Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 116 books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 116


जीवन सूत्र 276 अज्ञानी और श्रद्धा रहित मनुष्य के लिए कहीं सुख नहीं


भगवान श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा है: -

अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।

नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।4/40।।

इसका अर्थ है,अज्ञानी तथा श्रद्धारहित और मन में संशय रखने वाले व्यक्ति का पतन हो जाता है,वहीं संशयी रखने वाले मनुष्य के लिए न यह लोक है,न परलोक है और न कोई सुख है।



जीवन सूत्र 277 अज्ञात आशंकाओं में विचरण न करें

मनुष्य का मन अज्ञात आशंकाओं में जीता रहता है।अज्ञानी व्यक्ति का तात्पर्य अशिक्षित होने से नहीं है। वास्तव में अनेक बार औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाने वाले लोगों में भी जो ज्ञान होता है,वह अच्छे पढ़े-लिखे और प्रशिक्षित लोगों में भी नहीं होता। यहां अज्ञानी व्यक्ति का तात्पर्य सामान्य समझ के अभाव से है।


जीवन सूत्र 278 अज्ञानी व्यक्ति वह है जिसे अपने कर्तव्यों का स्मरण नहीं

अज्ञानी व्यक्ति वह है जिसे अपने कर्तव्यों का स्मरण नहीं है। जो सीखने को तत्पर नहीं है। स्वयं को पूर्ण मानकर बैठा है।ज्ञान तो निरंतर जिज्ञासा और अन्वेषण वृत्ति का दूसरा नाम है।


जीवन सूत्र 279 स्वयं का देखा हुआ भी कभी पूरा सच नहीं


इसके स्थान पर स्वयं के देखे और अनुभव किए बातों को ही अंतिम सत्य और सर्वमान्य सत्य मानकर चलने वाला व्यक्ति अज्ञानी होता है। ऐसे व्यक्ति का पतन निश्चित है। इसी तरह जिस व्यक्ति में श्रद्धा नहीं है वह अपने किसी भी कार्य को पूर्ण मनोयोग से नहीं कर पाएगा।यहां श्रद्धा का मतलब अंधभक्ति नहीं है।


जीवन सूत्र 280 श्रद्धा का मतलब अंधश्रद्धा नहीं


श्रद्धा का मतलब किसी एक अभीष्ट के प्रति आंख मूंदकर बिना तर्क से अपने मन को संतुष्ट किए ज्यों का त्यों मान लेने से भी नहीं है। दुनिया के बड़े से बड़े श्रद्धालु और भक्त मानव ने भी कम से कम अपने ह्रदय को इस अनुभूति के बाद संतुष्ट किया कि मेरे उद्धार का यही एक मार्ग है।

श्रद्धा हम अपने - अपने कामों में भी रखते हैं।जहां विश्वास है,वहीं श्रद्धा है। जैसे किसी व्यक्ति को हमने अगर अच्छी तरह परख लिया कि यह व्यक्ति इस स्वभाव का है तो हम आगे उस पर सरलता से विश्वास कर लेते हैं। श्रद्धा के अभाव का अर्थ है,अपने अहंकार के स्तर की उच्चता। स्वयं को सब कुछ मान लेना और किसी के सामने न झुकने का भाव। आत्म सम्मान तो ठीक है लेकिन अगर यह अहंकार की शक्ल में हो तो यह श्रद्धा के अभाव से ही बढ़ता है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि अज्ञान और अश्रद्धा से भी बढ़कर जिनके मन में संशय है, उनके लिए न यह संसार है,न इस संसार के पार कोई संसार है और न ऐसा व्यक्ति अपनी संदेहवृत्ति के कारण कोई सुख ही प्राप्त कर सकता है।उसे हर बात में शंका होते रहती है।ऐसा व्यक्ति अपने संदेह निवारण को सीधे- सीधे अपनी लाभ -हानि से जोड़ देता है।वहीं वास्तविकता यह है कि उस परम सत्ता का दरबार वहां से शुरू होता है,जहां से संदेह और अविश्वास पूरी तरह समाप्त हो चुका होता है।




(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय