Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 111 books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 111


जीवन सूत्र 256 ज्ञान नौका से पाप समुद्र को पार करना सहज


गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है -

अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः।

सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि।।4/36।।

इसका अर्थ है,यदि तू पाप करने वाले सभी पापियों से अधिक पाप करने वाला है तो भी ज्ञानरूप नौका द्वारा पापरूप समुद्र से अच्छी तरह पार उतर जाएगा।

भक्तों के जीवन में ज्ञान के उदय के साथ ही चमत्कार होता है।भगवान श्रीकृष्ण ने सबसे अधिक पापियों के पाप से भी अधिक पाप हो जाने की स्थिति में ज्ञान मार्ग(तत्व ज्ञान) के माध्यम से जीवन में पूर्व में हो चुके पाप समुद्र के प्रभाव को पार करने का आश्वासन दिया है।यहां साधारण पाप ही नहीं बल्कि कोई भयंकर पाप हो जाने की स्थिति में भी समाधान का मार्ग बताया गया है और वह समाधान है- ज्ञान की नौका।

इस श्लोक के अर्थ को सुनने के बाद विवेक ने आचार्य सत्यव्रत से प्रश्न किया।

विवेक: गुरुदेव यह क्या बात हुई कि पाप करते जाओ और फिर जीवन में ज्ञान रूपी नौका का प्रयोग कर पाप सागर को पार कर जाओ। क्या यह इतना सरल है?पाप करने वालों को ऐसी ज्ञान की नौका अकस्मात कैसे मिल जाएगी?



जीवन सूत्र 257 ज्ञान की नौका अकस्मात नहीं मिलती


आचार्य सत्यव्रत: देखो विवेक! निरंतर पाप करते रहने वाले व्यक्ति के जीवन में ज्ञान रूपी नौका के आगमन का प्रश्न ही नहीं है।


जीवन सूत्र 258 पापकर्म में संलिप्तता छोड़ना आवश्यक



पहले उसे अपने पाप कर्म तो छोड़ने ही होंगे। अगर प्रारब्ध के कारण से उसे इस जन्म में बुरे काम करने के बाद भी अपेक्षाकृत उतना दंड मिलता नहीं दिखाई दे रहा है,तो भी उसका यह लाभ वर्तमान बुरे कार्यों के सामने प्रखर नहीं हो सकता है।


जीवन सूत्र 259 प्रारब्ध के पुण्य वर्तमान पाप कर्मों से जल्दी ही खत्म हो जाएंगे


लगातार बुरा कार्य कर रहा व्यक्ति हमेशा अच्छा ही अच्छा फल प्राप्त होने की आशा रखेगा तो यह उसके लिए निश्चय ही भविष्य में घाटे का सौदा साबित होगा और इस खुशफहमी में वह आगे भी पाप कर्म करता जाएगा कि उसका कुछ नहीं बिगड़ने वाला है,तो यह स्वयं को रसातल में डालने जैसा कार्य है।


जीवन सूत्र 260 लगातार अच्छे कर्म करते रहना जरूरी


इसलिए प्रारब्ध वर्तमान समय में एक सीमा तक ही लाभकारी है और उसके फल बहुत जल्दी शून्य हो जाएंगे, अगर मनुष्य अपने वर्तमान कार्यों को पाप की ओर मोड़ दे।

(क्रमशः)



(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय