Ramnika Gupta: The Translation Series - Part 4 books and stories free download online pdf in Hindi

रमणिका गुप्ता: अनुवाद की श्रंखला - भाग 4

रमणिका गुप्ता - श्रंखला -4

पंजाबी स्त्री विमर्श कहानियां

[ नीलम कुलश्रेष्ठ ]

इसी नारी अस्मिता की सुरक्षा का अभियान है रमणिका गुप्ता जी द्वारा संपादित 'हाशिये उलांघती औरत 'जिसका लक्ष्य 40 भाषाओं की स्त्री विमर्श की कहानियों का अनुवाद है -----धीरे धीरे अलग अलग भाषाओं के उस विस्फोट होते लावे को समेंटता. अप्रवासी कहानियों की तो बात अंत में करूँगी पहले हम भारतीय पृष्ठभूमि की पंजाबी, गुजराती व मराठी लेखिकाओ द्वारा चिह्नित उन बिंदुओं को पहचान लें जहां के शोषण से बिलबिला कर औरत हाशिये उलांघने के लिए अपने डैने फैलाती है. 

सन् 1935 में जन्मी पंजाबी लेखिका अनवंत कौर की कहानी 'चंद्र ग्रहण' में एक बेचैनी है --"मै अपनी 'मैं 'को जानना चाहती हूँ. मै आत्मा हूँ या शरीर हूँ ? मेंरा वजूद क्या है. मेंरा अस्तितव क्या है ?मै पाँच तत्वों का शरीर हूँ और इस शरीर की जरूरतें भी हैं, भूख भी है. "तो उन बेचैन रूहों को ज़ुबान देने का काम कलम से पंजाबी में और भी लेखिकाओ ने किया है जबकि हम बेबाक पंजाबी लेखन की बात करते हैं तो हमारे ज़ेहन में अपने जीवन में या साहित्य में हाशिये उलांघने वाली जबरदस्त रूमानी व तिलिस्मी लेखिका अमृता प्रीतम की तसवीर उभर आती है. 'खड़ी फ़सल 'की बंचित कौर ने दामाद यानि अपने पति को 'विषधर 'कहने का साहस किया है. इस कहानी की नायिका अपनी माँ का अपने आतातायी पति को दिया नोट छीनकर वापिस माँ को दे देती है, "बेबे !तू सांपो को दूध मत पिलाया कर. "

'कोठी में धान 'की हरभजन कौर 'आदर्श 'की कहानी 'स्त्री का दिल 'हो या अमृता प्रीतम की बहुचर्चित कहानी "शाह की कंजरी ' -इन कहानियों में औरत की सनातन वेदना है कि उसको अपने सुहाग का मोल पति के जीवन की दूसरी औरत, चाहे वह कंजरी हो या वेश्या को, झेलकर देना पड़ता है. बस उसके सामने एक ही उपाय है कि वह भी एक बाज़ारू नर्तकी बनकर पति को घर वापिस ले आए या उस कंजरी को समाज के सामने अपमानित करके अपने को सुहाग के गौरव से गौरन्वित महसूस कर हाशिये उलांघे जाने के भ्रम में जीती रहे. वही जागीर कौर सन्धु की कहानी की नायिका 'अब मै तेरी बीवी नही हूँ 'की रानी पति को छोड़कर, पुलिस इंस्पेक्टर बनकर अपने अत्याचारी व अपराधी पति को जेल करा देती है. 

'खड़ी फ़सल 'की कहानी 'मारिया 'की नायिका के मन में माँ की मृत्यु के उपरांत पिता के तीन डरावने भूत रूपी क़ानून कायदे ऎसे रचबस जाते है कि वह् अपने प्रेमियों के साथ नॉर्मल जीवन जी नही पाती.. वर्षो बाद वह ये वर्जनाय तोड़ अपने पहले प्रेमी तक पहुँच पाती है. इस कहानी में बहुत सलीके से चित्रित किया है कि भारतीय समाज में किस तरह युवा होती लड़की की नैसर्गिक इच्छओं व उसके व्यक्तितव को पंगु बनाया जाता है. 

पंजाबी लेखिकाओ की कलम ने तराशें है कुछ अलग चौकाने वाले वाकये जैसे कि 'आदि-कुँवारी' [रश्पिंदर रश्म ]की कुसुमलता 11 वर्ष की उम्र में अपने अंकल से शोषित हो ऐसी गुरु माँ बन जाती है जो दिन में गेरुये वस्त्र पहनती है, रात में रेश्मी गाउन पहनकर अपने किसी सहायक को 'मेंल प्रोस्टीट्यूट 'की तरह इस्तमाल करती है लेकिन वर्जनाये तोड़ता ये घ्रणित रास्ता उसे पागलपन की सीमाओं में कैद कर देता है -----कहानी अपरोक्ष संदेश है अपनी पीड़ा की शक्ति को निम्नकोटि के रास्ते ना ले जाकर उसे कोई रचनात्मक मोड़ दे देना चाहिये. 

'सौतन '[परवेज़ सन्धू ]की नायिका के विदेश में होश उड़ जाते है जब उसे पता लगता है कि उसकी सौतन उसके पति का मित्र है क्योंकि उसका पति 'गे 'है क्योंकि उसकी सौतेली माँ ने कम उम्र से उसका शोषण किया था इसलिए जब भी वह् अपनी पत्‍‌नी के पास आना चाहता है तो उसे अपने शरीर पर साँप रेंगते महसूस होते हैं. --. इन दोनों में बचपन में हुए वयस्कों द्वारा घ्रणित यौन उत्पीड़न के परिणामो को बहुत सशक्त ढंग से अभिव्यक्ति दी है कि किस तरह् एक मासूम जीवन, जीवन की सहजता खो बैठता है और दूसरों के लिए भी मुसीबत बनता है. 

इस अंक की एक विशेष बात ये है कि चंदन नेगी की कहानी 'कस्तूरी गंध 'बीना वर्मा की कहानी 'रज़ाई 'में आश्रय देने वाले दो भावनाशील पुरुषों का वर्णन है. पहली में है एक महात्मा व दूसरी में विदेश में आश्रय देता फौजी करनैल सिंह. प्रथम कहानी में एक बच्ची की माँ शील को वो महात्मा एहसास कराता है कि सिर्फ़ योग तपस्या प्रकृति के विरोध में जाना है इस कहानी का सुंदर सार इन शब्दों में है जब शील सोचती है, " वह लावे की अग्नि में लपेटी गई है. शारीरिक ताकत सृष्टि की रचना, सृजन का करिश्मा है. "

"'रज़ाई ' 'इस अंक की बेहद विशिष्ट कहानी इसलिए है कि ये बहुत संवेदनशीलता से लिखी गई व सगे रिश्तों के खोखलेपान को उजागर करती है. पंजाब ऎसा प्रदेश है, सबसे अधिक जहां की लड़कियां एन आर आई से शादी के बाद धोखे का शिकार होती है. कुछ को दूल्हा राजा शादी करके भारत छोड़ जाते है, कुछ जब विदेश जाती है तो उनके धोखे का शिकार होकर बेसहारा हो जाती है. ये पंजाब की इस त्रासदी की प्रतिनिधित्व कहानी है जिसकी नायिका बंसो उन अपवादों में से है जिसे एक नि;स्वार्थ पुरुष का सहारा मिलता है वर्ना विदेशों में ऐसी स्त्रियों के पास दो ही विकल्प होते हैं या तो वे स्वदेश लौट जाए या अपने बलबूते आजीविका तलाशें. फौजी के मुंह से ये कहलवाना इस कहानी की विशेषता है, "तुम्हे पैदा होते ही ये सिखाया जाता है की पति परमेंश्वर है चाहे वह आदमी ही ना हो, गधा हो -----तुम गधे को ही चंदन -तिलक करती रहती हो. "

वही सीधी सरल बंसो अपनी विदेशी बहू से ये कहने का साहस करती है, "वह फौजी मेंरा ब्याय फ्रेंड था ---भगवान था, -----जब कोई एक बार भगवान की बाँहों में समा जाएँ तो उसके लिए सारे रिश्ते फीके हो जाते है. "

पेरिस हर एक व्यक्ति के मन में बसा एक ग्लैमर है लेकिन अतरजीत कौर अपनी पैनी दृष्टि से अपनी कहानी "रिश्तों के आर पार 'से हमारा मोह भंग करती हैं कि संसार के सबसे सुंदर व इस बेहद ठंडे देश में यहाँ के हवाई अड्डे में रोज़ लाखों लोग आते है वहा के वेटिंग रूम में सोफ़े के स्थान पर लोहे की बेंचे हैं व नल में ठंडा पानी -----तो जो भारत के वृद्ध हजारों मील की यात्रा करके वहा जाते है उन पर क्या बीतती होगी ? कमला जो अपने पति के साथ पेरिस आई है बेटे के घर में बहुत कुछ झेलने के बाद उस घर का हाशिया उलांघकर स्वदेश जाना पसंद करती है. . "

