Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 108 books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 108


जीवन सूत्र 246 गुरु सेवा है महत्वपूर्ण, संपूर्ण समर्पण की दृष्टि विकसित करने में सहायक

भगवान श्री कृष्ण ने गीता उपदेश में वीर अर्जुन से कहा है: -

तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।

उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।4/34।।

इसका अर्थ है,उस तत्त्वज्ञान को तत्त्वदर्शी ज्ञानी गुरुओं,महापुरुषों के समीप जाकर समझो। उनको साष्टाङ्ग दण्डवत् प्रणाम करने से,उनकी सेवा करने से और कपट के बदले सरलता पूर्वक प्रश्न करनेसे वे तत्त्वदर्शी ज्ञानी महापुरुष तुम्हें उस तत्त्वज्ञान से अवगत कराएंगे।

भगवान श्री कृष्ण ने इस उपदेश में अर्जुन से तत्वज्ञान और ज्ञानी मनुष्यों के महत्व पर बल दिया है।तत्व ज्ञान वह यथार्थ ज्ञान है, जो मनुष्य के सारे प्रश्नों का उत्तर ढूंढने में उसकी सहायता करता है।


जीवन सूत्र 247 परम तत्व की प्राप्ति हेतु लंबी साधना आवश्यक


यह ज्ञान ज्ञानियों के पास मिलेगा, गुरुओं के पास मिलेगा,महापुरुषों के पास मिलेगा, जिन्होंने अपने जीवन में उस परम तत्व की खोज के लिए एक लंबी साधना की होती है।

इसे एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं।कोई व्यक्ति बिना पानी में उतरे और एक योग्य प्रशिक्षक की उपस्थिति के पहली बार में ही तैरना नहीं सीख सकता है।अगर वह तैरना कैसे सीखे,जैसी कोई किताब लेकर फिर जलाशय में आकर तैरने का अभ्यास करे,तो संभवत:पहली बार में उसके साथ कोई दुर्घटना भी घट सकती है,इसलिए कम से कम प्रारंभ में या उचित ज्ञान प्राप्त होने तक एक योग्य गुरु और मार्गदर्शक की उपस्थिति आवश्यक होती है।



जीवन सूत्र 248 अज्ञानता दूर करने स्वयं का प्रयास ही पर्याप्त नहीं


श्रीमद् भागवत में भी कहा गया है-

स्वतो न सम्भवादन्यस्तत्त्वज्ञो ज्ञानदो भवेत् ।

( बुद्धि केवल अपने प्रयास से अज्ञानता को दूर नहीं कर सकती है।)

इन पंक्तियों का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि स्वाध्याय नहीं करना चाहिए या जिन्हें योग्य गुरु प्राप्त नहीं हो सकते हैं,वे आगे बढ़ ही नहीं सकते हैं। महान धनुर्धर एकलव्य ने तो इस बात को अपने ढंग से सिद्ध भी कर दिया, लेकिन ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं।


जीवन सूत्र 249 सीखने हेतु चाहिए विनम्रता


वास्तविकता यह है कि मनुष्य किसी ज्ञान को प्राप्त करने के लिए केवल एक ही आयाम देख सकता है और फिर प्रयास करके सीखने या जानने के क्रम में वह विनम्रतापूर्वक किसी योग्य गुरु के पास जाए और सीखे तो स्वयं को समझ में नहीं आने वाली त्रुटियों का उसे निश्चित रूप से बोध होता जाएगा।



जीवन सूत्र 250 गुरु को भी तलाश रहती है योग्य शिष्यों की


योग्य गुरु और ज्ञानी भी माता-पिता के समान अपने शिष्य और जिज्ञासु लोगों का नि:स्वार्थ भाव से कल्याण करने वाले होते हैं। दूसरी विशेष बात यह है कि एक योग्य शिष्य की उपस्थिति में गुरु भी अपने दायित्व का निर्वहन करने में प्रसन्नता का अनुभव करते हैं और अनेक नई बातें उन्हें ऐसे योग्य शिष्यों की उपस्थिति में ही सूझती हैं।सचमुच एक अच्छा प्रश्न ही एक श्रेष्ठ उत्तर निकलवा सकता है। ज्ञान प्राप्त करते समय कोई छल कपट और दुराव वाला प्रश्न नहीं करना चाहिए।ज्ञान प्रदान करने वाले व्यक्ति पर जब हमने विश्वास किया है तो उसकी बातों को दूरगामी हित को देखते हुए स्वीकार करने का साहस भी रखना चाहिए।




(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय