि तीनों लोकों के फालतू घोषित प्राणी अपने लोकों से बाहर कर दिए गये हैं। भूखे - प्यासे लोग दम तोड़ रहे हैं। रणवीर ने पूछा तो वह क्या करे। रूपा ने कहा कि इन सब लोगों को अपने राज्य में बसाया जाए तो यह राज्य के काम आ सकते हैं। रणवीर सहमत हो गया। लेकिन इनके लिए संसाधन व धन कहां से आए। रूपा ने जवाब दिया समुद्र के बीच एक बहुत बड़ा द्वीप है। इस पर किसी भी देश का कब्जा नहीं है। यहां जंगल, मछलियां, जंगली जानवर आदि भी हैं। यहां हम इन बेसहारा लोगों को बसाएंगे।


रणवीर सहमत हो गया। कुछ ही दिनों में उस द्वीप पर तीनों लोकों के निर्वासित जीवों व जानवरों को बसा दिया गया। उस द्वीप में करोड़ों परिवार भी छोटी-छोटी झोपडियां बनाकर बस गये।


इतने लोगों के लिए जमीन, पानी व खाना अपर्याप्त था। लेकिन फिर भी वे पहले से ज्यादा खुश थे। भयंकर बीमारियां व महामारियाँ फैल रही थी। कई प्राणी व जीव धड़ाधड़ मर रहे थे। भूख से लोग व जानवर एक दूसरे तक का मांस खाने लगे।


कुछ वर्षों तक यह सब चलता रहा। आखिर 90% जनसंख्या समाप्त हो गई। केवल 10% जनसंख्या ही वातावरण से अनुकूलन कर सकी।


अब रणवीर ने इस द्वीप के लोगों की तंगहाली दूर करने का बीड़ा उठाया।


एक परिवार शून्य या एक बच्चे की नीति अपनाई गई। शिक्षा- दीक्षा, अस्पताल आदि की व्यवस्था की गई। स्वच्छ पानी, वस्त्र, भोजन, रोजगार आदि की व्यवस्था की गई। नियमों का कठोरता से पालन किया जाने लगा। रणवीर ने धन की कमी महसूस की। रणवीर ने चाहा कि वह तहखाने के धन का प्रयोग करे। लेकिन रूपा ने उसे रोक दिया।


रूपा बोली कई दुर्लभ रत्न, खजाने इस द्वीप के समुद्र के अंदर छिपे हुए हैं। इन्हें ही बाहर निकाला जाए। गोताखोरों को समुद्र के अंदर भेजा गया। धन के ढेर लगने शुरू हो गए। इस धन को एक बडे मकान में सुरक्षित रखा गया और इसमें से कुछ धन द्वीपवासियों के ऊपर खर्च होने लगा।


धीरे-धीरे द्वीप विकसित होने लगा। द्वीप में एक ईश्वर की पूजा जोर पकड़ने लगी। लोग सात्विक, बुद्धिमान, मेहनती और ईश्वर भक्त होने लगे। जाति प्रथा आदि स्वयं ही खत्म होने लगी।


नई-नई विद्याओं व उद्यमों का विकास होने लगा। रणवीर व रूपा ने इस सब में बहुत मेहनत की। रणवीर ने कहा रूपा इस द्वीप का नाम हम जकारूलैंड रखते हैं। और तुम्हारी बहन रूमा को यहां की रानी बनाते हैं। हमें विश्वास है कि यह द्वीप एक दिन आर्थिक समृद्धि में अमेरिका के बराबर व आध्यात्मिक समृद्धि में भारत के बराबर हो जाएगा। रूपा ने मुस्कुरा कर अपनी सहमति जताई।


द्वीप में भूमि - चकबंदी, जनसंख्या नियंत्रण आदि नीतियां कठोरता से अपनाई जाने लगी। बाहर जाने या आने पर पाबंदी लगा दी गई। जनसंख्या स्थिर हो गई। कई व्यवसायों के उत्थान से धीरे-धीरे समृद्धि बढ़ने लगी। लोग ज्यादा सुंदर, स्वस्थ, ऊंचे, सबल धनवान व बुद्धिमान हो गये।


रूपा की बहन रूमा परी इस द्वीप की रानी है। जकारूलैंड के ध्वज पर शेर, जल, जमीन व भैंस का चित्र है। जो बहादुरी और संपन्नता को दर्शाते हैं।


यहां की गाय - भैंस की नस्ल दुनिया की श्रेष्ठतम नस्ल में गिनी जाने लगी। जमीन पैदावार के रूप में लगे सोना उगलने लगे। कारखाने धन के ढेर लगाने लगे। विदेश व्यापार अनुकूल होने से सोने-चांदी, रूपये, डालर के ढेर के ढेर लगने लगे।


देव, दानव, मनुष्यों की अलग - अलग बस्तियां हैं लेकिन कानून सबके लिए बराबर है।


एक सेना द्वीप की चौबीसों घंटे रक्षा करने लगी।


लोग सुबह-2 भगवान का नाम लेकर अपने-अपने कामों में जुट जाते हैं और शाम को भगवान को धन्यवाद देकर अपना - अपना कार्य खत्म करते हैं।


धन व भक्ति के अद्भुत समन्वय ने द्वीप को श्रेष्ठ सभ्यताओं में स्थान दिला दिया। लोगों की उम्र 100 वर्ष तक बढ गई।


जानवरों की संख्या भी सीमित कर दी गई। दुधारू गाय -भैंसों से दूध की नदियां बहने लगी।


जकारूलैंड में हर युवक - युवती को स्नातक के बाद 5 साल वहां की आर्मी में सेवा देनी होती है। इसके बाद वे स्वेच्छा से आर्मी में रह सकते हैं या स्वतंत्र रूप से कोई कार्य कर सकते हैं।


रणवीर को जकारूलैंड का राष्ट्रपिता घोषित कर दिया गया है।







भाग 5 अमृत का प्याला


रणवीर व रूपा के अच्छे कार्यों से देवराज इंद्र भी बहुत प्रसन्न हुये। देवराज ने रणवीर व रूपा को स्वर्ग लोक आने के लिए आमंत्रित किया। रणवीर और रूपा देवराज इंद्र द्वारा भेजे गए विशेष विमान में बैठकर स्वर्ग पहुंचे।


इन्द्र ने इन दोनों का भव्य स्वागत किया और 1 सप्ताह उन्हें स्वर्ग लोक में रखा। दोनों ने स्वर्ग लोक में 1 सप्ताह तक भ्रमण किया और आनंद से रहे।


चलते समय इंद्र ने रणवीर से कहा पुत्र तुम कार्यों से एक देवता के समान हो अतः यह अमृत का प्याला तुम्हारे लिए है। इसे पीकर तुम अमर हो जाओगे। रूपा तो अप्सरा होने के नाते पहले से ही अमर है। यह अमृत स्वर्ग लोक की तरफ से तुम्हें एक भेंट है।


रणवीर ने श्रद्धा से सोने के प्याले को अपने सर से लगाया और एक झटके में सारा अमृत पी गया। पीते ही रणवीर का शरीर अजीब सी स्फूर्ति से भर गया। शरीर देवताओं जैसा हो गया। शरीर पहले से अधिक सुंदर, बलिष्ठ, दीर्घ हो गया। बुद्धि अधिक विकसित हो गई। चेहरे पर एक अलौकिक तेज आ गया।


पुत्र अब तुम अमर हो गए हो। अब तुम अधिक शक्ति व निष्ठा से तीनों लोकों की रक्षा व सेवा कर सकते हो। लो यह सोने की दिव्य तलवार। यह सदैव तुम्हारे साथ रहेगी। यह भी मेरी तरफ से तुम को एक भेंट है।

इसके बाद रणवीर और रूपा अपने गांव सुजानपुर आ गये।






भाग 6 राक्षसों का उत्पात


जकारूलैंड में बसे देव व मनुष्य तो शांति से रह रहे थे। किंतु दानव लोक से निष्कासित दानव शांति से रहने का ढोंग कर रहे थे। इनकी आबादी यहां कुल आबादी का लगभग एक तिहाई ही थी। यह लोग अपनी जनसंख्या बढ़ाकर जकारूलैंड में कब्जा करना चाह रहे थे। दानवलोक के दानवों की शह पर यह लोग गुप्त रूप से अपनी रानी रूमा के तख्तापलट की योजना बना रहे थे।


दानवों ने अपनी एक सेना चुपके से तैयार कर ली और एक दिन अचानक से विद्रोह कर दिया। पड़ोसी गैंडालैंड का राजा भी अपनी सेना लेकर जकारूलैंड को भेज चुका था। वह भी दानवों के साथ था।


रानी रूमा की फौज बहादुरी से दानवों का विनाश कर रही थी। दानव भी राजा गैंडा व दानवलोक की शह पर रूमा से एक कड़ी लड़ाई लड़ रहे थे। अनेक दानव मारे गए। अनेक जकारूलैंड के सैनिक भी मारे गए।


दानव हारने लगे अब वे छल - बल से मायावी व जादुई युद्ध करने लगे। रूमा ने भी देवों व मनुष्यों की सेना के साथ दानवों पर चढ़ाई कर दी। परंतु जकारूलैंड के दानवी सैनिक भी अचानक दानवों से मिल गये। आखिर रूमा को दानवों ने कैद कर लिया।


रोमा कैदखाने में अपनी किस्मत पर रो रही थी। वह अर्श से फर्श पर जो आ गई थी।


रणवीर को इस सब घटनाक्रम की कोई जानकारी नहीं थी। क्योंकि यह सब अचानक हुआ था।


रणवीर और रूमा को सपने में दिखाई दिया कि एक सफेद हाथी दलदल में धंस रहा है। बार-बार उन्हें यही सपना कई दिनों से आ रहा था।


रणवीर और रूमा आज एक दूसरे को अपने - अपने सपने के बारे में बता रहे थे। दोनों आश्चर्यचकित थे कि दोनों को एक ही सपना कैसे आ रहा है।


तभी इंद्र का दूत एक देवों की सेना के साथ प्रकट हुआ। और बोला रणवीर आपको इंद्र ने संदेश भेजा है कि जकारूलैंड पर दानवों का कब्जा हो गया है। आप इस देव सेना की मदद से रूमा को आजाद कर दानवों का अंत कर सकते हैं।


तभी रूमा का प्रिय तोता आकर रणवीर के कंधे पर बैठ गया और जकारूलैंड में हुई पूरी घटना को बयान करने लगा।


रणवीर तुरंत अपनी मनुष्यों की सेना व देवसेना के साथ अपने एक अत्याधुनिक वायुयान में बैठ गया। सुजानपुर की रक्षा के लिए रूपा व कुछ सैनिकों को उसने वहीं छोड़ दिया।


शीघ्र ही वायुयान जकारूलैंड आ पहुंचा। उन्होंने वायुयान जकारूलैंड में एक घने जंगल में उतारा।


पहुंचते ही रणवीर महा कंटक - निवारक यज्ञ करने बैठ गया। और साथ ही उसने अपने कुछ आदमियों को जकारूलैंड के देव व मनुष्यों को संगठित करने भेज दिया। तोते को भी समझा बुझाकर रानी रूमा तक अपने आने का आने का संदेश भिजवा दिया। महा कंटक - निवारक यज्ञ संपन्न हुआ।


अब तक जकारूलैंड में रणवीर ने दानवों से भी विशाल सेना खड़ी कर दी। अपनी सेना के उसने तीन भाग कर दिये। एक भाग दानवों से युद्ध करने लगा। एक भाग द्वीप का घेरा डाले गैंडा महाराज से युद्ध करने लगा।


एक भाग उसने ताजा दम रिजर्व रखा। शीघ्र ही दानव व गैंडा महाराज हारने लगे। अचानक रणवीर ने अपनी ताजा दम टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए रूमा के कारागृह पर हमला कर दिया। रूमा तुरंत आजाद हो गई। इंद्र की दिव्य तलवार से रणवीर ने सभी दानवों व गैंडों को मृत्यु के के हवाले कर दिया


जकारूलैंड फिर से आजाद हो गया। रूमा आजाद हो गई। धूमधाम से एक समारोह कर वह सिंहासन पर फिर से विराजमान हो गई।


एक माह तक रणवीर अपनी सेना के साथ छुटपुट बचे दानवों का अंत करता रहा।


आखिर सत्य की जय हुई और असत्य का विनाश हुआ।


अब रणवीर ने अपनी सेना का विस्तार और आधुनिकीकरण जोर-शोर से शुरू कर दिया।

कुछ समय बाद रणवीर ने अपनी विशाल सेना के चार विशाल हिस्से बनाए। एक हिस्सा उसने रिजर्व रखा। दूसरा हिस्सा जकारूलैंड की सुरक्षा के लिए रखा।


तीसरे हिस्से से उसने गैंडा लैंड पर आक्रमण कर दिया। चौथे हिस्से से दानव लोक पर आक्रमण कर दिया। शीघ्र ही दानवलोक व गैंडालैंड पर रणवीर का कब्जा हो गया।


अब रणवीर ने दुष्ट व अत्याचारी शासकों से शासित राज्यों पर आक्रमण कर उन्हें अपने अधीन करना शुरू कर दिया।


शीघ्र ही रणवीर ने दुष्ट शासकों को परास्त कर दिया। अब रणवीर को सम्राट रणवीर घोषित कर दिया गया।

















पृथ्वी की कहानी


मैं जबूरा हूं। मैं तब से आप की इस पृथ्वी को देख रहा हूं जब से ये पृथ्वी बनी। मैं पृथ्वी से करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर एक ग्रह का निवासी हूं।


मेरा ग्रह जिबूती एक संपन्न और विकसित ग्रह था। यहां की आबादी बहुत ज्यादा थी।


लेकिन धीरे-धीरे आपसी रंजिश, युद्ध, परमाणु युद्ध, प्रदूषण आदि से मेरे ग्रह की सभ्यता और लोग नष्ट हो गए। हमारा ग्रह पृथ्वी जैसा ही बड़ा है। यहां भी पृथ्वी जैसी ही आबादी थी। लेकिन ज्यादा विकसित हो कर यह एक दिन नष्ट हो गया।


मैंने बाकी बचे लोगों को जो करीब 10-12 थे। सुरक्षित रहकर जीना सिखाया। हम लोग अमर है लेकिन परमाणु युद्ध में हमारे बाकी लोग मारे गए। आज हमारी संख्या कुछ हजार हो गई है।


आप चकित होंगे कि करोड़ों साल में हम हजार ही कैसे हुए। हमारे यहां एक दंपति का एक ही बच्चा होता है और जो बड़ा होकर कुछ श्रेष्ठता की शर्तें पूरी करता है वही अमर किया जाता है।


आज मैं इस ग्रह का राजा हूं। बात तब की है जब यह ग्रह परमाणु युद्ध से नष्ट हुआ था तो उस समय तुम्हारी पृथ्वी आग का गोला थी। वह अभी - अभी सूर्य से अलग हुई थी।


धीरे-धीरे कुछ करोड़ सालों में पृथ्वी ठंडी होने लगी। और गैसें मिश्रित होकर बादलों का निर्माण करने लगी। बारिश होने से पृथ्वी और जल्दी ठंडी होने लगी। यह सब मेरी आंखों के सामने की बातें हैं। क्योंकि मैं तो अमर और अजर हूं।


धीरे-धीरे महासागर बनने लगे। उनमें रासायनिक क्रिया से सूक्ष्म जीव बनने लगे। धीरे-धीरे इन का क्रमिक विकास होने लगा। और कुछ जीव जमीन पर आने लगे।


करोड़ों साल तक यह प्रक्रिया चलती रही। कुछ ही वर्षों में जल थल दोनों में विशालकाय जीव विचरने लगे।


लेकिन कुछ करोड़ साल रहने के बाद यह जीव स्वतः ही प्राकृतिक आपदाओं से नष्ट होने लगे। आखिर एक बंदरनुमा प्राणी सबसे ज्यादा अपनी संख्या बढ़ाने लगे। धीरे-धीरे कुछ पीढियों में यह प्राणी समझदार, बुद्धिमान और विकसित होने लगे। कुछ वर्षों में इनकी कई उपजातियां विकसित हो गई।


आज से कुछ लाख साल पहले इस बंदरनुमा प्राणी की एक उपजाति जो आज के मानव से बहुत मिलती - जुलती थी। बहुत तेजी से विकसित होने लगी। प्रारंभ में यह संख्या में बहुत कम थे। लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या तेजी से बढ़ने लगी। आज इस जाति को मानव कहते हैं।


यह सब घटनाएं एक चलचित्र की तरह से मैं अपने ग्रह से देख रहा था। क्योंकि मैं अजर - अमर हूं। आज मेरा ग्रह मेरे और मेरे साथियों की वजह से खुशहाल और संपन्न है। परंतु मैं करोड़ों साल पहले की अपनी तबाही भूला नहीं हूं।


आज मानव बहुत विकसित हो गया है। कहीं ये भी अपने ग्रह की तबाही अपने हाथों से न कर दे। यही सोच - सोच कर मैं विचलित हो जाता हूं। मेरे ग्रह जैसी दुर्घटना कहीं पृथ्वी पर भी ना हो जाए।





भाग-2


मैं सम्राट जबूरा हूं। पृथ्वी से करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर हमारा ग्रह जिबूती स्थित है। हम लोग 32 फीट लंबे - चौड़े, गौर वर्ण व इंसानी शरीर वाले हैं।


हमने अपने ग्रह को एक प्रकाश की गति से चलने वाले यान में अपने विज्ञान के द्वारा बदल दिया है। आज हमने अपने ग्रह को एक छोटी क्रिकेट की गेंद के बराबर बदल दिया है और हमारा अपना आकार एक मिली मीटर से भी छोटा हो गया है। यह सब हमने अस्थाई रूप में किया है।


अब इस बाल के आकार के ग्रहनुमा यान से हम सारे अंतरिक्ष में भ्रमण भी करते रहते हैं। लेकिन असली आनंद हमें अपनी जगह अपने असली रूप में ही प्राप्त होता है। कुछ लाख साल पहले हम पृथ्वी पर भी आए थे और हमने वहां मानवों से वैवाहिक संबंध कर अपनी और मानवों की नस्ल को सुधारा भी था।


हम इसी तरह सारे अंतरिक्ष में उपस्थित सभ्यताओं की खोज में अपने ग्रह रूपी यान में अक्सर भ्रमण करते रहते हैं। हम सत्य, अहिंसा और एक ईश्वर में विश्वास रखते हैं। सब की उन्नति में ही हमारी खुशी है।


