Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 123 books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 123


जीवन सूत्र 311 आनंद अनुभूति का विषय मापन का नहीं


पांचवें अध्याय के पांचवे श्लोक का अर्थ बताते हुए आचार्य सत्यव्रत साधारण मनुष्य के जीवन में ईश्वर तत्व की अनुभूति के विषय में विवेक की जिज्ञासाओं का समाधान कर रहे हैं।

ज्ञानयोगियों द्वारा जो परमधाम प्राप्त किया जाता है,कर्मयोगियों द्वारा भी वहीं प्राप्त किया जाता है। इसलिए जो पुरुष ज्ञान योग और कर्मयोग को फलस्वरूप में एक देखता है, वही यथार्थ देखता है। श्लोक के इस मूल अर्थ के विस्तार में जाते हुए विवेक ने अगला प्रश्न किया।

विवेक: गुरुदेव अगर हमें कर्म करते समय केवल ईश्वर को ध्यान में रखने और आपके ही कथन के अनुसार बस अपने सौ प्रतिशत क्षमता के साथ उत्साह से काम करते रहने की आवश्यकता है, तो ऐसा करते हुए कितने समय बाद वह स्थिति बनेगी जब हमें उस आनंद की प्राप्ति होगी।

आचार्य सत्यव्रत: न तो उस आनंद की अवस्था के सटीक समय की भविष्यवाणी की जा सकती है, न कोई दूसरा व्यक्ति इस बात की घोषणा कर सकता है कि अमुक व्यक्ति ने ईश्वर तत्व को प्राप्त कर लिया है। जैसा कि मैंने पहले ही स्पष्ट किया है कि यह व्यक्तिगत अनुभूति का विषय है। प्रातः उठते ही हम पूरी तरह उत्साह और ऊर्जा से भरे होने पर और मन में किसी भी तरह की कलुषता न होने पर स्वाभाविक ही उस ईश्वर तत्व का स्वयं में अनुभव कर रहे होते हैं लेकिन जहां एक बार रोजमर्रा के काम में हम प्रविष्ट हुए तो फिर यह आनंद भाव तिरोहित हो जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि फिर यह अनुभूति वापस नहीं मिलती है। दैनिक जीवन में भी कोई अच्छा कार्य करने पर, किसी की मदद करने पर या कोई कार्य अति उत्तम रीति से संपन्न करने पर आनंद का जो भाव हृदय में उत्पन्न होता है,इसमें ईश्वर तत्व है।भले वह भाव केवल कुछ क्षणों के लिए ही हमें अनुभूत हुआ हो। इसी तरह अपने कार्यों को आगे बढ़ाते रहने से इस आनंद की अनुभूति का समय बढ़ता जाता है और फिर एक वह समय अपने आप उपलब्ध हो जाता है जब हर काम में आनंद आने लगता है चाहे उसका परिणाम कुछ भी हो।हमारे अनुकूल हो या हमारे अनुकूल न हो।यही है ईश्वर की अनुभूति को प्राप्त कर लेना।अपने सारे कार्य करते हुए भी।

विवेक: इसका अर्थ यह है गुरुदेव कि केवल पढ़े-लिखे ज्ञानियों को ही अपने जीवन में इस तरह के प्रयोग करने में सुविधा होगी।

आचार्य सत्यव्रत: यह प्रयोग नहीं है विवेक, जीवनशैली है। ईश्वर का मार्ग सबके लिए खुला है,इसलिए सड़क पर मजदूरी करता हुआ दिखाई देने वाला मनुष्य भी जब गुनगुनाते हुए काम करता है,काम करने के बाद दोपहर अपने घर से लाया हुआ भोजन लेकर बैठता है तो कार्य के बाद मिलने वाले उस संतोष में भी अनायास उसे उस ईश्वर तत्व के आनंद की अनुभूति होती है, भले ही वह उसे कोई नाम न दे सके।



(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय