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श्री दत्तात्रेय ज्ञान दर्शन-पं. हरचरनलाल शर्मा वैद्य

श्री दत्तात्रेय ज्ञान दर्शन की तलाश में-
रामगोपाल भावुक
जब मैं पहली वार अपने लधु भ्राता जगदीश तिवारी जी के साथ चित्रकूट की यात्रा पर गया था, उस समय वहां के चारों धाम की यात्रा करते समय अनुसुइया आश्रम के दर्षन करने गया। वही पता चला था कि भगवान दत्तात्रेय अनुसुइया जी के पुत्र हैं। उसी समय से उनके बारे में जानने की इच्छा तीव्र हो गई थी। मुझे सन् 1995में परमहंस मस्तराम गौरी षंकर जी के वारे में जानने के लिये, उनके जीवन पर आस्थाके चरण लिखते समय पता चला कि पं. हरचरन लाला वैद्य जी मेरे इष्ट परमहंस गौरी बाबा के नजदीक रहे हैं। उसी समय से वैद्य जी के पास मेरा जाना आना लगा रहता था। सन् 2004 में उन्होंने मुझे श्री दत्तात्रेय ज्ञान दर्षन की पुस्तक दी। मैंने इस कृति को अनेक वार पढ़ा है। इसके पहले उनकी मानस रोग एवं समाधान भी प्रकाशित की गई थी। उसमें मानसिक रोगों के कारण और समाधान दिये गये हैं। वैद्य जी के इसमें बताये नुक्षे अपने बैद्य जीवन में प्रयोग किये गये नुक्से हैं। कौन सी बीमारी किस मनोविकार के कारण होती है , इस बात का उन्होंने अपनी वैद्यगिरी में गहरा शोध किया है। कृति पठनीय और संग्रहणीय हैं।
अब मैं पं. हरचरनलाल शर्मा वैद्य जी द्वारा लिखित एवं उनके ज्येष्ठ पुत्र डॉ. रमेश चन्द्र शर्मा द्वारा सम्पादित श्री दत्तात्रेय ज्ञान दर्शन के वारे में अपने अन्दर छिपी उत्सुकता को व्यक्त करना चाहता हूं। प्रस्तावना में डॉ. रमेशचन्द्र शर्मा लिखते हैं कि बिना गुरु के ज्ञान नहीं होता। परम श्रद्धेय बैद्य जी गुरु दत्तात्रेय जी को गुरु मानकर उन्हें नमस्कार करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान दत्तात्रेय वे माता अनुसुइया जी के पुत्र हैं। माता अनुसुइया जी ने ब्रह्मा, विष्णु और महेष को अपनी योग शक्ति से बालक बना कर अपने पालने में झुलाया है। इन तीनों देवों के बचपन के बारे में इसके अलावा अन्य कोई आलेख नहीं मिलता हैं। उनके पुत्र दत्तत्रेय में इन तीनों ही देवों की शक्ति विराजमान होकर धरती पर अवतरित हुई।
श्री गुरु दत्तात्रेययाष्टकम् में भगवान दत्तत्रेय की वन्दना की गई हैं। हम सब बचपन से ही शिक्षा ग्रहण करते चले आ रहे हैं। हमें पग पग पर गुरुओंने सम्हारा हैं। हाथ पकड़कर चलना शिखाया हैं। भगवान दत्तत्रेय जी ने हमें चौवीस गुरुओं की गिनती कराई है। इनमें 1-पृथ्वी से सहन शक्ति एवं परोपकार। 2- वायु से गंध को ग्रहण कर दूसरी जगह पहुंचाना एवं प्राण वायु का संचरण। 3- आकाश से अति सूक्ष्म होकर सर्वत्र व्याप्त रहना। 4- जल से निर्मलकारी बने रहना। 5- अग्नि से हर समय ज्योर्तिमय बने रहना। 6- चन्द्रमा से दूसरो को शीतलता प्रदान करना। 7- सूर्य से सतत् जलते रहकर दूसरों का परोपकार करना। 8- कबूतर से किसी के मोह जाल में न फसना। 9-अजगर से उदासीन रहकर आत्मचिन्तन में बने रहना। 10- समुद्र से गंभीरता । 11- पतंगे से किसी पर आक्रष्ट न होना सर्वनाश का करण होता है। 12- भौंरा स स्वर श्रवन से वही रूप ग्रहण कर लेना। 13- मधुमख्खी से आवष्यकता से अधिक संग्रह न करना। 14- मीन से मछली कांटे में लगे मांस के टुकड़े के लोभ में प्राण न गवाना।15- हिरण से अपने स्वरूप की पहचान करने की कोशिश करते रहना। अमृत अपने पास होते हुये भी भटकना उचित नहीं हैं। 16- हाथी से स्पर्श सुख से मौत के मुंह में न समाना। 17- पिंगला वैश्या से ग्राहक की आशा में विवेक न खोना। 18- मधुकर से संत को भोजन के स्वाद और सेवा के प्रलोभन में नहीं पड़़ना चाहिये। 19-बालक से राग द्वेष से दूर रहने की षिक्षा ग्रहण करना चाहिए। 20- कुमारीकन्या से एकान्त प्रेमी वृति से आत्म निग्रह करें। 21- बाणकर्ता से लक्ष्य संधान में एकाग्रता बनाये रखना। 22- सर्प से अकेले विचरण करते रहें। 23- मकड़ी से अपने ही बुने जाल में अपने को उलझाये न रखें।24- सुपेशकृत अर्थात् भृंगी कीड़े से आदमी को भृंगी कीड एकाग्र रूप से परमात्मा का चिन्तन करना चाहिए।
इस प्रकार पत्येक से अलग- अलग शिक्षायें प्राप्त होना बतलाया हैं।
इस प्रकार पग पग पर हम गुरुओं सानिध्य में आगे वढ़ते जाते हैं। उनसे सीखकर आगे वढ़ना मनुष्य जीवन का लक्ष्य हैं।समग्र में एक और एक में समग्र की भावना अपनी इस सनातन संस्कृति की पहिचान हैं। हमें हर किसी से सीख लेकर जीवन भर सीखते रहना चाहिए।
पं. हरचरण लाल वैद्य जी ने इस कृति में सन्देश दिया है कि हमें कहीं से कुछ भी सीखने को मिले उसे आत्म सात करते चले जायें। यही मानव जीवन के लिये कल्याणकारी है। उन्होंने इस तरह श्री दत्तात्रेय ज्ञान दर्शन से अपने जीवन को तो सम्हाला ही हमें भी उनसे सीख लेने का संदेश दे गये हैं।
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कृति-श्री दत्तात्रेय ज्ञान दर्शन

कृतिकार का नाम- वैद्य हरचपनलाल शर्मा
वर्ष-2004
मूल्य-70रू मात्र
प्रकाशक-डॉ. आनन्द कुमार मुदगल डबरा म.प्र.-475110
समीक्षक- रामगोपाल भावुक मो0- 9425715707