Hudson tat ka aira gaira - 36 books and stories free download online pdf in Hindi

हडसन तट का ऐरा गैरा - 36

रात का अंतिम पहर बीत रहा था। लेकिन कोई अपनी जगह से हिलने को तैयार नहीं था। सब जैसे सांस रोके बैठे थे और बंदर महाराज की कहानी सुन रहे थे। खुद ऐश को भी भारी अचंभा हो रहा था कि ये सब घट गया और उसे पता तक न चला। उसे अपने रॉकी की याद भी बेसाख्ता आ रही थी। वो अब न जाने कहां होगा, किस हाल में होगा, क्या पता अब उससे कभी मिलना हो भी सकेगा या नहीं।
काश, एक बार किसी तरह वो यहां आ जाता, या फिर ऐश ही उड़कर उसके पास पहुंच सकती। वैसे तो दुनिया गोल है, मन के बिछड़े हुए मीत कहीं न कहीं, कभी न कभी मिल भी जाते हैं लेकिन यहां तो एक पेच और था न! बंदर महाराज की कहानी के अनुसार तो अब ऐश के पास बहुत थोड़ा सा वक्त ही बचा था। फिर उसे इंसान बन कर युवती के वेश में आ जाना था। मान लो, रॉकी आए भी और उसके लड़की बन जाने के बाद आए तो वो उसे पहचानेगा कैसे?
लेकिन तभी ऐश ने ये भी सोचा कि रॉकी उसे नहीं पहचानेगा तो क्या, वह तो उसे पहचान ही सकती है।
इस विचार ने ऐश को बहुत राहत दी।
बड़ी दिलचस्प थी बंदर महाराज की कहानी। और सच्ची भी। कम से कम ऐश तो ये समझ ही सकती थी कि वो झूठ नहीं बोल रहे। जो कुछ कह रहे हैं वह तो ऐश ने भी देखा ही था।
दरअसल बंदर महाराज की कहानी कुछ इस तरह थी, उन्होंने सबको बताया था कि -
बंदर महाराज खुद भी वास्तव में पहले एक इंसान ही थे। वह एक घने वन के किनारे अपने माता - पिता के साथ आराम से रहते थे। बचपन में जब कोई अपने मां- बाप के साथ रहता है तब तो उसकी दुनिया ही निराली होती है। वह किसी राजकुमार की तरह ही तो होता है जिसकी हर इच्छा पूरी होती ही है -
चिंता रहित खेलना- खाना,वो फिरना निर्भय स्वच्छंद।
कैसे भूला जा सकता है, बचपन का अतुलित आनंद!
तो बंदर महाराज के बचपन के दिन भी मज़े में बीत रहे थे। लेकिन तभी एकाएक जैसे वज्रपात हुआ। अकस्मात एक दिन नदी में नहाने के बाद पीने के पानी की मटकी भरते हुए उनकी माता का पैर फिसल गया और वो नदी की तेज़ धार में बह गई। तट का कोई भी आदमी उनके छटपटाते हुए हाथ- पैरों को दूर से देखते रहने के अलावा कुछ भी नहीं कर सका।
कुछ दिन तो दोनों बाप - बेटे के उदासी और मातम में बीते लेकिन फिर अचानक उनके पिता का जी इस वीरान दुनिया से उचाट हो गया। उन्होंने बेटे को भाग्य के भरोसे छोड़ा और एक नाव लेकर पानी के रास्ते दुनिया देखने के लिए निकल गए। उन्हें लगता था कि पानी की ये धार ही उनकी पत्नी को बहा ले गई है तो वो इसी का पीछा करते हुए दिन बिताएंगे और अब जितना जीवन शेष है उसे पत्नी की याद में ही काट देंगे।
वो समंदर- समंदर यहां से वहां तक भटकते ही रहे।
नन्हा बालक जंगली फल- फूल के सहारे किसी तरह अपने दिन काटता रहा।
तमाम दुख सह कर भी वो वहां से कहीं गया नहीं था क्योंकि उसका दिल कहता था कि उसके पिता एक न एक दिन अपनी भटकन से ऊब कर वापस ज़रूर आयेंगे। और तब उसे वहां न पा कर वो और भी हताश होंगे। आखिर जो इंसान अपनी पत्नी के लिए इतना बेचैन था उसे कुछ न कुछ परवाह अपने बेटे की भी तो अवश्य होगी ही।
उधर पिता ने किसी संन्यासी की भांति दरिया के रास्ते दुनिया को नाप डाला। वैसे भी गरीब ही था पर अब तो उसके पास खाने के लिए भी कुछ न रहा। कभी जंगली घास- फूस, तो कभी छोटे - मोटे जीव- जंतु खाता हुआ वो किसी तरह पेट भरता रहा और देस - परदेस भटकता रहा।
अपनी इसी बेसबब यात्रा में उसने एक नई बात सीखी!