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मातृभाषा

आजकल लोगों में एक अलग भावना पैदा हो चुकी है गाँव छोड़ना और अपनी मातृभाषा भूलना। जहां तक बात है गाँव छोड़ने की तो समझ में आता है कि शहरों में गाँव के अपेक्षा अच्छी सुविधाएं मिलती हैं जैसे- नौकरियां, अच्छे अस्पताल, अच्छे स्कुल, कॉलेज। लेकिन गाँव जैसे सुकून नहीं मिलते। गाँव में बाग बगीचों, खेत खलिहान, खुले वातावरण में घूमना-फिरना, प्राकृतिक जल। जिससे आपका मन स्वच्छ व स्वस्थ रहता है। शहरों में ये सुविधाएं नहीं मिलती, नाहीं गाँव जैसे भाईचारा। वहां आप कभी-कभी घूमने के लिए थोड़ी अच्छी जगह जाएंगे। दूसरी बात मातृभाषा, आजकल लोगों में अपने मातृभाषा को लेकर गर्व करने के जगह शर्म आ रही है। खासकर यूपी-बिहार के लोगों को मैंने देखा है कि शहरों में जाते ही लोग अपने मातृभाषा को भुलाने की कोशिश करते हैं। बात बात में गाँव के भाषा को अवहेलना करना शुरू कर देते हैं। यूपी-बिहार की भाषा भोजपुरी है, जबकि भोजपुरी एक सरल और मीठी भाषा है। लेकिन भोजपुरी मिट्टी के लोग ही भोजपुरी को नीचा दिखाने की कोशिश करना शुरू कर देते हैं। भोजपुरी मिट्टी के बड़े लोग जैसे हमारे प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी, गायिका शारदा सिन्हा जी, गायक उदित नारायण जी, वीर कुंवर सिंह जी भोजपुरी को सम्मान देते रहे हैं। वहीं आमलोग भोजपुरी को गंदे नजरिए से देखते हैं। यूपी-बिहार के अलावा गुजरात के लोग गुजराती, महाराष्ट्र के लोग मराठी, बंगाल के लोग बंगाली, असम के लोग आसामी, पंजाब के लोग पंजाबी, हरियाणा के लोग हरियाणवी, इत्यादि सब अपने मातृभाषा का सम्मान करते हैं। वहीं भोजपुरी के लोग भोजपुरी की अवहेलना करते नहीं थकते। चूंकि यहां बात है मातृभाषा की, मातृभाषा का मतलब होता है माँ की भाषा। जब शुरुआत में माँ से जो भी भाषा सीखते हैं वही हमारी मातृभाषा है। जिस मिट्टी में खेलकर ,कूदकर, बचपन बिताकर बड़े होते हैं, वही हमारी मातृभूमि है, और जिस मिट्टी में, जिस भाषा मे, जिस गाँव में, तथा जिस देश में हम जन्म लेते हैं, वही हमारी जन्मभूमि है। सब मिलाकर एक बात कि अपनी मातृभाषा और जन्मभूमि को कभी छोड़ना और भूलना नहीं चाहिए। क्योंकि वही हमारी पहली माँ मातृभाषा है। आजकल के युवा नए ज़माने और नए ट्रेंड के बारे में जानकारी देते हैं तथा मॉडर्न होने की सलाह देते हैं शायद उनको नहीं मालूम कि जो वो आज नए ज़माने, नए ट्रेंड और शहरों की बातें करते हैं उनमे से अधिकांश भाग लगभग 100% में से 80% पुराने ट्रेंड से ही नया जन्म लिया है। आज जो लोग बड़े बड़े घर, गाड़ियां, तरह-तरह के शौक पाल रहे हैं शायद उन्हें नहीं मालूम कि यह सब पुराने लोगों हमारे पूर्वजों द्वारा बनाई गई हैं। पुराने लोग ही इनकी नीव रखी है। आज जो गाड़ियां की बात करते हैं तो इसमे पुराने जमाने और पुराने लोगों की देन है जैसे रथ, पालकी, पहिया, बैलगाड़ी तथा बाद में पुराने ही लोग इलेक्ट्रिक गाड़ियां, दो पहिया, चार पहिया, हवाई जहाज, पानी की जहाज, साइकिल, मोटर साइकिल बनाए। गीत - संगीत, तो यही हमारी मातृभूमि यानि मातृभाषा हुयी। गाँव से शहर बसा है शहर से गाँव नहीं। गाँव के किसानों की देन से ही शहर के लोगों को खाने का अनाज मिलता है। इसलिए इस लेख का उद्देश्य है कि आप अपना देश, प्रदेश, गाँव, जन्मभूमि, मातृभाषा तथा अपना अतीत कभी ना भूलें। अपने मातृभाषा की रक्षा करने की कोशिश करें। गाँव को शहरीकरण होने से रोकें।

धन्यवाद

Er Vishal Kumar Dhusiya