मलकीयत बसरा ने आज की 'आज़ाद औरत 'की अज़ादी की बखिया उधेड़ कर रख दी है कि  एक औरत किसी सेठ के शयन कक्ष में जाकर रुपए कमाती है, अपनी आय का हिस्सा पति के चारणो में चढ़ा कर भी ज़िल्लत झेलती है. निर्मल जसवाल 'लालसा ' से अभिव्यक्त कर रही है कि पति व सास के बेटा पाने की चाह के दवाब में एक अमीर औरत को भी फ़ीमेल फ़ीटस के टेस्ट झेलने पडते हैं.  पुरुष के 'समानन्तर 'जीती स्त्री के विशय में सोमा सबलोक ने प्रश्न किया है. -"मेंरे बाप ने मेंरे माँ को सम्पूर्ण औरत बनाया --क्या पाती है सम्पूर्ण बनकर मेंरे माँ जैसी औरतें ?"

और जब ये ही घर की देहरी लांघकर बाहर  निकलती है टीवी ध्रावाहिको में अभिनय करने वाली कुलवीर बडेसरो के अनुभवों की तरह शरीर की मांग करते "कब आओगी ?"जैसे प्रश्नों से टकराना पड़ता है. बीसवी सदी से बाहर आई हर औरत ने इस दवाब को महसूस किया है क्योंकि पुरुष सत्ता की समझ यही थी कि इनके पास देह के अलावा और है ही क्या ? मेंरे कहने का अर्थ ये नहीं है कि इस सदी में भी ये दवाब कम हो गए है, बस स्थान स्थान पर शोर मचने से उनके सुरक्षा प्रबन्ध बढ़े हैं व ये पुरुष सत्ता बाहर आई औरत की क्षमता देखकर भौचक्की भी रह गई है. 

'नई पौध की सुरिन्दर नीर ने 'डिप्रेशन '. कहानी पुरुष के आत्मकथात्मक अंदाज़ में बहुत मज़े लेकर लिखी है कि वह किस तरह चालाकी से अपने से बड़ी उम्र की औरत को फंसाता है उसे हाशिये उलांघने को उकसाता है लेकिन अपनी पत्नी कहीं कोई प्रेमी ना पाल ले , ये सोचकर बौखला जाता है. 

विश्व ज्योति धीर की कहानी"दामने कोह '[पर्वतो की गौद ]में एक कर्नल एक खूबसूरत कलाकार से दूसरी शादी कर उसके कलाकार को मार देता है, वही प्रीतम कौर की 'मंदा  किस नू आखिये ' में एक छोटी बच्ची की ख्वाहिशे एक ३५ वर्षीय अदमी से ब्याह कर स्वाहा कर दी जाती हैं. पंजाब की नई पौध अपने लेखन के नये तेवर से प्रभावित करती है व पंजाबी महिला लेखन के भविष्य के प्रति आश्वस्ति  जगाती है. 

पंजाबी महिला की एक तस्वीर जनमानस में बसी हुई है -गहरी लिपस्टिक लगाये, बेहद फेशनेबल  कपड़े पहने, लटके झटके वाले गहने पहने, गोलगप्पे खाती ---बडबोली ---लेकिन इन प्रबुद्ध लेखिकाओ ने उस तस्वीर को धुंधली करके अपनी बौद्धिक चेतना के हस्ताक्षर इन कहानियो में दिये हैं. 

पंजाब में हरित क्रांति के बाद हर गांव में हर परिवार में किसी ना किसी को केन्सर हो गया  है क्योंकि पेस्टीसाइड्स व इंसेक्टीसाइड्स का भरपूर उपयोग किया गया है. क्या ही अच्छा होता यदि  पुरुष सत्ता द्वारा लाई इन समस्यायों के जूझती औरत भी इस संकलन में होती. इस संग्रह में सुप्रसिद्ध लेखिका अजीत कौर व दिलीप कौर टिवाणा की कहानी का ना होना अखरता है लेकिन जसविंदर कौर बिंद्रा के पंजाबी लेखिकाओं के लेखन के परिचयात्मक लेख ने इस कमी को पूरा किया है. किसी हद तक पंजाब की स्त्री की मुक्कमिल तस्वीर पेश करने में  लेखिकायें  सफल रही है. 

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नीलम कुलश्रेष्ठ

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