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प्रभु श्रीराम का उपहार

वाजिद हुसैन की कहानी

आज उसका जन्मदिन था‌। उसकी बगिया में सूरज की धूप चमक रही थी। नालिनी के फूल अपनी लंबी डंडियों पर संतरियों की तरह सीधे खड़े थे। वे नीचे घास में उगे गुलाबो की तरफ अपेक्षा से देख कर कह रहे थे, 'सुंदरता में हम भी तुमसे कम नहीं।'

नेहा की नज़र तो काले गुलाब के फूल पर गड़ी थी। बगिया में जब वह खिलता है, प्रेमी युगल मुंह मांगा मूल्य देने को तत्पर रहते पर नेहा कहती थी, 'इसका मूल्य चुकाना इंसान के बस में नहीं है, यह तो प्रभुु के लिए खिला है, जो बगिया के बीच एक छोटे से मंदिर में विराजमान हैं।' यह मंदिर उसके दादा ने बनवाया था। एक पार्ट टाइम पंडित जी भी नियुक्त किए थे, जिनका काम सफाई- सुथराई करके प्रभु की मूर्ति पर पुष्प चढ़ाना था। नेहा के मम्मी- पापा की एक्सीडेंट में मृत्यु के बाद वर्षों तक मंदिर उपेक्षित रहा। जब से नेहा ने होश संभाला है, वह बड़ी श्रद्धा के साथ मंदिर की देखभाल करती थी। वह एम.एस‍.सी. पास करने के बाद टैगोर पब्लिक स्कूल में प्रधान अध्यापिका हो गई थी। उसका जीवन व्यस्त हो गया था, फिर भी वह श्रीराम की मूर्ति पर फूल चढ़ाना न भूलती थी।

एक दिन बगिया में एक सुंदर काला गुलाब खिला जिसे लेकर वह मंदिर में गई। वहां उसकी हम उम्र स्त्रियां रंग-बिरंगे वस्त्राभूषण पहनकर अपने पति के साथ पूजन कर रही थीं।...नेहा की आंखें सजल हो गईं। उसने अपने भाग्य को कोसा। वह बाईस वर्ष की हो गई थी। काश उसके मम्मी-पापा होते तो कुआरी न होती।'

उसकी पीणा देख प्रभु का हृदय पसीज गया। उन्होंने नेहा से कहा, 'तुम्हारे अगले जन्मदिन पर एक काला गुलाब बगिया में खिलेगा, जो मेर लिए नहीं, तुम्हारे प्रियतम के लिए होगा, निसंकोच उसे भेट कर देना।'

नेहा बेसब्री से अपने प्रियतम का इंतिज़ार कर रही थी। रंग बिरंगी तितलियां अपने पंखों पर सुनहरा पराग लिए इधर- से- उधर उड़ रही थी। वे बारी-बारी से हर फूल पर जातीं। नन्ही गिरगिटें दीवारों से निकल कर धूप सेक रही थीं। धूप की गर्मी से अनार दरककर फुट गए थे और वे अपने लाल रक्तिमम हृदय दिखा रहे थे। यहां तक की जालियों और पथ की मिट्टी में उगने वाले पीले नींबूओं का रंग भी सूर्य का प्रकाश पाकर निखर आया था। रेस्टोनिया के पेड़ों ने भी अपने रगीन फूल खिलाकर हवा को सुगंध से भर दिया था।

अकेली नेहा काले गुलाब के फूल के इर्द-गिर्द चहल क़दमी कर रही थी। आम दिनों में वह अपने किसी भी हम उम्र दोस्त को आमंत्रित करके उसके साथ अपना मन बहलाती थी पर आज वह हर आगंतुक में अपना जीवन साथी तलाश रही थी।

शाम का किरमज़ी रंग इस किनारे से उस किनारे तक फैलता गया और किरमज़ी से सुरमई और सुरमई से सियाह होता गया। फिर चांद निकल आया और वह आ गया। तेज़ क़दमों से चलता हुआ‌। वह बिल्कुल उसके करीब आके रुक गया। अपलक उसके सौंदर्य को निहारता रहा। उसने आयस्ता से कहा 'हाय! काला गुलाब चाहिए।'

नेहा कनखियो से उसके आकर्षक चेहरे और भूरी आंखों को देखने लगी। फिर उसके होठों पर मुस्कुराहट आई और उसने काला गुलाब उस युवक को दे दिया। युवक ने कहा, 'थैंक्यू नेहा।' नेहा ने आश्चर्य से पूछा, 'आप मेरा नाम कैसे जानते हैं?' युवक ने हंसकर कहा, 'कल तुम मेरे सपने में आयीं थीं। तुमने मेरे साथ बगिया में झूला झूला था। तभी किसी ने तुम्हें नेहा कहकर पुकारा था। मैं तुम्हें पुकारता रहा, तुम चली गईं।' नेहा ने चौक कर कहा, 'मैं!' 'बताइए, क्या पहने हुए थी?'

'गुलाबी साड़ी में ग़ज़ब ढा रही थी।'

'वह अवाक रह गई, हंसकर कहा, 'बातें दिलचस्प करते हो।'

फिर राजेश ने घड़ी की ओर देखा और चलने लगा। चलते-चलते उसने कहा, 'फिर कब मिलोेगी?' ...नेहा ने कहा, 'कल यहीं इसी वक्त।'

राजेश की नियुक्ति एस.डी.एम के पद पर हो गई थी। एक और अच्छी खबर भी उसे मिली। वह कभी- कभी कविताएं भी लिखता और वे कई बार प्रकाशित भी हो जाती। एक संस्था थी, जो वर्ष के सर्वश्रेष्ठ कवि को सम्मानित करती थी। पिछले वर्ष के सर्वोत्तम कवि की उपाधि भी उसे मिली थी। इस बात की चर्चा उसके गांव में ‌हुई और उसकी फोटो अखबार में छपी। जैसी की उम्मीद की जा सकती है, उसके जीवन में सब अच्छा हो रहा था और वह हवा में उड़ रहा था। वह फूल लेकर खुशियों को शेयर करने मंगेतर के घर जा रहा था जो एक बड़े व्यापारी की इकलौती पुत्री थी। रास्ते में वह सोचनेे लगा, 'धन की पुजारिन सरोज को यह बेशक़ीमती फूल देना फूल की तौहीन होगा।' उसने फूल को अपने कोट में लगा लिया और मिठाई लेकर अपनी भावी सास के घर गया। उसने सभी खुशखबरिया एक साथ सुनाईं। मिठाई देखकर वह गुस्से में आगबबूला होकर बोली, 'तुम्हें इतना भी शऊर नहीं है कि सरोज के लिए एक जोड़ सोने के कंगन ही ले आते।' और खरी-खोटी सुनाने लगी, जिसमें बेटी ने भी उसका साथ दिया। सरोज को प्रेम या शादी के बारे में इतना ही पता था, जितना उसकी मां ने उसे बताया था। बात बढ़ गई, सरोज ने ग़ुस्से में मंगनी तोड़ दी।

अगले दिन सवेरे से तेज़ हवाऐं चल रही थी। ज्यों- ज्यो रात होती गई, आंधी पानी का वेग बढ़ता गया। बिस्तर में दुबका राजेश सोच रहा था, 'कितनी अलग है, दो औरतें?' मोटी और नाटी सरोज क्रोध में डायनासोर लगती है, नेहा हस्ती है,उसके सुंदर दांत दिखाते हैं,जी चाहता है माथे पर बोसा ले लूं। उसका मन नेहा के पास जाने के लिए कुलाचे भर रहा था, पर नींद ने उसे आगोश में ले लिया था। इश्क़ की ख़ुुमारी में वह बगिया की ओर चल पड़ा जो पानी भरने से झील बन चुकी थी। वह इसी कशमाकश में था, 'झील से कैसे पार पाऊं?' तभी उसे आकाशीय विद्युत में नेहा दिखाई दी, झिन्नी वस्त्र पहने हुए, जो भीगकर उसके बदन से चिपक गए थे। वह इश्क की किश्ती में सवार होकर झील के पार पहुंच गया। नेहा ने उससेे कहा, 'कितनी देर कर दी, मैं कब से तुम्हारा इंतिजार कर रही हूं?' मौसम बेइमान है, आओ बादलों की सैर करें।' वह उसे सुदूर आसमान में ले गई। बादलों के ऊपर तारे खिले हुए थे। नेहा ने उससे कहा, क्या तुम मेरे लिए आसमान से तारे तोड़कर ला सकते हो?'... 'कहकर देखो।' राजेश ने कहा।... 'अभी चाहिए।' नेहा ने कहा और उसका हाथ छोड दिया। वह गिरने लगा, डर से मां को पुकारा और छपाक से पानी में गिरा। बारिश रुक चुकी थी और उसके मन का तूफान शांत हो चुका था।

उधर नेहा चिंतित थी, सेवरे की फ्लाइट से उसे ऑफिशयल वर्क से पुणे जाना है। मन ने कहा, बारिश रुकने के बाद राजेश आएगा, सूनी बगिया देख सोचेगा, 'एक दिन भी साथ न निभा सकी, जीवन भर का साथ कैसे निभाएगी?'

नेहा के चले जाने से राजेश का जीवन सूना हो गया था। गलियों में बाज़ारो में फूल बेचने वालियों को देखता, तो वह याद आती।

नेहा का जीवन एक बार फिर अर्थहीन हो गया था। उसके आंसुओं ने प्रभु की चिंता भी बढ़ा दी थी। उन्होंने अनगिनत कुंवारीयों के वर ढूंढे थे, पर राजेश का न पता था न ठिकाना, न शक्ल देखी न सूरत, कहां ढूंढते? पर नेहा दृढ़ थी, 'प्रभु श्रीराम का उपहार' उसे अवश्य मिलेगा। उसे विश्वास था, प्रभु की डिक्शनरी में 'ना' शब्द नहीं है और इसी विश्वास के साथ वह जिए जा रही थी।

गुलदाउदी खिलने का मौसम आ गया था। प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी टैगोर पब्लिक स्कूल ने गुलदाउदी प्रतीयोगिता का आयोजन किया था। एस.डी.एम राजेश अग्रवाल मुख्य अतिथि थे। वह सभी प्रतियोगियों के फूलों का निरीक्षण कर रहे थे। नेहा की बगिया के फूलों ने उनका मन मोह लिया। तभी आयोजकों ने उनसे कहा, 'यह हमारा सौभाग्य है, इस बगिया की मालकिन नेहा अग्रवाल, हमारे स्कूल की प्रधान अध्यापिका है।

राजेश अग्रवाल और नेहा अपने प्यार को छुपा नहीं सके और बधाईयों का सिलसिला वहीं से शुरू हो गया। एस.डी,एम की गाड़ी में बैठकर नेहा अपने प्रियतम को साथ लेकर प्रभु श्रीराम से थैंक यू कहने के लिए गई, तो मंदिर सुगंध से महक उठा और प्रभु के होठों पर मुस्कान आ गई।

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