आपके हमारे विषय में क्या विचार हैं? कृपया हमें कमेंट कर बताइए।






भाग 3

गोद लिया


मैं हूं जबूरा। जिबूती का सम्राट। अजर और अमर। पृथ्वी में एक बहुत पिछड़ा देश है मंकोरा। यहां के लोगों के आठ नौ बच्चे प्रति परिवार होते हैं पर जिंदा रहते हैं दो तीन ही।


यहां स्वास्थ्य सुविधायें व अत्याधुनिक तकनीक बहुत कम है। यहां के राजा से मिलकर उस के देश को मैंने गोद ले लिया। एक परिवार एक या शून्य बच्चा नीति सबसे पहले कड़ाई से लागू की गई। पूरे देश में जमीनों की चकबंदी की गई।


पशुओं की नस्ल सीमित व उन्नत की गई। अच्छे अस्पताल व कॉलेज खोले गये। अपराधियों को कठोर दंड दिये गये। रोजगार के साधनों का विकास किया गया।


एक ईश्वर की भक्ति प्रचलित की गई। पर्यावरण को शुद्ध किया गया। पड़ोसी देशों से संबंध सुधारे गये। इसके लिए उचित मात्रा में धन जबूरा ने उपलब्ध करवाया। आज मंकोरा देश अति विकसित देशों की श्रेणी में है।


सीमित जनसंख्या, ज्यादा संसाधन, चमचमाती सड़कें, रेलवे ट्रैक व अच्छा विदेश व्यापार आज देश को प्रगति पथ पर ले जा रहे हैं।


यहां की न्यायपालिका में अब न्याय त्वरित हो जाता है। मैं जबूरा हूं अजर और अमर। मुझे इस देश के आर्थिक व आध्यात्मिक विकास में बहुत बौद्धिक श्रम करना पड़ा।


बहुत धन की आवश्यकता भी पडी। जो मैं अंतरिक्ष के वीरान ग्रहों से ले आया। क्योंकि यह धन वहां मिट्टी की तरह निष्प्रयोज्य पड़ा था।


आपको मेरा काम कैसे लगा। कृपया कमेंट्स करें। काफी धन जो बचा हुआ था मैंने एक कोष बनाकर वहां की सरकार को सौंप दिया।


आतंकवाद जो यहां विकराल हो चुका था। मैंने एक बड़ी सेना यहीं के लोगों से तैयार की। और आतंकवाद का समूल विनाश कर दिया।


यहां पड़ोसी देशों से सीमा की समस्या भी थी इसे भी मैंने बातचीत व युद्धों से पूर्णतया खत्म कर दिया।


यहां की सरकार ने मुझ पर खुश होकर यहां की नागरिकता व एक स्टेट दे दी।


यहां बंदर को एक बहुत ही पवित्र जानवर माना जाता है। फलस्वरुप इनकी संख्या बहुत बढ़ गई। परंतु इन को मारने के सभी विरुद्ध थे। अतः सब बंदरों को पकड़कर एक बड़ी चारदीवारी से गिरे जंगल में रखा गया।


साथ ही 99% बंदरों को बधिया कर दिया गया। कुछ ही समय में जंगल में इनकी संख्या केवल 1% ही रह गई। इस प्रकार बंदरों की समस्या का भी समाधान हो गया।


पूरे देश में एक कानून व एक श्रेष्ठ मुद्रा जारी की गई। अपराधियों व भ्रष्ट कर्मचारियों को कठोर दंड दिये गये।


नशीले पदार्थों और तंबाकू उत्पादों के उत्पादन व विक्रय पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया। इस पर कड़े दंड की व्यवस्था की गई।


चीन की तरह बहुमंजिला खेतों का निर्माण किया गया। जिससे प्रचुर फसल उत्पादन होने लगा।









एंट्री ऑफ गौमाता एंड द घोस्ट




भाग एक


रमेश एक शुद्ध सात्विक पुरुष है। वह सुबह 4:00 बजे उठता है। सारे घर में झाड़ू देता है और नहा - धोकर योगा करता है। फिर उस एक ईश्वर की आराधना करता है। फिर शुद्ध हर्बल चाय व नाश्ता करता है। उसके पास एक उपजाऊ खेत है उसमें वह दिन भर मेहनत करता है। खाली टाइम में वह ट्यूशन भी पढ़ाता है।


रमेश की जिंदगी शुद्ध सात्विक रूप में गुजर रही है। रमेश वेद वेदांगों व आधुनिक विज्ञान का भी ज्ञाता है। उसकी कई रचनाएं प्रतिलिपि व अन्य माध्यमों पर छपती हैं। रमेश एक उत्कृष्ट चित्रकार, प्रबुद्ध चिंतक व गुणी देशभक्त नागरिक है।


एक दिन रमेश की नजर दो छोटी नस्ल की गायों पर पड़ी। लोगों की बातों से पता चला कि ये गायें किसी ने छोड़ रखी हैं। गौ को माता मानने वाले इस देश में गायों की यह दुर्दशा??? ऐसी ही ये छुट्टी रही तो किसी दिन यह गायें किसी तेंदुये, बाघ का शिकार बन जाएंगी।


कुछ दिनों बाद रमेश ने देखा कि गायें दिन भर खाली घास वाली जमीन में चरती रहती हैं। और शाम को उसके घर के आंगन में बैठ जाती हैं। कुछ दिनों में गायें हृष्ट पुष्ट और चमकदार त्वचा वाली हो गई।


एक गाय सफेद व हल्के लाल पीले रंग की व दूसरी काले रंग की है। दोनों का स्वास्थ्य खुली हवा में रहने से बहुत उत्तम हो रखा है रमेश ने एक का नाम कपिला व दूसरे का नाम ब्लैक डायमंड रखा। अगल बगल की कुछ स्त्रियां इनको रोटी आदि भी खिलाने लगी।


एक दिन रमेश सो रहा था। कि कुछ खटपट की आवाजें आने लगी। रमेश जैसे ही अपने कमरे से बाहर आया तो उसने देखा कि कुछ चोर घर से कुछ सामान चुरा के ले जा रहे हैं। रमेश ने पटवारी जी को फोन किया तो पटवारी जी ने उनींदी आवाज में कहा कौन है भाई। मैं इस समय तो बाहर हूं। रमेश ने उन्हें चोरों के बारे में बताया और चोरों से भिड़ गया। घमासान लड़ाई होने लगी। चोरों ने रमेश पर चाकू से वार कर दिया। रमेश ने उनका चाकू छीन कर उसी से उन पर वार कर दिया। परंतु चोर अधिक संख्या में होने के कारण भारी पड़ने लगे।


रमेश थक गया था। अचानक चोरों की दिल दहलाने वाली आवाजें सुनाई देने लगी। दोनों गायों ने चोरों पर हमला कर दिया। कुछ ही देर में चारों चोर अपनी टूटी-फूटी हड्डियों के साथ खून से सने जमीन पर पड़े थे। दोनों गौ माताओं ने चोरों की हड्डी - पसली अपने पैने सींगों व लातों से तोड़ दी थी। कुछ पड़ोसी भी घटनास्थल पर आ गये और चोरों को रस्सी से बांधकर अगले दिन पटवारी जी के हवाले कर दिया गया।


सारे क्षेत्र में रमेश व गायों की बहादुरी के किस्से फैल गये। लोग गायों को साक्षात् देवी मानकर उनकी पूजा करने लगे। आनन-फानन में गायों के लिए एक अत्याधुनिक गौशाला व चिकित्सालय खोला गया और दो - चार व्यक्ति सैलरी पर गायों की देखभाल के लिए रखे गये।


अब कहानी का असली भाग शुरू होता है। इलाके में कुछ लोग ऐसे थे जो दुष्ट प्रवृत्ति के थे और असामयिक मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। ये दुष्ट मरने के बाद भूत -पिशाच बन गए थे। गांव में कुछ दिनों से बच्चों व मवेशियों की अधखाई लाशें मिल रही थी।


एक दिन रमेश सुबह ईश्वर की आराधना में लीन था। अचानक दोनों गायें उसके ध्यान में प्रकट हुई और बोली वत्स तुम पर एक भारी विपत्ति आने वाली है। हम गायों के रूप में लक्ष्मी और सरस्वती हैं। तुम अच्छे निशानेबाज हो। हमारे पंचगव्य और पंचामृत के सहयोग से तुम अपनी रिवाल्वर की गोलियों का निर्माण करो। इसकी विधि हम तुम्हें बता रही हैं। ये गोलियां भूत - पिशाचों का वध करेंगी।


रमेश ने ऐसा ही किया। एक श्रेष्ठ राजपूत व वेद वेदांगों का ज्ञाता होने से उसे ऐसा करने में कोई कठिनाई नहीं हुई।


अगले दिन गांव में कुछ अधखाई लाशें मिली। रमेश ने गांव के कुछ वीर लोगों को बंदूक, तीर, तलवार चलाने की शिक्षा दी। और शीघ्र ही सभी भूत - पिशाचों का अंत अपने दिव्य हथियारों से कर दिया।







भाग 2



कपिला व ब्लैक डायमंड रमेश के सपने में आई। और बोली वत्स तुम सारे देश की बेकार वृद्ध व सड़कों पर फिरने वाली गायों को जमा करो और उन्हें एक बड़ी गौशाला बनाकर रखो। रमेश ने पूछा माते इस सब के लिए तो बहुत धन की आवश्यकता होगी। वह धन कहां से आएगा। गौ माता बोली वत्स सुबह को तुम्हारे साफ आंगन में जहां हम गोबर करेंगी। वहीं खोदना तुम्हें अपार धन प्राप्त होगा।


रमेश ने सुबह उठते ही आंगन में झाड़ू लगाया। सभी गायों ने आंगन में एक साफ जगह गोबर कर दिया। रमेश ने कुछ मजदूर बुलाए और वहां खुदाई शुरु करवा दी। कुछ ही देर में वहां सोने, चांदी, हीरे, मोती से भरे घड़े निकलने लगे। एक हस्तलिखित स्वर्ण अक्षरों में भोजपत्र पर लिखी गौ - पुराण की पुस्तक भी वहां से मिली। यह सोने के संदूक में थी। रमेश ने कई किलोमीटर लंबी - चौड़ी जमीन खरीदी। मजदूरों व जेसीबी से जमीन को चौरस और समतल करवाया। इसके बाद उसने इस जमीन में किस्म - किस्म की घासें बोई। और सारी जमीन में चारदीवारी बनवाई। जमीन में एक तरफ उसने गायों के लिए एक अत्याधुनिक विशाल गौशाला व चिकित्सालय बनवाया। वहां पानी की भरपूर व्यवस्था थी।


रमेश ने कुछ हजार कर्मचारियों को रखा और उन के माध्यम से सारे देश की निराश्रित गायों को जमा करने लगा। कुछ ही महीनों में वहां करोड़ों गायें जमा हो गई। रमेश ने सभी गायों के रखरखाव की समुचित व्यवस्था की। और इस जगह का नाम कामधेनु वन रख दिया।


अब गायों की संख्या बढ़ने लगी। रमेश ने हिसाब लगाया तो पाया कि तेजी से जनसंख्या वृद्धि से गायों के रखरखाव व खाने-पीने पर असर आएगा। अतः उसने गौ पुराण के अनुसार श्रेष्ठतम 1000 गायों को ही श्रेष्ठ सांड से गर्भाधान का नियम बनाया। धीरे - धीरे गायों की जनसंख्या करोड़ों से हजारों पर आ गई। रमेश ने गायों के मूत्र, गोबर और दूध से अनेकों उत्पाद बनाए और उनका विपणन करने लगा।


यह कामधेनु वन गायों की श्रेष्ठतम शरण स्थली व श्रेष्ठतम गोवंश उद्धारक स्थल सिद्ध हुआ। एक गाय 100-100 किलो दूध देने लगी।













7 साल बाद



आशीष आज 7 साल बाद अपने गांव लौट रहा था। आशीष सिंह उत्तराखंड के एक छोटे से गांव का निवासी था। आज से 7 साल पहले वह घर से भाग गया था। मध्य प्रदेश के घने जंगलों में औघडों व तांत्रिकों के बीच रहकर उसने तंत्र, मंत्र व अन्य कई विधाओं का ज्ञान प्राप्त किया था। लोहे को सोना बनाने का भी ज्ञान वह प्राप्त कर चुका था। जाहिर है साथ ही वह अजर - अमर भी हो चुका था। अपनी विद्याओं को मानवता की भलाई के लिए वह समर्पित करने की सोच रहा था। 7 साल पहले वह परेशान, दुखी व बेरोजगार था। आज धन-संपत्ति उसके चरण चूम रहे थे।


आशीष एक कामर्शियल कार बुक कर अपने घर लौट रहा था। उसके गुरु ने भविष्य दर्शन व पाप - पुण्य का एक पैमाना भी उसे दिया था।


कार को ड्राइवर चला रहा था। आशीष के पास सामान के नाम पर केवल एक बैग था। आशीष आज देहरादून पहुंच गया। देहरादून में आते ही उसने एक विशाल मकान और मकान से लगती बहुत सी जमीन खरीदने की सोची। अपनी सिद्धि से थोड़ी स्वर्ण मुद्राएं उसने प्राप्त की और शीघ्र ही एक शानदार बंगला खरीद लिया। कुछ नौकर - चाकर व बॉडीगार्ड उसने रख लिये। बंगले का रेनोवेशन करने के बाद उसने पूरे बंगले में महंगे फर्नीचर व अन्य जरूरी सामान को खरीद कर भर दिया। उसने वहां कुछ फैक्ट्रियां भी स्थापित की कुछ ही दिनों में वह देहरादून में एक सफल व अमीर व्यवसायी के रूप में प्रसिद्ध हो गया। बड़े - बड़े अधिकारियों, मंत्रियों व राजनेताओं से उसका संपर्क हो गया। एक सुंदर लड़की से उसने शादी भी कर ली।


इस सब के होते हुए भी उसने अपनी दिव्य शक्तियों का आभास किसी को नहीं होने दिया।


आज वह अपनी कार से अपने गांव आ रहा था। गांव में उसकी पहली पत्नी अपने पुत्र के साथ रहती थी। इस औरत ने अपने भाई के साथ मिलकर उसे बहुत परेशान किया था। आशीष का इकलौता साला बाहर के देश में नौकरी करता था। आशीष उस समय बेरोजगार था। बौखला कर साला व पत्नी उसे कानूनी कार्रवाई के नाम पर परेशान करते रहते थे।


आशीष चुपके से घर आया। घरवाली बोली 7 साल से कहां थे। मैं तो समझी शायद कहीं मर - खप गए हो। चलो अब अपना घर - द्वार संभालो। आशीष चुपचाप घर के कार्य करने लगा। उसने सर्वप्रथम इधर-उधर बिखरे अपने अनुपजाऊ खेतों को बेच दिया और प्राप्त रकम में कुछ धन मिलाकर एक ही जगह पर बहुत सारे खेत खरीद लिए।



कुछ नौकरों को खेतों की देखभाल पर लगा दिया। फल- स्वरुप खेतों से अच्छी आमदनी होने लगी। उसके बाद उसने पुराने मकान की जगह एक सुंदर और बड़ा मकान बनवा दिया। घरवाली को भी अच्छे आभूषण व सुंदर वस्त्रों के ढेर दिलवा दिये। घरवाली प्रसन्न हो गई। कुछ दिन घरवाली का व्यवहार ठीक रहा। किंतु एक दिन आशीष का दुष्ट साला उसके घर आ गया। आते ही उसने अपनी बहन को आशीष के खिलाफ भड़का दिया। कुछ ही देर में उसने पुलिस को बुला लिया। दोनों भाई बहन आशीष को परेशान करने में बड़े आनंदित होते थे। 7 साल पहले की घटनायें वे फिर दोहरा रहे थे।


आशीष चुपके से अपने कमरे में पहुंच गया। कमरे का दरवाजा उसने बंद कर दिया और अपनी शक्तियों से अपना एक गण उत्पन्न कर दिया। यह गण हू-बहू आशीष की ही कद काठी व शक्ल सूरत का ही था। मैं तुम्हारा नाम आशीषो रखता हूं। लेकिन दुनिया तुम्हें आशीष ही समझेगी। अत्याधुनिक वस्त्रों में सजा व एप्पल के मोबाइल के साथ यह गण एक अत्यंत संभ्रांत व्यक्ति लग रहा था। इसके बाद आशीष अदृश्य हो गया। कुछ देर बाद कमरे से आशीषो आशीष के रूप में बाहर आया।


तब तक पुलिस घर पर आ गई थी। साला और बीवी मुंह छुपा कर हंस रहे थे। स्पष्ट रूप से उन्होंने पुलिस वालों को काफी घूस दे रखी थी। पुलिस आशीषो को आशीष समझ कर थाने ले गई। थाने पहुंच कर पता चला कि पत्नी व साले ने झूठा दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज कर रखा था। पुलिस वाले आशीषो को पीटने लगे। आशीषो को क्रोध आने लगा। आशीषो ने अपनी हजार हाथियों की शक्ति का आह्वान किया। अब उस में एक हजार हाथियों की शक्ति भर गई। आशीषो ने तुरंत अपना प्रचंड रूप दिखाया। तुरंत ही पुलिस वाले उसके जबरदस्त वारों से इधर-उधर लुढ़कने लगे। पुलिस वालों में हाय - तौबा मच गई। कुछ ही देर में आशीष की पत्नी और साला भी वहां आ गये। अब आशीषो ने उनकी भी पिटाई शुरू कर दी। सभी षडयंत्रकारी पिटते - पिटते बेदम हो गये। फिर उन सब ने अपने षड्यंत्रों का पर्दाफाश कर दिया। आशीषो ससम्मान छूटकर घर आ गया और आशीष के समीप आकर उसमें ही विलीन हो गया।













आदि - आदि मानव


आदित्य दिल्ली में एक बड़ी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। उसको वहां पर अच्छी - खासी सैलरी मिलती है। प्यार से सभी साथी लोग उसे आदि कहकर पुकारते हैं। आदि अक्सर कंपनी के कामों से भारत के अन्य शहरों में व विदेश जाता रहता है। आदि की जिंदगी मजे से गुजर रही है।


अचानक एक बार दूर किसी शहर की ओर जाते हुए आदि के प्लेन को आतंकवादियों ने हाईजैक कर लिया। आतंकवादियों ने अपनी मांग न मानने पर प्लेन को आत्मघाती विस्फोट से उड़ा दिया। वह एक जंगल में गिर गया।


वहां के आदिवासियों ने जहाज को आग का गोला बन कर नीचे गिरते देखा। तो वह भाग कर वहां पहुंचे। उन्हें वहां आदि और तीन अन्य लोग अर्धमृत अवस्था में मिले।


कबीले वालों ने उनकी देखरेख व उपचार किया तो 4 में से तीन आदमी बच गये। कुछ ही दिनों में आदि और उसके दो साथी स्वस्थ हो गये। कबीले वाले एक अंजान सी भाषा बोलते थे। शुरू - शुरू में आदि उनसे संकेतों में बात करता था। लेकिन धीरे-धीरे वह उनकी भाषा सीख गया। आदि और उसके साथी कबीले में सुख शांति से रहने लगे। जंगली फल, मांस खाते-खाते आदि का शरीर बहुत सुंदर व बलिष्ठ हो गया।


गांव का ओझा एक 150 वर्ष का अत्यधिक बूढ़ा व्यक्ति था। लेकिन उसका शरीर अविश्वसनीय रूप से स्वस्थ व युवा था। उसके चेहरे व शरीर पर एक भी झुर्री नहीं थी। केवल सन जैसे सफेद बाल उसके उम्रदराज होने की पुष्टि करते थे। आदि ओझा से उसकी विद्यायें सीखने लगा। साथ ही वह कबीले के सरदार से प्राचीन युद्ध विद्या भी सीखने लगा। कुछ ही समय में आदि एक घुटा हुआ योद्धा बन गया।


अक्सर अन्य कबीले उसके कबीले पर आक्रमण करते रहते थे। इन युद्धों में लड़ते हुए आदि एक श्रेष्ठ योद्धा बन गया। युद्ध में घायल व्यक्तियों की मदद करता - करता आदि एक कुशल वैद्य भी बन गया था।


आदि अक्सर जंगल में बनी एक गुफा में ध्यानमग्न होकर बैठ जाता था। उसे वहां ध्यान करना बहुत अच्छा लगता था। धीरे-धीरे जंगल के कुछ जानवरों से उसकी दोस्ती हो गई। जानवरों की खाल कबीले में कपड़ों की जगह पहनी जाती थी। जानवरों के साथ रहते-रहते आदि एक बलिष्ठ जानवर जैसा ही दीख पड़ता था। जंगली हवा और वातावरण, मांस व जड़ी- बूटियों के सेवन से आदि का शरीर एक बलिष्ठ सांड की तरह ही दिखाई देने लगा।


एक बार कबीले का सरदार आदि से मिलने आया और बोला कि यहां के कबीले आपस में लड़ - लड़ कर खत्म होते जा रहे हैं। पुरानी भविष्यवाणी है कि एक फरिश्ता आएगा और सारे कबीलों को एक सूत्र में बांधेगा। सब कबीले मिलकर एक बड़ा कबीला बनाएंगे और फिर कहीं कोई युद्ध नहीं होगा। आदि बोला वो फरिश्ता कब आएगा। सरदार बोला वो आ चुका है लेकिन कौन है किसी को पता नहीं।


कबीले में कई अमानवीय प्रथायें भी थी। ये प्रथायें बाहर के लोगों को अजीब लगती थी। लेकिन वहां के लोगों को यह पवित्र लगती थी। कबीले में जन्म लेने वाले 10 बच्चों में से बहुत स्वस्थ दो बच्चों को ही पाला जाता था। अन्य आठ को तुरंत मार दिया जाता था। कबीले में कोई शादी की प्रथा न थी। जिस औरत या लड़की को बच्चा चाहिए होता था वह कबीले के लिए चुने हुए शक्तिशाली बुद्धिमान और रूपवान एक व्यक्ति के पास जाती थी। यह व्यक्ति हायना कहलाता था। 18 वर्ष की उम्र में सभी लड़कों को सरदार के सामने पेश किया जाता था। बुद्धिमान, स्वस्थ, तगड़े व 8 फीट से ज्यादा लंबे लड़कों को छोड़कर शेष को तुरंत मार दिया जाता था। इस सब के होते हुए भी कबीले में पर्याप्त लोग थे।


आखिर में सभी कबीलों में घनघोर युद्ध हुआ। इसमें आदि का कबीला विजयी हुआ। आदि ने सभी कबीलों को अपने कबीले में मिला लिया और अपने कबीले के नियम सब पर लागू कर दिए।


अब आदि, आदि मानवों के एक सशक्त कबीले का मुखिया था। जिसका कोई प्रतिद्वंदी दूर-दूर तक न था।


आदि ने उपलब्ध सभी ज्ञान को एक विशाल ताड़-पत्र की पुस्तक में संकलित करवाया। क्या आदि ही कबीलों का फरिश्ता था?





भाग 2


आदि ने कुछ ही समय में सभी कबीलों को अपने कबीले में शामिल कर लिया। 1 दिन आदि अपनी विशाल झोपडी़ में राजा के आसन पर बैठा था। अचानक द्वार पर किसी व्यक्ति की आहट सुनाई दी। आदि ने नजर उठाकर देखा तो पाया कि एक बड़ा जटा - जूट धारी ऋषि खड़ा था। आदि ने आदर के साथ उन्हें एक आसन पर बैठाया।


वह ऋषि विश्वामित्र थे। विश्वामित्र 9 फीट लंबे, काली जटाजूट वाले और दिव्य चेहरे वाले ब्रह्मर्षि थे। विश्वामित्र ने आदि से कहा पुत्र मैंने अपने लाखों वर्ष के जीवन में कई राज्य व राजा देखे। तुम उन में श्रेष्ठ हो। पुत्र आज का समय कुछ और है। आज सारी दुनिया में पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव है। पाश्चात्य सभ्यता में कई श्रेष्ठ तत्व भी हैं। इन श्रेष्ठ बातों को अपनाकर तुम अपने राज्य को श्रेष्ठ बना सकते हो। आदि बोला महर्षि इसके लिए धन कहां से आएगा।


विश्वामित्र बोले तुम्हारे राज्य के उत्तरी क्षेत्र में सोने - चांदी की खानें हैं। पश्चिमी क्षेत्र में हीरा, पन्ना, माणिक की खानें और दक्षिण भाग में सुंदर मोती पाए जाते हैं। इनसे तुम अपने राज्य को शक्तिशाली व संपन्न बनाओ।


आदि ने सिर्फ 5 वर्षों में ही अपने राज्य को आधुनिक व संपन्न बना दिया। आदि की राजधानी आर्य पुरी कुछ ही दिनों में न्यूयॉर्क से भी अधिक सुंदर व संपन्न बन गई।







भाग 3


महाराज आदित्य वर्मन अर्थात आदि अपने चमचमाते सुवर्ण सिंहासन पर बैठे हैं। उनके सामने एक तरफ मंत्री परिषद चांदी के आसनों पर बैठी है। दूसरी तरफ राज्य के मुख्य पदाधिकारी बैठे हैं। महाराज के बगल में ही तेजस्वी विश्वामित्र बैठे हैं।


आदित्य बोले प्रजागणों आज हमारा राज्य आर्यपुर संपन्न व सुखी है। यह सब राजगुरु विश्वा- मित्र के आशीर्वाद से ही संभव हुआ है। आज हमारा राष्ट्र चुनिंदा अत्याधुनिक राज्यों में से एक है। आज हम राज्य की सभी नौकरियों की प्रवेश परीक्षाओं को निरस्त करते हैं। और आज से हर नौकरी के लिए एक ही टेस्ट होगा। वरीयता क्रम से सभी उच्च व निम्न पद भरे जाएंगे।


महाराज अचानक स्वास्थ्य मंत्री ने खड़े होकर कहा राज्य में डॉक्टरों की संख्या बहुत कम है। हमें 11 में से केवल एक डॉक्टर ही मिल पाता है। हमें और डॉक्टर चाहिए।


आदि बोले मंत्री जी राज्य में अभी भी बहुत बेरोजगार हैं। आप एक छोटी सी सरल परीक्षा आयोजित करवायें और वरीयता क्रम में आने वाले युवकों को उचित संख्या में लेकर उनको प्रशिक्षण दिलवायें। साढे 5 साल की जगह उनका प्रशिक्षण 6 या 7 साल का हो सकता है। तुम्हें 11 की जगह 12 डॉक्टर मिल जाएंगे।


रोजगार मंत्री उठे और बोले - महाराज अभी देश में 10% बेरोजगार हैं।


आदित्य बोले सभी बेरोजगारों को प्रशिक्षण देकर 5000 - 5000 की सैलरी पर हर विभाग में एडजस्ट कर दीजिए। इन लोगों से माह में केवल 15 दिन ही कार्य लीजिए।


रक्षा मंत्री ने कहा महाराज हमें शत्रुओं की प्रगति देखते हुए रक्षा बजट में 30% की बढ़ोतरी चाहिए।


आदित्य बोले हम 30% की जगह 50% की बढ़ोतरी कबूल करते हैं।


कबाड़ मंत्री बोले महाराज हमने सभी संस्थानों का 50% कबाड़ नीलाम कर दिया है।

सौ प्रतिशत कबाड नीलाम कर दीजिए। आदित्य बोले।


रेल मंत्री बोले रेल घाटे में चल रही है।


आदित्य बोले किराए में उचित बढ़ोतरी कर हानि को 3 माह में शून्य घाटा कीजिए और उससे अगले तीन माह में हमें 25% लाभ प्रदान कीजिए।


विनिवेश मंत्री बोले महाराज हमारा कार्य 30% संपूर्ण हो गया है।


आदित्य बोले अगले छह माह के अंदर संपूर्ण विनिवेश कीजिए।


कृषि मंत्री बोले महाराज कृषि में सुधार 50% हुआ है।


आदित्य बोले 6 माह के अंदर कृषि का सौ प्रतिशत विकास कीजिए।


कोषाध्यक्ष बोले महाराज हम पर भारी विदेशी कर्ज है।


आदित्य बोले आज के बाद से नये विदेशी कर्ज के ऊपर रोक लगाई जाती है और कोष का 90% धन विदेशी कर्जे के 80% भाग को निपटाने में लगा दें। और एक उपकोष स्थापित कर देश के नागरिकों को इसमें चंदा देने के लिए उत्साहित करें। इससे शेष 20% का भुगतान 6 महीने के अंदर कर दें।


गृहमंत्री बोले महाराज हमने अपनी आय में 20% की बढ़ोत्तरी दर्ज की है।


आदित्य बोले 6 माह के अंदर 30% और बढ़ोत्तरी करें।


आयात-निर्यात मंत्री बोले महाराज आयात - निर्यात का बैलेंस ऋणात्मक रहा।


आदित्य बोले तीन माह में बैलेंस शून्य करें और कुल छह माह में बैलेंस में 25% धनात्मक वृद्धि दें।


शिक्षा मंत्री बोले महाराज हमारी शिक्षा - नीति उचित मार्ग पर चल रही है।


आदित्य बोले 6 माह के अंदर देश के सभी कॉलेजों व स्कूलों में एक ही उचित व विश्वस्तरीय पाठ्यक्रम लागू करें।


पशुपालन मंत्री बोले महाराज हमारे राज्य के पशु बहुत कम दूध देते हैं और वह संख्या में अत्यधिक हैं।


आदित्य बोले अगले 5 वर्षों में 10 किलो से कम दूध देने वाले पशु का प्रजनन न कराया जाए। इसी प्रकार 5, 10, 15, 20, 100 किलो दूध के क्रम तक पहुंचा जाए। फालतू व अनुपयोगी पशुओं, बंदरों, सूअरों आदि हानिकारक पशुओं की तुरंत नसबंदी व वध किया जाए।


कोषाध्यक्ष फिर बोले महाराज इन सब सुधारों के लिए धन कहां से आएगा।


आदि बोले सभी सरकारी कर्मचारियों का वेतन एक बटा चार कर दिया जाए। फालतू के खर्चे कम किये जाएं। आय के नए स्रोत ढूंढे जायें। स्टार्टअप्स की प्रक्रिया बहुत सरल कर दी जाए।


इस तरह मंत्री - गण कुछ बोलते और महाराज आदित्य उनका समाधान ढूंढ कर देते रहते।