Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 109 books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 109


जीवन सूत्र 231 योगी आत्म संयम योग की अग्नि में कार्यों को शुद्ध करता है


गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है -

सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे।

आत्मसंयमयोगाग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते।।4/27।।

इसका अर्थ है,हे अर्जुन!अन्य योगीजन सम्पूर्ण इन्द्रियों के तथा प्राणों के कर्मों को ज्ञान से प्रकाशित आत्मसंयम योग की अग्नि में हवन करते हैं।

जिस तरह अग्नि को समर्पित कर देने से चीजें शुद्ध पवित्र हो जाती हैं।उसके दोष दूर हो जाते हैं। उसी तरह योगी अपने संपूर्ण कार्यों को चाहे वह विभिन्न ज्ञानेंद्रियों से संपन्न हो रहा हो या कर्मेंद्रियों से,इन सबको आत्म संयम रूपी यज्ञ की सहायता से योग की अग्नि में हवन कर देता है अर्थात अपने अनुकूल बना लेता है।


जीवन सूत्र 232 सामान्य साधकों के लिए साधारण योग से भी हठयोग जैसे परिणाम



एक साधारण मनुष्य हठयोग जैसी कठिन क्रियाओं का सहारा नहीं ले सकता है,जिसमें वह बालपूर्वक इंद्रियों के कार्यों को रोक दे। हठयोगियों की समाधि की स्थिति में इंद्रियों की गति में ठहराव आ जाता है,प्राणों की क्रियाएं भी निश्चल हो जाती हैं।साधारण मनुष्य इसके स्थान पर ध्यान के माध्यम से धीरे-धीरे इंद्रिय भोग और आसक्ति से ऊपर उठता है।


जीवन सूत्र 233 प्राणायाम अर्थात प्राणशक्ति का विस्तार



वह अपने प्राणों की गति पर नियंत्रण पाने लगता है।यम ,नियम, आसन ,प्राणायाम ,प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि के अष्टांगिक योग के ये चरण धीरे-धीरे उसके जीवन में वही संतुलन और नियंत्रण लाने में सफल रहते हैं,जो उच्च स्तर की साधना प्राप्त कर चुके योगियों के जीवन में उनकी इच्छा अनुसार कभी भी उपलब्ध रहते हैं।



जीवन सूत्र 234 योग बने जीवन शैली


योग की पद्धतियों में पांच प्रकार के प्रमुख वायु का वर्णन है। प्राणवायु(नासिका छिद्र से हृदय क्षेत्र तक विशेष सक्रिय)जहां शरीर में श्वांसों के रूप में स्वच्छ हवा उपलब्ध कराता है, वहां अपान वायु(नाभि से पैर के तलवों तक) दूषित पदार्थों के निष्कासन का कार्य करता है।व्यान वायु(विशेष रुप से शरीर की नाड़ियों में) रक्त संचरण, हाथ पैरों की गति ,ज्ञानबोध, निर्णय शक्ति में सहायक है।उदान वायु(ह्रदय से सिर और मस्तिष्क क्षेत्र में) जीवन में जिजीविषा और संघर्ष में सहायक है।समान वायु (पाचन अंगों में)शरीर को सक्रिय बनाए रखने के लिए विभिन्न पोषक पदार्थों का वितरण करता है।

इनकी उचित प्रकार से सक्रियता के लिए क्रमशः प्राण वायु हेतु भस्त्रिका,अनुलोम विलोम; अपान वायु हेतु अश्विनि मुद्रा और मूल-बन्ध आदि अभ्यास,व्‍यान वायु हेतु प्राणायाम के पूरक रेचक और कुंभक के चक्र, उदान वायु हेतु उज्जायी प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम तथा समान वायु के अच्छी तरह कार्य करने हेतु अग्निसार क्रिया एवं नौलि के अभ्यास को उपयोगी माना जाता है।



जीवन सूत्र 235 योग की सफलता के लिए योग्य गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक


हम साधारण मनुष्य भी एक योग्य गुरु या प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में धीरे-धीरे ही सही इन यौगिक गतिविधियों का अभ्यास शुरू कर सकते हैं और स्वयं पर नियंत्रण पाने की दिशा में प्रभावी कदम बढ़ा सकते हैं। दूसरों की देखादेखी नकल करके या केवल अध्ययन कर योग की गतिविधि को अनायास उतारने की चेष्टा करना हानिकारक भी हो सकता है।

प्राणों के अभ्यास से और अनावश्यक चेष्टाओं तथा चंचल वृत्तियों पर धीरे-धीरे नियंत्रण आ जाने से मनुष्य के कर्म उस कर्तापन के अभाव और आसक्ति के त्याग तथा स्व संचालित अवस्था में पहुंच जाएंगे, जिनका निर्देश भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेशों में अनेक विधियों से दिया है।



(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय