Kataasraj.. The Silent Witness - 81 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 81

भाग 81

सलमा और साजिद के नजरों से ओझल होते ही अशोक और उर्मिला भी आ कर सीट पर बैठ गए। साथ लाई चादर उर्मिला झोले से निकाल कर बोली बारी बारी से अशोक,पुरवा और अमन को थमाते हुए बोली,

पुरवा..! ये लो इसे बिछा कर ऊपर वाली सीट पर तुम सो जाओ, और फिर अमन को भी एक चादर पकड़ाते हुए ऊपर की सीट पर जा कर सो जाने को बोली।"

फिर अशोक को भी सामने वाली सीट पर चादर बिछा कर सो जाने को कहा।

पर अशोक बोले,

"नही..पुरवा की मां तुम सो जाओ मैं जागूंगा।"

पर उर्मिला को नींद का दूर दूर तक एहसास नहीं हो रहा था। इसलिए वो बोली,

"अभी मुझे नींद नहीं आ रही है। आप अभी सो जाइए, जब मुझे नींद आयेगी तो हम आपको जगा कर सो जायेंगे।"

अशोक को ये भी ठीक ही लगा। क्योंकि उसे नींद आ रही थी। वो इत्मीनान से सोए, नींद में कोई खलल ना पड़े इसलिए उसने शौचालय जा कर पहले निपट आने की सोची।

अशोक जाने लगे तो रास्ते में जो भी सीट दिखी उसमे से अधिकतर भरी हुई थी। बीच बीच में एक आध खाली थी।

सुरक्षा के लिए एक सिपाही इस तरफ आखिर में बैठा होने के बजाय सीट पर पसरा हुआ दिखा। वो भी सोने के पूरे मूड में था।

शौचालय के दरवाजे के थोड़ा पहले एक आदमी गुडम गुड हो कर चादर लपेटे बैठा हुआ था।

अशोक को ये बड़ा अजीब लगा।

इतनी सर्दी तो नही थी कि चादर ओढ़ी जाए। बल्कि गर्मी ही थी। अगर गाड़ी चलने से हवा ना आए तो पसीना हो जाता। कुछ सीट खाली भी है तो फिर ये नीचे क्यों बैठा हुआ है..! फिर अशोक ने सोचा मुझे क्या करना है? नीचे बैठे या ऊपर..! इतना सोच कर अपना सिर झटक वो शौचालय में चला गया।

थोड़ी देर में वो बाहर निकला तो फिर से ना चाहते हुए भी उस आदमी पर निगाह पड़ गई।

अनायास ही अशोक के मुंह से निकला,

"भाई..! तुम चादर ओढ़े क्यों नीचे बैठे हुए हो…? उधर सीट खाली है जाओ उस पर आराम से बैठ जाओ।"

वो आदमी थोड़ी सी चादर हटा कर मुंह खोल कर खरखराती आवाज में अपने एक हाथ को दिखा कर बोला,

"भाई साब.. कोढ़ी हूं। सब के बीच बैठ गया तो लोग मार कर भगा देंगे। आप कहें तो आपके पास बैठ जाऊं..?"

हाथ पर बंधी हुई सफेद पट्टी को देख कर अशोक का जी अजीब सा हो गया। क्या जवाब है उसके सवाल का उनके पास…? क्या वो बिठा पाएंगे उसे अपने पास..? वो खुद पर झुंझलाने लगा कि क्या जरूरत थी उसे किसी के बारे में इतनी जांच पड़ताल करने की। कोई कहीं भी.., कैसे भी बैठे.. उसे क्या लेना देना…।

जल्दी से बाहर लगे नल से हाथ धो कर वो अपनी सीट पर आ कर लेट गए। पर उस आदमी का हाथ उनके जेहन से उतर ही नही रहा था। जितना वो उसे भूल कर सोने की कोशिश करते दिल दिमाग पर वो उतना ही और छा जाता। बड़ी हुई दाढ़ी मूंछ, के बीच में चमकते हुए बड़े बड़े दांत। उफ्फ ऐसा अजीब सा चेहरा था उसका। पर अशोक ने अपने अब तक के जीवन में कई कोढ़ियों को देखा था। अलग अलग मंदिर, दरगाह, मस्जिद की सीढ़ियों पर बैठ कर भीख मांगते हुए। उनके चेहरे पर एक अजीब सी लालिमा होती थी। पर.. इस.. आदमी में ऐसी कोई बात उन्हें नजर नही आई थी। क्या ये वाकई में कोढ़ी था..! या इसने झूठ बोला…! अगर झूठ बोला तो आखिर क्यों कोई खुद को इतनी खराब बीमारी से पीड़ित बताएगा। जिसका कोई नाम भी नही सुनना चाहता है। अशोक ने करवट बदल कर दूसरी ओर मुंह कर के सोने की कोशिश शुरू कर दी।

ऊपर की सीट पर लेटे अमन और पुरवा की आंखों में भी रत्ती भर नींद नहीं थी। वो जब तक साथ थे, हर पल एक दूसरे को निहार कर अपने अपने दिलों में इस मधुर स्मृति को संजो लेना चाहते थे।

छोटे बड़े स्टेशनों पर रुकते हुए गाड़ी अपनी मंजिल की ओर तेजी से बढ़ती जा रही थी। हर स्टेशन पर कुछ लोग चढ़ते तो कुछ लोग उतर रहे थे।

किसी तरह सोचते सोचते अशोक को कब नींद आ गई पता भी नही चला। सुबह जब दिन चढ़ आया और सूरज की चमक सीधा चेहरे पर पड़ी तो अशोक उसकी गर्मी से जाग गए। उर्मिला अब सो रही थी। और उसके पैताने जरा सी जगह में सिकुड़ कर पुरवा और अमन बैठे हुए थे। उसकी सीट पर तो वो खुद पैर फैला कर सो रहा था। अशोक ने जब अमन को सिमट कर बैठे हुए देखा तो उसे शर्मिंदगी महसूस हुई। वो उठ कर बैठ गया और अमन को अपने पास बुला कर बोला,

"आओ बेटा..! यहां आराम से बैठो। मैं तो इतनी गहरी नींद में सो गया कि सुबह होने का पता भी नही चला।

अशोक और उर्मिला के साथ बातें करते हुए अमन और पुरवा आपस में भी कुछ बातें कर ले रहे थे।

अमन अशोक और उर्मिला से अपने लाहौर जाने का राज नही छुपा पाया। वो सब कुछ बता दिया और पूछा,

"क्यों… मौसी..! मैने अम्मी अब्बू से झूठ बोल कर लाहौर जाने का फैसला कर के कुछ गलत तो नहीं किया।"

उर्मिला बोली,

"बेटा..! मैं गंवार क्या जानू.. सही और गलत। पर इतना जानती हूं कि डॉक्टर बन कर दीन दुखी, गरीब मरीज की सेवा करना बहुत अच्छा… पुण्य का काम है। किसी बीमार से पूछो डॉक्टर और दवाई की कीमत..?"

अशोक बोले,

"हां बेटा..! अगर झूठ बोलने से किसी का नुकसान ना हो, किसी को तकलीफ ना हो तो झूठ बोलना कोई गुनाह नहीं है। एक बार दाखिला ले लोगे.. पढ़ाई शुरू हो जाएगी तो फिर सलमा बहन और साजिद भाई का एतराज भी खत्म हो जाएगा। बेटे के इस नेक राह पर चलने पर उनको भी गर्व होगा एक दिन देखना तुम।"

अशोक ने अमन को समझाते हुए कहा।

ट्रेन बार बार रुक रही थी। शाम ढलने लगी अभी लाहौर नही आया था। अपने तय समय से काफी पीछे चल रही थी ट्रेन।

शाम का धुंधलका गहराने लगा तब गाड़ी लाहौर से कुछ दूर रह गई।