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मेघा महारानी

 

’’ हिम्मत की दाद देनी होगी। तुम्हारे रहते हमारा बाल भी बांका नहीं हो सकता। तुम्हारा और हमलोगों का पिछले जन्म में कोई रिश्ता रहा होगा। ’’ लोगों के मूँह से यही सब बातें मेघा हर रोज सुनती और ऐसी प्र्रशंसा से शरीर में रक्त का संचार बड़ी तीव्र गति से होने लगता।
मेघा महारानी के नाम से मशहूर उस लड़की के सामने अच्छे-अच्छे गुण्डों की बोलती बंद हो जाती थी। डकैत वो भी थी, डाका वो भी डालती थी, मगर अमीरों का धन लुट कर गरीबों में बांट देती थी।
घोड़े का टाप सुन कर ही रहिशजादों में खलबली मच गई, थोड़ी देर बाद सिर पे कफन बांधे, जुल्फें हवा में लहराते, हवा से बातें करती और धुल उड़ाते घोड़ा पर, दोनलिया बंदूक लेकर मेघा महारानी का प्रवेश हुआ तो सेठ साहुकारों की दुकान पे सन्नाटा पसर गया।
सेठ तोडरमल की दुकान पर जाकर बंदूक का पोजिशन बना कर उस ने कहा ’’क्यों रे लाला, तुने किया जो घोटाला और मिलावट का अनाज खाकर सब बीमार पड़ गए। अब मेरी दोनलिया फैसला करेगी कि तेरे साथ क्या करना है। ’’
लाला ने रोनी सी सुरत बना कर कहा ’’ सुन मेघा, मेरी बात तो सून ले। ’’
उसने बंदूक का ट्रीगर दबाते हुए कहा ’’ सिर्फ मेघा, मेघा महारानी बोल रे लाला। ’’
’’ हाँ हाँ, मेघा महारानी ही बोल रयो हूं, तन्ने सुने न होंगे। मैं तो सिर्फ बेचो हूं, पैदा तो किसान करे है। बख्श दे, मेघा महारानी मन्ने बख्श दे। ’’
मेघा ने लाला की तीजोरी का गल्ला खाली करवाने का आदेश देते हुए कहा ’’ चल बे लाले, बख्श दिया तन्ने, तु भी क्या याद करेगा। इन पैसों से उन जरूरतमंदों की जरूरत पूरी होगी, जिनका अनाज तेरे गोदाम में भरा पड़ा है। ’’
लाला खुद को लुटता हुआ देखता रहा और मेघा महारानी बिजली की तरह आँखों से ओझल हो गईं।
हर बार की तरह अपनी आदत के अनुसार वो अपने गाँव पैदल गई और सीधी-साधी, भोली-भाली लड़की प्रतीत हुई। मेघा के गाँव पहूंचते ही लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। अपनी जरूरत का सामान और रूपया पाकर सारे लोग खुश थे।
गाँव में अन्जान लड़की को देखकर मेघा थोड़ी शंकित हुई और उसके बारे में पुछना ही चाह रही थी कि बिल्लो मौसी खुद बोल पड़ी ’’ ये मेरी बड़ी बहन की बेटी माया है, आज ही आई है, तीन-चार दिन में मन बहलने के बाद अपने घर चली जाएगी। ’’
इत्मिनान से मेघा कभी सोती ही नहीं थी मगर उस रात दुध पीने के बाद मेघा को चक्कर सा महसूस हुआ और विस्तर पे पड़ गयी।
एक शोर सा हुआ और मेघा की नींद में खलल पड़ा, पलके खुलने में असमर्थ और शरीर शक्तिहीन सा महसूस हुआ। वो वीरांगना उठी, बंदूक लिए लड़खड़ाती हुई बाहर आई तो एक साथ दर्जन दो नली बंदूकों से घिर गयी। मेघा ने आपा नहीं खोया और उसने भी बंदूक तान दी। मेघा के ट्रीगर दबाने का असफल प्रयास के साथ ही कई गोलियां चली। अपनी बंदूक से गोली नहीं निकलने के कारण वो अपना बचाव नहीं कर पायी और धरती पे आ गिरी।
लहूलूहान मेघा महारानी दर्द से कराह रही थी, उसकी बचाव में न तो गाँव के मास्टर दीनानाथ आए और न राम खेलावन चाचा और न ही बिल्लो मौसी।
उस अनाथ की पीड़ा का आज अंतिम दिन था। प्राण पखेरू उड़ गए। जरूरतमंद सारे मौन खड़े थे और बिल्लो मौसी की बड़ी बहन की बेटी माया का कहीं अता-पता न था।

समाप्त