Kataasraj.. The Silent Witness - 76 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 76

भाग 76

अशोक, उर्मिला, सलमा भंडारे में चले गए।

अशोक ने अमन को पुरवा को कमरे में ले कर जाने को कहा। वो बोले,

"पुरवा..बिटिया..! तुम और अमन चलो कमरे में। हम लोग तुम्हारे लिए भंडारे का प्रसाद वही ले कर आते हैं।"

इसके बाद उर्मिला, अशोक और सलमा ने भंडारे में जा कर प्रसाद खाया और दो पत्तल में पुरवा और अमन के लिए ले लिया।

अब पुरवा राहत महसूस कर रही थी इसलिए कमरे में आने के बाद भी लेटी नही। जबकि अमन चाहता था कि वो थोड़ा आराम कर ले। क्योंकि आज ही वो सब को ले कर किसी भी तरह पहले चोवा-सौदान-शाह नानी जान के घर और फिर वहां से किसी भी तरह चकवाल के लिए निकलना चाहता था। ऊपर से वो भले ही खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश कर रहा था। पर वो सब कुछ उस अखबार के पन्ने में पढ़ कर अंदर से डरा हुआ था।

सलमा और उर्मिला प्रसाद का पत्तल अपने-अपने हाथों में थामे आई और एक एक पुरवा और अमन को दे दिया।

दोनों ने ही सुबह से कुछ नही खाया था। जोर की भूख लगी हुई थी उन्हें। झट-पट दोनों ने खाना शुरू कर दिया।

प्रसाद में कोहड़े की सब्जी-पूरी और मीठी बुंदिया थी। गजब का स्वाद था। अमन आम दिनों में घर में कोहडे की सब्जी कभी भी खाना पसंद नही करता था। पर आज..! आज तो इसका स्वाद ऐसा भाया उसे की खूब सारी पूड़ी खा डाली।

पुरवा की तबियत खराब होने से उसका मन पानी-पानी हुआ था। इस प्रसाद को खा कर जैसे उसका फीका मन और कमजोर तन दोनों ही ठीक हो गया।

अब दोपहर के तीन बज गए थे। जल्दी निकलना ही अमन को मुनासिब लगा।

अशोक जो खा कर आने के बाद थकान उतारने को आराम करने लेट गए थे। उनकी आंख लग गई थी और नाक बजने लगी थी। सलमा और उर्मिला भी आराम करने लेट गई थीं।

अमन खा कर हाथ धो कर आया तो सलमा को उठाते हुए बोला,

"अम्मी..! उठिए ना..! चलिए चलने की तैयारी करिए वरना नानी जान के घर पहुंचते पहुंचते अंधेरा हो जायेगा।"

सलमा भी अमन की बात सुन कर आलस्य त्याग कर उठ कर बैठ गई। उर्मिला भी लेटी हुई अमन की बात सुन रही थी। वो खुद तो उठ कर बिखरा हुआ सामान सब समेट कर रखने लगी और अशोक के पास जा कर उनको हिलाते हुए बोली,

"उठिए पुरवा के बाऊ जी..! चलना नही है क्या..? बहुत सो लिए। चलिए जल्दी से वापस लौटने की तैयारी करिए।"

अमन ने पुरवा से पूछा,

"पुरवा तुम चल लोगी ना।"

पुरवा ने हां में सिर हिलाया।

पर सभी को अंदेशा था कि वो शायद ही चल पाए पैदल। क्योंकि चढ़ाई भी तो है। वो बोला,

"अम्मी जान..! आप और मौसी तैयारी करो. सब कुछ बांधों मैं बस अभी आया।"

कह कर वो तेजी से चला गया।

भाग कर वो पुरोहित जी के पास गया और अपनी समस्या रखते हुए बोला,

"पुरोहित जी..! वो पुरवा की तबियत खराब है आपको तो पता ही है।"

पुरोहित जी चिंतित होते हुए बोले,

"हां बेटा..! पता है। क्या ज्यादा बिगड़ गई। अभी आरती तक तो तो ठीक-ठाक थी।"

अमन बोला,

"नही नही पुरोहित जी…! ऐसी कोई बात नही। वो ठीक है। पर हमें आज ही वापस लौटना है। इस हालत में शायद उसे पैदल चलने में परेशानी होगी। इसलिए कोई व्यवस्था हो सकती है क्या..? यही पूछने आया हूं। कोई डोली, पालकी कुछ भी मिल जाता तो अच्छा था।"

पंडित कुछ सोचते हुए बोले,

"ऐसा है पुत्र..! डोली, पालकी मिल तो जातीज् है। फर उसके लिए पहले से सहेजना पड़ता है। (फिर कुछ सोचकर बोले) बेटा..! मेरी भी उमर हो गई है तो नीचे तक पैदल चल कर मुझे भी जाने में परेशानी होती है। इसलिए अपने लिए एक घोड़ा रक्खा हुआ है। उसे दे तो दूं, पर उसे चलाएगा कौन? अगर किसी ऐसे आदमी की

व्यवस्था कर सको तो उसे ले जा सकते हो।"

अमन खुश होते हुए बोला,

"पुरोहित जी..! आपने तो घोड़ा दे कर सारी समस्या का समाधान कर दिया। घोड़ा चलाना तो मैं खुद भी जानता हूं। आप बस उसे मुझे ले जाने दीजिए। पर पुरोहित जी..! उसे वापस कैसे करूंगा..?"

पुरोहित जी बोले,

"उसकी कोई समस्या नहीं है। नीचे जो मजदूर काम करते है उनमें से एक है जब्बार। सबसे पहली झोपड़ी उसी की है। उसे बोल दोगे तो वो वापस घोड़े को ले आएगा। वो बहुत अच्छे से जानता है मुझे।"

पुरोहित जी बोले,

"ले जाओ बेटा.! मैं अभी घोड़े को तैयार करवा कर भिजवाता हूं।"

अमन हाथ जोड़ कर बोला,

"धन्यवाद पुरोहित जी..! आप अपना ध्यान रखिएगा।"

इतना कह कर अमन वापस लौट पड़ा।

उसके आने तक उर्मिला और सलमा सारा सामान बांध बूँध चुकी थी। अशोक भी सिर पर पगड़ी बांध कर चलने को तैयार बैठा था। सभी के मन में अगर कोई खटका था तो इस बात को ले कर कि पता नहीं पुरवा इतनी दूर चल पाएगी या नही।

अमन आते ही अशोक से बोला,

"चच्चा…! पुरवा चल पाएगी इतनी दूर इस बात को ले कर शंका थी मेरे मन में। इस लिए पुरोहित जी के पास कोई उपाय पूछने गया था। उन्होंने अपना घोड़ा जिसे उन्होंने खुद के लिए रक्खा हुआ है, देने को राजी हो गए अगर कोई ले जाने वाला मिल जाए तो। मैने उनको बताया कि मैं जानता हूं घोड़ा चलाना। तो वो खुशी खुशी अपना घोड़ा मुझे ले जाने को बोल दिया है।"

अशोक और उर्मिला की नजरों में अमन की ये जिम्मेदारी भरी हरकत देख कर गदगद हो गए। अशोक बोले,

"एक ही शंका थी मन में कि पता नहीं पुरवा चल भी पाएगी इतनी दूर कि नही। बेटा..! तुमने उसका भी समाधान कर दिया। जुग जुग जियो बेटा। अब देर किस बात की है फिर। चलो सब लोग।"

सब अपना अपना सामान हाथों में थामे बाहर की ओर चल पड़े।

पुरोहित जी का आदमी बाहर के रास्ते पर घोड़ा लिए खड़ा हुआ था।

उसने घोड़े की सारी बातें अमन को समझा दी। साथ ही ये भी बताया कि ये बहुत सीधा है। परेशान नहीं करेगा। बाद चाबुक मत मारना। काबू में करने के लिए बस प्यार से थपकी भर दे देना।

अमन ने जीन के पास के थैले में सारा सामान रख दिया और पुरवा को घोड़े पर बैठने को कहा।

पर पुरवा उसे देख कर डर गई थी।