Anya ka sasuraal - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

आन्या का ससुराल - 4

आन्या मांजी के साथ बेटी लेकर हॉस्पिटल से घर आई। उसे और उसकी बच्ची को नहलाकर उनके रहने के लिए अलग कमरे में व्यवस्था कराया गया। डिलीवरी का पहला दिन था मगर मांजी के चेहरे पर आन्या के प्रति कोई बेचारगी (ममता) नहीं थी। आन्या को त़ो कुछ छूना नहीं था, मम्मीजी ही पूरे घर के काम संभालतीं जब तक आन्या अलग थलग थी। उन दिनों में भी मम्मीजी ने उसे ताने देना नहीं छोड़ा था। सुबह आठ बजे मांजी गुस्से से आकर बोलीं, "नाश्ता करोगी"? आन्या ने पूछा, "कितने बजे हैं"? मांजी ने बौखलाकर कहा, उससे तुमको क्या मतलब है? नाश्ता करना है? आन्या ने कहा, हां। फिर उन्ह़ोंने उसी अवस्था में नाश्ता लाकर दिया। वो तीनों वक्त का खाना आन्या क़ो ऐसे ही देती रहीं। उस अवस्था में भी वो प्यार के वजाय गुस्से और नफरत से ही पेश आती थीं। एक तो डिलीवरी वाला दर्द, फिर बच्ची को संभालना, ऊपर से मांजी का वैसा रवैया।सुमित तो देखने के लिए भी बड़ी मुश्किल से आता था, अपनी बीबी-बच्ची को। आता भी तो सिर्फ दूर से ही देखकर चला जाता था। आन्या को बड़ा खलता पर अपनी बेटी का चेहरा देखकर व़ो सब भूल जाती थी। आधी रात को बच्ची बहुत रोया करती, शायद उसे पर्याप्त मां का दूध नहीं मिल पा रहा था। वो रात भर उसे संभालती और कभी-कभी मांजी भी आ जाती थीं उठकर, उसे संभालने को। वो चुप करा सुलाकर चली जाती तो फिर रोती रहती थी। आन्या रात भर सो नहीं पाती थी ऐसे में। बच्ची हर रोज सुबह होने पर ही सोती रही और आन्या भी तभी थोड़ी नींद ले पाती। मगर मांजी उसे ताने देते हुए छ: बजे ही और कभी उससे ही पहले कहती,"बाप रे अभी तक सो ही रही है। अभी तो काम कुछ नहीं करना था। शरीर में जान कहां थी ऊपर से पूरी रात जागना। चूर हो जाती थी वो। उतने दिनों में सिर्फ छठी के दिन ही उसे प्यार से खाना परोसा गया क्योंकि उस दिन‌ उसकी ननद आई हुई थी और उसी ने खाना परोसा था। आन्या की ननद तो चालबाज नहीं थी पर रहती अपनी मां के ही फेवर में थी। बच्ची का छठी मनाया गया और उसमें ज़ो गिफ्ट्स व पैसे मिले थे सब मांजी ने रख लिए। ऐसा उन्होंने आन्या के रिसेप्शन पार्टी का भी किया था। खैर, जब बारह दिन पूरे हुए तो आन्या ने मांजी से कहा, "आज तो मैं किचन में जा सकती हूं न!" वो थक चुकी थी ताने सुन सुनकर खाना खाते खाते। इसलिए, उसने काम करना ही चुना। मम्मीजी ये मान नहीं रही थीं मगर आन्या अड़ गई। फिर कुछ बातें सुनाते हुए पूजा पाठ कराकर उसे किचन प्रवेश कराया गया। आन्या फिर से पहले की तरह काम से जुड़ गई साथ में बच्चे की देखभाल और पूरी रात जागने व सुबह मांजी के ताने सुनने की आदी भी हो गई। हालांकि, कभी-कभी वो झल्लाती पर क्या फायदा फिर तो मम्मीजी मुंह ही फुला लेती और कोई हेल्प नहीं करती जो भी थोड़ी करती थी। सुबह बच्ची की मालिश करना मांजी ने अपना लिया था लेकिन अगर आन्या को जरा भी देर हो जाती उठने में तो वो मालिश भी नहीं करती थीं। यहां तक कि बाथ्रूम जाने के लिए भी बच्ची को कोई संभालने वाला नहीं होता। फिर मांजी से ही रीक्वेस्ट कर वो फ्रैश होने जाती थी। जब बच्ची थोड़ा बैठने लगी तब एक दिन आन्या ने यूं ही मांजी के पीछे उसे बिठाकर आगे बढ़ गई, तब उसने देखा था कि मांजी ने उसे ये करते हुए देखा है, इसलिए वो निश्चिंत होकर चली थी। तभी बच्ची पलटकर गिर जाती है और उन्होंने उसकी ओर देखा तक नहीं, फिर उसने ही दौड़कर उसे उठाया और चुप कराया। आन्या सोचने लगी कि ये कैसी दुष्ट औरत है जिसे अपने झूठे अहम के आगे कुछ नहीं दिखता। छी:! उसे सबसे ज्यादा सुमित पर गुस्सा आता जो न रात को साथ देता बच्ची को संभालने में, न दिन को। उसे तो सिर्फ साथ सोने से मतलब था। ऐसे ही चलता रहता हर रोज। कभी कभी अमीत से भी मदद मिल जाती थी, वो प्यार करता था शिनी (आन्या की बेटी) को। प्यार त़ो मांजी भी करती थीं उससे पर वो अहसान जताती रहतीं अक्सर। वो शिनी को उसकी मां से दूर ही रखतीं। आन्या कई बार जल्दी जल्दी काम निपटा लेती ताकि वो अपनी बेटी के साथ वक्त बिता सके। पर जब वो कहती, लाइए मम्मी काम हो गया। मांजी कहती, और कुछ कर लो अभी मैं हूं। ऐसे ही बार बार होता। आन्या तरस जाती थी अपनी बेटी के साथ खेलने के लिए। जब वो कभी गिरती या उसे चोट लग जाती तब आन्या जाने ही वाली होती है कि मांजी चली जाती और फिर उसे ही सुनाने लगती कि बेटी का ख्याल नहीं है। शायद शीनी को ये लगने लगा था कि उसे उसकी दादी ही सबसे ज्यादा प्यार करती है। उसके पापा भी उसे उतना वक्त नहीं देते जितना उसके अमीत चाचा देते थे, इसलिए वो उनके करीब भी ज्यादा हो ग ई। अब आन्या ने भी सोचा कि ये मांजी कुछ ज्यादा ही शातिराना अंदाज खेलने लगी हैं। उसे सुमित से दूर करने की कोशिश में तो रहती ही हैं, अब उसकी बच्ची से भी दूर कर रही हैं। एक दिन शाम करीब चार बजे। मम्मीजी अब शीनी को मुझे दे दीजिए, आपको बाहर जाना है न! मांजी ने फिर वही चाल चली, कुछ और है तो कर लो। रात के खाने की तैयारी, सब्जी वगैरह काटना होगा‌। आन्या सीधा अपने कमरे में आकर आराम से टीवी देखने लगी, तेज आवाज में। मांजी झट से आईं और बोली लो संभालो, जाना है। आन्या की तरकीब रंग लाई। उसे पहली बार बेटी के साथ एक्स्ट्रा टाईम मिला। अब तो उसकी ये प्रौब्लम सौल्व हो ग ई थी। पर काम इतना ज्यादा होता, सब उसे ही तो संभालना रहता। बच्ची बोर होकर मां को परेशान करने लगती। मम्मीजी जानबुझकर शिनी को छोड़ देतीं और आन्या तंग होती रहती। वो काम संभाले या बच्ची को। जब घर पर क़ोई नहीं होता तो वो बेटी पर झल्ला उठती थी। इससे वो दादी को मिस करती और उनके आते ही उनसे लिपट जाती थी।