Kataasraj.. The Silent Witness - 96 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 96

भाग 96

अब आगे जाने की व्यवस्था करनी थी। विक्टर और अमन के साथ पुरवा बाऊ जी को बिठा कर वही पास में खड़ी थी। विक्टर लंबे सफर के बाद थका हुआ था। उसे रिटायरिंग रूम में जा कर आराम करना था। फिर उसे यही ट्रेन ले कर वापस लाहौर जाना था।

पुरवा अमन और विक्टर से बोली,

"आप दोनो जाइए। मैं आगे बाऊ जी को ले कर उधर की ट्रेन आने पर चली जाऊंगी।"

पर उसकी कंप कपाती आवाज से अकेले सफर का डर साफ बयां हो रहा था।

अमन अगर साथ जाता तो संभव है दस घंटे में वापस नहीं लौट पाता। फिर गाड़ी के चले जाने के बाद वापस लौटने का कोई पुख्ता साधन मिलता इसमें संदेह ही था।

वो बेचैन सा इधर उधर देख रहा था। कुछ समझ नही आ रहा था। अकेले कैसे पुरवा को जाने दे..!

विक्टर ने कहा,

"चलो अमन…! बाहर हमारे साथ। अपना बैग रिटायरिंग रूम में रख दूं। फिर कुछ खाने पीने का ले कर पुरवा और बाऊ जी को दे दें।"

इतना कह कर पुरवा को अपना और बाऊ जी का ख्याल रखने को कह कर अमन और विक्टर रेलवे स्टेशन के बाहर निकल आए।

रिटायरिंग रूम में विक्टर ने अपना बैग रक्खा और एक होटल के सामने खाना पैक करने को बोल कर आस पास खड़े लोगों से बातें करने लगा।

विक्टर सिवान की ओर जाने वाले साधन के बारे में पता कर रहा था। पर कोई भी उचित साधन के बारे में नही बता पा रहा था। सभी दो बार साधन बदलने की बात बता रहे थे।

होटल का मालिक सब कुछ देख सुन रहा था।

उसने विक्टर को सोने पास बुलवाया और पूछा,

"क्या बात है भाई…? देख रहा हूं सिवान जाने के साधन के बारे में पूछ रहे हो।"

विक्टर बोला,

"हां..! हमें जरूरत है। पर कुछ मिल ही नही रहा। दरअसल मैं ट्रेन में गार्ड हूं। मेरे खास हैं एक लोग, उनकी तबियत खराब है। वो ज्यादा चल फिर नही सकते, साथ में उनकी बेटी भी है। उन्हें ही भेजना है।"

होटल मालिक बोला,

"सिवान में कहां जाना हैं..?"

अब विक्टर को कुछ पता नहीं था। इसलिए उसने अमन को बुलाया और बताने की कहा।

"अमन बोला,

"वो इस्माइलपुर गांव है ना। उसके पास ही सिधौली गांव है। वहीं जाना है।"

वो मुस्कुरा कर बोला,

"भगवान ने तुम्हारी सुन ली। आज उधर ही बाल बाबू का जलसा है। लोग इधर से उधर भाग रहे हैं ना। कुछ मुस्लिम नही जाना चाहते देश छोड़ कर ऊ पाकिस्तान में। इसलिए गांधी बाबा बोले है कि जो नही जाना चाहते है कोई जबरदस्ती है। आराम से रह सकता है। पर इधर वाले उधर वाले के किए का बदला लेने के लिए खौल रहे है। यही समझाने के लिए, उन्हें शांत करने के लिए जगह जगह नेता लोग को भेजा जा रहा कि शांति बनाए रक्खे। उपद्रव, हिंसा ना करें। गाड़ी जा रही है। उसी में तुम्हारी व्यवस्था करवा देता हूं। बुद्ध चौराहे पर गाड़ी रुकेगी। जब तक भाषण होगा तब तक ड्राइवर को कुछ रुपए दे कर अपने गांव तक ले कर चले जाना। क्यों ठीक है ना।"

विक्टर और अमन के ये होटल मालिक का बताया तरीका ही सबसे उचित लगा जाने के लिए।

अमन ने पूछा,

"चचा..! ये गाड़ी वापस भी तो लौटेगी ना।"

"हां बेटा..! लौटेगी ही। वहां रुकने का कोई कार्यक्रम नहीं है। बस आधे घंटे में जत्था चला जायेगा। जल्दी करो। उधर देख रहे हो ना जो गाडियां लगी हुई हैं। उधर ही मिलो। मैं भी आ रहा हूं।"

समय नही था। तुरंत ही चाय, मठरी और पाव ले कर वो वापस लौट पड़े।

जल्दी जल्दी पुरवा ने बाऊ जी को खिलाया और साथ में खुद भी अमन के बार बार टोकने पर खाती रही। पंद्रह मिनट में वो चलने को तैयार थे।

अशोक को पुरवा और विक्टर अपने साथ ले कर चलने लगे और अमन ने सामान उठा लिया।

उनके वहां पहुंचने से पहले ही होटल मालिक उनके जाने के लिए जगह का प्रबंध कर चुका था।

अमन किसी भी तरह आधे रास्ते में पुरवा को छोड़ने को तैयार नहीं हुआ। अब चाहे लौट पाए या नही। वो पुरवा और बाऊ जी को बिना उनके घर पहुंचाए नही लौटेगा। आज एक परिवार उजड़ गया है, जिसके जिम्मेदार कही ना कहीं वो भी है। मन से इस अपराध बोध को निकालना संभव नहीं था कि अगर अम्मी अब्बू इतनी जिद्द नही किए होते साथ चलने की तो आज ये सब कुछ नही हुआ होता। उर्मिला मौसी अपने घर में आज सुरक्षित, जीवित होती।

एक सीट खाली करवा कर उसपे अशोक और पुरवा को बिठा दिया। अमन वहीं बगल वाली सीट के पास खड़ा था तो उसपे बैठे हुए आदमी ने जरा सा सरक कर अमन को भी बैठा लिया। सब के बैठते ही बस चल पड़ी। विक्टर चिल्ला कर हाथ हिला कर बोला,

"अमन..! तुम जल्दी आने की कोशिश करना। मैं इंतजार करूंगा।"

"ठीक है। जल्दी से पहुंचा कर आता हूं।" कह कर अमन ने भी हाथ हिलाया।

विक्टर अपने रिटायरिंग रूम में खाने और सोने चला गया।

गाड़ी चलते ही उसमे बैठे लोग बातों में मशगूल हो गए। सब की अपनी अपनी राय थी, आज पूरे देश के फैले माहौल के बारे में। किसी वो ये जलसे का आयोजन सार्थक समझ आ रहा था तो किसी को निरर्थक। किसी को मुसलमानो को इस देश में रहने देने की गांधी जी की अपील अच्छी लग रही थी तो किसी को खराब। सब अपने अपने हिसाब से समीक्षा कर रहे थे।

पुरवा का मन बेचैन हुआ जा रहा था। अब बस तीन साढ़े तीन घंटे वो अपने घर में होगी। अड़ोसी पड़ोसी आने की सुन कर मिलने दौड़े आयेंगे अम्मा बाऊ जी से। आखिर वो इतने बड़े तीर्थ यात्रा को गए थे। अम्मा को नही देख कर और बाऊ जी को इस हालत में देख कर वो सैकड़ों सवाल उससे पूछेंगे। क्या जवाब देगी वो..! अम्मा के नही होने का क्या कारण बताएगी वो..? और चाची…! चाची.. तो सवालों के बौछार ही कर देंगी। आखिर अम्मा उनकी चहेती बहु थीं।

ये सब सोच कर दुख और पीड़ा से आंखे नम हो गईं।

अमन देख रहा था। वो बोल,

"हिम्मत रखो पुरु..! अभी तो आगे बहुत हौसले की जरूरत पड़ने वाली है। बहुत से सवालों के जवाब तुम्ही को देने होंगे। और सब कुछ सह कर बाऊ जी को भी संभालना होगा।"

फिर अपने हाथो पर मुक्का मरते हुए बोला,

"एक मैं हूं बेबस। समाज की रवायतों में जकड़ा हुआ.. लाख चाह कर भी तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता। अगर मैं मजबूर ना होता.. देश में इस तरह का माहौल ना होता.. हरगिज भी तुम्हें जाने नही देता।"

फिर विनती करते हुए बोला,

"पुरु..! चलो उतर चलते हैं। कही बिना पहचान के अपनी नई जिंदगी शुरू करेंगे। सारी मुसीबत की जड़ ये पहचान ही तो है कि मैं मुस्लिम हूं तुम हिंदू हो।"