Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 112 books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 112


जीवन सूत्र 261 ज्ञान नोखा के संचालन के लिए बुद्धि आवश्यक


चौथे अध्याय के 36 वें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को ज्ञान नौका के संबंध में दिया गया निर्देश है।

ज्ञान चर्चा में आचार्य सत्यव्रत विवेक से ज्ञान नौका की पात्रता के लिए बुद्धि के उचित प्रयोग और निरंतर अभ्यास की आवश्यकता पर बल दे रहे हैं।जिज्ञासा को आगे बढ़ाते हुए विवेक ने अगला प्रश्न किया।

विवेक :गुरुदेव,लेकिन प्रारब्ध से मिले थोड़े भी पुण्य के सहारे अगर ऐसी कोई ज्ञान नौका किसी को मिल जाए तो भी क्या उनके सारे पूर्व पाप कर्म क्षमा करने योग्य हो सकते हैं? गुरुदेव अगर ऐसा हो गया तो भी क्या यह उन लोगों के साथ अन्याय नहीं होगा,जो शुरू से ही सात्विक जीवन बिता रहे हैं और पाप कर्म से बचे हुए हैं।

आचार्य सत्यव्रत:विवेक,ज्ञान नौका अगर मिल जाए तो भी उसे चलाने के लिए बुद्धि चाहिए।


जीवन सूत्र 262 सद्गुणों से आगे बढ़ने में मिलती है मदद


हमारा वर्तमान परिश्रम, ईमानदारी और साधना ही प्राप्त ज्ञान की सहायता से सही रूप में बुद्धि को जाग्रत और सक्रिय रख सकता है, जिससे ज्ञान नौका का सही संचालन संभव होगा।बिना बुद्धि के ज्ञान नौका समुद्र की चंचल लहरों में यहां वहां भटकती रहेगी।विवेक,वास्तव में पाप और पुण्य की संकल्पना क्रमशः हमारे बुरे और अच्छे कामों से जुड़ी हुई है।


जीवन सूत्र 263 हर काम का एक परिणाम होता है


याद रखो कोई भी कर्म अपना एक परिणाम लिए हुए होता है। चाहे वह फल मिल जाने के रूप में हो, या कुछ भी ना मिलने के रूप में हो।इसीलिए पाप करने वालों के लिए ज्ञान की नौका तब तक अनुपयोगी ही है जब तक वे अपने में सुधार नहीं लाते हैं और ईश्वरीय कृपा का पात्र नहीं बन जाते हैं। उदाहरण के लिए,समझो कि अगर किसी को वरदान मिल गया है और उसने पात्रता खो दी तो मिला हुआ वरदान वापस छिन भी जाता है।अगर किसी को एक करोड़ रुपए की लॉटरी मिल गई हो और उसने सदुपयोग नहीं किया तो एक करोड़ रुपए को शून्य बनने में देर कितनी लगेगी?

विवेक: समझ गया गुरुदेव।

(समाप्त)



(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय