Majburi Ka Naam Mahatma Gandhi books and stories free download online pdf in Hindi

मज़बूरी का नाम

आखिर क्यों कहते हैं मज़बूरी का नाम महात्मा गाँधी। आपने किसी न किसी को ये कहते हुए जरूर सुना होगा “मजबूरी का नाम महत्मा गाँधी ” आज मैं आपको 05 कारण बताऊंगा जिसके चलते महत्मा गाँधी को “मज़बूरी का नाम महत्मा गाँधी” कहा जाता हैं।

जिनके कहने पर चली थी आज़ादी की आंधी  

फिर क्यों कहते हैं " मज़बूरी का नाम महत्मा गाँधी"

साउथ अफ्रीका की कहानी
 

एक गुजराती बिज़नेस मैन हुआ करते थे जिनका नाम था दादा अब्दुला। ये बात 1905 -1906 की। दादा अब्दुला साउथ अफ्रीका में बहुत परेशान थे।

भारत में गाँधी को बिज़नेस नहीं मिल रहा था। गाँधी का हालत भारत में बहुत ही ख़राब था। फिर दादा अब्दुला ने गाँधी से कहाँ आप साउथ अफ्रीका आ जाओ मेरा केस लड़ो। दादा अब्दुला ने गाँधी को अफ्रीका आने के लिए टिकट करा दी।

first class में गाँधी वहां ट्रैवल कर रहे थे। गाँधी को फर्स्ट क्लास में ट्रेवल करते हुए जब साउथ अफ्रीकन अंग्रेजो ने देखा तो गाँधी को धक्के मार कर ट्रैन से बाहर फेक दिया और कहने लगा ये गाँधी काला आदमी फर्स्ट क्लास में कैसे ट्रेवल कर सकता हैं।

अंग्रेजो ने गाँधी को मारा पीटा भी। यहाँ भी गाँधी कुछ नहीं बोले। जब कोर्ट में जज ने बोला अपनी टरबन बागड़ी उतार निचे रख ,गाँधी ने बड़े आसानी से पगड़ी उतार कर दिए। गाँधी वही रहे। क्योंकि अफ्रीका में उनका 1 साल का कॉन्ट्रैक्ट था। और बेइज्जती सहते रहे।

बेइज्जती सहने का दो कारण था। एक तो गाँधी के पास पैसे की कमी थी और दूसरा कारण दादा अब्दुला के दिए हुए वचन कि मैं आपके लिए एक साल तक केस लड़ूंगा।

दादा अब्दुला को दिए हुए वचन के कारण गाँधी ने अफ्रीका में बेइज्जती भी सही ,अंग्रेजो के कहने से अपनी पगड़ी भी उतार दिया ,अंग्रेजो से पिटाई भी खाई। अपने दिए हुए वचन के कारण गाँधी अफ्रीका में सब कुछ सहने को मजबूर थे। एक ये भी कारण है जिसके चलते गाँधी को मज़बूरी का नाम महत्मा गाँधी कहा जाता हैं।

मज़बूरी का नाम महात्मा गाँधी क्यों कहते है ?
दूसरा कारण खिलाफत आंदोलन
यह आंदोलन 1919  से 1924 यानि की पांच साल तक चला था। तुर्की में एक धर्म गुरु हुआ करते जिसे वहा खलीफा कहा जाता था।

अंग्रेजो ने इन्हे खलीफा के पद से अपने ताकत से हटा दिया। दुनिया भर के मुसलमान इन्हे बहुत बड़ा धर्म गुरु मानते थे। जिसके कारण देश के सभी मुसलमान एक हो गए और  यही से शुरू हुआ खिलाफत आंदोलन।

गाँधी जी मुसलमानो को अपने साथ लेने के लिए खिलाफत आंदोलन में बड़ा बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने लग गए। गाँधी जी मुसलमानो को अपने साथ इसलिए लेना चाहते थे ताकि अंग्रेजो से लड़ने में वे लोग भी साथ दे।

इसीलिए गाँधी जी  खिलाफत आंदोलन के मदद से मुसलमानो का दिल जितने का कोशिश कर रहे थे। जब से गाँधी जी खिलाफत आंदोलन का हिस्सा बने तब से यह अंदोलन बड़ी तेजी से आगे बढ़ने लगा।

1921 में दक्षिण भारत में मुसलमानो ने 1500 हिन्दुओ को मार दिया , जबरदस्ती 2000 हिन्दुओ का धर्म परिवर्तन करवाके मुसलमान बनाया गया। जबरदस्ती जब हिन्दुओ को मारा जा रहा था , उनका धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा था , तब गाँधी चुप रहे कुछ भी नहीं बोला क्योकिं गाँधी मुसलमानो का दिल जितना चाहते थे।

 

सारे हिन्दू परेशान  हो रहे थे कि गाँधी क्यों नहीं बोल रहे हैं। हिन्दुओ का धर्म परिवर्तन करवाया  जा रहा हैं ये तो गलत बात हैं लेकिन गाँधी एक ही जिद्द पकड़ के बैठे थे कि मुझे मुसलमानो का दिल जिताना हैं, मुझे मुसलमानो अपने साथ लेना हैं ताकि वे लोग देश आज़ाद  कराने में हमारी मदद करेंगे.

गाँधी ने साफ़ कह दिया हमारे लिये पूरा देश महत्वपूर्ण हैं या 1500 – 2000 हिन्दू नहीं। गाँधी ने साफ़ साफ कह दिया मुझे तो देश को बचना हैं जाने दो 1500 -2000 हिन्दुओ को मारा गया उनका धर्म परिवर्तन करवाया गया उस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। धर्म के आधार पर हिन्दुओ मारा गया ,उनका धर्म परिवर्तन करवाया गया। इस मुद्दे पर गाँधी का न बोलना मज़बूरी था या जरुरी। “अगर जरुरी होता तो लोग कभी नहीं बोलते ‘मज़बूरी का नाम महात्मा गाँधी ‘”

असहयोग आंदोलन 
1920 के बाद गाँधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन का उदेश्य था अंग्रेजो को मदद मत करो। अंग्रेज हमारे देश में पैसा कमाने आये थे। इनका पैसा ख़त्म करदो खुद चले जायेंगे।

सब कपड़ा खुद से बनाओ, अपना स्कूल खोलो , अंग्रेजो के स्कूल में बच्चो को पढ़ने के लिए मत भेजो। अंग्रेजो के लिए बिलकुल भी काम मत करो , अंग्रेजो का सरकार गिरा दो ओ खुद चले जायेंगे।

ब्रिटिश सरकार बहुत दुखी हो गई थी , उनका पैसा ख़त्म होने लग गया था। भारतीय नेताओ ने अपने बहुत सारे स्कूल ,कॉलेज विद्यापीठ बनाना शुरू कर दिए :

गुजरात विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ, काशी विद्यापीठ, बंगाल नेशनल यूनिवर्सिटी, जामिआ मिलिआ इस्लामिआ। मोतीलाल नेहरू, पंडित जवाहरलाल नेहरू, चित्तरंजन दास, सरदार वल्लभभाई पटेल ये सब उस समय कोर्ट का वकील हुआ करते थे।

इन लोगो ने कोर्ट में जाना छोर दिया। स्वदेशी प्रोडक्ट का उपयोग करेंगे , अपने देश में बना सामान ही खरीदेंगे। गाँधी बोलने लगे अपना चरखा चलाओ खुद से कपडे बनाओ। फ़रवरी 1922 की बात थी जब चौरी  चौरा पुलिस थाने के सामने से लोग असहयोग आंदोलन के नारे लगते हुए गुजर रहे थे।

वहां पर पुलिस वालो ने लोगो को पीटने लग गए तब कुछ लोगो ने मिल कर पुलिस थाने में ही आग लगा दिया और उस आग में जलकर 22 पुलिस वाले मर गए। गाँधी जी कहने लगे मैं देश को अहिंसा से आजाद कराना चाहता हूँ फिर इन बेचारे पुलिस वालो को क्यो मारा। गाँधी कहे कि “किसी ने तुम्हारी आँख फोरी ,तुम उसका आँख फोड़े तो इस तरह पूरी दुनिया अंधी हो जाएगी” . गाँधी बोले मुझे ये तरीका सही नहीं लगा मैं असहयोग आंदोलन वापस ले रहा हूँ।

तब लोग गाँधी से  सवाल पूछने लग गए जब तुम्हारा मन करे आंदोलन चालू जब तुम्हारा मन करे आंदोलन बंद ये क्या बात हुई। असहयोग आंदोलन के समय पूरा देश इक्क्ठा हो चूका था।

थोड़ा दिन और यह आंदोलन चलता तो देश 1925 -26  में ही आजाद हो जाता। लेकिन गाँधी 22 पुलिस वालो के मौत के चलते देश नजरअंदाज करते हुए असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।

गाँधी के इस बात को किसी ने भी पसंद नहीं किया। असहयोग आंदोलन करने चलते अंग्रेजो ने गाँधी को भी जेल में डाल दिया। जमुना लाल बजाज को गाँधी  पुत्र माना जाता हैं इन्होने खादी उद्योग, स्कूल कॉलेज खोला हुआ था।

जमुना लाल इन सब कामो के लिए काफी पैसा खर्च किया था। गाँधी को असहयोग आंदोलन वापस लेने के कारण ये सारे उद्योग बंद गए। जमुना  गाँधी को बहुत बोले कि आपने बहुत गलत किया असहयोग आंदोलन वापस ले कर। भगत सिंह अपने टीम के साथ गाँधी जी का असहयोग आंदोलन में मदद करना चाहते थे।

भगत सिंह असहयोग आंदोलन से जुड़ चुके थे। उस समय गाँधी और भगत सिंह एक साथ ही हुआ करते थे। जब गाँधी ने असहयोग आंदोलन वापस लिया तो इन लोगो का विश्वास गाँधी से ख़त्म हो गया। आजादी के इतने नजदीक आकर आंदोलन वापस ले लेना कहा का बुद्धिमानी हैं। अब आप लोग कमेंट बॉक्स में बताइये गाँधी ने आंदोलन वापस ले लिया।ये उनका मज़बूरी था या जरुरी या गाँधी ने आंदोलन वापस लेकर सही किया या गलत।

दांडी मार्च
अंग्रेजो ने नमक पर 2400% टैक्स बढ़ा दिया। गाँधी बोले नमक तो प्रकृतिक दे रही हैं तुम क्यों 24% से नमक के 2400% ले रहे हो। गाँधी बोले हम अपना खुद का नमक बना सकते हैं।

 


दांडी मार्च पर चलने के लिए गाँधी जी ने खुद 79 वालंटियर्स चुने थे। गाँधी जी ने साफ कह दिया था कि पक्का नहीं हैं कि दांडी मार्च से जिन्दा वापस लौटेंगे क्योकि रास्ते में अंग्रेज तुम्हे मरेंगे पीटेंगे बहुत दर्द होगा , अगर ये सब तैयार हो तो चलो मेरे था। 79 लोगो ने मान लिया की हम मरने को भी तैयार हैं।

 

और ओ लोगो गाँधी के साथ पीटने के लिए चल पड़े। दांडी मार्च 12 मार्च 1930 को शुरू हुआ था और लगातार 5 अप्रैल तक चली थी। क्योंकि उन लोगो को ओ टैक्स हटाना था। 358 किलोमीटर के दांडी मार्च वे लोग चलते चले गए। गाँधी ने रास्ते में अंग्रेजों से खुद भी पिटाई खाई और उनके साथ जो 79 लोग थे उन्हें भी पिटवाई।

रास्ते में अंग्रेजो ने इन लोगो को को बहुत मारा। लेकिन हुआ क्या 79 लोगो से बढ़ कर रास्ते 20000 लोगो हो गए और ये लोग अंग्रेजो से बोलने लगे हमको भी मारो। इस से आंदोलन को मजबूती मिली लेकिन गाँधी खुद भी पिटाई खाई और 20000 लोगोको भी पिटवाया। आपको क्या लगता हैं गाँधी का इस तरह से पिटाई खाना लोगो को भी पिटवाना ये गाँधी की मज़बूरी थी या मज़बूरी आप कमेंट बॉक्स में बता सकते हो।

गाँधी – इरविन इम्पैक्ट
इस बात को जानने के बाद आप गाँधी को पसंद नहीं करेंगे। ये वही इरविन इम्पैक्ट हैं जिसमे भगत सिंह, राजगुरु , सुकदेव को फांसी दिया गया और गाँधी ने बचाया तक नहीं।

सबसे पहले आपको यह जानना होगा कि इरविन इम्पैक्ट हैं क्या हैं ? उस समय वायसराय इरविन थे , गाँधी ने इरविन को माना लिया कि भाई हमलोगो आपसे हाथ जोड़कर लड़ रहे हैं, आपके ऊपर हाथ नहीं उठा रहे, आपको तंग नहीं कर रहे इसे बोलते हैं अहिंसा। तो जो बेचारे अहिंसा से आपलोगो से लड़ रहे हैं उसे तो जेल में मत डालो।

वायसराय गाँधी के इस प्रस्ताव को मान गए मैं अहिंसा वालो को जेल में नहीं डालूंगा। गाँधी से वायसराय कहा लेकिन इस भगत सिंह, राजगुरु, सुकदेव का क्या करूँ। ये लोग तो हिंसा किये हैं। गाँधी ने वायसराय से साफ़ बोल दिया जैसा आपको उचित लगता हैं आप कीजिये। गाँधी ने भगत सिंह, राजगुरु,सुकदेव को बचाया नहीं।

जब गाँधी से सुभाष चंद्र बोस और सरदार बल्ल्भ भाई पटेल पूछे कि आपने भगत सिंह, राजगुरु,सुकदेव को बचाया क्यों नहीं , ये तीनो देश के लिए बहुत बड़ी सहादत दे रहे हैं तो गाँधी ने कहा “मेरी बात वायसराय से हो गई जो बिना लड़े देश के आजदी के लिए लड़ेगा उसी को मैं बचाऊगां।

हिंसा करके देश के आजादी के लिए लड़ने वालो को मैं बिलकुल भी नहीं बचाऊंगा। सुभाष पटेल कहते रह गए गाँधी से भगत सिंह को बचाओ , गाँधी ने कहा उन तीनो को बचाना मेरे नियम कानून में नहीं आता। मैं अहिंसा के मार्ग पर चलने वाला ,मैं कभी भी हिंसा के मार्ग पर चलने वालो का साथ नहीं दे सकता।

गाँधी का साफ कहना था कि तुम यदि मेरे बताये रास्ते पर चलोगे तो मैं तुम्हे बचाऊंगा नहीं तो नहीं ! कुछ इतिहासकार ये भी कहते हैं कि वायसराय इरविन ने गाँधी से यहाँ तक कहा था कि तुम यदि भगत सिंह का कमेंटमेंट लेकर दे दो कि दुबारा ऐसी हरकत नहीं करेगा तो मैं भगत सिंह, राजगुरु, सुकदेव को भी छोड़ दूंगा। गाँधी ने यहाँ भी साफ माना कर दिया कि क्या पता भगत सिंह आगे चलकर बदलेगा या नहीं ,इसकी तो आदत बन गई हैं अंग्रेजो को मरना पीटना मैं इन लोगो का इस समय साथ नहीं दे सकता क्योंकि मेरा मानना हैं कि हाथ जोड़ कर ही लड़ाई लड़ेंगे।

कुछ इतिहासकार यह भी कहते हैं लोगो ने गाँधी से कहाँ कि चलो भगत सिंह को छोड़ो मत कम से कम उनका फांसी तो माफ़ करा दो , दस या बिस साल के लिए जेल में डाल दो। गाँधी ब्रिटेन चला गया लेकिन आश्वासन पत्र लिख कर नहीं दिया अब आप बताइये क्या गाँधी को ऐसा करना चाहीये था यह गाँधी के लिए मज़बूरी था या जरुरी था।