Kataasraj.. The Silent Witness - 116 - Last Part books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 116 - अंतिम भाग

भाग 116

अमन उसके हठ से हार गया और घर ही ले आया।

अमन ने अपना पूरा घर पुरवा को व्हील चेयर पर बिठा कर घुमाया। फिर अपने बुक रैक के पास ले आया। और दिखाते हुए बोला,

"देखो.. पुरु..! तुम्हारी निशानी कितना संजो कर रखे हुए हूं मैं..।"

पुरवा को बहुत अच्छा लगा ये देख कर कि अमन ने उसकी छोटी सी निशानी को भी कितना सहेज कर रक्खा हुआ है।

फिर अमन ने झुक कर उसकी आंखों में झांका और बोला,

"पुरु..! अगर तुम मेरी जिंदगी में आती तो तुम्हें भी ऐसे ही सहेज कर रखता। कभी कोई दुख तुम तक नहीं पहुंचने देता। (फिर बोला) चलो बहुत हो गया एक अच्छे दोस्ती का फर्ज। अब मैं एक अच्छे डॉक्टर का फर्ज निभाऊं। तुम्हे अब आराम करना चाहिए।"

अब तक नौकर ने एक कमरा पुरवा के लिए तैयार कर दिया था। अमन पुरवा को उस कमरे में छोड़ कर वापस लौटने ही वाला था कि नौकर आया वो बोला,

"साहब..! एक साहब का फोन आया है। वो अंग्रेजी में कुछ बोल रहे हैं। मेरी समझ में नहीं आ रहा है। चलिए आप बात कर लीजिए।"

अमन तेज कदमों से ड्राइंग रूम वाले फोन के पास आया। फोन का रिसीवर उठा कर बोला,

"हेलो..! डॉक्टर अमन स्पीकिंग।"

दूसरी ओर से डॉक्टर बेंजामिन लुईस दुबई से बोल रहे थे। वो बोले,

"मैने आपकी भेजी रिपोर्ट देखी है। वैसे तो इस बीमारी में मरीज के ठीक होने की संभावना ना के बराबर होती है। पर नए रिसर्च में कुछ मेडिसिन ऐसी हैं कि जिन्हें एक्सपेरिमेंट के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। आप पेशेंट को ले कर आ जाइए। हम अपना बेस्ट देने की कोशिश करेंगे।"

अमन को बस यही तो इंतजार था। शायद बाबा कटास राज ने अपनी कृपा कर दी।

वो बिना किसी से कुछ बताए .. दुबई जाने की व्यवस्था करने चल दिया।

तीन दिन के अंदर सारी व्यवस्था हो गई।

तब उसने सबको बताया कि वो दुबई जा रहा है पुरवा का इलाज करवाने।

ये सुन कर पुरवा के चेहरे पर चीता की लकीरें उभर आई। वो पूर्वी से बोली,

"पूर्वी….! तुम वापस दिल्ली जाओगी तो सब से क्या कहोगी..? मैं कहां गई..? किसके साथ गई। नही नही अमन रहने दो मैं नही जाऊंगी। ये बिचारी किसको क्या क्या जवाब देगी..? मेरी सारी अधूरी इच्छा पूरी हो गई है। तुम्हें एक ऐसे इंसान के हाथों में सौंप दिया है जो जो अपनी खुशी से पहले तुम्हारी खुशी के बारे में सोचेगा। मुझे वापस दिल्ली ले चलो। मैं तुम पर कोई आंच नहीं आने देना चाहती।"

कह कर पुरवा उदास हो गई।

पूर्वी ने अपना हाथ पुरवा के कंधे पर रक्खा और बोली,

"मम्मी ..! आप चिंता मत करो। सब मुझ पर छोड़ दो मैं सब संभाल लूंगी।"

इतना कह कर पूर्वी उठी और फोन उठा कर दिल्ली अपने घर पर कॉल बुक किया।

थोड़ी देर बाद कॉल आई कि आपकी कॉल कनेक्ट की जा रही है।

फिर दूसरी ओर से महेश की आवाज गूंजी,

"हेलो..! "

पूर्वी बोली,

"पापा..! मैं पूर्वी बोल रही हूं। (फिर सुबुकते हुए बोली) पापा..! मुझसे बड़ी गलती हो गई मम्मी को यहां ला कर। यहां कुछ भी वैसा नही है जैसा सुन कर मैं मम्मी को यहां लाई थी। इतने दिन से इंतजार कर रही थी कि हो सकता है अब सुधार हो जाए। पर मम्मी की हालत बिगड़ती ही जा रही है। आज मम्मी को लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रक्खा गया है। देखिए क्या होता है..?"

महेश दूसरी ओर से "हूं…. हूं…" करते हुए पूर्वी की बात सुनते रहे। फिर बोले,

"बेटा…! अब मैं तो इतनी दूर हूं क्या कर सकता हूं। जो किस्मत में लिखा होगा वो तो होगा ही। उसे तुम या हम थोड़ी ना बदल सकते हैं। तुम अपनी मम्मी का और अपना खयाल रखना।"

पूर्वी बोली,

"ठीक है पापा..! "

फिर फोन का रिसीवर रख दिया।

अमन, विवान, पुरवा, वैरोनिका सब हैरत से पूर्वी का चेहरा देख रहे थे कि आखिर ये क्या कह रही है..? क्या कर रही है..?

पूर्वी ने मुस्कुरा कर सब की और देखा और मुस्कुरा कर बोली,

"क्या…. आप सब मुझे इतने हैरत से क्यों देख रहे है…? माना मैने गलत बोला है। मुझे अपनी मां के बारे में ऐसा नहीं बोलना चाहिए था। पर क्या करें …? अगर किसी अच्छे काम के लिए कुछ झूठ बोलना पड़ जाए तो उस झूठ के लिए भगवान माफी दे देते हैं।"

उसकी बात किसी की समझ में नहीं आई।

वो रहस्यमई अंदाज में मुस्कुरा कर समझाने के अंदाज में बोली,

"अब कल शाम को एक कॉल और जायेगी दिल्ली पापा के पास। उसमें कहा जायेगा कि मम्मी हम सब को छोड़ कर चली गई। उन्होंने अपनी आखिरी इच्छा व्यक्त की थी कि उनका अंतिम संस्कार रावी नदी के किनारे किया जाए। उनकी अस्थियों को भी यही प्रवाहित किया जाए। इसलिए मैंने सब कुछ कर दिया है उनकी आखिरी इच्छा का मान रखते हुए। अब मैं वापस आ रही हूं पापा। मुझे भी बहुत दुख होगा ये सब कहते हुए। पर अपनी मां के लिए मुझे सब कुछ मंजूर है। मम्मी अब अपनी बची हुई जिंदगी अमन अंकल के साथ अपने हिसाब से जिएंगी।"

पूरे दिन जाने की तैयारी होती रही। पूर्वी और विवान वैरोनिका आंटी को अपने साथ दिल्ली ले जा रहे थे। अब वो उन्ही के साथ रहेंगी। अमन ने जाने से पहले अपने बंगले का सौदा कर के नौकरी से रिजाइन दे दिया। सदा सदा के लिए एक नई जगह एक नई पहचान के साथ जीवन बिताने के लिए। सब कुछ निपटाते निपटाते शाम ही गई।

योजना के मुताबिक पूर्वी ने फोन कर के अपने पापा को वही सब बताया जो कल तय किया था।

महेश रोए। पर फिर बेटी को ढाढस बंधाते हुए बोले,

"अब क्या कर सकते है बिटिया हम और तुम। सब कुछ ऊपर वाले के हाथ में है। तुम बस जल्दी से वापस आ जाओ।"

सुबह आठ बजे पुरवा और महेश की उड़ान थी। वो समय से एयर पोर्ट पहुंच गए।

अंदर उड़ान के लिए जाने का समय हो गया।

पूर्वी आंखों में झिलमिलाते आंसू लिए अपनी मम्मी के गले लग गई। वो भरे कंठ से बोली,

"मम्मी ..! आपने बहुत किया अपने पति, अपने बच्चों और परिवार के लिए। अब आपकी जीवन के जितने भी दिन बचे हैं, आप अपनी खुशी के लिए, अपने अनुसार बिताइए।"

पुरवा ने भी बेटी को सीने से लगा कर सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद दिया। अमन ने भी पूर्वी, विवान को गले लगा कर माथा चूम कर सदा खुश रहने का आशीर्वाद दिया।

इसके बाद पुरवा अपनी दुबई की फ्लाइट के लिए चली गई। पुरवा व्हील चेयर पर बैठी हुई थी अमन उसे ले कर चला गया।

पूर्वी नम आंखों से अमन और पुरवा को जाते हुए देखती रही। जब तक वो आंखों से ओझल नहीं हो गए।

उनके ओझल होते ही पूर्वी विवान और वैरोनिका आंटी के साथ दिल्ली के लिए रवाना हो गई।

 

||  समाप्त  ||