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क्रांतिकारी जतिन दास

13 सितंबर का दिन भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन की एक ऐसी शहादत से जुड़ा है जो लंबे अनशन का नतीज़ा थी। हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के क्रांतिकारी जतिन दास (जतिन्द्र नाथ दास) आज ही के दिन लाहौर जेल में 63 दिनों के लंबे अनशन के बाद शहीद हुए थे। उनके साथी क्रांतिकारी भी भूख हड़ताल पर थे और भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त मांगें पूरी होने तक अनशन पर अड़िग थे।

भगत सिंह की शहादत ने देशभर में व्यापक असर पैदा किया था। सुदूर दक्षिण में पेरियार ने भी अपने पत्र में उनके बारे में सम्मान के साथ लिखा था। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फाँसी से पहले जतिन दास की शहादत ने देश में एक बड़ी लहर पैदा कर दी थी। उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए कलकत्ता ले जाने की अनुमति देकर अंग्रेज सरकार पछताई ज़रूर होगी। भगत सिंह और साथियों के दस्तावेज के संपादक द्वय में शामिल और भगत सिंह के भांजे जगमोहन सिंह अक्सर उल्लेख करते हैं कि भगत सिंह की शहादत को साथियों के संघर्षों-बलिदानों के साथ ही देखना-समझना जरूरी है। लाहौर से कलकत्ते तक हर स्टेशन पर जतिन दास के शव को सम्मान प्रकट करने के लिए भीड़ उमड़ी थी।

जतिन दास की शहादत जेलों में मानवीय व्यवहार और मानवाधिकार की ज़रूरी माँग से जुड़ी थी। यह सवाल आज कितना महत्वपूर्ण है, हर कोई समझ सकता है। मानवाधिकार आंदोलनों से जुड़े कार्यकर्ताओं का दमन और उनके न्यूनतम अधिकारों का हनन चरम पर है। पूँजीवादी शोषण व्यवस्था के ख़ात्मे और एक बराबरी के समाजवादी समाज की स्थापना का जतिन का सपना जिसके लिए वे इंक़लाबी संघर्ष में हिस्सा ले रहे थे, अभी सपना ही है।

जतिन दास ( 27 October 1904 – 13 September 1929)



13 सितंबर का दिन भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन की एक ऐसी शहादत से जुड़ा है जो लंबे अनशन का नतीज़ा थी। हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के क्रांतिकारी जतिन दास (जतिन्द्र नाथ दास) आज ही के दिन लाहौर जेल में 63 दिनों के लंबे अनशन के बाद शहीद हुए थे। उनके साथी क्रांतिकारी भी भूख हड़ताल पर थे और भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त मांगें पूरी होने तक अनशन पर अड़िग थे।

भगत सिंह की शहादत ने देशभर में व्यापक असर पैदा किया था। सुदूर दक्षिण में पेरियार ने भी अपने पत्र में उनके बारे में सम्मान के साथ लिखा था। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फाँसी से पहले जतिन दास की शहादत ने देश में एक बड़ी लहर पैदा कर दी थी। उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए कलकत्ता ले जाने की अनुमति देकर अंग्रेज सरकार पछताई ज़रूर होगी। भगत सिंह और साथियों के दस्तावेज के संपादक द्वय में शामिल और भगत सिंह के भांजे जगमोहन सिंह अक्सर उल्लेख करते हैं कि भगत सिंह की शहादत को साथियों के संघर्षों-बलिदानों के साथ ही देखना-समझना जरूरी है। लाहौर से कलकत्ते तक हर स्टेशन पर जतिन दास के शव को सम्मान प्रकट करने के लिए भीड़ उमड़ी थी।

जतिन दास की शहादत जेलों में मानवीय व्यवहार और मानवाधिकार की ज़रूरी माँग से जुड़ी थी। यह सवाल आज कितना महत्वपूर्ण है, हर कोई समझ सकता है। मानवाधिकार आंदोलनों से जुड़े कार्यकर्ताओं का दमन और उनके न्यूनतम अधिकारों का हनन चरम पर है। पूँजीवादी शोषण व्यवस्था के ख़ात्मे और एक बराबरी के समाजवादी समाज की स्थापना का जतिन का सपना जिसके लिए वे इंक़लाबी संघर्ष में हिस्सा ले रहे थे, अभी सपना ही है।

जतिन दास ( 27 October 1904 – 13 September 1929)


गदर पार्टी के नेता शहीद करतार सिंह सराभा जी के जन्मदिवस पर क्रांतिकारी सलाम
भगतसिंह करतार सिंह सराभा का एक फोटो हमेशा अपने साथ रखते है और उनको अपना आदर्श मानते थे।
करतार सिंह सराभा ने मात्र 15 वर्ष के आयु से क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत की और 19 वर्ष की आयु में अंग्रेजों ने उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया था।